
वैद्यनाथ मंदिर ( Baidyanath Jyotirlinga Temple ) भारत के झारखण्ड राज्य के देवघर में अवस्थित है जहाँ भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल वैद्यनाथ नामक पवित्र शिवलिंग स्थापित है। देवघर में मौजूद यह शिवलिंग सिद्धपीठ माना जाता है जिस कारण इसे कामना लिंगम भी कहते है। यह स्थान Baba Baijnath Dham और Baidyanath Dham जैसे अन्य नामों से भी लोकप्रिय है।
बैजनाथ मंदिर ( Baijnath Mandir ) के निर्माण से जुड़े कोई खास तथ्य तो इतिहास में नहीं मिलते हैं पर मंदिर के सामने के कुछ हिस्सों को देख कर ज्ञात होता है कि इस मंदिर को सन 1596 में गिद्धौर के महाराजा के पूर्वज पूरन मल द्वारा बनवाया गया था।
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग ( Vaidyanath Jyotirlinga ) की स्थापना से संबंधित कहानी बड़ी ही रोचक और निराली है। कहानी कुछ इस प्रकार है कि भगवान शिव का परम भक्त रावण हिमालय पर्वत पर तपस्या कर रहा था ताकि वह भगवान शिव को अपनी भक्ति से प्रसन्न कर सके। इसके लिए दशानन रावण अपने एक-एक सिर को काटकर शिवलिंग पर चढाने लगा।
अब तक वह अपने 9 सिरों को शिवलिंग पर अर्पित कर चुका था। अब बारी थी उसके 10वें सिर की, जैसे ही रावण अपना 10वां सिर काटने वाला था उसी समय भगवान शिव वहां प्रकट हो जाते हैं। भोलेनाथ ने वहां प्रकट होकर रावण के घावों को ठीक किया और उसे फिर से उसे दशानन बना दिया। शंकर भगवान रावण की भक्ति से इतने अधिक प्रसन्न होते हैं कि उसे वर मांगने को कहते हैं।
रावण ने वरदान स्वरुप उस कामना रूपी शिवलिंग को ही अपने घर लंका ले जाने के लिए माँगा। भगवान शिव के परमभक्त रावण इतना अधिक शक्तिशाली था कि उसने कई देवताओं, यक्षों और गंधर्वों को लंका में कैद कर रखा हुआ था। इसपर अब वह अपने प्रभु भोलेनाथ को भी लंका ले जाने की ज़िद पर अड़ गया।
उसने भगवान शिव के समक्ष अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए कहा कि भगवान शिव कैलाश को छोड़कर लंका में निवास करें। भोलेनाथ तो रावण की भक्ति से प्रसन्न थे इसलिए उन्होंने रावण की इस इच्छा को पूर्ण कर तथास्तु कह दिया पर साथ में यह बात भी शर्त के रूप में कही कि यदि तुमने इस कामना शिवलिंग को बीच मार्ग में कहीं रख दिया तो मैं उसी स्थान पर रह जाऊंगा और तुम्हारे साथ लंका नहीं आऊंगा। रावण को शायद यह शर्त बहुत मामूली लगी और उसने यह आसानी से मान ली।
अब रावण शिवलिंग को लेकर लंका के मार्ग की ओर निकलने लगा। वहीँ दूसरी तरफ रावण और भगवान शिव की वार्ता सुन सभी देवता चिंता में आ गए। सभी देवता गण समाधान के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे और सारी बात बताई। देवताओं की चिंता का समाधान करने के लिए विष्णु जी ने लीला रची और वरुण देव को आचमन के जरिए रावण के पेट में घुसने के लिए कहा। रावण देवघर के मार्ग तक पहुंचा ही था कि उसे लघु शंका लगी।
इसके लिए उसने शिवलिंग वहां मौजूद एक ग्वाले को थोड़ी देर के लिए पकड़ने को दिया। उस ग्वाले ने उस शिवलिंग को वहीँ पर रख दिया। तभी से वह स्थान Baidyanath Jyotirlinga के नाम से जाना जाने लगा।
जब दशानन रावण अपने 10 सिरों को एक-एक कर काटकर शिवलिंग पर अर्पित कर रहा था तब 10 वां सिर काटते समय भगवान शिव ने वहां प्रकार होकर रावण के घावों को भरा था और भक्ति से प्रसन्न होकर उसे फिर से दशानन बना दिया था। रावण के घावों को भरने के कारण ही भगवान शिव Baba Baidyanath कहलाये।
जिस प्रकार भगवान शिव देवघर में बाबा वैद्यनाथ बनकर अपने भक्तों का दुःख हर लेते है उसी प्रकार भगवान शिव का महा मृत्युंजय रूपी कवच ( Maha Mrityunjaya Kavach ) भी भक्तों को काल और मृत्यु के भय से मुक्ति दिलाता है। जातक इस कवच को धारण कर घर बैठे-बैठे ही भगवान शिव के वैद्य स्वरुप को महसूस कर सकते हैं। माना जाता है कि भगवान शिव के महा मृत्युंजय कवच में इतनी शक्ति समाहित है जो मरते व्यक्ति में भी प्राण डाल दे।
त्रेतायुग में रावण ने कैलाश पर्वत से लाये हुए शिवलिंग को झारखंड के देवघर नामक स्थान पर रखा था जिसे आज Baijnath Dham के नाम से जाना जाता है।
Baba Baidyanath Jyotirlinga Temple भगवान शिव को समर्पित एक प्रसिद्ध धाम है जिसके बारे में मान्यता है कि यहाँ मौजूद Baba Baijnath अपने भक्तों के सभी दुःख और कष्ट वैद्य बनकर हर लेते हैं और एक खुशहाल और दीर्घायु वाला जीवन प्रदान करते हैं। बैजनाथ वही स्थान है जहाँ पर रावण ने कैलाश पर्वत से लाये हुए शिवलिंग को ग्वाले के हाथ थमाया और उसने कामना लिंगम वहीँ पर रख दिया था और भगवान शिव द्वारा दी गई शर्त के अनुसार Baba Baidyanath Jyotirlinga वहीँ पर स्थापित हो गया। रावण की लाख कोशिशों के बाद भी उसे वहां से उठाया न जा सका।