माँ वैभव लक्ष्मी व्रत का महत्व क्या है? ( Maa Vaibhav Laxmi Vrat ka mahatva kya hai? )
माता लक्ष्मी के आठ रूपों में से एक रूप को वैभव लक्ष्मी कहा जाता है। हिन्दू धर्म में माँ वैभव लक्ष्मी व्रत को धन, वैभव, सुख और समृद्धि प्राप्त करने के लिए किया जाता है। देवी लक्ष्मी के इस व्रत को स्त्री या पुरुष कोई भी रख सकता है। जिन लोगों के जीवन में आर्थिक संकट लम्बे समय से बना हुआ है और या फिर वे गृह कलेश आदि से परेशान हैं तो उन्हें इस व्रत का पालन अवश्य ही करना चाहिए। आज के इस लेख में हम माता वैभव लक्ष्मी की महिमा, Lakshmi ji ki Kahani, उनकी पूजा विधि और व्रत नियमों और कुछ महत्वपूर्ण सवालों के बारे में जानेंगे।
वैभव लक्ष्मी व्रत पूजा कैसे करें? ( Vaibhav Laxmi Vrat puja kaise karen? )
आइये जानें Vaibhav Laxmi Vrat Vidhi :
1. शुक्रवार के दिन ब्रह्ममुहूर्त में स्नानादि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर माता लक्ष्मी की प्रतिमा रखें।
3. माता को श्वेत या लाल पुष्प अर्पित करते हुए व्रत का संकल्प लें।
4. इसके बाद माँ लक्ष्मी को लाल या श्वेत चन्दन का तिलक लगाएं।
5. इसके उपरान्त माता वैभव लक्ष्मी को अक्षत, फल, कमलगट्टा चढ़ाएं।
6. फिर घी का दीपक और धूप जलाकर माता लक्ष्मी की आरती करें।
7. अब आसन पर बैठकर माँ लक्ष्मी बीज मंत्र का 108 बार जाप स्फटिक माला से करें।
”ऊँ श्रींह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मी नम:।।”
8. अपनी आर्थिक समस्या से निजात पाने के लिए इसी दिन Dhan Laxmi Kuber Yantra को घर में स्थापित करें।
9. माता लक्ष्मी की विधिपूर्वक उपासना करने से माँ अवश्य ही अपने भक्तों से प्रसन्न होती हैं।
1. शुक्रवार के दिन ब्रह्ममुहूर्त में स्नानादि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर माता लक्ष्मी की प्रतिमा रखें।
3. माता को श्वेत या लाल पुष्प अर्पित करते हुए व्रत का संकल्प लें।
4. इसके बाद माँ लक्ष्मी को लाल या श्वेत चन्दन का तिलक लगाएं।
5. इसके उपरान्त माता वैभव लक्ष्मी को अक्षत, फल, कमलगट्टा चढ़ाएं।
6. फिर घी का दीपक और धूप जलाकर माता लक्ष्मी की आरती करें।
7. अब आसन पर बैठकर माँ लक्ष्मी बीज मंत्र का 108 बार जाप स्फटिक माला से करें।
”ऊँ श्रींह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मी नम:।।”
8. अपनी आर्थिक समस्या से निजात पाने के लिए इसी दिन Dhan Laxmi Kuber Yantra को घर में स्थापित करें।
9. माता लक्ष्मी की विधिपूर्वक उपासना करने से माँ अवश्य ही अपने भक्तों से प्रसन्न होती हैं।
वैभव लक्ष्मी व्रत के नियम ( Vaibhav Lakshmi Vrat ke niyam )
1. व्रत वाले दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानदि क्रिया से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें।
2. पूरे दिन निराहार रहकर एक ही बार भोजन ग्रहण करें।
3. मन और शरीर को शुद्ध रखें, बुरे विचार न आने दें।
4. किसी का दिल न दुखाये, कोमल वाणी का ही प्रयोग करें।
2. पूरे दिन निराहार रहकर एक ही बार भोजन ग्रहण करें।
3. मन और शरीर को शुद्ध रखें, बुरे विचार न आने दें।
4. किसी का दिल न दुखाये, कोमल वाणी का ही प्रयोग करें।
वैभव लक्ष्मी व्रत के फायदे ( Vaibhav Lakshmi Vrat ke fayde )
1. मन को शांत और स्थिर रखने के लिए फायदेमंद है।
2. आध्यात्मिक और सकारात्मक विचारों को बढ़ावा मिलता है।
3. दरिद्रता और आर्थिक संकटों को दूर करने में सहायक
4. घर से बुरी शक्तियां दूर रहती हैं।
5. लम्बे समय से चले आ रहे गृह कलेश की समाप्ति होती है।
2. आध्यात्मिक और सकारात्मक विचारों को बढ़ावा मिलता है।
3. दरिद्रता और आर्थिक संकटों को दूर करने में सहायक
4. घर से बुरी शक्तियां दूर रहती हैं।
5. लम्बे समय से चले आ रहे गृह कलेश की समाप्ति होती है।
वैभव लक्ष्मी व्रत कथा ( Vaibhav Laxmi Vrat Katha )
वैभव लक्ष्मी की कहानी ( Lakshmi Mata ki kahani ) कुछ इस प्रकार है कि एक समय जब शहरी जीवन शुरू हो चुका था। सभी लोग भागदौड़ में व्यस्त थे, लोग अपनी जरूरतों को पूरे करने के पीछे इस तरह भाग रहे थे कि उन्हें पूजा-पाठ या ईश्वर, भक्ति या दया भाव आदि से कोई मतलब नहीं रह गया था। दिन पर दिन व्यक्ति पर बुराइयां हावी पड़ रहीं थी। इन सभी बुराइयों के बीच कुछ लोग सभी भी सात्विक स्वभाव के भी रहते थे जिनमें शीला नामक स्त्री भी शामिल थी। शीला काफी शांत स्वभाव वाली और धार्मिक मान्यताओं में विश्वास करने वाली स्त्री थी। शीला का पति भी उसी की तरह सुशील और सात्विक था। दोनों भगवान के पूजन करते हुए और सत्कर्म करते हुए अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे।
जैसे-जैसे समय बीता शीला का पति भी उसी भीड़ में शामिल हो गया जो बुरे कार्यों में लिप्त थे। अब शीला के पति के मन में केवल एक ही स्वप्न था किसी भी हालत में करोड़पति बनना। कारोड़पति बनने की लालसा शीला और उसके पति को जल्द ही दरिद्रता के मोड़ पर ले आई और वे भिक्षा मांगने तक की कगार पर आ खड़े हुए। शराब, जुआ, नशीले पदार्थों का सेवन, मांसाहारी भोजन का ग्रहण ये सब अब शीला के पति की दिनचर्या का एक हिस्सा बन चुके थे। उसने अब अपनी सारी धन दौलत जुए में गंवा दिया।
वैभव लक्ष्मी माता की कहानी ( Vaibhav Lakshmi maa ki kahani ) आगे अब इस तरह है कि यह सब दृश्य देख शीला अत्यंत चिंतित रहने लगी अब वह अपना सारा समय भगवान की भक्ति में ही लगाया करती। एक दिन किसी ने शीला के द्वार पर दस्तक दी। शीला ने जब द्वार खोला तो वहां एक मांजी खड़ी हुई थीं। वह कोई सामान्य मांजी नहीं बल्कि कोई तेजस्विनी की भांति लग रही थी। मांजी के नेत्रों से मानो अमृत बह रहा हो। शीला ने जैसे ही मांजी को देखा उसका शरीर तो जैसे पावन ही हो गया। उसका रोम-रोम खिल उठा। शीला उन्हें घर के अंदर ले आई और एक फटी हुई चादर पर मांजी को बिठा दिया।
अब मांजी बोलीं कि शीला क्या तुमने मुझे पहचाना? तुम हर शुक्रवार माता लक्ष्मी के मंदिर जाया करती थीं मैं भी वहां माता लक्ष्मी के भजन-कीर्तन के लिए आती थी। तुम्हें मैंने बहुत दिनों से मंदिर में नहीं देखा तो सोचा तुम्हारा हाल-चाल जान लूँ। शीला को मांजी की बातों को सुनकर जैसे प्रेम भाव में बहती चली गई। उससे रहा नहीं गया और वह बिलख-बिलख कर रोने लगी। शीला को रोते देख मांजी ने उसे संभाला और कहा कि जीवन में सुख-दुःख तो धूप छाँव की भांति आते रहते है ऐसे समय में तुम्हे खुद पर और ईश्वर पर विश्वास करना चाहिए।
शीला जब शांत हुई तो मांजी ने उसे Vaibhav Laxmi Vrat विधि बताई। उन्होंने आगे कहा कि वैभव लक्ष्मी व्रत बहुत ही सरल है। इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करने से जीवन में सुख-समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है साथ ही माता vaibhav laxmi की कृपा से तुम्हारी हर मनोकमना पूर्ण होगी। शीला ने जैसे ही इस व्रत का संकल्प लिया और उसकी आँख अचानक से खुल गई। सामने कोई भी नहीं था इससे पहले कि शीला कुछ और सोच पाती उसके अंतर्मन से उसे बतलाया कि साक्षात देवी लक्ष्मी जी यहाँ पधारी थीं जिन्होंने उसके दुखों को दूर करने के लिए व्रत विधि बताई।
दूसरे ही दिन शुक्रवार था शीला ने प्रातःकाल स्नानादि कर माता लक्ष्मी के व्रत का विधिपूर्वक पालन किया। आखिर में जब प्रसाद वितरण की बारी आई तो शीला ने सबसे पहले वह प्रसाद अपने पति को खिलाया। प्रसाद ग्रहण करने के बाद शीला के पति का मन जैसे कुछ देर में ही बदल गया। उसने इसके बाद अपनी पत्नी को कभी सताया नहीं और धीरे-धीरे वह सत्कर्मों में लीन होता चला गया। शीला ने कुल 21 शुक्रवार तक vaibhav lakshmi vrat का नियमपूर्वक पालन किया। इसके बाद 21वें शुक्रवार को मांजी के कहे अनुसार उसने सात स्त्रियों को वैभव लक्ष्मी व्रत की सात पुस्तकें उपहार में देकर उद्द्यापन भी किया। अब शीला का पति सात्विक मार्ग पर चलने लगा था और उसने सभी बुरे कार्यों को छोड़ दिया था।
इस तरह वैभव लक्ष्मी के व्रत संकल्प से शीला की मनोकमना पूर्ण हुई। इसी प्रकार जो भी जातक सच्चे मन से हर शुक्रवार वैभव लक्ष्मी के व्रत का पालन कर Vaibhav Lakshmi Vrat Katha का पाठ करता है उसके सभी दुखः दर्द माता लक्ष्मी हर लेती हैं और उसके जीवन में खुशियों की बहार ला देती हैं।
जैसे-जैसे समय बीता शीला का पति भी उसी भीड़ में शामिल हो गया जो बुरे कार्यों में लिप्त थे। अब शीला के पति के मन में केवल एक ही स्वप्न था किसी भी हालत में करोड़पति बनना। कारोड़पति बनने की लालसा शीला और उसके पति को जल्द ही दरिद्रता के मोड़ पर ले आई और वे भिक्षा मांगने तक की कगार पर आ खड़े हुए। शराब, जुआ, नशीले पदार्थों का सेवन, मांसाहारी भोजन का ग्रहण ये सब अब शीला के पति की दिनचर्या का एक हिस्सा बन चुके थे। उसने अब अपनी सारी धन दौलत जुए में गंवा दिया।
वैभव लक्ष्मी माता की कहानी ( Vaibhav Lakshmi maa ki kahani ) आगे अब इस तरह है कि यह सब दृश्य देख शीला अत्यंत चिंतित रहने लगी अब वह अपना सारा समय भगवान की भक्ति में ही लगाया करती। एक दिन किसी ने शीला के द्वार पर दस्तक दी। शीला ने जब द्वार खोला तो वहां एक मांजी खड़ी हुई थीं। वह कोई सामान्य मांजी नहीं बल्कि कोई तेजस्विनी की भांति लग रही थी। मांजी के नेत्रों से मानो अमृत बह रहा हो। शीला ने जैसे ही मांजी को देखा उसका शरीर तो जैसे पावन ही हो गया। उसका रोम-रोम खिल उठा। शीला उन्हें घर के अंदर ले आई और एक फटी हुई चादर पर मांजी को बिठा दिया।
अब मांजी बोलीं कि शीला क्या तुमने मुझे पहचाना? तुम हर शुक्रवार माता लक्ष्मी के मंदिर जाया करती थीं मैं भी वहां माता लक्ष्मी के भजन-कीर्तन के लिए आती थी। तुम्हें मैंने बहुत दिनों से मंदिर में नहीं देखा तो सोचा तुम्हारा हाल-चाल जान लूँ। शीला को मांजी की बातों को सुनकर जैसे प्रेम भाव में बहती चली गई। उससे रहा नहीं गया और वह बिलख-बिलख कर रोने लगी। शीला को रोते देख मांजी ने उसे संभाला और कहा कि जीवन में सुख-दुःख तो धूप छाँव की भांति आते रहते है ऐसे समय में तुम्हे खुद पर और ईश्वर पर विश्वास करना चाहिए।
शीला जब शांत हुई तो मांजी ने उसे Vaibhav Laxmi Vrat विधि बताई। उन्होंने आगे कहा कि वैभव लक्ष्मी व्रत बहुत ही सरल है। इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करने से जीवन में सुख-समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है साथ ही माता vaibhav laxmi की कृपा से तुम्हारी हर मनोकमना पूर्ण होगी। शीला ने जैसे ही इस व्रत का संकल्प लिया और उसकी आँख अचानक से खुल गई। सामने कोई भी नहीं था इससे पहले कि शीला कुछ और सोच पाती उसके अंतर्मन से उसे बतलाया कि साक्षात देवी लक्ष्मी जी यहाँ पधारी थीं जिन्होंने उसके दुखों को दूर करने के लिए व्रत विधि बताई।
दूसरे ही दिन शुक्रवार था शीला ने प्रातःकाल स्नानादि कर माता लक्ष्मी के व्रत का विधिपूर्वक पालन किया। आखिर में जब प्रसाद वितरण की बारी आई तो शीला ने सबसे पहले वह प्रसाद अपने पति को खिलाया। प्रसाद ग्रहण करने के बाद शीला के पति का मन जैसे कुछ देर में ही बदल गया। उसने इसके बाद अपनी पत्नी को कभी सताया नहीं और धीरे-धीरे वह सत्कर्मों में लीन होता चला गया। शीला ने कुल 21 शुक्रवार तक vaibhav lakshmi vrat का नियमपूर्वक पालन किया। इसके बाद 21वें शुक्रवार को मांजी के कहे अनुसार उसने सात स्त्रियों को वैभव लक्ष्मी व्रत की सात पुस्तकें उपहार में देकर उद्द्यापन भी किया। अब शीला का पति सात्विक मार्ग पर चलने लगा था और उसने सभी बुरे कार्यों को छोड़ दिया था।
इस तरह वैभव लक्ष्मी के व्रत संकल्प से शीला की मनोकमना पूर्ण हुई। इसी प्रकार जो भी जातक सच्चे मन से हर शुक्रवार वैभव लक्ष्मी के व्रत का पालन कर Vaibhav Lakshmi Vrat Katha का पाठ करता है उसके सभी दुखः दर्द माता लक्ष्मी हर लेती हैं और उसके जीवन में खुशियों की बहार ला देती हैं।
वैभव लक्ष्मी व्रत में क्या खाना चाहिए ( Vaibhav Lakshmi Vrat me kya khana chahiye? )
माता लक्ष्मी के व्रत में एक ही बार भोजन ग्रहण करें और भोजन में सात्विक भोजन के साथ ही खीर भी अवश्य शामिल करें। सात्विक भोजन में साबूदाने की खिचड़ी एवं पुलाव, कुटू के पराठे, कच्चे केले की टिकी, सिंघाड़े की नमकीन बर्फी, आलू, खीरे और मूंगफली का सलाद आदि को शामिल किया जा सकता है।
वैभव लक्ष्मी व्रत में क्या क्या सामग्री चाहिए? ( Vaibhav Lakshmi Vrat me kya-kya samagri chahiye? )
वैभव लक्ष्मी व्रत सामग्री : मां लक्ष्मी की प्रतिमा, फूल, चंदन, अक्षत, पुष्प माला, पंचामृत, दही, दूध, जल, कुमकुम, मौली, दर्पण, कंघा, हल्दी, कलश, विभूति, कपूर, घंटी आम और पान के पत्ते, केले, धूप बत्ती, प्रसाद और दीपक।
वैभव लक्ष्मी व्रत कब से शुरू करना चाहिए? ( Vaibhav Lakshmi Vrat kab se shuru karna chahiye? )
अक्सर जातकों के मन में यह सवाल जरूर रहता है कि वैभव लक्ष्मी व्रत कब शुरू करें? तो इस व्रत को शुरू करने का सबसे शुभ दिन शुक्ल पक्ष का पहला शुक्रवार माना जाता है। इस व्रत को 16 या 21 शुक्रवार तक रखना चाहिए।
वैभव लक्ष्मी के व्रत में क्या नहीं करना चाहिए? ( Vaibhav Laxmi ke vrat me kya nahi karna chahiye? )
वैभव लक्ष्मी के व्रत में सात्विक भोजन ही ग्रहण करें और अपने मन और शरीर को भी सात्विक रखें। इस दिन किसी तरह के बुरे या नकारात्मक विचारों को मन में न आने दे। अपने मन में लोभ, ईर्ष्या या धृणा जैसे भावों को भी न रखें। शुद्ध मन से व्रत का पालन करें।