बिहार के औरंगाबाद जिले में एक प्राचीन और अद्भुत सूर्य मंदिर (Surya Mandir) अवस्थित है जो बरसों से पर्यटकों और श्रद्धालुओं की भक्ति का केंद्र बना हुआ है। यह मंदिर बहुत ही ख़ास है क्योंकि इसका निर्माण आज से 12 लाख 16 हजार वर्ष पूर्व विश्वकर्मा द्वारा केवल एक रात में कराया गया था। यह ओडिशा के जगन्नाथ मंदिर के जैसा दिखाई देता है।
साथ ही इसकी एक और विशेष बात है कि यह भारत का एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसका द्वार पश्चिम दिशा की ओर खुलता है। इस मंदिर में सूर्य देवता सात रथों पर विराजमान है। यहाँ सूर्य देव (Surya Dev) के तीन रूपों को दिखाया गया है एक प्रातः काल के सूर्य, मध्यकाल के सूर्य और संध्याकाल के सूर्य।
सूर्य मंदिर की विशेषताएं (Surya Mandir ki visheshtaye)
यह भव्य सूर्य मंदिर करीब 100 फ़ीट ऊँचा है। इसकी वास्तुकला गोलाकार, आयताकार, त्रिभुजाकार, वर्गाकार, अर्द्धवृत्ताकार, आदि कई रूपों में दिखाई देती है। इस सूर्य मंदिर के निर्माण में चूना व सीमेंट का प्रयोग कतई नहीं किया गया है।
विश्वकर्मा द्वारा बनाये गए इस सूर्य मंदिर की कहानी
जनश्रुति के अनुसार ऐल नामक एक राजा थे जो किसी ऋषि द्वारा दिए गए शाप के चलते श्वेत कुष्ठ रोग से पीड़ित थे। एक बार वे शिकार करने के दौरान राह भटक गए थे तब प्यास व्याकुल राजा को एक सरोवर दिखाई दिया। उस राजा ने जैसे ही सरोवर से पानी पीना आरंभ किया तो उस जल की कुछ बूँदें उस जगह पर पड़ी जहाँ पर कुष्ठ रोग था। फिर राजा ने देखा कि पानी की बूँद के चलते श्वेत कुष्ठ के दाग गायब हो गए।
यह देख राजा बहुत प्रसन्न हुआ और वह उस पानी में ही लेट गया। जिससे राजा का कुष्ठ पूरी तरह से जाता रहा। अपनी प्रसन्नता के चलते राजा ने उस रात वहीँ ठहरने का निर्णय लिया। रात्रि में सोते समय राजा को एक स्वप्न आया कि उसी सरोवर के नीचे भगवान् भास्कर की मूर्ती दबी है। उसे निकलवाकर वहां मंदिर का निर्माण कराया जाए।
इसी स्वप्न के बाद ही राजा ने उस प्रतिमा को वहां स्थापित कर मंदिर का निर्माण करवाया और सूर्य कुंड का भी निर्माण कराया गया। मंदिर तो वहीँ है पर वह मूर्ति का कुछ अता-पता नहीं है। अभी वर्तमान में जो मूर्ती वहां स्थापित की गई है वह उस समय की नहीं मानी जाती है।
विश्वकर्मा जी कौन थे? (Vishwakarma Ji kaun the?)
सनातन धर्म में विश्वकर्मा (Vishwakarma) को निर्माण का देवता माना गया है। इनकी तीन पुत्रियां थी जिनका नाम रिद्धि-सिद्धि और संज्ञा था। रिद्धि-सिद्धि का विवाह तो भगवान् गणेश (Lord Ganesha) से हुआ था जबकि संज्ञा का विवाह महर्षि कश्यप (Maharshi Kashyap) से हुआ था। ऋग्वेद में विश्वकर्मा सूक्त नामक कुल 11 ऋचाओं में जो मंत्र हैं उन सभी पर लिखा है ऋषि विश्वकर्मा भवन देवता हैं।
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