सोमवार व्रत का महत्व : सोमवार का व्रत रखने से क्या होता है? ( Somvar ka vrat rakhne se kya hota hai? )
भगवान शिव की पूजा करने वाले लोगों के लिए सोमवार के व्रत का बहुत अधिक महत्व है। इस दिन व्रत का पालन करने से भगवान शिव और पार्वती जी की असीम कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
प्रति सोमवार व्रत विधि ( Somvar Vrat ki Puja Vidhi )
1. सोमवार के दिन प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. स्नान के बाद भगवान शिव का जलाभिषेक करें।
3. फिर उन्हें बेलपत्र, पुष्प, फल आदि अर्पित करें।
4. घी का दीपक और धूप जलाएं और व्रत का संकल्प लें।
5. सोमवार व्रत कथा का पाठ करें और ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का 108 बार जाप करें।
( इस दिन स्वयंभू श्रेणी के Original Narmadeshwar Shivling का पंचामृत से अभिषेक करने पर मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। नर्मदेश्वर शिवलिंग की पवित्रता और शुभता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसे प्राण प्रतिष्ठा की भी जरूरत नहीं होती। नर्मदेश्वर शिवलिंग स्वयं ही नर्मदा नदी में निर्मित होते हैं। )
2. स्नान के बाद भगवान शिव का जलाभिषेक करें।
3. फिर उन्हें बेलपत्र, पुष्प, फल आदि अर्पित करें।
4. घी का दीपक और धूप जलाएं और व्रत का संकल्प लें।
5. सोमवार व्रत कथा का पाठ करें और ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का 108 बार जाप करें।
( इस दिन स्वयंभू श्रेणी के Original Narmadeshwar Shivling का पंचामृत से अभिषेक करने पर मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। नर्मदेश्वर शिवलिंग की पवित्रता और शुभता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसे प्राण प्रतिष्ठा की भी जरूरत नहीं होती। नर्मदेश्वर शिवलिंग स्वयं ही नर्मदा नदी में निर्मित होते हैं। )
सोमवार व्रत के लाभ ( Somvar Vrat ke labh )
1. सोमवार के दिन व्रत रखने से दुःख और चिंताएं दूर होती हैं।
2. व्यक्ति को शरीर के अनेकों रोगों से मुक्ति मिलती है।
3. घर की आर्थिक तंगी समाप्त होती है।
4. घर नकारात्मक ऊर्जाओं से दूर रहता है।
2. व्यक्ति को शरीर के अनेकों रोगों से मुक्ति मिलती है।
3. घर की आर्थिक तंगी समाप्त होती है।
4. घर नकारात्मक ऊर्जाओं से दूर रहता है।
सोमवार व्रत कथा ( Somvar Vrat Katha )
एक बार की बात है एक नगर में साहूकार रहा करता था जिसके पास धन दौलत की कोई कमी नहीं थी। इतना अधिक धनवान होने के बावजूद वह साहूकार निः संतान था। कोई संतान न होने के कारण वह बहुत चिंतित रहा करता था। संतान प्राप्ति की इच्छा लिए वह साहूकार हर सोमवार व्रत किया करता और पूरी श्रद्धा से भगवान शिव और पार्वती की पूजा करता।
साहूकार की भक्ति से माता पार्वती बहुत प्रसन्न हुई और उन्होंने भगवान शिव से साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने के लिए कहा।
जिसपर भगवान शिव ने पार्वती जी को समझाने के प्रयास किया कि इस संसार में हर व्यक्ति को उसके कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है। इस तरह जिस भी व्यक्ति को जो हासिल है वह उसके कर्मों का फल ही है। भगवान शिव की बात तो पार्वती जी ने सुनी पर वे अभी भी साहूकार की भक्ति से प्रसन्न होकर उसकी इच्छा को पूर्ण करना चाहती थी।
देवी पार्वती के बार – बार आग्रह किए जाने पर भगवान शिव ने साहूकार को पुत्र प्राप्ति का वरदान तो दिया परंतु वह बालक केवल बारह वर्ष तक ही जीवित रह सकता था। साहूकार भगवान शिव और माता पार्वती की सभी बातें सुन रहा था। दोनों की बातों को सुनकर भी साहूकार मन से स्थिर बना रहा उसे न तो इस बात की प्रसन्नता हुई और न ही कोई दुख। वह साहूकार पूरे मन से भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा-अर्चना करता रहा।
कुछ समय बीता और साहूकार के घर पुत्र ने जन्म लिया। जब साहूकार का बालक ग्यारह वर्ष का हुआ तो उसे शिक्षा ग्रहण करने के लिए काशी भेजने का फैसला लिया गया। साहूकार ने बालक के मामा को धन दिया और कहा कि इसे शिक्षा ग्रहण करने के लिए काशी ले जाओ। साथ ही जाते – जाते मार्ग में यज्ञ भी करवाना, जहां भी यज्ञ कराओ वहां ब्राह्मणों को भोजन और दक्षिणा भी अवश्य देना।
इस तरह मामा – भांजे यज्ञ करते हुए और ब्राह्मणों को भोजन व दक्षिणा देते हुए काशी की ओर निकल पड़े थे। वहीं मार्ग में एक नगर में कन्या का विवाह हो रहा था पर दुर्भाग्यवश जिस राजकुमार के साथ कन्या का विवाह होने वाला था वह एक आंख से काना था।
राजकुमार के पिता ने अपने बेटे के एक आंख से काने होने की बात छुपाने के लिए एक चाल सोची। उसने साहूकार के बेटे को देखकर सोचा कि क्यों न इस लड़के को अपने बेटे के स्थान पर बिठाकर कर कन्या से विवाह करा लिया जाए। फिर विवाह होने के बाद पैसे देकर इसे वापिस भेज दूंगा और राजकुमारी को अपने साथ ले जाऊंगा। इस प्रकार साहूकार के लड़के के साथ उस कन्या का विवाह करा दिया गया।
साहूकार के बेटे ने विवाह तो कर लिया परंतु वह अपनी ईमानदारी खोना नहीं चाहता था। उसे किया गया कृत्य न्यायसंगत नहीं लगा। उसने यह बात बताने के लिए राजकुमारी की चुनरी के पल्ले पर लिखा कि तुम्हारा विवाह मेरे साथ हो रहा है परंतु मैं असली राजकुमार नहीं हूं। असली राजकुमार एक आंख से काना है। मैं तो यहां काशी में शिक्षा ग्रहण करने के उद्देश्य से आया हूं।
जब राजकुमारी को सारी बात पता चली तो उसने ने अपने माता-पिता को सब बात बताई। अपनी पुत्री की बात सुनकर राजा ने अपनी बेटी को विदा नहीं किया और बारात वापिस लौट गई। वहीं शिक्षा के लिए जा रहे मामा भांजे काशी में पहुंचे तो पहुंचते ही उन्होंने यज्ञ किया। जिस दिन यज्ञ था उसी दिन लड़के की आयु बारह वर्ष होनी थी। इसपर लड़के ने अपने मामा से कहा कि वह स्वस्थ महसूस नहीं कर रहा है। मामा ने भांजे को जाकर सोने के लिए कहा।
भगवान शिव के वरदान के अनुसार सोते ही बालक के प्राण निकल गए। मामा ने मृत भांजे को देखकर विलाप करना शुरू कर दिया। संयोग की बात थी कि उस समय शिव जी और पार्वती जी वहां से गुजर रहे थे। उन्होंने निकट जाकर देखा तो भगवान शिव और पार्वती जी को मालूम हुआ कि यह तो वही साहूकार का पुत्र है जिसे केवल बारह वर्ष तक जीवित रहने के वरदान दिया था। माता पार्वती भाव विभोर हो उठी और उन्होंने भगवान शिव से आग्रह किया कि हे! प्रभु आप इसे और आयु प्रदान करें नहीं तो इसके माता पिता इसके जाने के वियोग सहन नहीं कर पाएंगे।
माता पिता के आग्रह किए जाने पर भगवान शिव ने साहूकार के बेटे को जीवनदान दे दिया। काशी से शिक्षा समाप्त कर जब मामा भांजे घर की ओर निकले तो सबसे पहले वे इस नगर में पहुंचे जहां उस लड़के का विवाह हुआ था। वहां पहुंचकर उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया तो राजकुमारी के पिता उस लड़के के पहचान गए और उन्होंने अपनी पुत्री को विदा कर दिया।
जब तीनों लोग घर पहुंचे तो वहां साहूकार और उनकी पत्नी अपने पुत्र के लौटने का इंतजार कर रहे थे। उन्होंने प्रण लिया हुआ था कि अगर उन्हें अपने पुत्र के जीवित न होने का समाचार प्राप्त हुआ तो वे भी अपने प्राण त्याग देंगे। साहूकार और उनकी पत्नी ने बेटे को जीवित देखा तो उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।
उसी रात्रि को साहूकार के सपने में भगवान शिव ने आकर कहा कि हे! श्रेष्ठी मैंने तेरे सोमवार के व्रत और सच्ची श्रद्धा से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लंबी आयु प्रदान की है। इस तरह जो भी भक्तजन सोमवार का व्रत ( Somwar ka Vrat ) पालन कर सच्चे मन से भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा करता है और उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होंगी।
साहूकार की भक्ति से माता पार्वती बहुत प्रसन्न हुई और उन्होंने भगवान शिव से साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने के लिए कहा।
जिसपर भगवान शिव ने पार्वती जी को समझाने के प्रयास किया कि इस संसार में हर व्यक्ति को उसके कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है। इस तरह जिस भी व्यक्ति को जो हासिल है वह उसके कर्मों का फल ही है। भगवान शिव की बात तो पार्वती जी ने सुनी पर वे अभी भी साहूकार की भक्ति से प्रसन्न होकर उसकी इच्छा को पूर्ण करना चाहती थी।
देवी पार्वती के बार – बार आग्रह किए जाने पर भगवान शिव ने साहूकार को पुत्र प्राप्ति का वरदान तो दिया परंतु वह बालक केवल बारह वर्ष तक ही जीवित रह सकता था। साहूकार भगवान शिव और माता पार्वती की सभी बातें सुन रहा था। दोनों की बातों को सुनकर भी साहूकार मन से स्थिर बना रहा उसे न तो इस बात की प्रसन्नता हुई और न ही कोई दुख। वह साहूकार पूरे मन से भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा-अर्चना करता रहा।
कुछ समय बीता और साहूकार के घर पुत्र ने जन्म लिया। जब साहूकार का बालक ग्यारह वर्ष का हुआ तो उसे शिक्षा ग्रहण करने के लिए काशी भेजने का फैसला लिया गया। साहूकार ने बालक के मामा को धन दिया और कहा कि इसे शिक्षा ग्रहण करने के लिए काशी ले जाओ। साथ ही जाते – जाते मार्ग में यज्ञ भी करवाना, जहां भी यज्ञ कराओ वहां ब्राह्मणों को भोजन और दक्षिणा भी अवश्य देना।
इस तरह मामा – भांजे यज्ञ करते हुए और ब्राह्मणों को भोजन व दक्षिणा देते हुए काशी की ओर निकल पड़े थे। वहीं मार्ग में एक नगर में कन्या का विवाह हो रहा था पर दुर्भाग्यवश जिस राजकुमार के साथ कन्या का विवाह होने वाला था वह एक आंख से काना था।
राजकुमार के पिता ने अपने बेटे के एक आंख से काने होने की बात छुपाने के लिए एक चाल सोची। उसने साहूकार के बेटे को देखकर सोचा कि क्यों न इस लड़के को अपने बेटे के स्थान पर बिठाकर कर कन्या से विवाह करा लिया जाए। फिर विवाह होने के बाद पैसे देकर इसे वापिस भेज दूंगा और राजकुमारी को अपने साथ ले जाऊंगा। इस प्रकार साहूकार के लड़के के साथ उस कन्या का विवाह करा दिया गया।
साहूकार के बेटे ने विवाह तो कर लिया परंतु वह अपनी ईमानदारी खोना नहीं चाहता था। उसे किया गया कृत्य न्यायसंगत नहीं लगा। उसने यह बात बताने के लिए राजकुमारी की चुनरी के पल्ले पर लिखा कि तुम्हारा विवाह मेरे साथ हो रहा है परंतु मैं असली राजकुमार नहीं हूं। असली राजकुमार एक आंख से काना है। मैं तो यहां काशी में शिक्षा ग्रहण करने के उद्देश्य से आया हूं।
जब राजकुमारी को सारी बात पता चली तो उसने ने अपने माता-पिता को सब बात बताई। अपनी पुत्री की बात सुनकर राजा ने अपनी बेटी को विदा नहीं किया और बारात वापिस लौट गई। वहीं शिक्षा के लिए जा रहे मामा भांजे काशी में पहुंचे तो पहुंचते ही उन्होंने यज्ञ किया। जिस दिन यज्ञ था उसी दिन लड़के की आयु बारह वर्ष होनी थी। इसपर लड़के ने अपने मामा से कहा कि वह स्वस्थ महसूस नहीं कर रहा है। मामा ने भांजे को जाकर सोने के लिए कहा।
भगवान शिव के वरदान के अनुसार सोते ही बालक के प्राण निकल गए। मामा ने मृत भांजे को देखकर विलाप करना शुरू कर दिया। संयोग की बात थी कि उस समय शिव जी और पार्वती जी वहां से गुजर रहे थे। उन्होंने निकट जाकर देखा तो भगवान शिव और पार्वती जी को मालूम हुआ कि यह तो वही साहूकार का पुत्र है जिसे केवल बारह वर्ष तक जीवित रहने के वरदान दिया था। माता पार्वती भाव विभोर हो उठी और उन्होंने भगवान शिव से आग्रह किया कि हे! प्रभु आप इसे और आयु प्रदान करें नहीं तो इसके माता पिता इसके जाने के वियोग सहन नहीं कर पाएंगे।
माता पिता के आग्रह किए जाने पर भगवान शिव ने साहूकार के बेटे को जीवनदान दे दिया। काशी से शिक्षा समाप्त कर जब मामा भांजे घर की ओर निकले तो सबसे पहले वे इस नगर में पहुंचे जहां उस लड़के का विवाह हुआ था। वहां पहुंचकर उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया तो राजकुमारी के पिता उस लड़के के पहचान गए और उन्होंने अपनी पुत्री को विदा कर दिया।
जब तीनों लोग घर पहुंचे तो वहां साहूकार और उनकी पत्नी अपने पुत्र के लौटने का इंतजार कर रहे थे। उन्होंने प्रण लिया हुआ था कि अगर उन्हें अपने पुत्र के जीवित न होने का समाचार प्राप्त हुआ तो वे भी अपने प्राण त्याग देंगे। साहूकार और उनकी पत्नी ने बेटे को जीवित देखा तो उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।
उसी रात्रि को साहूकार के सपने में भगवान शिव ने आकर कहा कि हे! श्रेष्ठी मैंने तेरे सोमवार के व्रत और सच्ची श्रद्धा से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लंबी आयु प्रदान की है। इस तरह जो भी भक्तजन सोमवार का व्रत ( Somwar ka Vrat ) पालन कर सच्चे मन से भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा करता है और उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होंगी।
सोमवार व्रत कब से शुरू करना चाहिए? ( Somvar vrat kab se shuru karna chahiye? )
भगवान शिव को समर्पित सोमवार व्रत ( Somvar Vrat ) की शुरुआत श्रावण, चैत्र, मार्गशीर्ष और वैशाख मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से करनी चाहिए। ध्यान रहे कि सोमवार के व्रत कम से कम 16 तो अवश्य ही होने चाहिए।
सोमवार के व्रत में क्या नहीं खाना चाहिए? ( Somvar ke vrat me kya nahi khana chahiye? )
सोमवार के व्रत में वैसे तो खाने को लेकर कोई कड़े नियम नहीं है परन्तु इस दिन अधिक तेल मसाले वाला भुना हुआ भोजन न लें। साथ ही ध्यान रहे कि इस दिन व्रत की शुरुआत चाय के साथ न करें।
क्या सोमवार व्रत में नमक खाना चाहिए? ( Kya Somvar vrat me namak khana chahiye? )
सोमवार के व्रत के दिन नमक न खाने की सलाह दी जाती है। इस दिन फलाहार करना चाहिए और संध्या के समय कुछ मीठा ग्रहण कर ही व्रत खोलना चाहिए।