हिंदू धर्म में भगवान के धरती पर अवतरित होने और मनुष्यों का उद्धार करने की बातें सभी वेदों – ग्रंथों में लिखी गई हैं। भगवान विष्णु के अवतारों के बारे में तो लगभग सभी लोग परिचित हैं पर बहुत कम लोग हैं जो भगवान शिव के अवतारों के बारे में जानते हैं। आज हम आपको काल और मृत्यु से परे रहने वाले भगवान शिव के प्रमुख अवतारों का उल्लेख करेंगे जिन्होंने इस धरती पर अवतरित होकर किसी न किसी रूप में मनुष्य का कल्याण किया है और अब तक करते आए हैं।
भगवान शिव किसका अवतार है? ( bhagwan Shiv kiska Avatar hai? )
भगवान शिव के अवतारों के बारे में जानने से पहले हम यह जान लेते हैं कि हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में भगवान शिव को किसका अवतार बताया गया है। शिव पुराण की मानें तो भगवान शिव स्वयंभू है जिनका न कोई आदि है और न ही कोई अंत। उन्हीं के होने से ये समस्त संसार गतिमान है। जबकि विष्णु पुराण में भगवान शिव का जन्म भगवान विष्णु के द्वारा हुआ है।
भगवान शिव के निराकार रूप की पूजा करने के लिए सबसे उत्तम नर्मदेश्वर शिवलिंग ( Narmadeshwar Shivling ) माना जाता है। इसके पीछे की वजह यह है कि नर्मदा नदी से निर्मित होने वाले शिवलिंग स्वयंभू है जिन्हें निर्मित किये जाने या प्राण प्रतिष्ठा किये जाने की भी आवश्यकता नहीं है।
भगवान शिव के निराकार रूप की पूजा करने के लिए सबसे उत्तम नर्मदेश्वर शिवलिंग ( Narmadeshwar Shivling ) माना जाता है। इसके पीछे की वजह यह है कि नर्मदा नदी से निर्मित होने वाले शिवलिंग स्वयंभू है जिन्हें निर्मित किये जाने या प्राण प्रतिष्ठा किये जाने की भी आवश्यकता नहीं है।
भगवान शिव के 19 अवतार ( Bhagwan Shiv ke 19 Avatar )
1. वीरभद्र : भगवान शिव ने अपने इस वीरभद्र रूप में अवतार उस समय लिया था जब प्रजापति दक्ष के यज्ञ आयोजन में देवी सती अपमान के कारण हवन कुंड में कूद पड़ी थीं। जब भगवान शिव को यह पता चला कि देवी सती ने अपने प्राण त्याग दिए हैं तो उन्होंने अपने सिर से एक जटा को उखाड़कर पर्वत के ऊपर पटक दिया था। उसी पटकी गई जटा के पूर्वभाग से वीरभद्र उत्पन्न हुए। वीरभद्र ने दक्ष के यज्ञ का पूरी तरह से विनाश कर दिया और दक्ष का सिर काट मृत्युदंड प्रदान किया।
2. पिप्पलाद : भगवान शिव का पिप्पलाद रूप शनि दोषों के निवारण में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उनकी कृपा से ही शनि पीड़ा से निजात पाना संभव हो पाया। पिप्पलाद से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार एक बार पिप्पलाद ने देवताओं से सवाल किया कि आखिर क्या वजह रही मेरे पिता दधीचि मेरे जन्म से पहले ही मुझे छोड़कर चले गए? देवताओं ने कहा कि शनि की दृष्टि के चलते ही ऐसा हुआ है।
देवताओं की बातों को सुनकर पिप्पलाद क्रोधित हो उठे और उन्होंने शनिदेव को नक्षत्र मंडल से गिरने का श्राप दे डाला। उनके श्राप का प्रभाव यह हुआ कि शनि अकाश से गिरने लगे, इसके बाद देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद ने शनि को क्षमा तो किया परंत एक शर्त रखी कि जन्म से लेकर सोलह वर्ष की आयु तक शनि किसी पर अपनी दृष्टि नहीं डालेंगे।
3. नंदी अवतार : भगवान शिव का नंदी अवतार सभी जीवों से प्रेम करने का संदेश हमें देता है। नंदी यानी बैल कर्म का प्रतीक माना जाता है। शिव जी के इस अवतार से जुड़ी कथा कहती है कि शिलाद नामक मुनि ब्रह्मचारी थे। अपना वंश समाप्त होते देख शिलाद मुनि के पितरों ने उनसे संतान उत्पन्न करने के लिए कहा।
इसके बाद शिलाद ने एक मृत्युहीन संतान की कामना के उद्देश्य से भगवान शिव की कठोर तपस्या करनी शुरू कर दी। शिलाद की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने स्वयं शिलाद के यहां पुत्र रूप में जन्म लेने का वर प्रदान किया। इसके कुछ समय पश्चात शिलाद एक बार भूमि जोत रहा था और भूमि जोतते समय शिलाद को उसी भूमि से एक बालक मिला जो भूमि से उत्पन्न हुआ था। शिलाद ने उस बालक का नाम नंदी रखा था।
4. भैरव अवतार : जब ब्रह्मा और विष्णु स्वयं को श्रेष्ठ मानने लगे थे तब तेज पुंज के बीच पुरुष आकृति दिखाई दी। उसे देखकर ब्रह्मा जी बोले कि तुम मेरे पुत्र हो मेरी क्षरण में आओ। ब्रह्मा की बात को सुनकर भगवान् शिव को बहुत क्रोध आया और उन्होंने पुरुषाकृति से कहा कि काल की तरह शोभित होने के कारण आप कालराज और भैरव हैं।
शिव जी से यह वरदान प्राप्त कर काल भैरव ने अपनी अंगुली के नाख़ून से ही ब्रह्मा जी के पांचवे सिर को काट डाला। इससे काल भैरव ब्रह्महत्या के दोषी माने गए। काशी में प्रवेश के बाद ही भगवान शिव के इस रूप को ब्रह्महत्या के बड़े दोष से मुक्ति मिल पाई थी।
5. अश्वत्थामा अवतार : अश्वत्थामा भगवान शिव के अंशावतार माने जातें हैं। महाभारत में गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ही एकमात्र ऐसे योद्धा माने जाते हैं पूरे युद्ध को कौरवों के पक्ष में रखने की क्षमता रखते थे। परन्तु दुर्भाग्यवश वे युद्ध के अंत में जाकर सेनापति बने थे। इनके बारे में कहा जाता है कि वे आज भी अमर हैं और पृथ्वी पर मौजूद हैं।
6. शरभावतार : शरभावतार को भगवान शंकर छठा अवतार माना जाता है। उनका यह अवतार में आधा भाग मृग और आधा भाग शरभ पक्षी का था।
7. गृहपति अवतार : यह शिव जी का सातवां अवतार है जो विश्वानर नामक मुनि और उनकी पत्नी शुचिष्मति के पुत्र थे। मुनि की आराधना की प्रसन्न होकर ही भगवान शिव ने शुचिष्मति के गर्भ से जन्म लेने का वरदान दिया था।
8. ऋषि दुर्वासा : भगवान शिव के आठवें अवतार ऋषि दुर्वासा को अनसुइया के पति महर्षि अत्रि ने ब्रह्मा की आज्ञा से ऋक्षकुल पर्वत पर कठोर तपस्या कर वरदान के रूप में पाया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर त्रिदेवों- ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीन पुत्र होने का वरदान दिया था। ब्रह्मा जी के अंश से चन्द्रमा, विष्णु जी के अंश से दत्तात्रेय और शिव जी के अंश से ऋषि दुर्वासा ने जन्म लिया था।
9. हनुमान : हनुमान जी भगवान शिव के नौंवे अवतार माने जाते हैं। अमृत मंथन के दौरान जब शिव जी विश्वमोहिनी के रूप को देख कामातुर हो गए थे तब उनके वीर्यपात को सप्तऋषियों ने एक पत्ते में संग्रहित कर लिया था। फिर समय आने पर सप्तऋषियों ने वह वानरराज केसरी की अर्धांग्नी अंजनी के कान के माध्यम से गर्भ में धारण हुआ था। इससे ही बलशाली हनुमान जी का जन्म हुआ था।
10. वृषभ अवतार : भगवान शिव के वृषभ अवतार ने उपद्रव मचा रहे विष्णु जी के पुत्रों का संहार किया था। विष्णु जी के ये पुत्र चन्द्रमुखियों के साथ रमण करते हुए उत्पन्न हुए थे।
भगवान शिव के अन्य 9 अवतारों की सूची कुछ इस प्रकार है :
11. यतिनाथ अवतार
12. कृष्णदर्शन अवतार
13. अवधूत अवतार
14. भिक्षुवर्य अवतार
15. सुरेश्वर अवतार
16. किरात अवतार
17. सुनटनर्तक अवतार
18. ब्रह्मचारी अवतार
19. यक्ष अवतार
2. पिप्पलाद : भगवान शिव का पिप्पलाद रूप शनि दोषों के निवारण में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उनकी कृपा से ही शनि पीड़ा से निजात पाना संभव हो पाया। पिप्पलाद से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार एक बार पिप्पलाद ने देवताओं से सवाल किया कि आखिर क्या वजह रही मेरे पिता दधीचि मेरे जन्म से पहले ही मुझे छोड़कर चले गए? देवताओं ने कहा कि शनि की दृष्टि के चलते ही ऐसा हुआ है।
देवताओं की बातों को सुनकर पिप्पलाद क्रोधित हो उठे और उन्होंने शनिदेव को नक्षत्र मंडल से गिरने का श्राप दे डाला। उनके श्राप का प्रभाव यह हुआ कि शनि अकाश से गिरने लगे, इसके बाद देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद ने शनि को क्षमा तो किया परंत एक शर्त रखी कि जन्म से लेकर सोलह वर्ष की आयु तक शनि किसी पर अपनी दृष्टि नहीं डालेंगे।
3. नंदी अवतार : भगवान शिव का नंदी अवतार सभी जीवों से प्रेम करने का संदेश हमें देता है। नंदी यानी बैल कर्म का प्रतीक माना जाता है। शिव जी के इस अवतार से जुड़ी कथा कहती है कि शिलाद नामक मुनि ब्रह्मचारी थे। अपना वंश समाप्त होते देख शिलाद मुनि के पितरों ने उनसे संतान उत्पन्न करने के लिए कहा।
इसके बाद शिलाद ने एक मृत्युहीन संतान की कामना के उद्देश्य से भगवान शिव की कठोर तपस्या करनी शुरू कर दी। शिलाद की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने स्वयं शिलाद के यहां पुत्र रूप में जन्म लेने का वर प्रदान किया। इसके कुछ समय पश्चात शिलाद एक बार भूमि जोत रहा था और भूमि जोतते समय शिलाद को उसी भूमि से एक बालक मिला जो भूमि से उत्पन्न हुआ था। शिलाद ने उस बालक का नाम नंदी रखा था।
4. भैरव अवतार : जब ब्रह्मा और विष्णु स्वयं को श्रेष्ठ मानने लगे थे तब तेज पुंज के बीच पुरुष आकृति दिखाई दी। उसे देखकर ब्रह्मा जी बोले कि तुम मेरे पुत्र हो मेरी क्षरण में आओ। ब्रह्मा की बात को सुनकर भगवान् शिव को बहुत क्रोध आया और उन्होंने पुरुषाकृति से कहा कि काल की तरह शोभित होने के कारण आप कालराज और भैरव हैं।
शिव जी से यह वरदान प्राप्त कर काल भैरव ने अपनी अंगुली के नाख़ून से ही ब्रह्मा जी के पांचवे सिर को काट डाला। इससे काल भैरव ब्रह्महत्या के दोषी माने गए। काशी में प्रवेश के बाद ही भगवान शिव के इस रूप को ब्रह्महत्या के बड़े दोष से मुक्ति मिल पाई थी।
5. अश्वत्थामा अवतार : अश्वत्थामा भगवान शिव के अंशावतार माने जातें हैं। महाभारत में गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ही एकमात्र ऐसे योद्धा माने जाते हैं पूरे युद्ध को कौरवों के पक्ष में रखने की क्षमता रखते थे। परन्तु दुर्भाग्यवश वे युद्ध के अंत में जाकर सेनापति बने थे। इनके बारे में कहा जाता है कि वे आज भी अमर हैं और पृथ्वी पर मौजूद हैं।
6. शरभावतार : शरभावतार को भगवान शंकर छठा अवतार माना जाता है। उनका यह अवतार में आधा भाग मृग और आधा भाग शरभ पक्षी का था।
7. गृहपति अवतार : यह शिव जी का सातवां अवतार है जो विश्वानर नामक मुनि और उनकी पत्नी शुचिष्मति के पुत्र थे। मुनि की आराधना की प्रसन्न होकर ही भगवान शिव ने शुचिष्मति के गर्भ से जन्म लेने का वरदान दिया था।
8. ऋषि दुर्वासा : भगवान शिव के आठवें अवतार ऋषि दुर्वासा को अनसुइया के पति महर्षि अत्रि ने ब्रह्मा की आज्ञा से ऋक्षकुल पर्वत पर कठोर तपस्या कर वरदान के रूप में पाया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर त्रिदेवों- ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीन पुत्र होने का वरदान दिया था। ब्रह्मा जी के अंश से चन्द्रमा, विष्णु जी के अंश से दत्तात्रेय और शिव जी के अंश से ऋषि दुर्वासा ने जन्म लिया था।
9. हनुमान : हनुमान जी भगवान शिव के नौंवे अवतार माने जाते हैं। अमृत मंथन के दौरान जब शिव जी विश्वमोहिनी के रूप को देख कामातुर हो गए थे तब उनके वीर्यपात को सप्तऋषियों ने एक पत्ते में संग्रहित कर लिया था। फिर समय आने पर सप्तऋषियों ने वह वानरराज केसरी की अर्धांग्नी अंजनी के कान के माध्यम से गर्भ में धारण हुआ था। इससे ही बलशाली हनुमान जी का जन्म हुआ था।
10. वृषभ अवतार : भगवान शिव के वृषभ अवतार ने उपद्रव मचा रहे विष्णु जी के पुत्रों का संहार किया था। विष्णु जी के ये पुत्र चन्द्रमुखियों के साथ रमण करते हुए उत्पन्न हुए थे।
भगवान शिव के अन्य 9 अवतारों की सूची कुछ इस प्रकार है :
11. यतिनाथ अवतार
12. कृष्णदर्शन अवतार
13. अवधूत अवतार
14. भिक्षुवर्य अवतार
15. सुरेश्वर अवतार
16. किरात अवतार
17. सुनटनर्तक अवतार
18. ब्रह्मचारी अवतार
19. यक्ष अवतार