ओंकारेश्वर मंदिर कहाँ है? ( Where is Omkareshwara Temple? )
भगवान शिव को समर्पित ओंकारेश्वर मंदिर ( Omkareshwara Temple) मध्य प्रदेश राज्य के खंडवा नामक जिले में नर्मदा नदी के निकट शिवपुरी और मान्धाता द्वीप पर अवस्थित है। यह मंदिर इसलिए भी अधिक ख़ास है क्योंकि यहाँ भगवान शिव 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर स्थापित है। कहा जाता है कि इस स्थान पर नर्मदा नदी स्वयं ‘ॐ’ के आकार में बहती हैं। साथ ही बताते चलें कि जब तक सभी तीर्थों का जल तीर्थ यात्री ओंकारेश्वर में अर्पित नहीं करते हैं तब तक तीर्थ यात्रा पूर्ण नहीं मानी जाती है।
ओंकारेश्वर मंदिर का निर्माण किसने करवाया? ( Who built the Omkareshwar temple? )
ओंकारेश्वर महादेव मंदिर ( Omkareshwar Mahadev Mandir ) के निर्माण से संबंधित इतिहास में कुछ ख़ास तथ्य मौजूद नहीं है। अब तक जो भी ऐतिहासिक प्रमाण मिले हैं उनके हिसाब से इस मंदिर का निर्माण के लिए सन 1063 में राजा उदयादित्य ने चार पत्थरों को स्थापित करवाया था जिनपर संस्कृति भाषा में अंकित स्तोत्रम थे। इसके पश्चात सन 1195 में राजा भारत सिंह चौहान ने इस स्थान को पुनर्निमित करवाया। इसके बाद मान्धाता पर सिंधियाँ, मालवा, परमार ने राज किया। वर्ष 1824 में इस क्षेत्र को ब्रिटिश सरकार को सौंप दिया गया।
ओंकारेश्वर मंदिर की कहानी ( What is the story of Omkareshwar temple? )
ओंकारेश्वर मंदिर ( Omkareshwar Mandir ) से जुड़ी तीन कहानियां प्रचलित हैं जिसमें से एक कहानी के अनुसार एक बार नारद जी विंध्यांचल पर्वत पहुंचे। वहां पहुँचते ही पर्वतराज कहे जाने वाले विंध्यांचल ने नारद जी का आदर-सत्कार किया। इसके बाद विंध्यांचल पर्वतराज ने कहा कि मैं सर्वगुण संपन्न हूँ, मेरे पर सब कुछ है। नारद जी पर्वतराज की बातों को सुनते रहे और चुप खड़े रहे। जब पर्वतराज की बात समाप्त हुई तो नारद जी उनसे बोले कि मुझे ज्ञात है कि तुम सर्वगुण सम्पन्न हो परन्तु फिर भी तुम समेरु पर्वत की भांति ऊँचे नहीं हो। सुमेरु पर्वत को देखो जिसका भाग देवलोकों तक पहुंचा हुआ है परन्तु तुम वहां तक कभी नहीं पहुँच सकते हो।
नारद जी इन बातों को सुन विंध्यांचल पर्वतराज खुद को ऊँचा साबित करने के लिए सोच-विचार करने लगे। नारद जी की बातें उन्हें बहुत चुभ रही थी और वे बहुत परेशान हो गए क्योंकि यहाँ पर उनके अहंकार की हार हुई। अपने आप को सबसे ऊँचा बनाने की कामना के चलते उन्होंने भगवान शिव की पूजा करने का मन बनाया। उन्होंने लगभग 6 महीने तक भगवान शिव की कठोर तपस्या कर प्रसन्न किया। अंततः भगवान शिव विंध्यांचल से अत्यधिक प्रसन्न हुए और उन्होंने प्रकट होकर वरदान मांगने को कहा।
इसपर विंध्यांचल पर्वत ने कहा कि हे! प्रभु मुझे बुद्धि प्रदान करें और मैं जिस भी कार्य को आरंभ करू वह सिद्ध हो। इस प्रकार विंध्यांचल पर्वत ने वरदान प्राप्त किया। भगवान शिव को देख आस-पास के ऋषि मुनि वहां पर आगये और उन्होंने भगवान शिव से यहाँ वास करने की प्रार्थना की। इस प्रकार भगवान शिव ने सभी की बात मानी, वहां पर स्थापित लिंग दो लिंगम में विभाजित हो गया। इसमें से विंध्यांचल द्वारा स्थापित पार्थिव लिंग का नाम ममलेश्वर लिंग पड़ा जबकि जहाँ भगवान शिव का वास माना जाता है उसे ओंकारेश्वर शिवलिंग के नाम से जाना जाने लगा।
ओंकारेश्वर लिंग से जुड़ी दूसरी कहानी कहती है कि राजा मान्धाता ने यहाँ पर्वत भगवान शिव का ध्यान करते हुए घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से भगवान शिव अत्यधिक प्रसन्न हुए थे और राजा ने उन्हें यहाँ सदैव के लिए निवास करने के लिए कहा था। तभी से यहाँ पर ओंकारेश्वर नामक शिवलिंग स्थापित है जिसकी आज तक अत्यधिक मान्यता है।
तीसरी कहानी के संबंध में कहा जाता है कि जब देवताओं और दैत्यों के बीच भीषण युद्ध हुआ और सभी देवता दैत्यों से पराजित हो गए तब उन्होंने अपनी हताशा में भगवान शिव की पूजा-अर्चना की थी। देवताओं की सच्ची श्रद्धा भक्ति देख भगवान शिव ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप हुए और उन्होंने सभी दैत्यों को पराजित किया।
नारद जी इन बातों को सुन विंध्यांचल पर्वतराज खुद को ऊँचा साबित करने के लिए सोच-विचार करने लगे। नारद जी की बातें उन्हें बहुत चुभ रही थी और वे बहुत परेशान हो गए क्योंकि यहाँ पर उनके अहंकार की हार हुई। अपने आप को सबसे ऊँचा बनाने की कामना के चलते उन्होंने भगवान शिव की पूजा करने का मन बनाया। उन्होंने लगभग 6 महीने तक भगवान शिव की कठोर तपस्या कर प्रसन्न किया। अंततः भगवान शिव विंध्यांचल से अत्यधिक प्रसन्न हुए और उन्होंने प्रकट होकर वरदान मांगने को कहा।
इसपर विंध्यांचल पर्वत ने कहा कि हे! प्रभु मुझे बुद्धि प्रदान करें और मैं जिस भी कार्य को आरंभ करू वह सिद्ध हो। इस प्रकार विंध्यांचल पर्वत ने वरदान प्राप्त किया। भगवान शिव को देख आस-पास के ऋषि मुनि वहां पर आगये और उन्होंने भगवान शिव से यहाँ वास करने की प्रार्थना की। इस प्रकार भगवान शिव ने सभी की बात मानी, वहां पर स्थापित लिंग दो लिंगम में विभाजित हो गया। इसमें से विंध्यांचल द्वारा स्थापित पार्थिव लिंग का नाम ममलेश्वर लिंग पड़ा जबकि जहाँ भगवान शिव का वास माना जाता है उसे ओंकारेश्वर शिवलिंग के नाम से जाना जाने लगा।
ओंकारेश्वर लिंग से जुड़ी दूसरी कहानी कहती है कि राजा मान्धाता ने यहाँ पर्वत भगवान शिव का ध्यान करते हुए घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से भगवान शिव अत्यधिक प्रसन्न हुए थे और राजा ने उन्हें यहाँ सदैव के लिए निवास करने के लिए कहा था। तभी से यहाँ पर ओंकारेश्वर नामक शिवलिंग स्थापित है जिसकी आज तक अत्यधिक मान्यता है।
तीसरी कहानी के संबंध में कहा जाता है कि जब देवताओं और दैत्यों के बीच भीषण युद्ध हुआ और सभी देवता दैत्यों से पराजित हो गए तब उन्होंने अपनी हताशा में भगवान शिव की पूजा-अर्चना की थी। देवताओं की सच्ची श्रद्धा भक्ति देख भगवान शिव ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप हुए और उन्होंने सभी दैत्यों को पराजित किया।
ओंकारेश्वर मंदिर कितना प्राचीन है? ( How much old is Omkareshwar temple? )
Ujjain Omkareshwar Mandir के संबंध में मिले ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार यह आज से लगभग 5500 वर्ष प्राचीन माना जाता है। ओंकारेश्वर मंदिर ( Omkareshwara Temple ) के बारे में हमें पुराणों में भी वर्णन मिलता है इस तरह से हम इसकी प्राचीनता का अंदाज़ा लगा सकते हैं।
ओंकारेश्वर में कौन कौन सी नदी का संगम है? ( Which rivers meet in Omkareshwar? )
प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों में से एक Omkareshwar Madhya Pradesh में नर्मदा और कावेरी नदी के संगम पर स्थित है। बता दें कि ओंकारेश्वर में दो ज्योतिर्लिंग स्थापित है एक तो ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग और एक ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग ( Omkareshwar Jyotirlinga )। ओंकारेश्वर मान्धाता पर्वत और शिवपुरी के मध्य में स्थित है जबकि दक्षिणी तट पर ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग अवस्थित है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे? ( How to reach Omkareshwar Jyotirlinga? )
यदि आप हवाई मार्ग से ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग ( Omkareshwar Jyotirlinga ) पहुंचना चाहते हैं तो आपको ओंकारेश्वर से 77 किलोमीटर दूर अवस्थी इंदौर एयरपोर्ट तक जाना होगा। इसके बाद बस या टैक्सी के माध्यम से यहाँ तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। मध्य प्रदेश के उज्जैन, खंडवा और इंदौर से कई साड़ी बस सेवाऐं भी यहाँ तक आपको पहुंचा सकती हैं।
रेल मार्ग से जाने के लिए भी इसके निकटतम कोई रेलवे स्टेशन नहीं है। रेलवे के द्वारा जाने के लिए आपपको इंदौर या खंडवा रेलवे स्टेशन तक आने के बाद कोई बस या टैक्सी करनी होगी।
रेल मार्ग से जाने के लिए भी इसके निकटतम कोई रेलवे स्टेशन नहीं है। रेलवे के द्वारा जाने के लिए आपपको इंदौर या खंडवा रेलवे स्टेशन तक आने के बाद कोई बस या टैक्सी करनी होगी।
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