नैलायप्पर मंदिर ( Nellaiappar Temple)
तमिलनाडु के सबसे बड़े मंदिर कहे जाने वाला नैलायप्पर मंदिर ( Nellaiappar Temple ) भगवान शिव ( Bhagwan Shiv ) को समर्पित है। यह भव्य मंदिर अपनी ख़ूबसूरती के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है। बता दें कि नेलियाप्पार जिसे वेणुवननाथ के नाम से भी जाना जाता है को एक लिंगम के द्वारा दर्शाया गया है। वहीँ भगवान् शिव के स्वरुप नेलियाप्पार की पत्नी पार्वती को कांतिमथी अम्मन के रूप में यहाँ दर्शाया गया है।
इतिहास : नैलायप्पर मंदिर का निर्माण किसने करवाया? ( History : Who built Nellaiappar Temple? )
नैलायप्पर मंदिर का निर्माण 700 ईसवीं में कराया गया था। पुराणों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि इस मंदिर के दोनों गोपुरम को पांड्यों ने बनवाया जबकि मंदिर के गर्भगृह का निर्माण 7 वीं सदी में शासन करने वाले पांड्या वंश ( Pandya Dynasty ) के निंदरेसर नेदुमारन ने करवाया था। वहीँ अपने संगीत के प्रसिद्ध खंभो का निर्माण बाद के पांडयों ने कराया था।
ऐसा कहा जाता है कि नैलायप्पर और कांतिमथी दोनों अलग-अलग मंदिर हुआ करते थे जिनके मध्य में रिक्त स्थान था जो दोनों को पृथक करता था। साल 1647 में भगवान शिव के एक परम भक्त थिरु वडामलियप्पा पिल्लैयन ने चेन मंडपम को बनवाकर दोनों के मध्य की दूरी को समाप्त किया था। इसी के साथ यह जानकारी भी आपको दें कि इस मंदिर की मूल सरंचना तो पांड्या वंश के द्वारा बनाई थी परन्तु वर्तमान परिसर की चिनाई चोल, पल्लव, चेरस, नायक द्वारा की करवाई गई थी।
ऐसा कहा जाता है कि नैलायप्पर और कांतिमथी दोनों अलग-अलग मंदिर हुआ करते थे जिनके मध्य में रिक्त स्थान था जो दोनों को पृथक करता था। साल 1647 में भगवान शिव के एक परम भक्त थिरु वडामलियप्पा पिल्लैयन ने चेन मंडपम को बनवाकर दोनों के मध्य की दूरी को समाप्त किया था। इसी के साथ यह जानकारी भी आपको दें कि इस मंदिर की मूल सरंचना तो पांड्या वंश के द्वारा बनाई थी परन्तु वर्तमान परिसर की चिनाई चोल, पल्लव, चेरस, नायक द्वारा की करवाई गई थी।
नैलायप्पर मंदिर वास्तुकला ( Nellaiappar Temple Architecture )
नैलायप्पर मंदिर 14 एकड़ में फैला एक विशाल मंदिर है जिसे द्रविड़ शैली में निर्मित किया गया है। इस मंदिर के गोपुरम की बात करें तो यह 850 फीट लम्बा और 756 फीट चौड़ा है। यह वास्तुकला के सबसे उत्कृष्ट उदाहरणों में गिना जाता है क्योंकि यहाँ मौजूद 48 खंभों के समूह को एक ही पत्थर द्वारा तराशा गया था। ये 48 खंभे केंद्र में मौजूद खंभो को घेरे हुए हैं।
शिल्पशास्त्र के अनुसार मंदिर को बनाने में प्रयोग में लाये जाने वाले पत्थर को तीन भागों में बांटा गया है :
1. पुल्लिंग पत्थर
2. स्त्रीलिंग पत्थर
3. नपुंसक पत्थर
इन तीनों पत्थरों अलग-अलग प्रकार की ध्वनि का निर्माण करते हैं। इनमें से पुल्लिंग पत्थर का उपयोग केवल देवताओं की मूर्तियों के निर्माण में हुआ है। वहीँ स्त्रीलिंग पत्थरों का उपयोग देवी की मूर्तियाँ में किया है। जबकि नपुंसक पत्थरों का उपयोग आभूषण बनाने के लिए किया है।
शिल्पशास्त्र के अनुसार मंदिर को बनाने में प्रयोग में लाये जाने वाले पत्थर को तीन भागों में बांटा गया है :
1. पुल्लिंग पत्थर
2. स्त्रीलिंग पत्थर
3. नपुंसक पत्थर
इन तीनों पत्थरों अलग-अलग प्रकार की ध्वनि का निर्माण करते हैं। इनमें से पुल्लिंग पत्थर का उपयोग केवल देवताओं की मूर्तियों के निर्माण में हुआ है। वहीँ स्त्रीलिंग पत्थरों का उपयोग देवी की मूर्तियाँ में किया है। जबकि नपुंसक पत्थरों का उपयोग आभूषण बनाने के लिए किया है।
नैलायप्पर मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य ( Interesting Facts About Nellaiappar Temple ) :
नैलायप्पर मंदिर संगीत स्तम्भ ( Nellaiappar Temple Musical Pillars ) के नाम भी खूब प्रचलित है क्योंकि यहाँ के 161 स्तंभों से संगीत की मधुर धुन निकलती है। कहा जाता है कि यहाँ मंदिर के खम्भों से सात रंग के संगीत निकाले जा सकते हैं। जब भी इन खंभो में से किसी एक को ध्वनि निकालने के लिए छुआ जाता है तो आसपास के सभी खंभे कंपन करना शुरू कर देते हैं।
नैलायप्पर मंदिर से जुड़ी कहानी ( Nellaiappar Temple Story )
भगवान शिव का तांडव नृत्य :
नैलायप्पर मंदिर से जुड़ी एक मिथक कथा कहती है कि यह मंदिर उन पाँच स्थानों में से एक है जहां भगवान शिव ने तांड़व नृत्य किया था जिस कारण यह मंदिर शास्त्रीय नृत्य और कला के अन्य रूपों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है। मंदिर के अंदर मौजूद तामीरई अम्बलम या “तांबे का मंच” इस मिथक कथा रूपी विश्वास की पुष्टि करता है।
तिरुनेलवेली शहर और नैलायप्पर मंदिर के नाम के पीछे कहानी :
तिरुनेलवेली शहर और नैलायप्पर मंदिर के नाम के पीछे एक कहानी जुड़ी हुई है। जिसके अनुसार एक बार इस शहर में वेद सरमा नामक एक गरीब ब्राह्मण निवास करता था जो एक महान शिव भक्त था। वह हर रोज़ भीख मांगने के लिए बाहर जाता था और मिली भिक्षा का उपयोग वेद सरमा भगवान शिव को प्रसाद चढ़ाने के लिए करता था।
एक दिन जब ब्राह्मण भगवान शिव को चढ़ाने के लिए धान को सुखा रहा था, तभी अचानक बारिश होने लगी जिससे वेद सरमा को डर लगने लगा था कि कहीं भारी बारिश के कारण सारा धान बह न जाए।
इससे वह बहुत चिंतित हो उठा और भगवान से मदद के लिए प्रार्थना करने लगा। भगवान ने उसकी प्रार्थना को सुन धान को ढँक कर और उसके चारों ओर बाड़ की तरह खड़े होकर बारिश से बचाया। यही वजह है कि इस स्थान को तिरु नेल वेली कहा जाने लगा। जिसमें तिरु – का अर्थ है सुंदर, नेल – का अर्थ धान और वेली – का अर्थ है बाड़। साथ ही भगवान शिव को नैलायप्पर के नाम से जाना गया।
इस मंदिर से जुड़ी दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार प्राकारम के दक्षिण-पूर्वी कोने में, एक शिवलिंग जिसे अनवरता खान के नाम से जाना जाता है, को प्रतिष्ठित किया गया है। जिसके बारे में ऐसा कहा जाता है कि नवाबों में से एक की पत्नी किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित थी और उसने अपनी बीमारी से निजात पाने के लिए ब्राह्मणों से परामर्श किया था।
ब्राह्मणों ने उसे नैलायप्पर की पूजा करने और मंदिर में कुछ धार्मिक समारोह कराने की सलाह दी। जिसे उस रानी ने तुरंत स्वीकार कर लिया और वैसा ही किया। हैरान करने वाले बात थी कि वह रानी ब्राह्मणों के कहे अनुसार सब काम किये जाने के बाद स्वस्थ हो गई। वह रानी न केवल बिमारी से ठीक हुई बल्कि उसने एक स्वस्थ पुत्र को भी जन्म दिया।
मुस्लिम रानी ने की थी नैलायप्पर मंदिर में पूजा :
जन्मे उसी लड़के का नाम अनवरता खान रखा गया था और अनवरता खान के नाम से ही स्थापित शिवलिंग के साथ मंदिर का निर्माण मुस्लिम रानी और राजकुमार की याद में प्राकरम के एक कोने में किया गया था।
भगवान शिव ने बनाया था निवास स्थान :
इस मंदिर से जुड़ी तीसरी किंवदंती कुछ इस प्रकार है कि भगवान शिव एक बार लिंगम का रूप धारण कर तिरुनेलवेली आए और यहां पर ही अपना निवास स्थान बना लिया। उनका निवास स्थान बनाये जाने के बाद चारों वेद उनके चारों ओर बाँस के वृक्षों की भाँति खड़े हो गए थे और उन्हें छाया प्रदान करते थे। इसलिए इस स्थान को वेणु वानर्ण यानी बांस के वन के रूप में जाना जाने लगा। इसी के साथ भगवान शिव को वेणुवननाथर के रूप में जाना जाने लगा।
नैलायप्पर मंदिर से जुड़ी एक मिथक कथा कहती है कि यह मंदिर उन पाँच स्थानों में से एक है जहां भगवान शिव ने तांड़व नृत्य किया था जिस कारण यह मंदिर शास्त्रीय नृत्य और कला के अन्य रूपों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है। मंदिर के अंदर मौजूद तामीरई अम्बलम या “तांबे का मंच” इस मिथक कथा रूपी विश्वास की पुष्टि करता है।
तिरुनेलवेली शहर और नैलायप्पर मंदिर के नाम के पीछे कहानी :
तिरुनेलवेली शहर और नैलायप्पर मंदिर के नाम के पीछे एक कहानी जुड़ी हुई है। जिसके अनुसार एक बार इस शहर में वेद सरमा नामक एक गरीब ब्राह्मण निवास करता था जो एक महान शिव भक्त था। वह हर रोज़ भीख मांगने के लिए बाहर जाता था और मिली भिक्षा का उपयोग वेद सरमा भगवान शिव को प्रसाद चढ़ाने के लिए करता था।
एक दिन जब ब्राह्मण भगवान शिव को चढ़ाने के लिए धान को सुखा रहा था, तभी अचानक बारिश होने लगी जिससे वेद सरमा को डर लगने लगा था कि कहीं भारी बारिश के कारण सारा धान बह न जाए।
इससे वह बहुत चिंतित हो उठा और भगवान से मदद के लिए प्रार्थना करने लगा। भगवान ने उसकी प्रार्थना को सुन धान को ढँक कर और उसके चारों ओर बाड़ की तरह खड़े होकर बारिश से बचाया। यही वजह है कि इस स्थान को तिरु नेल वेली कहा जाने लगा। जिसमें तिरु – का अर्थ है सुंदर, नेल – का अर्थ धान और वेली – का अर्थ है बाड़। साथ ही भगवान शिव को नैलायप्पर के नाम से जाना गया।
इस मंदिर से जुड़ी दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार प्राकारम के दक्षिण-पूर्वी कोने में, एक शिवलिंग जिसे अनवरता खान के नाम से जाना जाता है, को प्रतिष्ठित किया गया है। जिसके बारे में ऐसा कहा जाता है कि नवाबों में से एक की पत्नी किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित थी और उसने अपनी बीमारी से निजात पाने के लिए ब्राह्मणों से परामर्श किया था।
ब्राह्मणों ने उसे नैलायप्पर की पूजा करने और मंदिर में कुछ धार्मिक समारोह कराने की सलाह दी। जिसे उस रानी ने तुरंत स्वीकार कर लिया और वैसा ही किया। हैरान करने वाले बात थी कि वह रानी ब्राह्मणों के कहे अनुसार सब काम किये जाने के बाद स्वस्थ हो गई। वह रानी न केवल बिमारी से ठीक हुई बल्कि उसने एक स्वस्थ पुत्र को भी जन्म दिया।
मुस्लिम रानी ने की थी नैलायप्पर मंदिर में पूजा :
जन्मे उसी लड़के का नाम अनवरता खान रखा गया था और अनवरता खान के नाम से ही स्थापित शिवलिंग के साथ मंदिर का निर्माण मुस्लिम रानी और राजकुमार की याद में प्राकरम के एक कोने में किया गया था।
भगवान शिव ने बनाया था निवास स्थान :
इस मंदिर से जुड़ी तीसरी किंवदंती कुछ इस प्रकार है कि भगवान शिव एक बार लिंगम का रूप धारण कर तिरुनेलवेली आए और यहां पर ही अपना निवास स्थान बना लिया। उनका निवास स्थान बनाये जाने के बाद चारों वेद उनके चारों ओर बाँस के वृक्षों की भाँति खड़े हो गए थे और उन्हें छाया प्रदान करते थे। इसलिए इस स्थान को वेणु वानर्ण यानी बांस के वन के रूप में जाना जाने लगा। इसी के साथ भगवान शिव को वेणुवननाथर के रूप में जाना जाने लगा।