भौम ( मंगल ) प्रदोष क्या है? ( Bhaum ya Mangal Pradosh kya hai? )
भौम प्रदोष जिसे मंगल प्रदोष ( Mangal Pradosh ) कहा जाता है हर माह शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी ( Trayodashi ) तिथि को मंगलवार के दिन पड़ता है। त्रयोदशी के मंगलवार को आने वाला यह व्रत भक्तों को बिमारियों से निजात दिलाता है। साथ ही भक्तों को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखता है। प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित है जबकि मंगलवार के दिन पड़ने से इसका महत्व दोगुना हो जाता है क्योंकि इसमें मंगलवार के दिन का भी महत्व जुड़ जाता है।
भौम ( मंगल ) प्रदोष व्रत विधि ( Bhaum ya Mangal Pradosh Vrati vidhi )
1. भौम प्रदोष ( Bhaum Pradosh ) के दिन प्रातःकाल स्नान कर भगवान शिव को पहले जल से स्नान कराएं।
2. इसके पश्चात ॐ नमः शिवाय का जप करते हुए पंचामृत से स्नान कराएं और फिर चन्दन लगाएं।
3. फिर घी का दीपक और धूप जलाएं।
4. साथ ही किसी रोग या कर्ज से मुक्ति पाने के लिए इस दिन हनुमान चालीसा का भी पाठ करें।
5. मंगल के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए इस दिन मंगल देव की पूजा भी करें।
(कुंडली में मंगल के दोषों से मुक्ति पाने के लिए जातक मंगल यन्त्र रूपी लॉकेट ( Mangal Yantra Locket ) को धारण करें। यह मंगल के सभी बुरे दुष्प्रभावों को खत्म करता है।)
6. तत्पश्चात पुष्प और भोग मिष्ठान भगवान को अर्पित करें।
7. पूरे दिन निराहार रहकर सच्चे मन से व्रत का पालन करने से व्यक्ति के सभी संकट दूर हो जाते हैं।
2. इसके पश्चात ॐ नमः शिवाय का जप करते हुए पंचामृत से स्नान कराएं और फिर चन्दन लगाएं।
3. फिर घी का दीपक और धूप जलाएं।
4. साथ ही किसी रोग या कर्ज से मुक्ति पाने के लिए इस दिन हनुमान चालीसा का भी पाठ करें।
5. मंगल के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए इस दिन मंगल देव की पूजा भी करें।
(कुंडली में मंगल के दोषों से मुक्ति पाने के लिए जातक मंगल यन्त्र रूपी लॉकेट ( Mangal Yantra Locket ) को धारण करें। यह मंगल के सभी बुरे दुष्प्रभावों को खत्म करता है।)
6. तत्पश्चात पुष्प और भोग मिष्ठान भगवान को अर्पित करें।
7. पूरे दिन निराहार रहकर सच्चे मन से व्रत का पालन करने से व्यक्ति के सभी संकट दूर हो जाते हैं।
( भौम ) मंगल प्रदोष व्रत कथा ( Mangal Pradosh Vrat Katha )
एक नगर में वृद्धा अपने मंगलिया नामक पुत्र के साथ रहा करती थी जो नियमों की बड़ी पक्की थी। उस वृद्धा की हनुमान जी में बहुत आस्था थी और वे हर मंगलवार कड़े नियमों का पालन करती थी। मंगलवार के दिन वह न तो अपना घर लीपती थी और न ही मिटटी को खोदा करती। वृद्धा को व्रत करते हुए भी बहुत समय बीत चुका था।
वृद्धा की श्रद्धा-भक्ति देख हनुमान जी ने उसकी परीक्षा लेने का मन बनाया। परीक्षा लेने के उद्देश्य से वे साधू का भेष धारण कर वृद्धा के घर आ पहुंचे। फिर वे कहने लगे कि यहाँ कोई हनुमान भक्त है जो मेरी सहायता करे? साधू की आवाज़ को सुन वह वृद्धा घर के बाहर निकल आई और बोली आज्ञा महाराज ! मैं आपकी किस तरह से सहायता कर सकती हूँ? साधु भेष धारण किये हनुमान जी वृद्धा से बोले कि मैं बहुत भूखा हूँ, मुझे भोजन कराओ। तू यह जमीन लीप दे।
साधु की बात सुनकर वृद्धा बड़ी दुविधा में पड़ गई क्योंकि नियम के अनुसार वह हर मंगलवार को जमीन नहीं लीपा करती। कुछ देर सोचने के बाद साधु के सामने हाथ जोड़कर बोली महाराज! यह कार्य तो मैं नहीं कर सकती कृपया आप मुझे कोई दूसरा कार्य करने की आज्ञा दे दीजिये। उसे मैं किसी भी हालत में पूर्ण करुँगी।
इसके बाद साधु का भेष धारण करे हनुमान जी ने तीन बार प्रतिज्ञा की और फिर कहा कि तू! अपने पुत्र को बुला मैं उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन करना चाहता हूँ। साधु के मुख से इस तरह की बात को सुन वृद्धा के होश उड़ गए। उसके सोचने समझने की क्षमता खत्म हो गई पर दुर्भाग्यवश वह साधु की आज्ञा मानने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध थी। अपनी प्रतिज्ञा के चलते उसने अपने पुत्र मंगलिया को बुलाया और साधु को दे दिया।
वृद्धा की प्रतिज्ञाबद्धता देख हनुमान जी इतनी आसानी से हार मानने वालों में से नहीं थे। उन्होंने वृद्धा की और प्रतीक्षा लेनी चाही। इसके लिए उन्होंने वृद्धा के हाथों से ही मंगलिया को पेट के बल लिटवाया और साथ ही पीठ पर आग भी जलवाई। अपने बेटे की पीठ पर आग जलाने के बाद वह वृद्धा बड़े ही दुःखी मन से घर के अंदर चली गई।
कुछ समय बाद साधु ने वृद्धा से कहा कि अपने बेटे को बुलाओ ताकि वह भोजन का भोग ले। साधु की इस बात को सुनकर पहले तो वृद्धा को यकीन नहीं हुआ। वृद्धा ने रोते-रोते अपने आंसू पौंछे और बोली आप मुझे उसका नाम लेकर कष्ट न दें। इसके बावजूद साधु नहीं माने और वृद्धा ने मंगलिया को आवाज लगा ही दी। अपने पुत्र को जीवित देखकर वृद्धा बहुत प्रसन्न हुई और वह साधु के चरणों में गिर पड़ी। इसके बाद हनुमान अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और वृद्धा को दर्शन दिए। इस तरह मंगल प्रदोष के दिन हनुमान जी के दर्शन पाकर वृद्धा का जीवन सफल हो गया।
वृद्धा की श्रद्धा-भक्ति देख हनुमान जी ने उसकी परीक्षा लेने का मन बनाया। परीक्षा लेने के उद्देश्य से वे साधू का भेष धारण कर वृद्धा के घर आ पहुंचे। फिर वे कहने लगे कि यहाँ कोई हनुमान भक्त है जो मेरी सहायता करे? साधू की आवाज़ को सुन वह वृद्धा घर के बाहर निकल आई और बोली आज्ञा महाराज ! मैं आपकी किस तरह से सहायता कर सकती हूँ? साधु भेष धारण किये हनुमान जी वृद्धा से बोले कि मैं बहुत भूखा हूँ, मुझे भोजन कराओ। तू यह जमीन लीप दे।
साधु की बात सुनकर वृद्धा बड़ी दुविधा में पड़ गई क्योंकि नियम के अनुसार वह हर मंगलवार को जमीन नहीं लीपा करती। कुछ देर सोचने के बाद साधु के सामने हाथ जोड़कर बोली महाराज! यह कार्य तो मैं नहीं कर सकती कृपया आप मुझे कोई दूसरा कार्य करने की आज्ञा दे दीजिये। उसे मैं किसी भी हालत में पूर्ण करुँगी।
इसके बाद साधु का भेष धारण करे हनुमान जी ने तीन बार प्रतिज्ञा की और फिर कहा कि तू! अपने पुत्र को बुला मैं उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन करना चाहता हूँ। साधु के मुख से इस तरह की बात को सुन वृद्धा के होश उड़ गए। उसके सोचने समझने की क्षमता खत्म हो गई पर दुर्भाग्यवश वह साधु की आज्ञा मानने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध थी। अपनी प्रतिज्ञा के चलते उसने अपने पुत्र मंगलिया को बुलाया और साधु को दे दिया।
वृद्धा की प्रतिज्ञाबद्धता देख हनुमान जी इतनी आसानी से हार मानने वालों में से नहीं थे। उन्होंने वृद्धा की और प्रतीक्षा लेनी चाही। इसके लिए उन्होंने वृद्धा के हाथों से ही मंगलिया को पेट के बल लिटवाया और साथ ही पीठ पर आग भी जलवाई। अपने बेटे की पीठ पर आग जलाने के बाद वह वृद्धा बड़े ही दुःखी मन से घर के अंदर चली गई।
कुछ समय बाद साधु ने वृद्धा से कहा कि अपने बेटे को बुलाओ ताकि वह भोजन का भोग ले। साधु की इस बात को सुनकर पहले तो वृद्धा को यकीन नहीं हुआ। वृद्धा ने रोते-रोते अपने आंसू पौंछे और बोली आप मुझे उसका नाम लेकर कष्ट न दें। इसके बावजूद साधु नहीं माने और वृद्धा ने मंगलिया को आवाज लगा ही दी। अपने पुत्र को जीवित देखकर वृद्धा बहुत प्रसन्न हुई और वह साधु के चरणों में गिर पड़ी। इसके बाद हनुमान अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और वृद्धा को दर्शन दिए। इस तरह मंगल प्रदोष के दिन हनुमान जी के दर्शन पाकर वृद्धा का जीवन सफल हो गया।
साल 2022 में कब है भौम ( मंगल ) प्रदोष? ( Saal 2022 me kab hai Mangal Pradosh? )
मार्च 15, 2022
मंगलवार- फाल्गुन, शुक्ल त्रयोदशी
प्रारम्भ- शुक्ल त्रयोदशी तिथि 15 मार्च को दोपहर में 1 बजकर 12 मिनट पर
समाप्त- 16 मार्च को दोपहर में 1 बजकर 39 मिनट पर
मार्च 29, 2022,
मंगलवार- चैत्र, कृष्ण त्रयोदशी
प्रारम्भ- कृष्ण त्रयोदशी तिथि 29 मार्च को दोपहर में 2 बजकर 38 मिनट पर
समाप्त- 30 मार्च को दोपहर में 1 बजकर 19 मिनट पर
अगस्त 9, 2022
मंगलवार- श्रावण, शुक्ल त्रयोदशी
प्रारम्भ- श्रावण, शुक्ल त्रयोदशी तिथि 9 अगस्त को शाम में 5 बजकर 45 मिनट पर
समाप्त- 10 अगस्त को दिन में 2 बजकर 15 मिनट पर
मंगलवार- फाल्गुन, शुक्ल त्रयोदशी
प्रारम्भ- शुक्ल त्रयोदशी तिथि 15 मार्च को दोपहर में 1 बजकर 12 मिनट पर
समाप्त- 16 मार्च को दोपहर में 1 बजकर 39 मिनट पर
मार्च 29, 2022,
मंगलवार- चैत्र, कृष्ण त्रयोदशी
प्रारम्भ- कृष्ण त्रयोदशी तिथि 29 मार्च को दोपहर में 2 बजकर 38 मिनट पर
समाप्त- 30 मार्च को दोपहर में 1 बजकर 19 मिनट पर
अगस्त 9, 2022
मंगलवार- श्रावण, शुक्ल त्रयोदशी
प्रारम्भ- श्रावण, शुक्ल त्रयोदशी तिथि 9 अगस्त को शाम में 5 बजकर 45 मिनट पर
समाप्त- 10 अगस्त को दिन में 2 बजकर 15 मिनट पर