नर्मदा नदी का हिन्दू धर्म में महत्व
भारतीय समाज में नदियों को पूजे जाने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। हम पूजा किये जाने का आधार धार्मिक मानें या वैज्ञानिक पर सच तो यही है कि हिन्दू परम्परा में नदियों को पूजने का अत्यधिक महत्व है। भारत जैसे देशों में वैज्ञानिक से ज्यादा धार्मिक आधार मान्य है। हम इसी धार्मिक आधार पर नर्मदा नदी से जुड़े कुछ रहस्यों को उजागर करेंगे।
मध्य प्रदेश की जीवन रेखा कही जाने वाली नर्मदा से जुड़े रहस्यों में सबसे अधिक आश्चर्य की बात तो यह है कि नर्मदा बाकी सभी नदियों के विपरीत उल्टी दिशा में बहती है। हिन्दू धर्म में जो स्थान गंगा को हासिल है वही स्थान नर्मदा को भी हासिल है। गंगा में डुबकी लगाने से यदि पुण्य की प्राप्ति होती है तो नर्मदा अविनाशी रूप धारण किये सभी पापों का नाश कर देती है। मत्स्य पुराण में इस बात का वर्णन है कि गंगा कनखल में और सरस्वती कुरूक्षेत्र में पुण्य प्रदान करती है पर नर्मदा की गिनती सर्वत्र पुण्य प्रदान करने वालों में शामिल है।
नर्मदा से जुड़े ऐसे ही कई रहस्य है जिनसे लोग आज तक अनजान है। आज हम उन्हीं रहस्यों का खुलासा करेंगे और आपको बताएंगे नर्मदा के उद्भव से लेकर उनके विवाह तक की पूरी कहानी। साथ ही इस बात से भी आपको अवगत कराएंगे कि आखिर क्यों नर्मदा से निर्मित होने वाले शिवलिंग रखते है इतना ख़ास महत्व।
नर्मदा नाम कैसे पड़ा?
’नर्म ददाति‘ अर्थात् आनन्द या हर्ष पैदा करने वाली। नर्मदा एक ऐसी नदी है जो मनुष्य के भीतर मौजूद अहंकार को समाप्त कर हर्ष का सृजन करती है। देवताओं को हर्ष प्रदान करने के कारण रेवा का नाम नर्मदा पड़ा।
नर्मदा को रेवा भी कहा जाता था जिसका अर्थ होता है कूदना। नर्मदा कई बड़ी चट्टानों और विशाल पर्वतों से छलांगे लगाती हुई आगे बढ़ती है इसलिए इसका नाम रेवा रखा गया। स्कंदपुराण में तो रेवा खंड पूरा का पूरा नर्मदा पर ही समर्पित है। वहीँ नर्मदा इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह प्रवाह के साथ तटों से गुजरती हुई आनंद प्रदान करती है इसलिए यह नर्म-दा कहलाती है।
नर्मदा नदी किसकी बेटी है?
पौराणिक कथाओं में दो कहानियां प्रचलित है जिनमें से पहली कहानी के अनुसार नर्मदा को भगवान शिव की पुत्री बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि नर्मदा का जन्म तपस्या करते हुए भगवान शिव के स्वद से हुआ है। दूसरी कहानी के मुताबिक नर्मदा राजा मैखल की पुत्री हैं
आखिर नर्मदा नदी उल्टी दिशा में क्यों बहती है?
इस सवाल का जवाब नर्मदा नदी की प्रेम कहानी में मिलता है। राजकुमारी नर्मदा राजा मैखल की पुत्री थी। राजा ने अपनी अत्यंत सुन्दर पुत्री के लिए यह तय किया की जो राजकुमार गुलबकावली के दुर्लभ पुष्प नर्मदा के लिए लेकर आएगा उसी से नर्मदा का विवाह तय किया जाएगा।
कई सारे राजकुमार वह पुष्प लाने में विफल हुए जबकि सोनभद्र वह पुष्प ले आया। अतः राजकुमारी नर्मदा के साथ सोनभद्र का विवाह तय कर दिया गया। नर्मदा अब तक सोनभद्र से मिल नहीं पाई थी। लेकिन सोनभद्र के वीर और पराक्रम की कथाएं सुन नर्मदा के मन में सोनभद्र के प्रति प्रेम पनप ही गया।
विवाह होने में कुछ ही दिन बाकी थे पर नर्मदा अभी से सोनभद्र से मिलने के लिए व्याकुल थी। उसने अपनी दासी जुहिला के हाथों एक प्रेम सन्देश सोनभद्र के पास भेजा। जुहिला सन्देश लेकर जाने के लिए तैयार तो हो गई लेकिन उसे ठिठोली सूझी और उसने नर्मदा से उसके वस्त्र और आभूषण मांगे। फिर इसके बाद वह सोनभद्र से मिलने के लिए निकल पड़ी।
जुहिला सोनभद्र के पास पहुंची तो वे जुहिला को ही राजकुमारी समझ बैठे। सोनभद्र का व्यवहार देख जुहिला की नीयत बिगड़ गई और वह राजकुमार सोनभद्र के प्रणय निवेदन को ठुकरा नहीं पाई। वहीँ सोनभद्र के सन्देश का बेसब्री से इंतज़ार कर रही नर्मदा विचलित हो उठी।
अपनी व्याकुलता पर काबू न पाते हुए वह सोनभद्र से मिलने पहुंची। वहां पहुँचने पर सोनभद्र और जुहिला को साथ देख नर्मदा क्रोध में झुलस उठी। क्रोध में नर्मदा ने आजीवन कुंवारी रहने का प्रण लिया और उल्टी दिशा में चली गईं। यही कारण है नर्मदा उल्टी दिशा में बहती है।
कौन सा विशेष लक्षण नर्मदा नदी के लिए उपयुक्त है?
नर्मदा नदी का सबसे विशेष लक्षण है यहाँ से निर्मित होने वाले शिवलिंग जिन्हें Narmadeshwar Shivling के नाम से जाना जाता है। इसके पीछे एक कहानी काफी प्रचलन में है।
दरअसल पौराणिक काल में नर्मदा ने कठोर तपस्या के माध्यम से ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया था। जब तपस्या से खुश होकर ब्रह्मा ने Narmada से वरदान मांगने को कहा तो नर्मदा ने वरदान स्वरुप माँगा कि उसे भी गंगा के समान पवित्र होने का दर्जा दिया जाए।
यह सुन ब्रह्मा जी ने कहा कि यदि संसार में कोई ऐसा है जो भगवान शंकर या भगवान विष्णु की बराबरी कर पाए तो कोई और नदी भी गंगा के समान पवित्र हो सकती है। इन वाक्यों को सुन नर्मदा काशी चली गयीं और वहां पिलपिलातीर्थ में Shivling की स्थापना कर तपस्या में लीन हो गईं। उनकी तपस्या से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए और नर्मदा से वरदान मांगने के लिए कहा।
नर्मदा ने वरदान में भगवान Shiva की भक्ति मांगी। यह वरदान सुन भगवान शंकर ने कहा कि हे! नर्मदे तुम्हारे तट में आने वाले सभी पत्थर शिवलिंग में परिवर्तित हो जाएँ। जिस प्रकार गंगा में स्नान कर पुण्य की प्राप्ति होती है उसी प्रकार नर्मदा नदी और इससे निकलने वाले पत्थर के दर्शन मात्र से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होगा। तभी से नर्मदा से निकलने वाला हर कंकर शंकर कहलाने लगा और इन्हें Narmadeshwar Shivling कहा जाने लगा।
नर्मदा को मिले वरदान के कारण ही नर्मदेश्वर शिवलिंग का महत्व दोगुना हो जाता है। कहा जाता है कि यहाँ से निकले शिवलिंग को प्राण प्रतिष्ठा की भी आवश्यकता नहीं होती है। यह बगैर प्राण प्रतिष्ठा के अत्यंत शुभ फल प्रदान करता है। यदि आप इस पवित्र नर्मदेश्वर शिवलिंग को खरीदने के इच्छुक है तो यह हमारे पास उपलब्ध है। हमारी वेबसाइट prabhubhakti.in पर Buy Narmadeshwar Shivling Online.