जानिये सृष्टि के पालन हार भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की कहानी 

भगवान विष्णु के अवतार का महत्व  ( Importance of Lord Vishnu Avatar )

भगवान विष्णु जो इस सृष्टि के पालन हार माने जाते हैं समय समय पर अवतार लेकर संसार का कल्याण और उनकी रक्षा करते हैं। उनके कई अवतार हुए जिनमें से आज हम भगवान विष्णु के कूर्म अवतार के बारे में बात करने जा रहे हैं।

भगवान विष्णु के कूर्म अवतार को कच्छप अवतार भी कहा जाता है, यह विश्व कल्याण के लिए लिया गया उनका दूसरा अवतार था। अपने कूर्म अवतार में विष्णु जी एक कछुए के रूप में अवतरित हुए थे इसलिए इन्हें Tortoise God कहा गया है। आइए जानते हैं आखिर भगवान विष्णु के Kachhap Avatar Ki Katha.

कुर्म अवतार की कहानी ( Kurma Avatar Story In Hindi )

विष्णु जी के एक कछुए के रूप में अवतार लेने का कारण समुद्र मंथन से जुड़ा हुआ है। दरअसल समुद्र मंथन के दौरान देव गणों और दैत्यों की सहायता करने के लिए उन्होंने कच्छप रूप धारण किया था। Lord Vishnu Kurma Avatar Story In Hindi कुछ इस प्रकार है कि एक समय की बात है जब देवताओं को अपनी शक्ति का खूब अभिमान हो चला था और इस अभिमान में डूबे हुए देवों ने ऋषि दुर्वासा का अपमान किया तो उन्होंने क्रोध में आकर देवताओं को श्राप दे डाला था कि समय आने पर तुम सभी शक्तिहीन हो जाओगे तुम्हारी सारी शक्ति क्षीण हो जाएगी।

इसी श्राप के परिणामस्वरूप दैत्यों से युद्ध करते समय देवताओं की शक्ति कम होने लगी। शक्तिहीनता का लाभ उठाते हुए दैत्यों ने देवराज इंद्र को चुटकियों में पराजित कर डाला। इस तरह अब सभी दैत्यों दानवों का तीनों लोकों पर राज हो गया। शक्तिहीन हुए सभी देव भय की अवस्था में भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे उपाय पूछा। भगवान विष्णु ने Samudra Manthan का उपाय सुझाया। अभी अभी सतयुग की शुरुआत हुई थी पृथ्वी को प्रलय झेले हुए कुछ ही समय बीता था और सभी बहुमूल्य रत्न प्रलय के कारण समुद्र में गिर गए थे। ऐसे में समुद्र मंथन का विष्णु जी का सुझाव सबसे सही था।

Kachhap Avatar Ki Kahani का आरम्भ भी यहीं से होता है। समुद्र मंथन का कार्य करना अकेले देवताओं के बस में नहीं था इसलिए दैत्यों को साथ में लाना एक मजबूरी थी। विष्णु जी ने बताया था कि समुद्र मंथन से अमृत निकलेगा जिसका पान कर सभी देवता अमर हो जाएंगे। इस तरह वे फिर से शक्तिशाली हो जाएंगे और पुरानी अवस्था में लौट आएंगे।

Kurma Avatar In Hindi की कहानी आगे इस प्रकार है कि अब समुद्र मंथन का कार्य आरंभ हुआ जिसके लिए विशाल मदारी की आवश्यकता थी जिससे समुद्र को मथा जा सके। इसके लिए विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र की मदद से मंदार पर्वत को काटकर समुद्र में रखा। इसकी सहायता से ही देव व दानव समुंद्र को मथने का कार्य कर सकते थे। इस पर्वत को घुमाने के लिए रस्सी के रूप में भगवान विष्णु के वासुकी नाग का प्रयोग किया गया। वासुकी नाग को मंदार पर्वत पर लपेटा गया। नाग के मुख को दैत्यों की ओर तथा तथा पूँछ को देवताओं की ओर रखा गया।

भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार क्यों लिया था? ( What was the purpose of Kurma avatar? )

Vishnu Ka Kachua Avatar की कहानी में अब एक और परेशानी सामने आई क्योंकि समुद्र गहरा होता है इसलिये मंदार पर्वत अंदर रसातल में डूबता जा रहा था। मंदार पर्वत के डूबने से समुद्र मंथन का कार्य पूर्ण होना असंभव था। यह दृश्य देखकर भगवान विष्णु ने एक बार फिर सहायता की और अपना द्वितीय कूर्म अवतार लिया। 

Kurma अवतार में उन्होंने मंदार पर्वत का सारा भार अपनी पीठ पर उठाए रखा और वे तब भार सहन करते रहे जब तक समुद्र मंथन का कार्य पूर्ण नहीं हो गया। Kurma avatar of Vishnu के कारण ही समुद्र मंथन का कार्य संपन्न हो पाया, देवताओं को अमृत मिल पाया और चौदह रत्नों को भी प्राप्ति हुई।

कूर्म का मतलब क्या है? ( What is the meaning of Kurma? )

कूर्म का अर्थ होता है ऐसा जीव जिसकी पीठ पर ठोस ढाल हो, इसलिए कछुए को कूर्म कहा जाता है और भगवान विष्णु द्वारा लिए गए अवतार को भी कूर्म कहते हैं।  

कूर्म अवतार कब हुआ था? ( When was Kurma avatar taken? )

भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार सत्ययुग में समुद्र मंथन के दौरान लिया था। यह संसार के कल्याण के लिया लिया गया उनका दूसरा अवतार माना जाता है।

Krishna Butter Ball : इस पत्थर को क्यों कहते हैं कृष्णा का माखन? क्या एलियन लाये ये पत्थर?

पत्थर के कृष्णा बटर बॉल का रहस्य ( Krishna Butter Ball Mystery )

एक विशाल पत्थर जिसे देखते ही सभी भय से लगे कांपने? क्या ये पत्थर कभी भी गिर सकता है नीचे? दोस्तों आज हम आपको एक ऐसे पत्थर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे सभी देखते हैं आस्था भरी नज़रों से, जी हाँ यह कोई आम पत्थर नहीं बल्कि इसके पीछे एक अद्भुत रहस्य छिपा हुआ है जिसका पता आज तक कोई भी नहीं लगा पाया। यहां तक कि वैज्ञानिक भी इस रहस्य को नहीं सुलझा पाए।  आखिर कैसा है ये पत्थर ? आखिर क्यों नहीं हिला पाया आज तक कोई भी इस पत्थर को? आखिर कौन लेकर आया इस विशाल पत्थर को यहां? क्या ये प्राकृतिक तौर पर इस स्थान पर मौजूद है या फिर कोई इसे यहां तक लेकर आया था ? ये जानने के लिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ियेगा। 

दोस्तों ये बात है सन 1908  की, जब मद्रास के गवर्नर आर्थर को पता चला कि Mahabalipuram Chennai में एक ऐसा स्थान मौजूद है जंहा पर एक विशालकाय गोल चट्टान मिली है जो कि एक ढलान पर टिकी हुई थी। आर्थर जब इस स्थान पर पहुंचे तो वे काफी हैरान हो गए कि एक विशाल पत्थर यानी एक ऐसी चट्टान जिसका आकार बिलकुल गोल है। आखिर वह 45 डिग्री के कोण पर एक ढलान पर कैसे टिकी हुई है। उन्होंने सोचा कि अगर ये चट्टान यहां से अचानक गिरती है तो कई लोगों को जान तथा माल का काफी नुकसान होगा।  इसलिए उन्होंने इस पत्थर को हटाने के लिए सात हाथियों की मदद ली।  लेकिन हैरान कर देने वाली बात ये थी कि सात हाथी मिलकर भी इस चट्टान को नीचे गिरा नहीं पाए। काफी पुरजोर प्रयास के बाद गवर्नर ने हार मान ली और इसे ऐसे ही छोड़ दिया गया। इस पत्थर को देखने पर ऐसा लगता है मानों यह किसी भी समय लुढ़ककर नीचे गिर सकता है।  

दोस्तों इस पत्थर को लेकर एक खास बात ये है कि यह पत्थर कृष्णा butterball के नाम से काफी प्रसिद्ध है। माना जाता है कि श्री कृष्णा अक्सर माखन चोरी करते थे और एक बार माखन का यह टुकड़ा स्वर्ग से सीधा धरती पर आकर गिरा और फिर यह सूख गया। इसलिए इसे krishna’s butterball तथा स्वर्ग का पत्थर भी कहा जाता है जो कि Sree Krishna द्वारा माखन खाते समय सीधा स्वर्ग से धरती पर गिरा था।  

20 फीट ऊँचे और 5 मीटर चौड़े इस पत्थर को लेकर कई लोगों ने दावा किया है कि यह Shri Krishna का ही एक चमत्कार है इसलिए यह एक ढलान पर बिना लुढ़के टिका हुआ है। कई लोगों का ये भी मानना है कि यह पत्थर प्राकृतिक रूप से इस स्थान पर मौजूद है लेकिन जियोलॉजिस्ट के अनुसार कोई भी प्राकृतिक पदार्थ असामान्य आकार के पत्थर का निर्माण नहीं कर सकते।  

कई लोगों ने भी इस पत्थर को हिलाने का काफी प्रयास किया लेकिन ये पत्थर टस से मस नहीं हुआ।  यंहा तक कि कई बड़ी बड़ी आपदाएं भी इस पत्थर को आज तक नहीं हिला पायी। ये पत्थर ( Ball butter Krishna ) कई सालों से अपने स्थान से जरा सा भी नहीं हिला है। न तो इस पत्थर को नीचे लुढ़काया जा सकता है और ही ऊपर की और धकेला जा सकता है।

फिर सवाल ये उठता है कि आखिर ये पत्थर इस स्थान पर कहां से आया? क्या सच में ये Shree Krishna के माखन का एक प्रतीक है या फिर इस पत्थर ( Butterball Mahabalipuram ) को कोई एलियन इस स्थान पर लेकर आया। दोस्तों इस बारे में आपका क्या कहना है अपने विचार हमें हमें कमेंट बॉक्स में जरूर साझा कीजियेगा। दोस्तों अगर आपके आस-पास या आपके साथ कोई ऐसी घटना घटित हुई है जो किसी चमत्कार से कम नहीं है तो आप हमारे साथ जरूर साझा कीजियेगा।

Story of Parshuram : हिन्दू समाज के आदर्श माने जाने वाले परशुराम की कहानी

परशुराम की कहानी : आखिर परशुराम कौन थे? ( Story of Parshuram in hindi : Parshuram kaun the? )

Parshuram ki kahani इस प्रकार है कि परशुराम का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था उनके पिता महर्षि भृगु के पुत्र महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका थीं। उनके जन्म के संबंध में प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि जमदग्नि ने पुत्रेष्टि यज्ञ किया था जिससे प्रसन्न होकर देवराज इन्द्र ने उनकी पत्नी रेणुका को वरदान दिया था।

इस वरदान के परिणामस्वरूप ही उनकी पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख की शुक्ल तृतीया यानी अक्षय तृतीय को पांचवें पुत्र के रूप में परशुराम का जन्म हुआ। परशुराम का जन्म स्थान मध्यप्रदेश के इन्दौर जिला ग्राम मानपुर के जानापाव पर्वत था।

परशुराम का इतिहास ( History of Parshuram )

Parshuram ji का उल्लेख रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और यहाँ तक की कल्कि पुराण तक में मिलता है। वैसे उनकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण अहंकारी और धृष्ट हैहय वंशी क्षत्रियों का पृथ्वी से 21 बार संहार किया जाना है। मान्यता यह भी है कि भारत में मौजूद अधिकतर ग्राम भगवान परशुराम द्वारा ही बसाये गए हैं। उनका प्रमुख उद्देश्य पृथ्वी पर हिन्दू वैदिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार करना था।  

Bhagwan Parshuram भले ही ब्राह्मण परिवार से संबंध रखते हो पर वे केवल ब्राह्मण समाज के ही आदर्श नहीं है बल्कि पूरे हिन्दू समाज के आदर्श माने जाते हैं। सतयुग में जब उन्हें भगवान शिव के दर्शन करने से गणेश जी द्वारा रोका गया तो उन्होंने अपने परशु से गणेश जी के दन्त पर प्रहार कर दिया था तभी से गणेश जी एकदन्त कहलाए। 

प्रभु श्री राम के काल में भी उनका उल्लेख हमें मिलता है तो महाभारत काल में भी उन्होंने श्री कृष्ण को सुदर्शन चक्र देकर उपलब्ध कराकर अपना प्रमाण दिया। इसी वजह से यह कहा जाता है कि कलिकाल के अंत में भी Parshuram avatar अवशय ही दिखाई देंगे।   

ऐसे पड़ा परशुराम नाम  ( What does Parshuram mean? )

Parshuram Bhagwan विष्णु के छठे और आवेशावतार माने जाते हैं। अपने पितामह महर्षि भृगु द्वारा किये गए नामकरण संस्कार के बाद राम कहलाए और शिवजी द्वारा दिए गए फरसा के कारण उनका नाम परशुराम पड़ा। साथ ही बता दें कि वे महर्षि जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य भी कहलाये जाते हैं।

परशुराम की प्रतिज्ञा : क्यों परशुराम ने क्षत्रियों का 21 बार संहार किया? ( Why did Parshuram killed Kshatriyas 21 times? )

प्रतिज्ञा से जुड़ी Parshuram katha के अनुसार हैहय वंश के क्षत्रिय राजा सहस्त्रार्जुन को अपनी शक्ति का बहुत घमंड हो गया था और इस घमंड के चलते उन्होंने ब्राह्राणों और ऋषि-मुनियों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। ऐसे ही एक बार सहस्त्रार्जुन अपनी सेना लेकर भगवान परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि के आश्रम पहुंचा। महर्षि जमदग्नि ने सेना का खूब आदर सत्कार किया और अच्छे से खान पान की व्यवस्था भी की।

महर्षि जमदग्नि ने आश्रम में मौजूद चमत्कारी कामधेनु गाय के दूध से समस्त सैनिकों की भूख को शांत किया। सहस्त्रार्जुन के मन में कामधेनु गाय के चमत्कार को देखकर उसे पाने का लालच पैदा आया। अपने लालच के कारण उसने महर्षि से कामधेनु गाय को बलपूर्वक छीन लिया। जब इस बात की भनक परशुराम को लगी तो उन्होंने क्रोध में आकर सहस्त्रार्जुन का वध कर डाला।

फिर यहीं से शुरू परशुराम की प्रतिज्ञा की कहानी आरम्भ होती है जब सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोध की अग्नि में जलते हुए महर्षि जमदग्नि का वध कर दिया। पिता की हत्या किये जाने के बाद उनकी माँ रेणुका भी वियोग में चिता पर सती हो गयीं। Parashuram ने अपने पिता के शरीर पर 21 घाव को देखे थे इन घावों को देखते हुए ही उसी क्षण परशुराम ने प्रतिज्ञा ली कि वह इस धरती से समस्त क्षत्रिय वंशों का 21 संहार करेंगे।

भगवान परशुराम के कितने नाम है? ( Names of Parshuram )

Parshuram ji ki katha में उनके अनेकों नाम है जिनमें से हमने उनके कुल 21 नामों का ज़िक्र किया है जो इस प्रकार है – भार्गव, भृगुपति, रेणुकेय, कोङ्कणासुत, जामदग्न्य, राम, परशुधर, खण्डपरशु, ऊर्ध्वरेता, मातृकच्छिद, मातृप्राणद, कार्त्तवीर्यारि, क्षत्रान्तक, न्यक्ष,  न्यस्तदण्ड, क्रौञ्चारि, ब्रह्मराशि, स्वामिजङ्घी, सह्याद्रिवासी, चिरञ्जीवी आदि।

परशुराम ने माता का वध क्यों किया? ( Why Parshuram killed his mother? )

परशुराम ने अपनी माता का वध अपने पिता महर्षि भृगु के कहने पर किया था जब रेणुका के देरी से आने के कारण क्रोध के आवेग में महर्षि भृगु ने माता रेणुका का सिर काटने के आदेश दिया तो उनके सभी भाइयों ने ऐसा करने से मना कर दिया। जिसपर महर्षि भृगु ने उन्हें विचार चेतना नष्ट हो जाने का श्राप दे दिया था।

जब परशुराम से उन्होंने ऐसा करने के लिए कहा तो श्राप के भय और अपने पिता की आज्ञा का उल्लंघन न करते हुए उन्होंने अपनी माता रेणुका का सर धड़ से अलग कर दिया।  महर्षि भृगु परशुराम के आज्ञा पालन से खुश हुए और फिर उन्होंने वरदान मांगने को कहा। Parshurami ने अपने पिता से तीन वरदान मांगे जिसमें से पहला वरदान था उनकी माता को जीवित कर दिया जाए। दूसरा वरदान था भाइयों की विचार चेतना नष्ट न हो और तीसरा वरदान था कि उन्हें मरने की स्मृति याद न रहे।  

भगवान परशुराम जी की पत्नी का क्या नाम था? ( Parshuram Wife’s name )

श्रीमदभागवतम में परशुराम के विवाह के संबंध में कोई उल्लेख नहीं मिलता है, इसलिए अधिकतर लोगों का मानना है कि वे आजीवन ब्रह्मचारी रहे। जबकि विष्णु पुराण में परशुराम की पत्नी के संबंध में हमें वर्णन इस प्रकार मिलता है :

”पुनश्चपद्मा सम्पादित यदादित्योऽभवद्धरिः।
यदा च भार्गवो रामस्तदाबुद्धित्व धातु।।”

अर्थात पद्म का जन्म तब हुआ जब हरि आदित्य (अदिति के पुत्र) बने और जब वे भार्गव राम बने, तो वह धरणी के रूप में आईं। पौराणिक Parshuram story में वे भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं इसलिए उनकी पत्नी माता लक्ष्मी की अवतार धरणी बताई गई हैं।  

परशुराम के शिष्य कौन कौन थे?

परशुराम के शिष्य भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य और अंगराज कर्ण उनके शिष्य थे जिन्होंने महाभारत के युद्ध में 17 दिनों तक युद्ध की कमान संभाले रखी थी।  

परशुराम ने माता का सिर क्यों काटा?

परशुराम की कथा के अनुसार उन्होंने अपने पिता महर्षि भृगु की आज्ञा का पालन करते हुए अपनी माता का सिर काटा था।

भगवान परशुराम कितने भाई थे?

परशुराम महर्षि भृगु और रेणुका के पांचवे पुत्र थे, इस प्रकार भगवान परशुराम के चार भाई थे – रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्‍वानस।

Achaleshwar Mahadev Temple : जब पूजा करने के बाद बदला शिवलिंग का रंग

अचलेश्वर महादेव मंदिर का रहस्य ( Achaleshwar Mahadev Temple Mystery )

Devon ke Dev Mahadev जिन्हें संसार में हर कोई पूजता है, हर कोई इनकी भक्ति में लीन रहता है तथा भगवान शिव भी अपने भक्तों को आये दिन अपने होने का विश्वास दिलाते रहते हैं। God siva के चमत्कारों को देख हर कोई आस्था और भक्ति के सागर में डूब जाता है। आज का यह लेख आपको भगवान शिव के होने का प्रमाण जरूर देगा। आज के इस लेख का संबंध एक ऐसे भक्त से है, जिसने lord shankar के मंदिर में एक अद्भुत चमत्कार को होते हुए देखा। जी हाँ एक ऐसा चमत्कार जिसके बारे में सुनकर हर किसी के रोंगटे खड़े हो जाएंगे। आखिर क्या हुआ उसके बाद?

दोस्तों ये shiv ling story जुड़ी है एक ऐसे मंदिर से, जंहा पर स्थापित है एक ऐसा shiva linga जो किसी रहस्य से कम नहीं है। दरअसल कई वर्षों पहले नागपुर में भोला नाम का एक व्यक्ति रहता था, जिसने तीन वर्ष की आयु में ही एक दुर्घटना में अपने माता पिता को खो दिया था।

तीन वर्ष की आयु से ही वह अपने गाँव में बने lord mahadev मंदिर में रहता था, उसने भगवान शिव तथा देवी पार्वती को ही अपना माता-पिता मान लिया था। वह दिन रात उनकी और shivling ki पूजा करता था, उन्हें अपना माता पिता समझकर उनकी सेवा करता था तथा मंदिर में आने वाले सभी श्रद्धालुओं की मदद भी किया करता था।  मंदिर में रोजाना आने वाले श्रद्धालु और पुजारी जी ने ही बच्चे के स्वभाव को देख उसका नाम भोला रखा था। वह अक्सर shivling puja करने के बाद उसके सामने खड़े होकर उनसे विनती कर कहता- हे परमपिता मैं आपकी भक्ति में हमेशा ही लीन रहता हूँ, अतः आप मुझे कोई ऐसा संकेत दीजिये जिससे मुझे ये आभास हो जाए कि आप मेरी भक्ति से प्रसन्न हैं। लेकिन उसे कभी संकेत नहीं मिला और वह निराश हो जाता।

रंग बदलते शिवलिंग का रहस्य ( What is the colour of Shivling? )

भोला जब वह तेईस वर्ष का हुआ तो उसे एक दिन स्वप्न आया, जहां पर भगवान शिव ने उसे Achleshwar Mahadev Mandir जाने को कहा। भोला ने अपने स्वप्न की बात पुजारी जी से बताई, अतः पुजारी जी भी समझ गए थे कि भगवान शिव जरूर उसे कोई न कोई संकेत देना चाहते हैं इसलिए उन्होंने भोले से राजस्थान में स्थित Achleshwar Mandir जाने को कहा। भोला बिना देर किये शाम को ही मंदिर के लिए निकल पड़ा, अगली सुबह वह राजस्थान पहुंचा। मंदिर में उसने यंहा पर स्थित अद्भुत shivling shivling के दर्शन किये, लेकिन न वह समझ नहीं पा रहा था आखिर भगवान शिव ( Lord Shiva ) ने उसे यंहा इतनी दूर क्यों बुलाया है। वह सुबह से लेकर शाम तक शिवलिंग के आगे बैठा रहा लेकिन यहां बैठना उसके लिए किसी चमत्कार से कम साबित नहीं हुआ।

दरअसल यहां आना, ये उससे स्वप्न का वहम था या इसके पीछे कोई रहस्य छिपा था ? वह मन ही मन इसी गुत्थी में उलझा था कि अचानक से से उसने जो देखा, उसे देख उसके होश उड़ गए। दरअसल उसने देखा कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग का रंग बदल चुका था, वह हैरान था कि अचानक शिवलिंग ने फिर से अपना रंग बदल दिया। भोला हैरान था कि आखिर शिवलिंग तीन बार अपना रंग कैसे बदल सकता है। लेकिन भोला समझ चुका था कि Mahadev god ने उसे यहां किस लिए बुलाया था। वो संकेत दिखाने जिसकी प्रतीक्षा वह लगभग बीस सालों से कर रहा था। वह मन ही मन प्रसन्न हुआ और मन ही मन धन्यवाद कर, जोर जोर से “हर हर महादेव” कहने लगा।  

माना जाता है कि अचलेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित stone shivling दिन में तीन बार अपना रंग बदलता है, ऐसा क्यों होता है इस रहस्य को सुलझाने कई वैज्ञानिक भी मंदिर में आये लेकिन वह इस गुत्थी को नहीं सुलझा पाए। एक और हैरान कर देने वाली बात ये है कि इस lord shiva lingam की लम्बाई कितनी है इस बात का पता आज तक कोई नहीं लगा पाया है।  दोस्तों कहा जाता है कि जो भी इस मंदिर में आता है उसकी सभी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती है। अगर आप भी shiva god के इस अद्भुत शिवलिंग के दर्शन करना चाहते हैं तो अचलेश्वर महादेव मंदिर जरूर जाएँ।

यदि आप भगवान शिव के निराकार रूप कहे जाने वाले शिवलिंग का चमत्कार अपने ही घर में देखना चाहते हैं तो आज ही अपने घर में Original & Certified Parad Shivling लेकर आएं। इस शिवलिंग की नियमित रूप से पूजा करें और फिर देखें कैसे आपके घर से नकारात्मकता और बुरी शक्तियां दूर भागती है।  यह आपके घर के माहौल को खुशनुमा बनाये रखने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जिसे प्राण प्रतिष्ठा तक की आवश्यकता नहीं होती।

Bhagwan Vishnu ke Avtar वराह के जन्म से जुड़ी पौराणिक कहानी

वराह अवतार कब हुआ? ( Varaha Avatar Story )

Third avatar of Vishnu Lord Varaha के जन्म से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार बैकुंठ धाम के द्वारपाल जय और विजय ने सप्तऋषियों को एक बार अंदर जाने से रोका था। इसके कारण दोनों को धरती पर तीन जन्मों तक दैत्यों का जीवन भुगतने का श्राप मिला। दोनों अपने पहले शापित जन्म में कश्यप और दिति के पुत्र हुए जिनके नाम थे हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष। विष्णु पुराण में इस बात का उल्लेख हमें मिलता है कि दोनों जुड़वां भाइयों हिरण्यकश्यप और हिरणायक्ष ने जन्म लिया तो धरती तक कांप उठी।

दोनों दैत्यों ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए घोर तप भी किया। उनकी तपस्या से ब्रह्मा जी अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने उन दैत्यों को विजय प्राप्ति का वरदान तक दे दिया। इसके बाद इन दोनों दैत्यों ने पृथ्वी पर उत्पात मचाना शुरू कर दिया। जो भी पूजा पाठ और यज्ञ कर्म करता उनको हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष द्वारा खूब प्रताड़ित किया था। दोनों भाइयों ने इंद्रलोक पर विजय प्राप्त की। इंद्रलोक पर जीत पा लेने के बाद हिरण्याक्ष ने पृथ्वी पर भी अपनी विजय प्राप्त कर ली। अपने वरदान का फायदा उठाते हुए उसने पृथ्वी को समुद्र में डुबो दिया।

दैत्यों में से एक हिरणायक्ष एक बार इधर उधर घूमते हुए वरुण के नगर में पहुंच गया। पाताल लोक में पहुंचते ही हिरण्याक्ष ने वरुण देव को युद्ध के लिए ललकार लगाई। इसपर वरुण देव बोल कि मेरे अंदर युद्ध करने की अब कोई इच्छा नहीं रही है। यदि तुम्हें युद्ध करना है तो भगवान विष्णु से युद्ध करो।

यह दृश्य देख सभी देवताओं ने ब्रह्मा जी और विष्णु जी से हिरण्याक्ष से छुटकारा दिलाने के लिए बहुत आग्रह किया। ब्रह्मा जी ने इसका समाधान निकालने के लिए भगवान विष्णु का ध्यान किया। ध्यान करने के लिए दौरान उनकी नासिका यानी नाक से भगवान विष्णु के Varaha Avatharam की उत्पत्ति हुई। इस तरह भगवान विष्णु के वराह अवतार ने जन्म लिया।

दैत्य हिरण्याक्ष ने वरुण देव की बात सुनकर विष्णु जी से युद्ध करने के निश्चय किया। इसके लिए उसने देवर्षि नारद से भगवान विष्णु का पता पूछा ताकि वह युद्ध के लिए ललकार सके। देवर्षि नारद ने उनसे कहा कि नारायण इस समय वराह रूप धारण किए हुए हैं और वे पृथ्वी को समुद्र से बचाने के लिए गए हुए हैं।

यह सुनकर हिरण्याक्ष तुरंत ही उस मार्ग की ओर निकल पड़ा क्योंकि पृथ्वी को समुद्र में रखे जाने का यह कृत्य उसी ने किया था। अब हिरण्याक्ष उस स्थान पर पहुंच चुका था। वह उस स्थान पर पहुंचकर देखता है कि Vishnu ka varaha avatar पृथ्वी को अपने साथ ले जा रहे है। यह देश देखते ही वह वराह अवतार से युद्ध करने के लिए कूद पड़ा।

Varaha avatar of Vishnu और हिरण्याक्ष के बीच भीषण युद्ध हुआ और इस युद्ध में वराह ने दैत्य हिरण्याक्ष का पेट अपने दांतों से फाड़ डाला। इसके बाद varaha avatar ने पृथ्वी को समुद्र से उठाया और उसके मूल स्थान पर फिर से रख दिया।

( भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए शलिग्राम और तुलसी की माला से जप करना सबसे उत्तम माना जाता है। शालिग्राम भगवान विष्णु का ही निराकार रूप हैं जबकि तुलसी उनकी सबसे प्रिय मानी जाती हैं। भगवान विष्णु की असीम कृपा पाने के लिए आज ही खरीदें Original Shaligram with Tulsi Mala Online. )

वराह का क्या अर्थ होता है? ( What is the meaning of Varaha? )

वराह शब्द का अर्थ है शूकर, जो भगवान विष्णु के Varaha अवतार के संबंध में प्रयोग में लाया जाता है। भगवान विष्णु का वराह अवतार ने ब्रह्मा जी के नासिका से जन्म लिया था ताकि वे पृथ्वी को समुद्र से बाहर निकाल सकें।  

वराह अवतार को क्या कहते हैं? ( Varaha avatar ko kya kehte hai? )

3rd Avatar of Vishnu वराह को शूकर भी कहा जाता है। यह ईश्वर का पृथ्वी पर मानव रूपी जीवन लेने वाला ऐसा मौका था जब ईश्वर ने मनुष्य जाति को दैत्यों के आतंक से बचाया।

वराह किसका प्रतिनिधित्व करता है? ( What does Varaha represent? )

भगवान विष्णु का तीसरा अवतार वराह शूकर यानी सूअर का प्रतिनिधित्व करता है जिसने अपने दांतों के बल पर पृथ्वी को समुद्र में डूबने से बचाया।  

वराह अवतार को किसने मारा? ( Who killed Varaha avatar? )

भगवान शिव के शरभ अवतार ने सर्वप्रथम भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार का क्रोध शांत कर उन्हें वापिस से भगवान विष्णु में समाहित किया और उसके बाद Varah Bhagwan को समाहित किया।  

भगवान विष्णु ने पृथ्वी को कैसे बचाया? ( Bhagwan Vishnu ne prithvi ko kaise bachaya? )

भगवान विष्णु ने समुद्र में डूबती पृथ्वी को Varaha god अवतार धारण कर अपने दांतों में उठाकर बचाया था। अपने दांतो पर उठाने के बाद विष्णु अवतार वराह ने पृथ्वी को उसके मूल स्थान पर स्थापित कर दिया था।  

Saptarishis : जानिये सप्तऋषि की कहानी, आखिर कौन थे उनके गुरु?

सप्त ऋषि कौन हैं? ( Who are the 7 rishis? )

मनुष्य जब भी अपने वैदिक इतिहास की ओर रुख करता है तो वह पाता है कि हमारे धार्मिक ग्रंथों, ज्ञान, अस्त्र-शस्त्र, खगोल, ज्योतिष, वास्तु, योग, विज्ञान और भाषा से लेकर व्यवहार तक में ऋषि मुनियों का योगदान रहा है। इसी कारण से प्राचीन काल में ही ऋषि मुनियों को राजाओं से भी ऊपर की पदवी दी गई। हिंदू धर्म में ईश्वर द्वारा दिए गए निर्देशानुसार सप्तऋषि ( Saptarshi ) पृथ्वी पर अच्छे और बुरे का संतुलन बनाए रख सृष्टि के संचालन में अपनी भूमिका निभाते हैं। हमारे वेदों में तो सप्तऋषियों को वैदिक धर्म का संरक्षक कहा गया है। संस्कृत श्लोक के माध्यम से सप्त ऋषियों के नामों ( 7 rishis names ) के बारे में बताया गया है जो कि इस प्रकार है :

।।सप्त ब्रह्मर्षि, देवर्षि, महर्षि, परमर्षय:।
कण्डर्षिश्च, श्रुतर्षिश्च, राजर्षिश्च क्रमावश:।।

अर्थात : 1. ब्रह्मर्षि, 2. देवर्षि, 3. महर्षि, 4. परमर्षि, 5. काण्डर्षि, 6. श्रुतर्षि और 7. राजर्षि- ये 7 ऋषि होते हैं जिन्हें सप्तर्षि की संज्ञा दी गई है।

हिंदू धर्म की वैदिक संहिता में तो हमें सप्त ऋषियों की संख्या से संबंधित कोई जानकारी नहीं मिलती है पर उपनिषद् में Saptarishis का बखूबी वर्णन मिलता है। जिन सप्तऋषियों का उल्लेख हमें मिलता है, उनमें सप्तऋषि के नाम हैं- वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, शौनक और वामदेव। जबकि हमारे पुराणों में ऋषियों के नाम अलग हैं। विष्णु पुराण में मन्वन्तर का हवाला देते हुए वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज Sapt rishiyon ke naam का उल्लेख किया गया है।

सप्त ऋषियों का जन्म कैसे हुआ? ( How was Saptarishi born? )

सप्त ऋषियों के जन्म से जुड़ी पौराणिक कथा कहती है कि इनका जन्म ब्रह्मा जी के मस्तिष्क से हुआ था। यही कारण है सप्त ऋषि को ज्ञान-विज्ञान, धर्म-ज्योतिष और योग में सर्वोपरि विद्वान माना जाता है। इनके होने से ही हमें धार्मिक वेद और पुराण प्राप्त हुए।

सप्त ऋषि की कहानी क्या है? ( What is the story of Saptarishi? )

आइये जानते हैं saptarishi katha के बारे में :

1. वशिष्ठ : ऋषि वशिष्ठ राजा दरशरथ के कुल गुरु हुआ करते थे और इनसे ही राजा दशरथ के चारों पुत्र राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न ने शिक्षा प्राप्त की थी। ऋषि वशिष्ठ के कहे अनुसार ही राजा दशरथ ने श्री राम और श्री लक्ष्मण को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में राक्षसों का वध करने के लिए भेजा था।
 
2. विश्वामित्र : दूसरे ऋषि विश्वामित्र की बात करें तो वे ऋषि होने के साथ साथ राजा भी थे। इनके संबंध में एक कथा बहुत लोकप्रिय है। कथा के अनुसार ऋषि विश्वामित्र ने ऋषि वशिष्ठ की कामधेनु गाय हासिल करने के लिए भीषण युद्ध किया था। इस भीषण युद्ध में वे ऋषि वशिष्ठ से पराजित हो गए थे।

ऋषि विश्वामित्र की तपस्या और मेनका द्वारा उनकी तपस्या को भंग किया जाने का प्रसंग बहुत प्रसिद्ध है। कहते हैं कि ऋषि विश्वामित्र ने अपनी तपस्या के बल पर त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग के दर्शन करा दिए थे। उन्होंने हरिद्वार में घोर तपस्या करके इंद्रदेव से रूठ कर एक अलग स्वर्ग लोक बनाकर खड़ा कर दिया था। वे ऋषि विश्वामित्र ही थे जिन्होनें हमें गायत्री मन्त्र की रचना करके दी जो आज सभी की जीव्हा पर रहता है।

3. कण्व : सप्तऋषियों की सूची में तीसरे स्थान पर ऋषि कण्व हैं जिनके बारे में ऐसी मान्यता है कि हिंदू रीति-रिवाजों में सबसे प्रमुख सोमयज्ञ की शुरुआत कण्व ऋषियों ने ही थी। वे कण्व ऋषियों का ही आश्रम था जिसमें हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के साथ ही उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण किया गया था।

4. भारद्वाज : सप्तऋषियों में भारद्वाज ऋषियों को सबसे सर्वोच्च स्थान मिला हुआ है। दरअसल भारद्वाज ऋषि श्री राम के पूर्व हुआ करते थे। वेदों में से अथर्ववेद में भारद्वाज ऋषि के कुल 23 मंत्र मिलते हैं। ऋषि भारद्वाज के पुत्रों में 10 ऋषि ऋग्वेद के मन्त्रदृष्टा हैं और उनकी एक रात्रि नामक पुत्री रात्रि सूक्त की मन्त्रदृष्टा हैं।

5. अत्रि : सप्तऋषियों में ऋषि अत्रि ब्रह्मा के पुत्र,अनुसूया के पति, सोम के पिता थे। हमारे देश में कृषि विकास के लिए ऋषि अत्रि का योगदान सबसे अहम माना जाता है। इनके बारे में कहा जाता है वे लोग सिंधु नदी को पार कर ईरान तक पहुंच गए थे। ईरान में पहुंचकर यज्ञों का खूब प्रचार प्रसार किया। पारसी धर्म की शुरुआत भी अत्रि ऋषियों में कारण ही हुई थी।

6. वामदेव : ऋषि वामदेव सप्तऋषियों में छठे स्थान पर है जिन्होंने संगीत का सूत्रपात किया था। दरअसल वामदेव गौतम ऋषि के बेटे थे। वे ही गौतम ऋषि जो अपने तपबल पर ब्रह्मगिरी के पर्वत पर मां गंगा को लेकर आए थे।  

7. शौनक : सप्त ऋषियों में सातवें ऋषि शौनक हैं जिन्होंने दस हजार विद्यार्थियों के गुरुकुल का संचालन किया था। हजारों विद्यार्थियों के विशाल गुरुकुल को ही चलाने के लिए उन्हें कुलपति की उपाधि मिली थी।

सप्त ऋषि के पिता कौन हैं? ( Who is the father of Saptarishi? )

सप्त ऋषियों के पिता सृष्टि की रचना करने वाले ब्रह्मा जी को माना जाता है जिनके मस्तिष्क से सप्त ऋषियों का जन्म हुआ ताकि वे संसार में ज्ञान-विज्ञान का प्रचार-प्रसार कर सकें।  

सप्त ऋषियों के गुरु कौन थे? ( Who was the guru of Saptarishi in hindi? )

सप्त ऋषि जिन्हें ब्रह्मा जी ने अपने मस्तिष्क से जन्म तो दिया था पर उनकी शिक्षा का जिम्मा भगवान शिव के पास था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने सर्वप्रथम जिन 7 लोगों को योग, शैव कर्म और वैदिक ज्ञान दिया था वे ही आगे चलकर Saptarishi ke naam से जाने गए। सनातन धर्म में जितने भी धार्मिक ग्रन्थ मौजूद है उनमें सप्त ऋषियों का योगदान किसी से छिपा नहीं है। इसलिए हम कह सकते हैं कि भगवान शिव ही थे जिन्होंने गुरु बनकर सप्त ऋषियों को ज्ञान दिया और सप्त ऋषियों ने उस ज्ञान को संसार में जन-जन तक पहुंचाया।  

क्या सप्त ऋषि जीवित हैं? ( Are Saptarishi alive? )

आज भी तारा मंडल में हमारे बीच saptrishi tara के रूप में जीवित हैं जो ध्रुव तारे की परिक्रमा करते हैं। इसे फाल्गुन-चैत्र माह से लेकर श्रावण-भाद्र माह तक आकाश में कुल 7 saptarishi star के समूह के रूप में हम देख है। सप्त ऋषियों के जीवनकाल को समझने के लिए सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि ब्रह्मा का 1 दिन एक कल्प कहलाता है उस एक कल्प में कुल 14 मनु होते हैं।

इन हर एक मनु के काल को मन्वंतर कहा जाता हैं। इन्हीं आने वाले प्रत्येक मन्वंतर में अलग-अलग सप्तऋषि हुआ करते हैं। वर्तमान की बात करें तो अभी वैवस्वत मनु का काल चल रहा है और इस काल के सप्तऋषि हैं – कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और भारद्वाज। इस तरह से हम कह सकते हैं कि सप्त ऋषियों का जीवनकाल मन्वंतर पर आधारित है।

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Kalki Avatar : 300 साल पुराने इस मंदिर में रहते हैं विष्णु के दसवें अवतार?

कल्कि अवतार का रहस्य (Kalki Avatar Mystery )

कलयुग का एकमात्र भगवान जिन्हें भगवान विष्णु का दसवां अवतार माना गया है। दोस्तों क्या भगवान विष्णु के इस दसवें अवतार यानी kalki avatar का जन्म हो गया है? क्या कल्कि इस मंदिर में रहते हैं? आखिर 300 साल पहले किसने बनाया था kalki bhagwan का मंदिर? क्या कहता है इस मंदिर का रहस्य? आज हम जानेंगे भगवान कल्कि के इस मंदिर से जुड़े कुछ अनसुने रहस्यों के बारे में। कहा पर स्थित है कल्कि भगवान का मंदिर? ये जानने के लिए वीडियो को अंत तक जरूर देखिएगा।  

दोस्तों कहा जाता है कि जब कलयुग अपनी चरमसीमा पर होगा तो kalki avatar of vishnu का जन्म होगा और वे कलयुग में रहने वाले सभी दुष्टों का संहार कर देंगे। ये बात कितनी सत्य या कितनी नहीं ये तो आने वाला समय ही बताएगा।  दोस्तों कोई भी इस बात के बारे में नहीं जानता कि kalki vishnu का जन्म हो गया है या नहीं लेकिन इस बात का वर्णन पुराणों में भी किया गया है कि कलयुग में अधर्म और पाप बढ़ जाएगा तो उसे खत्म करने के लिए भगवान विष्णु कल्कि अवतार लेंगे तथा एक घोड़े पर सवार होकर शत्रुओं का नाश कर, कलयुग का अंत कर धर्म की पुनः स्थापना करेंगे।  

कल्कि अवतार मंदिर ( Kalki Avatar Temple )

दोस्तों हम हम आपको कल्कि भगवान के जिस मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं ये स्थित है राजस्थान की राजधानी जयपुर में, जिसका निर्माण 1739 में जयपुर के राजा सवाई जयसिंह ने करवाया था। इस मंदिर में kalki god की मूर्ति एक घोड़े पर सवार है। दोस्तों इस मंदिर में स्थित घोड़ा जिसे कल्कि भगवान का घोड़ा कहा जाता है, इस घोड़े के तीन पैर जमीन पर ठीके हुए हैं और एक पैर ऊपर उठा हुआ है।  माना जाता है कि यह धीरे धीरे नीचे कि तरफ झुक रहा है, जिस दिन ये पैर जमीन पर टिक जाएगा उस दिन भगवान kalki अवतार लेंगे।  साथ ही ये भी माना जाता है कि घोड़े के बाएं पैर पर एक घाव बना हुआ है और ये घाव धीरे धीरे भर रहा है।  जिस दिन ये घाव भर जाएगा उसदिन कलयुग के vishnu avatar kalki का जन्म होगा।  

दोस्तों अभी तक विष्णु भगवान के नौ अवतारों का जन्म हुआ है लेकिन पुराणों में माना गया है कि जिस दिन पाप का घड़ा भर जाएगा उस दिन kalki avatar of lord vishnu का जन्म होगा और वे सभी दुष्टों का नाश करेंगे। आप कल्कि अवतार के बारे में क्या कहना चाहेंगे, अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरूर साझा कीजिएगा। दोस्तों अगर आपके आस-पास या आपके साथ कोई ऐसी घटना घटित हुई है जो किसी चमत्कार से कम नहीं है तो आप हमारे साथ जरूर साझा कीजियेगा।

Kedarnath Story : केदारनाथ धाम का अद्भुत रहस्य, 400 साल बाद बर्फ में दब जाएगा केदारनाथ?

केदारनाथ धाम का रहस्य ( Kedarnath Dham Mystery )

Kedarnath Dham के लुप्त होने की भविष्यवाणी सच हो जाएगी? या फिर चार सौ साल बाद मंदिर फिर से दब जाएगा बर्फ में? भगवान शिव ( Bhagwan Shiv ) का वह पवित्र धाम जो चार सौ सालों से बर्फ में दबा रहा जिसके निशान आज भी मंदिर में देखने को मिलते हैं, लेकिन बर्फ में दबे रहने के बाद भी आज ये मंदिर सभी के सामने बिलकुल सुरक्षित खड़ा है। वक़्त के साथ साथ Kedarnath Mandir में कई आपदाएं आयी लेकिन इस मंदिर का बाल तक बांका नहीं हुआ। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या चार सौ साल के बाद केदारनाथ मंदिर फिर से बर्फ के नीचे? केदारनाथ की रहस्यमयी कहानी जानने के लिए लेख को अंत तक जरूर पढ़ियेगा।

रहस्यमयी केदारनाथ मंदिर की कहानी ( Mysterious Kedarnath Temple History )

बारह ज्योतर्लिंग ( Jyotirlinga ) में से सबसे सर्वोच्च माने जाने वाला Kedarnath Dham जो हिमालय की गोद में बसा हुआ है। लोगों की आस्था का सबसे प्रमुख केंद्र माने जाने वाले इस धाम का निर्माण आठवीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने किया था। कई हज़ार फुट की ऊंचाई वाले तीन पहाड़ों के बीच बसे हुए केदारनाथ धाम में पांच नदियों मं‍दाकिनी, क्षीरगंगा, स्वर्णगौरी, मधुगंगा और सरस्वती का महासंगम भी देखने को मिलता है। इनमें से कुछ नदियों को काल्पनिक भी माना जाता है परन्तु यहाँ पर सबसे आगे मंदाकिनी नदी है, जो कि सर्दी के मौसम में उफान पर रहती है।

दोस्तों 2013 में आयी भीषण आपदा ने पूरे केदारघाटी में भारी तबाही मचाई, हज़ारों लाखों लोग गायब हो गए, कई मौत की नींद सो गए लेकिन हैरानी की बात ये है कि इस भयावह मंज़र तथा आस पास का पूरा क्षेत्र तबाह होने के बावजूद भी मंदिर पर एक खरोंच तक नहीं आयी। इससे पहले भी चार सौ सालों तक बर्फ में दबे रहने के बावजूद भी Kedarnath Mandir सुरक्षित बाहर निकला। मंदिर के सुरक्षित रहने पीछे का वैज्ञानिक तर्क ये है कि इसे एक ऐसी तकनीक से बनाया गया है जो आपदा तथा बर्फ की मार को आसानी से झेल सकती है। दरअसल 6 फुट ऊँचे चूबतरे में बने इस Kedarnath Mandir का निर्माण कटवां पत्थर के विशाल शिलाखंडों को आपस में जोड़कर बनाया गया है यानी की मंदिर को बनाने के इंटरलॉकिंग तकनीक का प्रयोग किया गया इसलिए आज तक यह मंदिर आज भी सुरक्षित है।

दोस्तों माना जाता है कि पौराणिक काल में Kedarnath Temple के पीछे पांडवों द्वारा बनाया गया एक मंदिर भी था लेकिन यहां पर होने वाले मौसम के बदलाव तथा कई कारणों से ये मंदिर गायब हो गया परन्तु केदारनाथ मंदिर आज भी बिलकुल सही सलामत है।

लेकिन भविष्य में केदारनाथ मंदिर के लुप्त होने की भविष्यवाणी की गयी है। माना जाता है जिस दिन नर या नारायण पर्वत आपस में मिल जायेंगे, उस दिन Kedarnath Shivling गायब हो जायेगा या हो सकता है कि फिर से हिमयुग आये और फिर से केदारनाथ मंदिर बर्फ के अंदर दब जाए या फिर हो सकता है कि ये मंदिर ग्लेशियर के अंदर दब जाए। लेकिन क्या इन सब के बावजूद भी ये मंदिर फिर से सुरक्षित रहेगा? ये तो वक़्त ही बातयेगा। लेकिन लोगों की आस्था का ये प्रमुख केंद्र बहुत ही अनोखी तकनीक के साथ बनाया गया है जो आज भी सुरक्षित है।

दोस्तों क्या आप केदारनाथ यात्रा पर Kedarnath Darshan करने गए है? अगर आप यहां गए हैं तो आपको यहां जाकर कैसी अनुभूति हुई? अपना जवाब हमें कमेंट बॉक्स में जरूर दीजियेगा। साथ ही अगर आप भी महादेव के भक्त है तो कमेंट करके हर हर महादेव जरूर लिखें।

Dhruv Tara story : भगवान विष्णु के भक्त ध्रुव के ध्रुव तारा बनने की कहानी

ध्रुव का जन्म कैसे हुआ? ( Dhruv ka Janam kaise hua? )

एक बालक के दृढ संकल्प के बल पर श्री हरि का बैकुंठ धाम मन्त्रों के उच्चारण से गूँज उठा था, श्री विष्णु अपनी योग निद्रा तक से जाग उठे थे और जानने के लिए व्याकुल थे कि आखिर कौन है ये बालक जिसके तप का तेज तीनों लोकों तक में फ़ैल चुका है। आज हम उसी नन्हें बालक ध्रुव की कहानी जानेंगे। आइये जानते हैं ध्रुव की कथा ( Dhruv ki katha ) और कैसे वह भगवान की भक्ति के मार्ग पर आगे चल पड़ा :

ध्रुव की कहानी ( Dhruv ki Kahani ) जानने से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि ध्रुव का जन्म कहाँ और कैसे हुआ? बता दें कि स्वयंभुव मनु और शतरूपा के दो पुत्र थे प्रियवत और उत्तानपाद। उत्तानपाद की दो पत्नियां थीं सुनीति और सुरुचि। राजा उत्तानपाद को सुनीति से ध्रुव और अपनी दूसरी पत्नी सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र था। दोनों ही पत्नियों में सुनीति बड़ी रानी होने के बावजूद उत्तानपाद का प्रेम और झुकाव सुरुचि के प्रति अधिक रहता था। एक बार जब ध्रुव अपने पिता उत्तानपाद की गोद में खेल रहा था तभी वहां सुरुचि आ गई।

Dhruv Tara Story आगे इस प्रकार है कि जब सुरुचि ने ध्रुव को उत्तानपाद की गोद में देखा वह गुस्से से लाल हो उठी। अब वहां खड़े हुए मन ही मन ईर्ष्या का भाव सुरुचि के मन में बढ़ने लगा। उसने फिर अपने पुत्र उत्तम को लिया और ध्रुव को उतारकर राजा की गोद में बिठा दिया। सुरुचि ने ध्रुव से कहा कि राजा की गोद में वही पुत्र बैठ सकता है जो मेरे गर्भ से उत्पन्न हुआ है अन्य कोई नहीं।

तू मेरे गर्भ से उत्पन्न नहीं हुआ है इसलिए तुझे राजा की गोद या इस सिंहासन पर बैठने का कोई अधिकार नहीं। उस समय ध्रुव पांच वर्ष का था। सुरुचि जो कह रही थी के उसे भली भांति समझ आ रहा था। उसे अपनी सौतेली मां की बात पर बहुत क्रोध आया। Dhruv वहां से भागते हुए अपनी मां सुनीति के पास गया और अपनी सौतेली मां का व्यवहार और सब बात बताई। सुनीति ने अपने पुत्र को समझाते हुए कहा कि तेरी सोतैली मां सुरुचि के प्रति तेरे पिता का अधिक झुकाव होने के कारण हम से वे दूर हो गए हैं। इन सब बातों को छोड़ो और ईश्वर की भक्ति करो, यही एकमात्र रास्ता है।

ध्रुव तारे की कहानी क्या है? ( Dhruv Tara story in hindi )

ध्रुव तारा की कहानी ( Dhruv Tara ki kahani ) यहीं से शुरू होती है क्योंकि अपनी माता के मुख से ये बातें सुन ध्रुव को ऐसा लगा जैसे उसे ज्ञान प्राप्त हो गया है। इस तरह ध्रुव अपने पिता के घर को छोड़कर ईश्वर की भक्ति करने के लिए निकल पड़ा। अब भक्त ध्रुव की कथा में ईश्वर की भक्ति के लिए जाते समय bhakt dhruv को रास्ते में देवर्षि नारद मिले उन्होंने बालक को खूब समझाया पर ध्रुव अपनी हठ के आगे हारने को तैयार नहीं था। देवर्षि नारद ने जब देखा कि ध्रुव दृढ़ संकल्प लिए हुए है तो उन्होंने भक्त ध्रुव को मंत्र की दीक्षा दी और फिर वे राजा उत्तानपाद के पास पहुंचे।

राजा उत्तानपाद ध्रुव के चले जाने से बहुत दुःखी थे। नारद जी को अपने महल में आते देख उन्होंने आदर सत्कार किया। देवर्षि नारद ने राजा से कहा कि चिंता की कोई बात नहीं भगवान अपने ध्रुव के रक्षक हैं। भविष्य में आगे चलकर वे संसार में कीर्ति फैलाएंगे। नारद जी के मुख से इन बातों को सुनकर राजा को थोड़ा संतोष हुआ।

वहीं दूसरी तरफ ध्रुव बालक यमुना नदी के तट पर पहुंच चुके थे। उन्होंने वहां बैठकर दिए गए मंत्र से भगवान की तपस्या करनी शुरू की। तपस्या के दौरान कई प्रकार के संकट आए पर ध्रुव के दृढ़ संकल्प ने उन्हें आसानी से पार कर लिया। अब धीरे धीरे ध्रुव के तप का तेज तीनों लोकों में फैलने लगा।

ध्रुव द्वारा किए जा रहे मंत्र उच्चारण ”ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” अब बैकुंठ धाम तक पहुंच चुका था। मंत्रों की गूंज को सुनकर भगवान विष्णु भी अपनी योग निद्रा से जागे। उन्होंने देखा कि एक छोटा सा बालक उनकी तपस्या कर रहा है। यह दृश्य देख भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और उन्होंने ध्रुव को दर्शन दिए।

भगवान विष्णु बोले, हे भक्त ध्रुव! तुम्हारी समस्त इच्छाएं पूर्ण होंगी। तुम्हारी भक्ति से मैं अत्यधिक प्रसन्न हूं इसलिए मैं तुम्हें एक ऐसा लोक प्रदान कर रहा हूं, जिसके चारों ओर ज्योतिष चक्र परिक्रमा करता है और उसी के आधार पर सब ग्रह नक्षत्र घूमा करते हैं। भगवान विष्णु ने आगे कहा कि यह एक ऐसा लोक होगा जिसका प्रलयकाल में भी कभी नाश नहीं हो सकेगा और सप्तऋषि भी नक्षत्रों के साथ उस लोक की प्रदक्षिणा करते हैं। यह लोक तुम्हारे नाम से यानी ध्रुव लोक ( Dhruva Star ) कहलाएगा।

प्रभु बोले कि इस लोक में छत्तीस सहस्र वर्ष तक तुम पृथ्वी पर शासन करोगे। इन समस्त प्रकार के ऐश्वर्य भोग कर सबसे अंत में तुम मेरे लोक बैकुंठ धाम को प्राप्त होंगे। तपस्वी बालक ध्रुव को वरदान देने के पश्चात भगवान विष्णु लौट गए। भगवान विष्णु से मिले वरदान के कारण ही ध्रुव आगे चलकर ध्रुव तारा ( Dhruva Tara ) बन गए। 

श्री हरि की भक्ति करने के लिए तुलसी माला का प्रयोग सबसे उत्तम माना जाता है। कहते हैं कि श्री हरि को तुलसी सबसे प्रिय है यदि भक्त भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए Original Tulsi Mala से उनके मन्त्रों का उच्चारण करते हैं तो वे शीघ्र ही अपने प्रभु को प्रसन्न कर सकते हैं। 

ध्रुव तारे को कैसे पहचाने? ( Dhruv Tare ko kaise pehchane? )

सप्तर्षि के नाम से लोकप्रिय सात तारों की माद से ध्रुवतारा को पहचाना जा सकता है। जब आगे के दो ऋषियों की सीधी रेखा में उत्तर की तरफ देखा जाए तो जो तारा सबसे चमकता हुआ नजर आये वही ध्रुवतारा है जिसे हम अंग्रेजी भाषा में पोल स्टार कहते हैं। ध्रुव तारे की पृथ्वी से दूरी 390 प्रकाशवर्ष है।

ध्रुव तारे से कौन सी दिशा का ज्ञान होता है? ( Dhruv Tare se kaun si disha ka gyan hota hai? )

ध्रुव तारे से हमें उत्तर दिशा का ज्ञान होता है क्योंकि यह तारा उत्तरी ध्रुव के बिल्कुल सीध में मौजूद है।  

ध्रुव तारा की ओर कौन सा नक्षत्र तारे सीधे जाते हैं?

ध्रुव तारे को फाल्गुन-चैत्र माह से श्रावण-भाद्र माह तक सात तारों के एक समूह के रूप में देखा जा सकता है। सात तारों में चार तारे चौकोर और तीन तारे तिरछी रेखा में दिखते हैं। सात तारों का नाम प्राचीन काल के सात ऋषियों के नाम पर रखा गया है। जिनमें क्रतु, पुलह, पुलस्त्य, अत्रि, अंगिरस, वाशिष्ठ तथा मारीचि शामिल हैं। इसे गौर से देखें तो यह एक पतंग के आकार का दिखता है जो कि आकाश में डोर के साथ उड़ती हुई प्रतीत होती है। यदि आगे के दो तारों को जोड़ने वाली पंक्ति को सीधे उत्तर दिशा में बढ़ायें तो यह ध्रुव तारे पर पहुंचती है।

वैष्णो देवी की कथा : एक अरब साल पुरानी Maa Vaishno की गुफा में क्या कैद है?

आइये जानें एक अरब साल पुरानी Maa Vaishno की गुफा का रहस्य ( Mystery Of Maa Vaishno Cave )

मां वैष्णो देवी की इस प्राचीन गुफा में कैद इस एक रहस्य के बारे में शायद ही आप भी नहीं जानते होंगे। आदिशक्ति मां वैष्णो देवी की प्राचीन गुफा में आज भी क्या है कैद? माता वैष्णो देवी का कौन सा है वो रहस्य जिससे आज भी कई लोग अनजान है।

कहते हैं माता वैष्णो देवी के दरबार में जो भी भक्त आता है तो वह खाली हाथ कभी वापस नहीं लौटता, मां अपने भक्तों की झोली खुशियों से जरूर भर देती है। लेकिन माता की महिमा से आज भी कई लोग अनजान है।  कहते हैं कि जम्मू के Katra Vaishno Devi की इस प्राचीन गुफा से जुड़े हुए बहुत से रहस्य है लेकिन इस एक रहस्य को आप भी नहीं जानते होंगे।

यहाँ जानिये माँ वैष्णो देवी की सम्पूर्ण कथा

दोस्तों वैष्णो माता की कथा ( Vaishno Mata ki katha ) के अनुसार माँ वैष्णों देवी ने जब भैरोंनाथ का वध किया तो उनका सर उड़कर भैरो घाटी में जा गिरा और धड़ गुफा में ही रह गया।  कहा जाता है कि वैष्णों देवी की इस गुफा में भैरो का शरीर आज भी मौजूद है जो कि एक पत्थर के रूप में विराजमान है और भक्त गुफा से जाते वक़्त इसी पत्थर के ऊपर से होकर गुजरते है।  

आदिशक्ति Vaishno Devi Mata Katra का यह शक्तिपीठ दिव्य स्थानों में से एक माना जाता है। कहते हैं कि इस स्थान पर माता सती का मस्तिष्क गिरा था, जिसके कई  प्रमाण भी मिले हैं।  मान्यता है कि त्रिकूट पर्वत की पहाड़ियों पर बसी इस गुफा को गर्भभूजन भी कहा जाता है क्योंकि जिस प्रकार नौ महीने तक एक शिशु अपनी माँ के गर्भ में रहता है, ठीक उसी प्रकार माता वैष्णो देवी भी इस गुफा में नौ महीने तक भैरोनाथ से छिपकर रही थी।  इस स्थान पर जो भी आता है तो उसे गर्भ में जाने से मुक्ति मिलती है तथा अगर वह गर्भ में आ भी जाता है तो उसे गर्भ में होने वाले कष्टों से मुक्ति मिलती है।  

माना जाता है कि भैरवनाथ के वध के बाद माता रानी तीन पिंडियों के रूप में बदल गयी थी। दाएं में मां काली, बाएं में मां सरस्वती तथा मध्य में माँ लक्ष्मी पिंडी रूप में विराजित है। आज भी वैष्णो देवी का मंदिर के इन पिण्डियों की पूजा उनके परमभक्त कहे जाने वाले श्रीधर के वंशज कर रहे हैं। दोस्तों क्या आप Vaishno Devi Mandir के दरबार गए हैं? क्या Vaishno Devi Yatra करते समय आपको कुछ चमत्कारी अनुभूति हुई है? अपना जवाब हमें कमेंट बॉक्स में जरूर दीजियेगा।
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