Hanuman Jayanti 2022 : श्री नरसिंह हनुमान मंदिर में भव्य हनुमान जन्मोत्सव का आयोजन

अंजनी के लाल और केसरी महाराज के Kesari Nandan, मारुति नंदन पवनपुत्र हनुमान का जन्मोत्सव इस वर्ष १६ अप्रैल हिन्दू कैलेंडर की चैत्र महीने में रात्रि के 2 बज कर 25 मिनट पर मनाया जायेगा। इस साल ख़ास बात यह है की हनुमान जयंती  को शनिवार का दिन पड़ रहा है, जो की हनुमान पूजन के लिए  शुभ दिन माना जाता है. Hanuman jayanti utsav 2022 हिन्दुओ में बड़े ही उल्लास के साथ मनाया जाता है। दिल्ली के चांदनी चौक मार्केट में स्थित पांडव कालीन प्राचीन श्री नरसिंह हनुमान महाराज मंदिर में तक़रीबन 150 वर्ष से Hanuman Jayanthi 2022 पर विशेष  कार्यक्रमों का आयोजन होता आ रहा है।  

Narsingh bhagwan hanuman प्राचीन मंदिर इस साल भी बड़े ही धूम धाम से हनुमान जयंती  के अवसर पर विशेष कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है। मंदिर के महंत श्री गौरव शर्मा महाराज जी ने “प्रभु भक्ति” से साक्षत्कार करते हुए बताया की इस वर्ष हनुमान जयंती पर होने वाला कार्यक्रम बहुत भव्य होगा। मंदिर के महंत के अनुसार प्राचीन नरसिंह भगवान हनुमान मंदिर में हनुमान जी की सवा मन की चांदी की प्रतिमा है। जिसका साल में  सिर्फ 2 बार श्रद्धालुओं को दर्शन कराया जाता है, एक हनुमान जयंती के दिन और दूसरा कृष्ण जन्माष्टमी के दिन। 

हनुमान जयंती 2022 भव्य यात्रा

16 अप्रैल 2022 हनुमान जयंती के दिन ऐतिहासिक विशाल शोभा यात्रा और कलश यात्रा को पुरे दिल्ली शहर में निकला जायेगा।  यह विशाल शोभा यात्रा दिल्ली के दरीबा से नई सड़क को पार  करते हुए हौज़ काज़ी  से अजमेरी गेट,सदानंद बाजार , खड़ी बावली से फतेहपुरी होते हुए वापिस narsingh devta हनुमान मंदिर पर  समाप्त होगी। यात्रा मे भव्य  हनुमान जी की  10 फुट  की हिलती हुई  प्रतिमा का भी दर्शन होगा जो दिल्ली की सड़को पर  पहली  बार देखने को मिलेगा।  इस यात्रा को और आनंद दायक बनाने के लिए उज्जैन से  50 लोगों के महाकाल के समूह को भी निमंत्रण दिया गया है , जो नाचते , गाते हुए यात्रा में  शामिल होंगे।  

श्री नरसिंह हनुमान मंदिर अखंड रामायण पाठ एवं विशाल भंडारा

यात्रा के साथ-साथ अखंड रामायण पाठ , जो की 24 घंटे, 16 अप्रैल को सुबह  5 बजे से शुरू होकर  17 अप्रैल की  सुबह 5 बजे तक चलेगा। पाठ के समय ही विशाल भंडारे  का भी प्रबंध किया गया है , जिसे भक्तगण उन 24 घंटो के बीच ग्रहण कर सकते है. मंदिर प्रबंधक  के द्वारा श्री हनुमान जी  महाराज को 56 भोग का प्रसाद  भी चढ़ाया जाएगा,जिसे भक्तो के बीच में भी बांटा जाएगा।

भजन संध्या एवं प्रसिद्ध गायकों की उपस्थिति

मंदिर द्वारा  हनुमान जयंती की संध्या को मधुर भजनों का कार्यक्रम  भी रखा गया है, जिसमे महान कलाकारों की टोली भी हिस्सा लेंगे  और हमारे प्रिये और प्रसिद्ध गायक हंसराज रघुवंशी का भी आगमन होगा। श्री narsingh swami hanuman मंदिर की  ओर  से हंसराज रघुवंशी के द्वारा भजन भी गाया गया है जिसे नरसिंह हनुमान मंदिर के परिसर में और चांदनी चौक की गलियों में  फिल्माया गया है , जिसमे खुद मंदिर के महंत गौरव शर्मा जी महाराज, हंसराज रघुवंशी और ओलम्पिक कांस पदक विजेता बजरंग पुनिया दिखाई देंगे। भजन हंसराज रघुवंशी के ऑफिशियल  यूट्यूब चैनल पर हनुमान जयंती के दिन लांच किया जाएगा। इस हनुमान जन्मोत्सव मे लेज़र शो के द्वारा  बड़े परदे पर सम्पूर्ण रामायण रात्रि 8 बजे से 45 मिंनट तक  दिखाई जायेगी। 

हर मुश्किल का डटकर सामना करने वाले हनुमान जब एक तपस्वी से हारे

हनुमान जी का हिन्दू धर्म में महत्व ( Hanuman Ji ka hindu dharm me mahatva )

प्रभु श्री राम (ShreeRam) के परमभक्त हनुमान जी (Hanuman Ji) कभी किसी से नहीं हारे। उन्होंने हर मुश्किल का डटकर सामना किया और जीत भी हासिल की। हनुमान जी ने प्रभु श्री राम के लिए अपनी जान तक न्योछावर कर दी। उन्होंने कई युद्ध किये तथा उन भीषण युद्धों में जीत भी प्राप्त की। हनुमान जी अपने भक्तों की भी हर प्रकार के संकट से रक्षा करते हैं। तभी तो उन्हें संकटमोचक के नाम से भी बुलाया जाता है।

वाल्मीकि रामायण (Valmiki Ramayan) में प्रभु श्री राम और हनुमान जी के संबंध और उनके कार्यों का बड़ी ही ख़ूबसूरती से वर्णन किया गया है। रामायण में बताया गया है कि कैसे हनुमान जी ने अपने प्रभु की हर संभव सेवा की तथा सभी कार्य भी पूर्ण किये।

हनुमान जी (Lord Hanuman) के पराक्रम की गाथा आप सभी के मुख से सुन ही सकते हैं सभी कहते हैं कि वे कभी हारे नहीं, उन्होंने हर परिस्थिति को एक सकारात्मक दृष्टिकोण से संभाला। उनकी वीरता का आकलन आप इस बात से कर सकते हैं कि उन्होंने महाभारत के वीर योद्धा अर्जुन और भीम, न्याय देवता शनिदेव तथा बालि तक को पराजित किया है। परन्तु क्या आपको मालूम है हनुमान जी भी किसी से हारे थे? आज की इस कहानी में हम आपको हनुमान जी के एक रामभक्त तपस्वी से हार की कथा बताएंगे।   

हनुमान और मच्छिंद्रनाथ की कहानी (Hanuman aur machindranath ki kahani)

एक मच्छिंद्रनाथ (Machindranath) नामक तपस्वी हुआ करते थे जो प्रभु श्री राम के परमभक्त थे। मच्छिंद्रनाथ तपस्वी जब रामेश्वरम में पधारे तो वे रामेश्वर सेतु (Rameshwar Setu) को देखकर भाव विभोर हो उठे।  इसके बाद उन्होंने प्रभु श्री राम की भक्ति का निश्चय किया और भक्ति में लीन होते हुए वे समुद्र में स्नान करने लगे।  

वानर भेष में वहां घूम रहे हनुमान जी ने जैसे ही तपस्वी को देखा वे उनकी परीक्षा लेने के लिए आगे बढ़े। हनुमान जी ने योगी मच्छिंद्रनाथ (Yogi Machindranath) की परीक्षा लेना शुरू किया। उस स्थान पर जहाँ तपस्वी भक्ति में लीन था अचानक तेज़ वर्षा होने लगी। फिर वानर भेष में घूम रहे हनुमान जी वहां मौजूद पहाड़ पर वार कर एक गुफा बनाने लगे।  

हनुमान जी का गुफा बनाने के उद्देश्य था तपस्वी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना और भक्ति में अड़चन डालना। जैसा हनुमान जी ने चाहा था वैसा ही हुआ और तपस्वी का ध्यान हनुमान जी पर पड़ा। तपस्वी मच्छिंद्रनाथ ने कहा कि हे! वानर तुम मूर्खता कर रहे हो। जब हमें प्यास लगती है उसी वक़्त थोड़ी न हम कुंआ खोदना शुरू करते हैं। तुम्हें पहले ही अपने रहने के लिए कोई प्रबंध करना चाहिए था।

हनुमान और मच्छिंद्रनाथ का युद्ध (Hanuman aur Machindranath ka yuddh)

मच्छिंद्रनाथ की बात सुनकर हनुमान जी बोले कि वैसे तो इस बात से सभी परिचित हैं कि प्रभु श्री राम और हनुमान से बड़ा योद्धा कोई नहीं पर  कुछ समय तक मैंने उनकी सेवा की थी जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने मुझे अपनी शक्ति का एक प्रतिशत मुझे दे दिया है। यदि आपके पास इतना साहस है तो मुझे हराकर दिखाएं। ऐसा करने के बाद ही मैं मानूंगा कि आप में तपोबल है और आप समर्थ हैं वरना खुद को एक सिद्ध योगी कहना बंद कर दें।   
 
मच्छिंद्रनाथ (Machindranath) ने हनुमान की चुनौती स्वीकार की और युद्ध करना शुरू कर दिया। हनुमान जी ने युद्ध शुरु होते ही मच्छिंद्रनाथ पर 7 बड़े पर्वत फेंके परन्तु मच्छिंद्रनाथ ने उन पर्वतों को अपनी शक्ति के बल से उसके मूल स्थान पर दोबारा भेज दिया।  यह दृश्य देखते ही हनुमान जी क्रोध से आगबबूला हो उठे।

इसके बाद हनुमान जी ने वहां के सबसे बड़े पर्वत को उठाकर मच्छिंद्रनाथ (Machindranath) पर फेंकने के लिए उठा लिया। जिसे देखते ही मच्छिंद्रनाथ ने समुद्र के जल की कुछ बूंदे ली और उन बूंदों को अपने हाथ में लेकर उसे वाताकर्षण मंत्र से सिद्ध किया। तत्पश्चात जल की उन बूंदों को हनुमान जी के ऊपर फेंक दिया।

वे सिद्ध की गई बूंदे जैसे ही हनुमान के शरीर पर पड़ीं उनका शरीर स्थिर अवस्था में चला गया। हनुमान जी के शरीर न कोई भी हलचल करनी बंद कर दी। कुछ क्षणों के लिए हनुमान जी की शक्ति भी जाती रही। अपने पुत्र को कष्ट में देखकर वहां वायुदेव प्रकट हुए और मच्छिंद्रनाथ से   हनुमान जी को कष्ट मुक्त करने की प्रार्थना की।

उनकी प्रार्थना सुन हनुमान जी को उन्होंने मुक्त कर दिया। इसके बाद हनुमान जी ने तपस्वी से कहा कि हे! मच्छिंद्रनाथ आप स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं। मुझसे भूल हुई कि मैंने आपको युद्ध के लिए ललकारा। कृपया मुझे मेरी इस भूल के लिए क्षमा करें। यह सुन मच्छिंद्रनाथ ने उन्हें माफ़ कर दिया।

(प्रभु श्री राम के परमभक्त संकटमोचक हनुमान भक्तों के सभी कष्ट दूर करते हैं।  यदि आप भूत-प्रेत के साये से परेशान हैं, किसी गंभीर बीमारी से जूझ  रहे हैं तो Ashta Siddh Balaji Kavach को घर में स्थापित करें।  इस कवच में समाहित अलौकिक शक्तियां हनुमान जी का आशीर्वाद आपको प्रदान करेंगी और सभी समस्याओं से छुटकारा शीघ्र ही मिल जाएगा।)

जानिये आखिर क्यों शनि दोषों की समाप्ति के लिए की जाती है हनुमान जी की पूजा

हिन्दू धर्म में जहाँ एक तरफ हनुमान जी ( Hanuman Ji ) को संकटमोचक की संज्ञा दी गई है तो वहीँ शनि देव न्याय के देवता कहे गए है। व्यक्ति को उसके कर्मों के हिसाब से फल देने वाले शनिदेव ( Shani Dev ) का हनुमान जी से एक ख़ास संबंध है जिसके कारण जब भी किसी व्यक्ति पर शनि का प्रकोप हावी होता है तो उसे हनुमान जी की पूजा करने की सलाह दी जाती है। आइये जानते हैं आखिर हनुमान जी और शनिदेव में क्या संबंध है और क्यों उन्हें तेल चढ़ाने से दूर होते हैं सभी कष्ट।  

हनुमान जी और शनिदेव की कथा ( Hanuman ji aur Shani Dev ki Katha )

सम्पूर्ण सृष्टि को उनके कर्मों के हिसाब से न्याय देने वाले शनिदेव को अपनी शक्ति पर बहुत घमंड हो गया था। इस शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए वे हनुमान जी से युद्ध करने के लिए उनके पास पहुंचे। उन्होंने हनुमान जी को युद्ध करने के लिए ललकार लगाई। शनिदेव जब युद्ध के लिए उन्हें चुनौती दे रहे थे उस समय हनुमान जी प्रभु श्री राम की तपस्या में लीन थे। जिस कारण उन्होंने शनिदेव से उलटे पैर लौट जाने के लिए कहा।  

परन्तु शनिदेव अपनी बात पर अडिग रहे और बार-बार युद्ध के लिए ललकारते रहे। शनिदेव की इस ज़िद को देखकर हनुमान जी को बहुत क्रोध आया और उन्होंने अपने इस क्रोध के आवेग में आकर युद्ध के लिए हामी भर दी। आखिर शनि महाराज ने ललकार भी तो किसे लगाईं थी प्रभु श्री राम के परमभक्त हनुमान जी को।

इसके बाद जो हुआ वह तो सभी कल्पना कर ही सकते हैं। हनुमान जी के प्रहारों के आगे शनिदेव कुछ क्षण भी टिक न सके और घायल होकर गिर पड़े। शनिदेव ने इसके पश्चात संकटमोचक हनुमान जी से क्षमा याचना की।

भोले स्वभाव वाले हनुमान जी ने तुरंत शनिदेव को क्षमा कर दिया और उनके घावों को ठीक करने के लिए उसपर तेल लगाने लगे।  तेल लगाते ही शनिदेव के सभी घाव ठीक हो गए। अपने घाव ठीक होते देख शनिदेव बोले कि जो भी भक्तजन आपकी सच्चे मन से पूजा करेगा और मुझे तेल अर्पित करेगा उसके सारे दुःख समाप्त हो जाएंगे।  इसी के साथ शनिदेव ने आगे कहा कि उसे शनि दोष का भी सामना नहीं करना पड़ेगा।  

इससे संबंधित एक दूसरी कथा भी बहुत प्रचलित है। कहा जाता है कि शनिदेव को लंकाधिपति रावण ने अपनी कैद में रखा हुआ था। उनको रावण की कैद से मुक्ति दिलाने वाले हनुमान जी ही थे। जब हनुमान जी रावण ( Ravana ) के चंगुल से शनिदेव को बचाकर लाये तब उनके शरीर पर बहुत सारे घाव थे और उन्हें काफी दर्द का एहसास हो रहा था।

उन घावों को ठीक करने के उद्देश्य से संकटमोचक हनुमान जी ने तेल लगाया।  वह तेल लगाते ही शनिदेव बिलकुल स्वस्थ हो गए।  इसी के बाद से Hanuman Shani Dev की पूजा का प्रचलन शुरू हुआ तथा शनिदोषों ( shani dosha ) से मुक्ति पाने के लिए हनुमान जी की पूजा शनि को तेल चढ़ाने की प्रथा भी शुरू हुई।     

शनिवार को हनुमान पूजा कैसे करें?( Shanivar ko Hanuman pooja kaise kare? )

1. शनिवार के दिन सूर्योदय के समय स्नान करें और उसके बाद हनुमान के ‘श्री हनुमते नम:’ मंत्र का जाप 11 या 108 बार करें।  ऐसा करने से व्यक्ति को शनिदोषों से मुक्ति मिलती है।   

2. दूसरा उत्तम उपाय है Hanuman Chalisa Yantra रुपी लॉकेट को धारण करना। ऐसा करने से किसी भी प्रकार की बुरी शक्तियां जातक के निकट नहीं पहुँच सकती हैं।  

3. जातक चाहें तो 10 शनिवार को जल में सिन्दूर को मिलकर हनुमान जी को अर्पित करें। इससे हनुमान जी आप पर शनि के दुष्प्रभावों का खात्मा होगा।  

4. प्रत्येक शनिवार हनुमान जी की प्रतिमा के आगे केले का प्रसाद चढ़ाना चाहिए।  

हनुमान जी की मां को देवराज इंद्र की सभा में इस गलती की वजह से मिला था श्राप

संकटमोचक ( Sankat Mochan ) कहे जाने वाले हनुमान जी ( Hanuman Ji ) की माँ अंजना ( Maa Anjana ) अपने पूर्व जन्म में एक अप्सरा हुआ करती थीं लेकिन अपनी एक भूल के चलते उन्हें ऋषि के श्राप को भोगना पड़ा था। इसी श्राप के चलते उन्होंने विरज नामक वानर राजा के घर में एक वानरी के रूप में जन्म लिया था। आइये जानते है एक अप्सरा की वानरी बनने की कहानी के बारे में :

अंजनी माता की कहानी ( Anjani Mata ki Kahani )

एक बार की बात है देवराज इंद्र ( Devraj Indra ) की सभा लगी हुई थी जिसमें अपने क्रोध के लिए विशेष रूप से लोकप्रिय ऋषि दुर्वासा ( Rishi Durvasa ) भाग ले रहे थे। सभा आरंभ हुई और विचार-विमर्श की प्रक्रिया भी शुरू हुई। इसी दौरान एक पुंजिकस्थला ( Punjikasthala ) नामक अप्सरा बार-बार सभा का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के प्रयास कर रही थी। अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए वह इधर-उधर जा रही थी।

ऋषि दुर्वासा पुंजिकस्थला के इन सभी कृत्यों पर गौर कर रहे थे। जब सभा में ज्यादा ही व्यवधान पड़ने लगा तो उन्होंने उस अप्सरा को श्राप दे डाला। ऋषि दुर्वासा ने श्राप देते हुए कहा था कि तू कैसी अप्सरा है जो एक वानर की भांति इधर-उधर भटक रही है और सभा में व्यवधान डाल रही है। अपनी इस आदत के चलते तू एक वानरी बनेगी।  

ऋषि दुर्वासा के मुख से यह वचन सुन अप्सरा भयभीत हो गई। उसने इस तरह के श्राप की कल्पना भी नहीं की थी जिस कारण उसने ऋषि दुर्वासा से माफ़ी मांगी। पुंजिकस्थला ने हाथ जोड़कर अनुनय-विनय किया, खूब प्रार्थना की। पुंजिकस्थला ने कहा ‘मैं अपनी मूढ़ता के कारण इस तरह की गलती दोहराती रही कृपया मुझे क्षमा कीजिये! और बताइये कि इस श्राप से मुझे किस प्रकार मुक्ति मिल सकती है।

अप्सरा पुंजिकस्थला की क्षमा प्रार्थना सुन ऋषि दुर्वासा का क्रोध ठंडा हो गया। इसके बाद उन्होंने कहा कि अपने चंचल स्वभाव के चलते तू वानर जाति के राजा विरज की कन्या के रूप धरती पर जन्म लेगी। तू! एक देवसभा की अप्सरा है इसलिए तेरे गर्भ से बड़े ही बलशाली, यशस्वी और एक बहुत बड़े प्रभुभक्त बालक जन्म लेगा। वह बालक युगों-युगों तक अमर रहेगा। ऋषि दुर्वासा की यह बात सुनकर पुंजिकस्थला को कुछ संतुष्टि मिली।

हनुमान जी की माता अंजना के वानर रुपी जन्म लेने के पीछे एक और कथा प्रचलित हैं। इस कथा के अनुसार अंजना एक अप्सरा थीं जो बालपन में बहुत चंचल स्वाभाव की थी। अपनी इस चंचलता के कारण उन्होंने वन में तप कर रहे एक ऋषि के साथ दुर्व्यवहार किया था।  जिसके परिणामस्वरूप उन्हें तपस्वी ऋषि के श्राप का सामना करना पड़ा।  

जब ऋषि एक वानर रूप में भेष बदलकर भगवान् की तपस्या में लीन थे उस समय पुंजिकस्थला ने तपस्या कर रहे ऋषि को वानर समझा और हंसी-ठिठोली करने लगी। चंचलपन के कारण क्रीड़ा के दौरान उन्होंने ऋषि पर फल फेंक दिया। तपस्या में व्यवधान के कारण ऋषि की समाधि टूट गई।

यह देख ऋषि को बहुत क्रोध आया और उन्होंने अप्सरा को श्राप देते हुए कहा कि जब भी तुम्हें किसी से प्रेम होगा तुम उसी समय वानरी बन जाओगी। इसी श्राप का फल है कि जब वानर राजा विरज की पुत्री को वानरराज केसरी से प्रेम हुआ तो वे अपने आप वानरी बन गई।

हनुमान जी को भी मिला था अपनी शक्तियां भूल जाने का श्राप ( Hanuman ji ko mila tha Shrap )

हनुमान जी अपने बालपन में बड़े ही नटखट स्वाभाव के थे, इसी स्वभाव की वजह से हनुमान जी को अपनी शक्तियां भूल जाने का श्राप मिला था। इस श्राप से छुटकारा पाने का एकमात्र उपाय था कि जैसे ही हनुमान जी को उनकी शक्तियों का एहसास दिलाया जाएगा उन्हें अपनी सारी शक्तियां स्मरण हो आएंगी। रामायण में इस संबंध में एक प्रसंग मिलता है जिसमें सागरपार जब हनुमान जी माता सीता को लेकर जा रहे थे तब जामवंत ने उन्हें शक्तियां याद दिलाई थीं।

( संकटमोचक हनुमान भक्तों के सारे दुःख हर लेते हैं फिर चाहे वह गंभीर रोग हो या कोई बुरा साया। हनुमान जी के भक्तों का कोई भी बुरी शक्ति बाल भी बांका नहीं कर सकती है। यदि आप लम्बे समय से किसी बड़ी परेशानी से जूझ रहे हैं तो आपको Original Panchmukhi Hanuman Kavach धारण करना चाहिए।  इसमें शामिल अलौकिक शक्तियां आपको हर बुरी परिस्थिति से लड़ने में सहायता करेगी और सरंक्षण भी प्रदान करेगी। )

Importance and Benefits of Panchmukhi Hanuman Kavach

पंचमुखी हनुमान कवच क्या है? ( What is Panchmukhi Hanuman Kavach? )

Hanuman Kavach व्यक्ति की विभिन्न प्रकार की समस्याओं से संरक्षण प्रदान करता है। कवच में मौजूद पंचमुखी हनुमान का रूप पांचों दिशाओं का प्रतिनिधित्व करता है। यह उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम और उधर्व सभी दिशाओं में प्रधान है। 

उत्तर की ओर जो मुख है, वह शूकर का है। दक्षिण की तरह किया हुआ मुख नृसिंह का है। पूर्व दिशा में किये हुए मुख को वानर कहा गया है, पश्चिम वाला मुख गरुड़ का है।  इस तरह इन पांचों से सम्मिश्रित कवच व्यक्ति को अलग अलग प्रकार की दिक्कतों से मुक्ति दिलाता है जिनका जिक्र नीचे किया गया है। 

पंचमुख की व्याख्या में पांच तरीकों का वर्णन है। इन पांच तरीकों को नमन, स्मरण, कीर्तनम, यचम और अर्पणम के नाम से जाना जाता है। हनुमान जी हमेशा श्री राम का नमन, स्मरण और कीर्तन करते थे। उन्होंने पूरी तरह से राम के सामने अर्पणम कर दिया। यचनम में राम से माँगा कि वह उन्हें प्रेम प्रदान करें।[source]

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पंचमुखी हनुमान कवच के फायदे ( Panchmukhi Hanuman kavach benefits in hindi ) 

पंचमुखी हनुमान कवच के लाभ कुछ इस प्रकार है : 

1. Panchamukha Hanuman कवच में शूकर मुख धन-सम्पत्ति और ऐश्वर्य का प्रतीक है। 
 
2. वानर मुख सूर्य के समान तेजस्वी है। इससे व्यक्ति के समस्त शत्रुओं का नाश होता है।  

3.  Hanuman yantra locket में पंचमुखी हनुमान का गरुड़ रूप संकट मोचक है जो संकटों का निवारण करता है। 
 
4. नृसिंह मुख भक्तों के सभी प्रकार के भय और चिंता का निपटारा करता है।  

5. भूत-प्रेत से छुटकारा पाने के लिए इस कवच का प्रयोग किया जाता है। अतः यह Panchmukhi Hanuman kavach benefits में से एक है।   

पंचमुखी हनुमान कवच को कैसे धारण करें? ( How to wear Panchmukhi Hanuman Kavach? )

1. कवच रूपी Hanuman Yantra or Panchmukhi Hanuman Locket धारण करने के लिए शुभ दिन हनुमान जी का दिन मंगलवार माना जाता है।  
2. प्रातःकाल स्नान कर पीले या लाल वस्त्र धारण करें।  
3. इसके पश्चात एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर हनुमान जी की प्रतिमा को रखें।  
4. प्रतिमा पर और उसके आसपास गंगाजल छिड़कें।  
5. तत्पश्चात हनुमान जी की प्रतिमा के समक्ष घी का दीपक जलाएं।  
6. दिए गए हनुमान मंत्र ( Hanuman Mantra ) का 108 बार जाप करते हुए इसे धारण करें। 
 
|| ॐ ऐं भ्रीम हनुमते,
श्री राम दूताय नम: ||

पंचमुखी हनुमान का महत्व ( Significance of Panchmukhi Hanuman )

रामायण में जिस पंचमुखी हनुमान कथा का वर्णन हमें मिलता है हनुमान जी पंचमुखी कैसे बने. उसमें रावण और अहिरावण का जिक्र है। दरअसल रावण के मायावी भाई अहिरावण ने रावण की उस समय सहायता की जब वह परास्त होने की कगार पर था।

रावण ने मां भवानी के परमभक्त अहिरावण का सहारा लेकर राम जी की पूरी सेना को नींद में सुला दिया। फिर वह प्रभु श्री राम और लक्ष्मण का अपहरण कर पाताल लोक ले गया। 

प्रभु श्री राम और लक्ष्मण को Panchamukhi Bajrangbali पाताल लोक लेने पहुंचे। जहां उन्हें सर्वप्रथम मकरध्वज को परास्त करना पड़ा। जिसके बाद जाकर हनुमान जी को श्री राम और लक्ष्मण मिले।

बताते चलें कि पाताल लोक में पहुँचने पर हनुमान जी को मां भवानी के 5 दीपक जलते हुए मिले। जिसे बुझाने के लिए ही हनुमान जी ने पंचमुखी रूप धारण किया था। इस प्रकार दीपक बुझाते ही रावण के मायावी रूप अहिरावण का वध हो गया।

पंचमुखी हनुमान जी की पूजा विधि ( Panchmukhi Hanuman ji ki puja vidhi )

कैसे करें हनुमान जी की पूजा ( Kaise kare Hanuman ji ki puja ) : 

1.  Sankat Mochan Mahabali Hanuman जी की पूजा के मंगलवार का दिन सबसे शुभ माना जाता है।
  
2. प्रातःकाल स्नान करें और पूर्व दिशा की ओर आसन लगाकर बैठे। 

3. उस स्थान पर चौकी रखे और उसपर लाल वस्त्र बिछाएं फिर हनुमान जी की प्रतिमा को रखें।  

4. हाथ में चावल और फूल लेकर हनुमान मंत्र का उच्चारण करें।  

5. ध्यान मंत्र का 108 बार जाप करने के पश्चात भगवान के समक्ष फूल और अन्य सामग्री अर्पित करें।  

6. साथ ही सिन्दूर और हार भी अर्पित करें।    

पंचमुखी हनुमान कवच स्तोत्र

हनुमान जी का ध्यान मंत्र

पंचमुखी हनुमान जी की आरती

॥ हनुमानाष्टक ॥

Hanuman ji ka Mantra

पंचमुखी हनुमान कवच मंत्र 

ऊँ ऐं श्रीं ह्रीं ह्रीं हं ह्रौं ह्रः ऊँ नमो भगवते महाबल पराक्रमाय भूत-प्रेत-पिशाच ब्रह्म राक्षस शाकिनी डाकिनी यक्षिणी पूतना मारीमहामारी राक्षस भैरव बेताल ग्रह राक्षसादिकान् क्षणेन हन हन,भंजय भंजय मारय मारय,क्षय शिक्षय महामहेश्वर रुद्रावतार ऊँ हुम् फट स्वाहा ऊँ नमो भगवते हनुमदाख्याय रुद्राय सर्व दुष्टजन मुख स्तम्भनं कुरु स्वाहाऊँ ह्रीं ह्रीं हं ह्रौं ह्रः ऊँ ठं ठं ठं फट् स्वाहा.

पंचमुखी हनुमान शाबर मंत्र

सर्व कार्य सिद्धि हनुमान शाबर मंत्र इस प्रकार है : 

|| ऊं नमो आदेश गुरु को, सोने का कड़ा,

तांबे का कड़ा हनुमान वन्गारेय सजे मोंढें आन खड़ा||

हनुमान जी शाबर अढ़ाई मंत्र

||ऊं नमो बजर का कोठा,

जिस पर पिंड हमारा पेठा

ईश्वर कुंजी ब्रह्म का ताला,

हमारे आठो आमो का जती हनुमंत रखवाला||

 हनुमान जी का बीज मंत्र

|| ॐ ऐं भ्रीम हनुमते,

श्री राम दूताय नम: ||

हनुमान जी का जंजीरा मंत्र

हनुमान जी का गायत्री मंत्र

“ऊँ आञ्जनेयाय विद्महे, वायुपुत्राय धीमहि। तन्नो हनुमत् प्रचोदयात्।”

श्री हनुमान साठिका

भूत भगाने का हनुमान मंत्र

ॐ हनुमन्नंजनी सुनो वायुपुत्र महाबल: । 

अकस्मादागतोत्पांत नाशयाशु नमोस्तुते ।

Hanuman 108 Names

हनुमान जी के पिता का नाम ( Hanuman ji ke pita ka naam )

पुराणों के अनुसार  वानर के रूप में जन्म लेने वाले हनुमान जी की मां अंजनी एक अप्सरा थीं और उनके पिता सुमेरु पर्वत के वानरराज केसरी थे। कई मान्यताओं के मुताबिक Maruti Hanuman को पवन पुत्र की भी संज्ञा दी जाती है। पवन पुत्र कहलाये जाने के पीछे भी एक कहानी है। 

Hanuman stories में कहा जाता है कि जब राजा दशरथ पुत्र प्राप्ति के लिए हवन कर रहे थे। उस समय तीनों रानियों को पुत्र की प्राप्ति के लिए खीर खिलाई गई। इसी खीर का एक भाग कौआ अपने साथ मां अंजनी के पास ले गया। उस खीर को मां अंजनी ने प्रसाद स्वरुप खा लिया जिसके बाद संकट मोचन महाबली हनुमान का जन्म हुआ।  

हनुमान जयंती पर क्या करना चाहिए? ( Hanuman jayanti par kya karna chahiye? )

1. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हनुमान जयंती के दिन सुन्दरकाण्ड का पाठ, हनुमान बाण का पाठ करना चाहिए।  

2. मान्यता है कि इस दिन हनुमान जी की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक बल की प्राप्ति होती है।   

3. हनुमान मंत्र का 108 बार और चालीसा का 11 बार पाठ करने से मनोवांछित फल मिलता है।  

4. आर्थिक तंगी से छुटकारा पाने के लिए चमेली के तेल का दीपक जलाना चाहिए।  

हनुमान सिद्धि के लिए क्या करें? ( Hanuman siddhi ke liye kya karen? )

1. सिद्धि प्राप्ति के लिए सबसे पहला नियम है कि रहन-सहन और खान-पान का शुद्ध रहना।  

2. दूसरा नियम है नियमित रूप से हनुमान जी की उपासना करना।  

3. हर मंगलवार हनुमान जी को भोग लगाएं।  

4. हनुमान जी के बीज मंत्र का जाप भी नियमित तौर पर किया जाना चाहिए।  

हनुमान जी को तुलसी क्यों चढ़ाई जाती है? ( Hanuman ji ko Tulsi kyu chadhai jaati hai? )

हनुमान जी को तुलसी चढ़ाये जाने के पीछे कई प्रमुख कारण है। एक तो यह कि इससे व्यक्ति को सभी संकटों से मुक्ति मिलती है। दूसरा यह कि तुलसी चढ़ाये जाने से घर में सुख-समृद्धि आती है।   

हनुमान चालीसा कब पढ़ना चाहिए? ( Hanuman chalisa kab padhni chahiye? )

हनुमान चालीसा का  पाठ करने के लिए कोई ख़ास समय निर्धारित नहीं है। व्यक्ति अपनी भक्ति और इच्छा के अनुसार इसका पाठ कर सकता है। हनुमान चालीसा का महत्व यह है कि यदि कोई व्यक्ति लगातार 40 दिन तक चालीसा का सच्चे मन से पाठ करता है तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।  

Panchmukhi Hanuman temple कहाँ पर स्थित है?

श्री हनुमान के पंचमुखी स्वरुप का यह मंदिर पाकिस्तान के कराची में अवस्थित है। जहाँ पंचमुखी हुनमान की त्रेता युग में स्थापित हुई लगभग 17 लाख साल प्राचीन मूर्ति है। बताते चलें कि इस मंदिर को दोबारा सन 1882 में बनाया गया था। इस मंदिर के बारे में ऐसी मांन्यता है कि हनुमान जी यह मूर्ति जमीन के अंदर से निकली है।  

हनुमान जी का भोग क्या लगाएं? ( Hanuman ji ka bhog kya lagaye? )

हनुमान जी को हर मंगलवार भोग स्वरुप बूंदी के लड्डू, बेसन के या मोतीचूर के लड्डू चढ़ाये जाते हैं। यह भोग उन्हें अत्यधिक प्रिय है।  

What happens if you read Hanuman Chalisa?

1. हनुमान चालीसा का निरंतर पाठ करते रहने से व्यक्ति को भूत-प्रेत से छुटकारा मिलता है।  

2. सभी बुरी शक्तियां साधक के निकट नहीं आती है।  

3. चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति के चारों ओर एक सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है।  

4. जातक पर हनुमान जी की कृपा सदैव बनी रहती है।

What should we do on Hanuman Jayanti?

1. हनुमान जयंती के दिन प्रातःकाल स्नान कर चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर हनुमान जी की प्रतिमा रखें।  

2. तत्पश्चात प्रतिमा के समक्ष लाल फूल, सिन्दूर और फल आदि चढ़ाएं।  

3. हनुमान जी को भोग में बेसन, मोतीचूर या बूंदी के लड्डू चढ़ा सकते हैं।  

4. इसके बाद 108 बार हनुमान बीज मंत्र का जाप करें।  

5. सात बार हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। इससे भगवान की असीम कृपा होगी।  

हनुमान जी ने स्वयं आकर अपने भक्तों के सारे संकट दूर किए।

तमिलनाडु के दाम में बिरजू नाम का व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ रहा करता था। मैं काफी गरीब था। उसके पास खाने के लिए भी पैसे नहीं थे व कार्यकर्ता पर वह इतना पैसे कभी नहीं जुटा पाता था कि वह अपने सारी जरूरतें पूरी कर सके। उसकी पत्नी हमेशा उसे ताने मार कर नीचा दिखाया करती थी। बिरजू हनुमान जी का सीन भक्त था। वे दिन-रात हनुमान जी की पूजा पाठ किया करता। वहां से प्रार्थना करता कि भगवान सारा संसार सुखी रहें एवं मेरा घर चल सके।

मुझे बस इतना धन दे दीजिए, परंतु उसकी इच्छा कभी पूरी नहीं होती थी। इस वजह से उसकी पत्नी अक्सर उससे कहा करती थी कि तुम दिन भर भगवान की पूजा करते हो। पर भगवान अगर होते तो तुम्हारी सुन लेते। इस संसार में भगवान नाम की कोई चीज है ही नहीं, परंतु बिरजू का विश्वास था कि भगवान है और उसकी एक न एक दिन जरूर सुनेंगे।  बिरजू एक दिन उठकर सुबह मंदिर गया तो उसने देखा मंदिर काफी गंदा हो रहा है। उसमें झाड़ू उठाई और मंदिर को साफ करना शुरू कर दिया।

तभी मैं एक वृद्ध व्यक्ति आया और सीढ़ियों पर आकर बैठ गया। उस वृद्ध व्यक्ति से बिरजू ने पूछा कि  आप बहुत परेशान लग रहे हैं, कोई तकलीफ है क्या अगर है तो मुझे बताइए शायद मैं आपकी मदद कर सकूं। वृद्ध व्यक्ति बोला, मैंने 2 दिन से कुछ भी नहीं खाया है। मुझे बहुत कमजोरी हो रही है और मैं बहुत थका हुआ हूं। यह सुनकर बिरजू को दया आ गई। बिरजू ने कहा कि चलिए मैं आपको भोजन कर आता हूं और बिरजू उस व्यक्ति को अपने घर ले गया बिरजू की पत्नी उस समय घर में भोजन हीं पका रही थी।

कुछ देर बाद बिरजू की पत्नी भोजन लेकर आई। दोनों ने साथ में भोजन किया। तब बिरजू ने कहा कि आप थके हुए एक काम कीजिए। आप मेरे साथ यहीं पर कुछ देर आराम कर लीजिए। वह दोनों सो गए। कुछ देर बाद जब बिरजू उठा तो उसने देखा कि वृद्ध व्यक्ति वहां पर नहीं है। उसने अपनी पत्नी को बुलाकर पूछा कि वह व्यक्ति कहां गए तब उसकी पत्नी बोली नहीं।

मुझे नहीं मालूम कहां गए तब उसने देखा जिस स्थान पर वृद्ध व्यक्ति सो रहा था, वहां पर एक थैला रखा हुआ है। उसने उसको खोला तो उसमें बहुत सारे सोने के सिक्के से उन सिक्कों को देखकर उसने अपनी पत्नी से कहा कि अगर वह व्यक्ति इतना अमीर था तो उसने मुझसे झूठ क्यों बोला। उन दोनों को कुछ समझ नहीं आया। तब ने निर्णय किया कि यही तो यूं ही रहने देते हैं कि जब आएगा तब ले जाएगा। उसने एक सिक्का भी नहीं निकाला। कुछ देर बाद रात हो गई तब रात में बिरजू को एक सपना आया।

हनुमान जी ने आकर कहा कि मैं तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूं और तुम्हारी तकलीफ देखी नहीं गई। वह थैली रखलो इससे तुम्हारे लिए तुम्हारी जिंदगी की सारी तकलीफ दूर हो सकती हैं और बिरजू की आंख खुल गई उसने सारी बात अपनी पत्नी को बताई तभी  पत्नी को अपने आप से घृणा होने लगी कि मैं आपके विश्वास को झूठा  कहती थी व अंधविश्वास बताती थी, परंतु संसार में भगवान है l दोनों ने मिलकर हनुमान जी के आगे हाथ जोड़कर उनका शुक्रिया किया। वह बिरजू के साथ आप उसकी पत्नी भी हनुमान जी की आराधना में लग गई। 

जब भक्त की रक्षा के लिए आग में कूद पड़े हनुमान जी

बिहार के एक गांव में छोटू नाम के व्यक्ति रहता था जो कि कुम्हार था। वह दिनभर मटके बनाते और खाली समय में हनुमान जी की भक्ति में लीन रहता। छोटू की आस्था कुछ इस प्रकार थी कि हनुमानजी हमेशा मेरे साथ है , मेरी संकट की घड़ी में कोई मेरा साथ दे ना दे हनुमान जी मेरा साथ अवश्य देगे l वह गांव के हर मंदिर में हनुमान जी की पूजा पाठ करता मंगलवार का व्रत रखता जब वह किसी परेशानी में होता तो
हनुमान जी की प्रतिमा के सामने बैठकर उनसे बात किया करता है कि जैसे हनुमान जी उसकी सारी बात सुन रहे हैं।

आसपास के लोग जब छोटू को प्रतिमा से बात करता हुआ देखते तो लोग उसे पागल कहने लगे थे परन्तु उसकी आस्था थी कि हनुमान जी उत्तर दे या न दें परन्तु मेरी बात सुन तो रहे है । एक दिन छोटू ने हनुमान जी की मिट्टी की प्रतिमा तैयार की और अपने घर के बाहर पेड़ के नीचे उसकी स्थापना की। वह बड़ी सेवा भाव से उसकी पूजा पाठ करता है। श्रंगार करता और रोज भोग लगाया करता था।जिस लकड़ी की झोपड़ी में छोटू मिट्टी के बर्तन बनाया करता था, एक दिन वहां पर आग लग गयी वह उस झोपडी में फंस गया छोटू ने बाहर निकलने का प्रयास किया परन्तु आग अधिक होने के कारण वह बाहर निकलने मे असमर्थ था तब छोटू ने हनुमान जी से प्राण रक्षा की गुहार लगायी।

आग के भय के कारण छोटू आंखे बंद हो गई। तब उसे  कुछ इस प्रकार प्रतीत हुआ कि उसे किसी ने गोद में उठा लिया हो lदेखते ही देखते वह जलती हुई झोपड़ी से बाहर आ गया। छोटू को इस बात पर यकीन ही नहीं हुआ कि न जाने कैसे वह झोपड़ी के बाहर आ गया। वह कौन था जिसने उसे गोद में उठाया उसे वहां कोई देख भी नहीं रहा था वह  बहुत आश्चर्य में था। कुछ देर बाद छोटू जब  अपने घर पहुंचा।
उसने देखा जिस मूर्ति कि उसने स्थापना की थी, वह काली पढ़ चुकी थी जैसे कि उसे किसी ने जला दिया हो।

वह समझ गया कि जलती हुई आग से जिसने उसकी रक्षा करी है, वह कोई और नहीं हनुमानजी हैं। हनुमान जी ने खुद जलकर मेरी जान बचाई यह सोच वह भावुक हो गया।गांव वालों को जब इस पूरी घटना के बारे में पता चला सारे लोग आश्चर्य में थे। वह मान गए कि छोटू  की भक्ति साधारण नहीं है। छोटू की भक्ति  हनुमान जी के प्रति प्रेम उसका कोई दिखावा नहीं है। बल्कि सत्यता है कि वह हनुमान जी से प्रेम करता है, हनुमान जी को अपने परिवार का सदस्य मानता है। उसकी भक्ति गंगा जल जैसी पवित्र है।

बाढ़ के तेज बहाव से भक्त की जान बचने आये बजरंगबली

जब कोई साथ न दे ,हर तरफ से संकट व्यक्ति को घेर ले , जीवन समस्याओं से भर जाए उस समय सिर्फ व्यक्ति को भगवान् ही याद आते है , और भगवान् भी अपने सच्चे भक्त क सहयता जरूर ही करते है।  ऐसा ही एक चमत्कार हुआ देव नाम के दिल्ली में रहने वाले बालक के साथ।  देव के माता पिता ने उसे बचपन से ही रामयण सुनाई व दिखाई और हनुमान जी के किए बड़े बड़े चमत्कारों के बारे में भी बताया जिसके कारण देव हनुमान जी के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हुआ और हनुमान जी की पूजा पाठ एवं आराधना में लग गया। परन्तु बजरंगबली के ऐसे असीम भक्त पर कुछ ऐसा संकट आने वाला था जो कोई सोच भी नहीं सकता था।

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 देव ने हाल ही में अपनी 12वी की परीक्षा की और अपने दोस्तों के साथ उत्तराखंड घूमने के लिए चला गया। उत्तराखंड जाकर देव व उसके दोस्तों ने सबसे पहले हरिद्वार के दर्शन किये ऋषिकेश में भी अच्छे से गुमकर  लक्मण झूला और भी कई स्थानों पर भ्रमण  किया।  तब किसी ने उन सभी को बताया यहाँ से कुछ ही दूर चमोली गांव है , जो घूमने के लिए उत्तम स्थान है।  चमोली में एक अलग ही कुदरत का करिश्मा है और वह से ऋषिगंगा निकलती है और वह बेहद ही अतभुद है।

  देव और उसके साथी यह सब सुन अतिउत्सुक होकर अगले ही दिन चमोली के लिए निकल गए।  पर वह सभी आने वाले खतरे से अनजान थे।  उन सभी ने चमोली में सारे पर्यटन स्थलों का भ्रमण  किया और सबसे आखिर में ऋषिगंगा के तट पर पहुंचे , पानी का भहाव बहुत तेज था नदी खतरे के निशान से  ऊपर बह रही थी देव व उसके कुछ साथियों ने और आगे जाने से मन किया परन्तु कुछ साथी कहने लगे की कुछ नहीं होगा डरने की कोई आवशयक्ता नहीं है।

 सभी ने उनकी बात मान ली और गंगा के पास जा पहुंचे।  कुछ देर बाद ऋषिगंगा के पीछे से तेज भहाव के साथ बढ़ आ गयी सभी वहाँ से अपनी अपनी जान बचाने के लिए भाग खड़े हुए परन्तु देव बाढ़ की चपेट में आकर पानी के साथ बहने लगा।  कुछ ही पलो में सारा चमोली गांव में से भर गया और देव पानी के साथ बहता  हुआ आगे चला जा रहा था उसके दोस्तों ने उसे बचने का प्रयास करना तो चाहा परन्तु कोई रस्सी या संसाधन न होने के कारण वह कुछ कर न सके।

 देव ने बहते  हुए चिल्ला चिल्ला कर मदद की गुहार लगाई परन्तु कोई नहीं आया तभी  पेड़ से एक वानर पानी में खुद गया और अपने दाँतों से देव की शर्ट को पकड़ उसे खींचने लगा देव को नहीं समज आया ये क्या हो रहा है।  और देखते ही देखते वह वानर पानी के इतने तेज़ बहाव  के अंदर से सारे गांव  वालो के सामने से देव को पानी से बहार ले आया और उसे एक बड़े से ऊँचे चबूतरे के पास लेकर  छोड़ दिया साथ ही  पलक  झपकते ही वहाँ से गायब भी हो गया।  एक वानर का ऐसा चमत्कार देख सभी हैरान रह गए।  तब देव और उसके साथियों को ज्ञात हुआ की हनुमान जी वानर रूप में आकर देव के प्राणो रक्षा की है। 

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भारत के इस राज्य में साक्षात प्रकट हुए बजरंगबली , और फिर जो हुआ

संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।। यह चौपाई तो सबने हनुमान चालीसा में पढ़ी व सुनी ही है , जिसका अर्थ है की ,
मन में मात्र बजरंगबली को याद करने से ही हर संकट और परेशानी दूर हो जाती है ,वह सदा ही अपने भक्तो के साथ रहते है।  इस चोपाई का जिवंत उद्धरण देखने को मिलता है हमें इस घटना को जानकार।  

यह घटना है राजस्थान के उदयपुर  शहर की , जहाँ सुमित नाम के बजरंगबली के असीम भक्त रहते है। सुमित का विवाह 8 वर्ष पूर्व हुआ था ,  सुमित के बहुत से प्रयत्नों के बाद भी उन्हें संतान प्राप्ति नहीं हुई थी।  सुमित  और उसकी पत्नी ने कई बड़े बड़े डॉक्टरों से परामर्श किया , मंदिर में मन्नत भी मांगी परन्तु कुछ नहीं हुआ।  अथक प्रयासों के बाद भी कुछ नहीं हुआ तब दोनों ने हार मान कर संतान प्राप्ति की उम्मीद ही छोड़ दी।

 दोनों निराश रहने लगे।  तब एक दिन  जब वह मंदिर से लौट रहे थे तब सुमित  और उनकी पत्नी को एक साधु से मार्ग में मिले जिन्हे दोनों  ने अपनी समस्या बताई जिस पर साधु ने समाधान  दिया की २१ मंगलवार का उपवास करो और बजरंगबली को सिन्दूर को चोला चढ़ा कर हनुमान जी की उपासना करो तुम्हे संतान प्राप्ति हो जाएगी।

 यह सुन कर सुमित  व उसकी पत्नी में एक नयी आशा का संचार हुआ एवं सुमित  ने साधु  द्वारा बताये उपाय अनुसार पूजा विधि शुरू कर दी।  धीरे धीरे समय गुज़रता गया और २१ वे मँगवालवार को ही सुमित  की पत्नी गर्ववती हो गयी दोनों ही बेहद खुश थे , प्रतिदिन हनुमान जी की उपासना उनका नियम बन गया।  9 माह बाद उन्हें एक बड़ी सुन्दर पुत्री की प्राप्ति हुई पूरे परिवार के बीच ख़ुशी की लहर दौड़ गयी।

सुमित  व उसकी पत्नी ने हनुमान जी को बहुत धन्यवाद  अर्पित कर भव्य राम कथा का भी आयोजन  करवाया।  सभी परिवारजन उस बच्ची के साथ दिन भर खेला करते थे सब कुछ  सुखमय व्यतीत  हो रहा था। तब एक दिन सुमित  की माँ अपनी पोत्री  को घर की बालकनी में खिलाने लेजा रही थी परन्तु वहाँ पड़े पानी पर उनकी नज़र नहीं पढ़ी और उनका पैर पानी पर पड़ा जिसके कारण बची गोद से छटक कर पहली  मंजिल से नीचे गिर गयी , बच्ची के गिरते ही केशव की माँ मुँह से आवाज निकली बजरंगबली रक्षा करो।

बच्ची  नीचे गिरते हुए बिजली के तारो से टकरा कर नीचे ज़मीन पर जा गिर गयी।  दौड़े दौड़े सभी बच्ची को देखने नीचे पहुंचे तो सभी ने देखा की बच्ची ज़मीन पर लेटी हुई ऐसे खेल रही थी जैसे वह कठोर ज़मीन पर नहीं किसी मखमल के बिस्तर पर गिरी हो बच्ची को किसी प्रकार की कोई चोट नहीं आयी।  यह घटना देख आस पास मौजूद सभी लोग दंग रह गए। परन्तु सभी का एक ही सवाल था बच्ची को कुछ नहीं हुआ ऐसा नहीं हुआ यह कैसे हो सकता है , इस पर सुमित  की माँ ने कहा की इस बच्ची के माता पिता व बच्ची तीनो पर बजरंग बलि की असीम कृपा है और बजरंगबली ने ही इस बच्ची की प्राण रक्षा की है और इसके ऊपर से सारे संकट दूर किये है।  इस घटना के बाद बच्ची के माता पिता और सभी का विश्वास बजरंगबली के प्रति अटूट हो गया।   

जब कलयुग में फूट पड़ा बजरंगबली का क्रोध

रामधारी सिंह दिनकर जी द्वारा लिखित रश्मिरथी की प्रचलित पंक्ति है ”जब नाश मनुष्य पर छाता है , पहले विवेक मर जाता है ” अर्थात जब विनाश मनुष्य को घेर लेता है तब व्यक्ति से पहले उसकी समझ ख़त्म हो जाती है। और इस पंक्ति का जिवंत उदहारण आपको आज की कहानी में बताने जा रहे है।
बहुत समय पहले की बात है छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में एक प्राचीन राम मंदिर है ,वहां के लोग बताते है की मंदिर की महानता और तेज ऐसा है की हनुमान जी स्वयं समय समय पर आकर प्रभु राम और माता सीता के दर्शन करने आते है। सभी लोगो की आस्था मंदिर के प्रति बड़ी ही प्रबल थी , उनका मानना था की कोई भक्त प्रभ से कुछ भी मांगे वह उसे मिल ही जाता है और कई लोगो तो ऐसे भी है जिनकी सालो से चलती आ रही बड़ी बड़ी बीमारियां प्रभु राम के दर्शन मात्र से समाप्त हो गयी।
हरिदास नाम के प्रकांड पंडित मंदिर में रह कर मर्यादा पुरषोतम राम व माँ सीता की सेवा पूजा किया करते है , दिन रात भक्ति में ऐसे लीन रहते की आस पास की कोई सुध न रहती , जीवन का एक मात्र धेय था प्रभु राम और उनकी भक्ति।
एक दिन मंदिर में भव्य फूल बंगला और छप्पन भोग का आयोजन किया गया मंदिर परिसर भक्तो से भरा हुआ था , सभी ने भगवान् के दर्शन किये और मंदिर से सभी प्रसाद ले कर चले गए , पर इस बीच एक दुष्ट व्यक्ति ने भीड़ का फायदा उठा कर माता सीता के हाथ से सोने के कंगन निकाल कर चोरी कर लिए। मंदिर जब पूरी तरह खाली हो गया तब यह बात पंडित हरिदास को पता चली , उन्होंने आस पास के लोगो को एकत्र किया सभी से पूछताछ के बाद समज आया की किसी ने कंगन चोरी किये है। तब हरिदास जी ने सभी को वापस भेज दिया और स्वयं ध्यान मुद्रा में बैठ गए। और संसार में प्रभु राम के सबसे बड़े भक्त हनुमान जी को स्मरण करते हुए सारी घटना की जानकारी देकर मदद की गुहार लगाई, और यह प्रतिज्ञा ली की जब तक माँ के कंगन वापस नहीं मिलते में ध्यान से नहीं हिलूंगा।
और उसी रात शहर के बहार एक अविश्वसनीय घटना घटी ,
जीत नाम का व्यक्ति मंदिर से माँ सीता के कंगन चुरा कर भाग रहा था , शहर से काफी दूर आ चूका था , तभी अचानक एक बड़ी सी परछाई उसके सामने आती है , और उस सुनसान मार्ग पर एक तेज और भारी स्वर आता ही जो कह रहा है की दुष्ट जो तूने किया है वह पाप है अधर्म है , तूने ये घोर पाप करने से पहले एक बार न सोचा की तुजे इसका कितना भयानक दंड मिलेगा धीरे धीरे स्वर ऊँचा होने लगा हवा की गति बढ़ गयी , सलल कांप उठा , बदल गर्जना करके बरसने लगे पर जीतू ने सब को अनदेखा कर अपना कदम जैसे ही आगे बढ़ाया सड़क के किनारे से एक विशाल वृक्ष उसके पैरो के आगे आकर गिरा उसने परछाई को गौर से देखा तो वह विशाल शरीर लम्बी पूँछ हाथ में गदा वह परछाई किसी और की नहीं स्वयं पवनपुत्र है जो क्रोधित हो ऊठे है , वह भयभीत हो उठा और वापस उल्टे पैर मंदिर की और दौड़ गया। मंदिर पहुँच हरिदास जी को कंगन लौटा दिए , हरिदास जी ने पुछा ऐसा क्या हुआ जो तुम इतने घबरा रहे हो और कंगन लौटने खुद आ गए , जीतू ने हरिदास जी कहा की हनुमान जी ने स्वयं आकर मुझे रौद्र रूप में चेतावनी दी है मुझसे अनजाने में गलती हो गयी है मुझे क्षमा कर दे। जीतू ने हरिदास जी और प्रभु राम और माँ सीता से माफ़ी मांगी और कभी ऐसा नहीं करने की कसम खायी। बाद में हरिदास जी ने भी हनुमान जी को धन्यवाद किया।
अगले दिन जब लोगो को पता चला की हनुमान जी ने स्वयं आकर जीतू को रौद्र रूप में चेतवनी दी यह देख सब हैरान रह गए सभी की आस्था मंदिर और पवनपुत्र के प्रति और बढ़ गयी।

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