जब भक्त के साथ गुजरात की ओर चल पड़े भगवान्

यूं तो हमने भगवान व उनके भक्तों से जुड़े कई चमत्कार देखे और सुने हैं। परंतु आज हम आपको ऐसे चमत्कार के बारे में बताने जा रहे है जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे l बहुत समय पहले एक महिला गुजरात से वृंदावन श्री बांके बिहारी जी के दर्शन करने आई हुई थी, वह महिला श्री बांके बिहारी जी के मंदिर में पहुंची पर हाथ जोड़कर उनके दर्शन करने लगी। दर्शन करते हुए उस महिला को बांके बिहारी जी
की प्रतिमा इतनी प्यारी लग गई कि उनसे वहीं खड़े खड़े उस महिला को लगाव सा हो गया और वह महिला बिहारी जी कहने लगी : लाला तू कितना सुन्दर है तेरी आँखे कितनी प्यारी है मै यहाँ से वापस चली जाऊंगी तो कहाँ मैं तुझे देख पाऊँगी लाला तू मेरे साथ ही चल तू मेरे साथ रहे जिससे मैं तेरे दर्शन रोज पाऊँ ।

ऐसा निवेदन उस महिला ने श्री बांके बिहारी जी से किया और बांके बिहारी जी इस निवेदन को ठुकरा ना पाये एवं बाल रूप में प्रकट होकर उस महिला के साथ चलने लगे यह देख सब लोग हैरान थे मंदिर में सारे भक्तजन दंग रह गये पुजारी जी चिन्ता के आ गये कि बांके बिहारी जी यहां से चले गए तो मंदिर का क्या होगा। वृंदावन का क्या होगा ?

पुजारी जी ने बांके बिहारी को रोकने का काफी प्रयास किया, परंतु बिहारी जी को भी मना ना पाए। तब पुजारी ने उन महिला से कहा कि माता बांके बिहारी से मना कर दो। अगर यहां से चले गए तो अनर्थ हो जाएगा। बिहारी जी यही रहे उसी में सब की भलाई है। माता उनसे बोल दीजिए यहीं रह जाएं। पुजारी जी ने बहुत देर तक महिला को मनाया। तब जाकर में महिला मान गई और बिहारी जी से वृंदावन में ही रुकने को कहा, तब से लेकर आज तक बिहारी जी को कोई एक टक से दर्शन नहीं कर सकता। माना जाता है कि बिहारी जी प्रार्थना और निवेदन है, उसे बहुत जल्दी आकर्षित हो जाते और भक्तों के साथ चलने लग देते हैं। तब से लेकर आज तक बिहारी जी पर
पर्दा चलता रहता है। पर्दा आज भी रुकता नहीं है।

महिला की ऐसी भक्ति को देख सभी की आँखे फटी रह गयी ,आज भी पूरे वृन्दावन में उस महिला की भक्ति की मिसाल दी जाती है।

जब हज़ार फुट ऊँची पहाड़ी से नीचे गिरी बस , और फिर जो हुआ

जाको राखे साइयाँ मार सके ना कोई। अर्थात जिसके साथ भगवान् है , उसका तो क्रूर कालचक्र भी कुछ बिगड़ नहीं सकता। ऐसी ही एक कहानी एक बारे में हम आज आपको बताने जा रहे है , जो हमें भेजी है , जम्मू में रहने वाले पंडित शिवरतन जी ने।

पंडित शिवरतन जी लांदेर , जम्मू के निवासी है जिनकी आयु इस समय 81 वर्ष है। शिवरतन जी एक लम्बे समय से माँ दुर्गा के उपासक है , वह प्रतिदिन नियमबद्ध रूप से माता की पूजा अर्चना किया करते है। शिवरतन जी अपने बच्चो व पौत्र पौत्री के साथ रहते है। एवं उनके परिवार में सभी माँ दुर्गा के प्रति सच्ची निष्ठा व आस्था रखते है ।

सब कुछ सुखमय रूप से व्यतीत हो रहा था , इसी वर्ष जुलाई माह में शिवरतन जी की इच्छा हुई की वह अपने पूरे परिवार के साथ , लांदेर से कुछ 300 किलोमीटर दूर मचैल माता के दर्शन करके आये। उन्होंने अपने घर में सभी के साथ योजना बनाई।
वह सभी कुल 20 से 22 लोग थे। सभी ने मिलकर एक छोटी बस का इंतज़ाम किया और 3 जुलाई को यात्रा के लिए निकल गए।

सभी लोग माता मचैल की भक्ति में लीन होकर भजन गाते गाते आगे बढ़ रहे थे , बड़ा ही भक्तिपूर्ण माहौल बना हुआ था। परन्तु आगे जो संकट आने वाला था उससे सभी अनजान थे। कुछ ऐसा होने वाला था जो किसी ने सोचा भी ना था। कुछ दस से बारह घंटे का सफर पूर्ण करने के बाद शिवरतन जी अपने पुअर परिवार सहित मचैल माता के मठ जा पहुंचे। सभी ने वहाँ अच्छे से दर्शन झांकी की , और माँ का आशीर्वाद लेकर वापस लांदेर के लिए निकल गए।

लांदेर लौटते हुए बीच मार्ग में शिवरतन जी की बस एक ऊँची चढ़ाई चढ़ रही थी , और उसी वक्त बस खराब होकर बंद हो गयी डाइवर की लाख कोशिशों के बाद भी बस चालू नहीं हो रही थी। बस ऊँची चढाई से पीछे की तरफ लुढ़कने लगी , ड्राइवर पीछे जाती बस को रोकने के लिए ब्रेक लगा रहा था परन्तु ब्रेक भी काम नहीं कर रहे थे , और पीछे खाई को देख बस में मौजूद शीरतन जी व उनके सभी परिवारजन सभी बड़े ही भयभीत हो गए।

बस को जब ड्राइवर की लाख कोशिशों के बाद भी रोंका ना जा सका और किसी को कोई और मार्ग दिखाई नहीं दिया , तब शिवरतन जी ने माता मचैल को याद करते हुए कहा की , हे माँ मुझे अपने प्राणो की कोई परवाह नहीं है परन्तु यहाँ उपस्थित मेरे बच्चो और पौत्र एवं पौत्री की रक्षा कीजिये वार्ना अनर्थ हो जायेगा।

उसके बाद जो हुआ उसे देख सभी के होश उड़ गए। तेज रफ़्तार से खाई की और लुढ़कती हुई बस अचानक से बीच मार्ग मे कुछ इस प्रकार से रुक गयी जैसे किसी ने उसे पकड़ लिया हो , ड्राइवर चिल्ला कर कहने लगा की मैंने तो ब्रेक लगाए नहीं फिर यह बस कैसे रुकी , किसी को समज नहीं आ रहा था की यह हुआ है और कैसे , परन्तु शिवरतन जी समज चुके थे की जो उन्होंने प्रार्थना माता मचैल से की थी वह उन्होंने सुन ली है और उन्ही ने सभी की प्राण रक्षा की है।

वहाँ मौजूद किसी भी व्यक्ति को अपनी आँखों पर यकीन ना था , परन्तु सत्य तो यही है की शिवरतन जी के माँ मचैल पर अटूट विश्वास एवं निस्स्वार्थ भाव से की गयी विनती को माँ ने सुना और अपने भक्त की प्राण रक्षा की।

यहाँ होती है योनि की पूजा , क्या है इस सिद्धपीठ मंदिर का रहस्य

कामाख्या मंदिर को सबसे पुराना शक्तिपीठ माना जाता है और यह देवी मां कामाख्या को समर्पित है. कहा जाता है सती का योनि भाग कामाख्या में गिरा था । असम राज्य में स्थित यह मंदिर गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर दूर नीलांचल पहाड़ी पर है।

देवी सती की पूजा योनि के रुप में की जाती

ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र के साथ मां सती को काट दिया थ , ऐसा कहा जाता है कि देवी सती का योनि भाग कामाख्या में गिरा था। हिन्दू धर्म और पुराणों के मुताबिक, जहां-जहां सती के अंग या धारण किए हूए वस्त्र और आभूषण गिरे थे वहां पर शक्तिपीठ अस्तित्व में आए. इस तीर्थस्थल पर देवी सती की पूजा योनि के रुप में की जाती है जबकि यहां पर कोई देवी की मूर्ति नहीं है। यहां पर सिर्फ एक योनि के आकार का शिलाखंड है। जिस पर लाल रंग के गेरू की धारा गिराई जाती है।

दिया जाता है अनोखा प्रसाद

यहां बड़ा ही अनोखा प्रसाद दिया जाता है। दरअसल यहां तीन दिन मासिक धर्म के चलते एक सफेद कपड़ा माता के दरबार में रख दिया जाता है और तीन दिन बाद जब दरबार खुलते है तो कपड़ा लाल रंग में भीगा होता है , जिसे प्रसाद के रूप में भक्तों को दिया जाता है । माता सती का मासिक धर्म वाला कपड़ा बहुत पवित्र माना जाता है , ये मंदिर 51 शक्ति पीठों में से एक है. मां के सभी शक्ति पीठों में से कामाख्या शक्तिपीठ को सर्वोत्तम माना गया है। इस कपड़े को अम्बुवाची कपड़ा कहा जाता है. इसे ही भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है।

तंत्र-मंत्र साधना के लिए जाना जाता है कामाख्या शक्तिपीठ

मां कामाख्या का पावन धाम तंत्र-मंत्र की साधना के लिए जाना जाता है. कहते हैं कि इस सिद्धपीठ पर हर किसी कामना पूरी होती है। इसीलिए इस मंदिर को कामाख्या कहा जाता है। यहां पर साधु और अघोरियों का तांता लगा रहता है। मंदिर में आपको जगह-जगह पर तंत्र-मंत्र से संबंधित चीजें मिल जाएंगी. अघोरी और तंत्र-मंत्र करने वाले लोग यहीं से इन चीजों को लेकर जाते हैं.

कामाख्या मंदिर का इतिहास
कामाख्या मंदिर भारत में सबसे पुराने मंदिरों में से एक है और स्वाभाविक रूप से, सदियों का इतिहास इसके साथ जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण आठवीं और नौवीं शताब्दी के बीच हुआ था। भारतीय इतिहास के मुताबिक, 16वीं सदी में इस मंदिर को एक बार नष्ट कर दिया गया था। फिर कुछ सालों बाद बिहार के राजा नारायण नरसिंह द्वारा 17वीं सदी में इस मंदिर का पुन: निर्माण कराया गया।

जन्माष्टमी पर श्री कृष्ण का हुआ चमत्कार देखने वाले रह गए हैरान

श्री कृष्ण के चमत्कार किसने देखे व सुने नहीं है , आज कलयुग में भी ना जाने कितने चमत्कार हो जाते है जिन्हे देख सभी दंग रह जाते है।
ऐसा ही चमत्कार हुआ झारखण्ड के धनबाद नामक शहर में रहने वाले शांतनु के साथ , जिसे देख उन्हें खुद भी विश्वास ना हुआ।

शांतनु डाक विभाग में करने वाला एक आम आदमी है , वह बचपन से ही श्री कृष्ण की बाल लीला व पराक्रम के किस्से सुनते हुए ही बड़ा हुआ है, शांतनु श्री कृष्ण की भक्ति में लगा रहता है। यहाँ तक की शांतनु तो श्री कृष्ण को अपने परिवार का ही सदस्य मानता है , उनकी देख रेख भी एक बालक की भांति करते हुए उन्हें भोजन का भोग लगाना उन्हें सुलाना यह सब कुछ वह बड़े ही आदर व आस्था भाव से किया करता है।

शांतनु बड़े ही शांत प्रवृति का व्यक्ति है जो सभी सहायता करने हेतु भी सदैव तत्पर रहता है।
कुछ वर्षो पुरानी बात है , शांतनु की इच्छा थी की वह इस वश आने वाली जन्माष्टमी अपने परिवार सहित श्री कृष्ण के धाम मथुरा में जाकर मनाये। शांतनु के माता पिता ने भी उसके इस सुझाव पर सहमति दिखाई।

सभी लोग जन्माष्टमी से एक दिन पहले मथुरा के लिए रवाना हो गए , सभी भक्ति भाव से परिपूर्ण थे। शांतनु गाडी चला रहा था व उसके माता पिता पीछे बैठे हुए थे , श्री कृष्ण के भजन गाते हुए आगे बढ़ रहे थे।

परन्तु वह यह नहीं जानते थे की कोई बड़ा संकट उनके निकट आने को तैयार बैठा हुआ है। वह सभी एक लम्बे सफर के बाद लखनऊ पहुंचे। तभी शांतनु के पिता ने कहा की हमें कुछ देर यहाँ रुक कर आराम कर लेना चाहिए और इसी बहाने कुछ जलपान भी हो जायेगा।
शांतनु ने अपने पिता की बात मान कर गाडी सड़क किनारे स्थित एक ढाबे पर लगायी , माता पिता गाडी से उतर गए एवं शांतनु गाडी को पार्क करने के लिए गाडी जैसे ही पीछे की।

तभी उसे नज़र आया की दूसरी और से एक बड़ी बस बेकाबू होकर उसकी और तेज रफ़्तार में बढ़ी चली आ रही है। यह देख वह घबरा गया उसने तुरंत गाडी को आगे लेने का प्रयास किया गाडी आगे तो हो गयी परन्तु गाडी का पीछे का हिस्सा बस से टकरा गया। और शांतनु की गाडी बहुत तेजी से पलट कर सड़क पर उलटी गिर गयी , इतना भयानक एक्सीडेंट देख वह मौजूद लोग डर गए , तुरंत ही गाडी के चारो और भीड़ जमा हो गयी , शांतनु के माता पिता भी गाडी के पास पहुँच गए।

शांतनु को गंभीर रूप से चोट आयी थी , वहाँ उपस्थित लोगो ने गाडी से शांतनु को गाडी से बाहर निकला , शांतनु को इस हाल में देख उसके माता पिता अपने आंसू रोक नहीं पाए। लोगो ने उसे उसे होश में लाने के लिए बहुत प्रयास किये किसी ने उसके अचेत शरीर को हिलाया , तो किसी ने पानी के छीटें उसके चेहरे पर मारे परन्तु किसी रूप की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई।

तभी वहाँ कुछ ऐसा हुआ जिसे देख वहाँ मौजूद सभी लोग दंग रह गए किसी को अपने आँखों देखे पर यकीन ना हुआ।
अपने पुत्र को अचेत अवस्था में देख शांतनु के माता पिता ने विलाप करते हुए श्री कृष्ण से प्रार्थना करते हुए , अपने पुत्र के प्राण रक्षा की गुहार लगायी। कुछ ही समय बाद वहाँ एक व्यक्ति पंहुचा जिसके चेहरे पर एक विशेष रुपी तेज़ था , सभी चिंताओं को भुला देने वाली मुस्कान थी।
उसने वहाँ आस पास से भीड़ को एक और किया और शांतनु के करीब आकर बैठ कर उसके कान में कुछ कहा और फिर शांतनु के सर पर अपना हाथ फिराया।

जिसके कुछ ही देर बाद शांतनु का अचेत शरीर मे चेतना आने लगी उसकी आँखे धीरे धीरे खुलने लगी , लोग या देख आश्चर्य में थे की यह चम्तकार कैसे हुआ किसी के हाथ फेरने मात्र से कैसे किसी अचेत शरीर में जान आ गयी।

कुछ ही देर बाद जा लोगो ने उस व्यक्ति को ढूंढ़ने का प्रयास किया तब तक वह वहाँ से लुप्त हो चूका था किसी को को कुछ समज नहीं आ रह था। शांतनु की आँखे खुलते ही माता पिता के चेहरे की मुस्कान लौट आयी थी।
माता पिता ने ही सबको बताया की उस व्यक्ति को ढूंढ़ने का प्रयास बंद कीजिये वह कोई आम मनुष्य नहीं था वह तो स्वयं श्री कृष्ण थे जिन्होंने हमारी प्रार्थना का स्वीकार करके हमारे पुत्र की प्राण रक्षा की है , इतना बड़ा चमत्कार देख व माता पिता की बात उपस्थित लोगो की आँख फटी की फटी रह गयी।

इस प्रकार श्री कृष्ण ने जन्माष्टमी के दिन ही अपने सच्चे भक्त की प्राण रक्षा की।

0
Back to Top

Search For Products

Product has been added to your cart