भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग कहाँ है? ( Bhimashankar Jyotirling kahan hai? )
Bhimashankar Jyotirlinga Maharashtra के भोरगिरि गांव खेड़ से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर और उत्तर-पश्चिम पुणे से 110 कि.मि की दूरी पर ( Pune to Bhimashankar distance 110 Km. ) पश्चिमी घाट के सह्याद्रि पर्वत पर अवस्थित है। इस ज्योतिर्लिंग को मोटेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से भी जाना जाता है। बता दें कि इसी स्थान से भीमा नामक नदी भी बहती है।
Shree Bhimashankar Jyotirling Mandir भगवान शिव के उन सुप्रसिद्ध द्वादश ज्योतिर्लिंगों में शामिल है जिनमें पूरे ब्रह्मांड की शक्ति का वास माना जाता है। शैव परंपरा से संबंध रखने वालों और भोले के भक्तों के लिए यह स्थान बहुत महत्वूर्ण है जिनके दर्शन किए बिना भक्तों को तृप्ति नहीं मिलती है।
Shree Bhimashankar Jyotirling Mandir भगवान शिव के उन सुप्रसिद्ध द्वादश ज्योतिर्लिंगों में शामिल है जिनमें पूरे ब्रह्मांड की शक्ति का वास माना जाता है। शैव परंपरा से संबंध रखने वालों और भोले के भक्तों के लिए यह स्थान बहुत महत्वूर्ण है जिनके दर्शन किए बिना भक्तों को तृप्ति नहीं मिलती है।
भीमाशंकर मंदिर का निर्माण किसने करवाया? ( Who Built Bhimashankar Temple? )
भीमाशंकर या मोटेश्वर के नाम से लोकप्रिय इस मंदिर का निर्माण मराठा साम्राज्य के छत्रपति शिवाजी महाराज ने करवाया था। फिर 18वीं शताब्दी में नाना फडणवीस ने इसके शिखर का निर्माण करवाया। इतिहास के पन्नों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि शिवाजी महाराज ने यहाँ भक्तों को दर्शन के लिए कई प्रकार की सुख-सुविधाएं भी मुहैया करवाईं थीं।
भीमाशंकर मंदिर स्थापत्य कला ( Architecture of Bhimashankar Temple )
Bhimashankar मंदिर की वास्तुकला नागर शैली पर आधारित है। इस भव्य मंदिर से प्राचीन विश्वकर्मा वास्तुशिल्पियों के कौशल का ज्ञान हमें प्राप्त होता है। यहाँ पर 18 वीं सदी में नाना फडणवीस द्वारा बनवाया गया एक घंटा आज तक भक्तों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की स्थापना कैसे हुई? ( What is the story of Bhimashankar temple? )
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की कहानी ( bhimashankar jyotirlinga story ) का उल्लेख हमें शिवपुराण में मिलता है। शिवपुराण में इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना से संबंधित कहानी के अनुसार कुंभकर्ण के पुत्र जिसका नाम भीम ( Bhima ) था अपने पिता की मृत्यु के रहस्य से अनजान था। उसे इस बारे में ज्ञात नहीं था कि उसके पिता की मृत्यु प्रभु श्री राम में हाथों हुई है। इसके पीछे की वजह यह है कि भीम कुंभकर्ण की मृत्यु होने पश्चात जन्मा था। बस में भीम की माता ने उसे कुंभकर्ण की मृत्यु के संबंध में सब जानकारी दे दी।
यह सब जानने में बाद उसे श्री राम पर बहुत क्रोध आया और वह उनको मारने के लिए आतुर हो उठा। अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध उसकी आंखों में अंगारे बनकर इस तरह दिखाई पड़ रहा था कि अब वह हर कीमत पर प्रभु श्री राम की हत्या करने के इच्छुक था। अपने इस राक्षसी उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए अब उसने तपस्या करना आरंभ किया। भीम ने वह तपस्या कई वर्षों तक की।
भीम ( Bheem ) की घोर तपस्या से ब्रह्मा जी इतने अधिक प्रसन्न हुए कि उसे विजयी होने का वरदान तक दे डाला। इस तरह जैसे ही भीम ने विजयी होने के वरदान हासिल किया वह और भी अधिक निरंकुश और भयावह बन गया। अब केवल मनुष्य ही नहीं बल्कि देवलोक के सभी देवता गण उससे भयभीत रहने लगे। भीम जिससे भी युद्ध करता था विजय हासिल जरूर करता था। अपने इसी आतंक से राक्षसी भीम ने हर जगह पूजा पाठ बंद करा दिए।
इससे सभी देवता गण और अधिक चिंतित हो उठे। अपनी परेशानी का हल खोजने के लिए अब उन्हें केवल भगवान शिव ( Bhagwan Shiv ) की शरण दिखाई पड़ रही थी। सभी देवता गण चिंतित हालत में शिव जी के पहुंचे और भीम के द्वारा पृथ्वी और देवलोक पर मचाए जा रहे आतंक का सारा हाल कह सुनाया।
भगवान शिव देवता गण की बात सुनकर तुरंत युद्ध के लिए तैयार हो गए। अब राक्षसी भीम और भगवान शिव का युद्ध आरंभ हुआ। भीम भले ही विजयी प्राप्ति का वरदान हासिल किए बैठा था परंतु वह किसी दैवीय शक्ति के आगे अभी भी कमजोर ही था। इस प्रकार भगवान शिव ने राक्षस भीम के साथ भीषण युद्ध कर उसे पराजित कर राख कर दिया।
जब Lord Shiva ने भीम पर विजय प्राप्त की तो प्रसन्नता से झूम उठे सभी देवताओं ने उनसे वहीं पर एक शिवलिंग के रूप में स्थापित होने का आग्रह किया। शिव जी ने देवताओं के विनम्रपूर्वक किए गए आग्रह को स्वीकार किया और वे वहीं पर अपने निराकार रूपी ज्योतिर्लिंग में स्थापित हो गए। इसी शिवलिंग को आज भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है।
इस ज्योतिर्लिंग से जुड़ी दूसरी कहानी कुछ इस प्रकार है कि जब कुम्भकर्ण का पुत्र भीम धरती पर अपना भय बनाये रखने के लिए पूजा-पाठ बंद करवा रहा था तभी एक दिन वहां पर भगवान शिव की तपस्या कर रहे कामरूपेश्वर नामक राजा को भीम ने देख लिया और उसे बंदी बनाकर कैदखाने में डाल दिया। राजा ने कैदखाने में भी भगवान शिव की तपस्या जारी रखी और वहीँ पर एक शिवलिंग बना लिया।
जब भीम को यह बात मालूम हुई कि राजा ने अभी भी पूजा करनी बंद नहीं की तो उसने वहां पर स्थापित शिवलिंग को तोड़ने का प्रयास किया। हजारों-लाखों कोशिशों के बावजूद भीम उस शिवलिंग को तोड़ पाने में असफल रहा। अंततः वहां पर भगवान् शिव प्रकट हो गए और दोनों के बीच भीषण युद्ध में भगवान शिव की ही जीत हुई। भीम का वध करने के बाद सभी देवताओं ने शिव जी को उसी स्थान पर शिवलिंग में वास करने के लिए आग्रह किया। तभी से शिव जी अपने निराकार रूप में इस स्थान पर विराजमान है जिसे Bhimashankar Jyotirlinga कहा जाता है।
यह सब जानने में बाद उसे श्री राम पर बहुत क्रोध आया और वह उनको मारने के लिए आतुर हो उठा। अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध उसकी आंखों में अंगारे बनकर इस तरह दिखाई पड़ रहा था कि अब वह हर कीमत पर प्रभु श्री राम की हत्या करने के इच्छुक था। अपने इस राक्षसी उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए अब उसने तपस्या करना आरंभ किया। भीम ने वह तपस्या कई वर्षों तक की।
भीम ( Bheem ) की घोर तपस्या से ब्रह्मा जी इतने अधिक प्रसन्न हुए कि उसे विजयी होने का वरदान तक दे डाला। इस तरह जैसे ही भीम ने विजयी होने के वरदान हासिल किया वह और भी अधिक निरंकुश और भयावह बन गया। अब केवल मनुष्य ही नहीं बल्कि देवलोक के सभी देवता गण उससे भयभीत रहने लगे। भीम जिससे भी युद्ध करता था विजय हासिल जरूर करता था। अपने इसी आतंक से राक्षसी भीम ने हर जगह पूजा पाठ बंद करा दिए।
इससे सभी देवता गण और अधिक चिंतित हो उठे। अपनी परेशानी का हल खोजने के लिए अब उन्हें केवल भगवान शिव ( Bhagwan Shiv ) की शरण दिखाई पड़ रही थी। सभी देवता गण चिंतित हालत में शिव जी के पहुंचे और भीम के द्वारा पृथ्वी और देवलोक पर मचाए जा रहे आतंक का सारा हाल कह सुनाया।
भगवान शिव देवता गण की बात सुनकर तुरंत युद्ध के लिए तैयार हो गए। अब राक्षसी भीम और भगवान शिव का युद्ध आरंभ हुआ। भीम भले ही विजयी प्राप्ति का वरदान हासिल किए बैठा था परंतु वह किसी दैवीय शक्ति के आगे अभी भी कमजोर ही था। इस प्रकार भगवान शिव ने राक्षस भीम के साथ भीषण युद्ध कर उसे पराजित कर राख कर दिया।
जब Lord Shiva ने भीम पर विजय प्राप्त की तो प्रसन्नता से झूम उठे सभी देवताओं ने उनसे वहीं पर एक शिवलिंग के रूप में स्थापित होने का आग्रह किया। शिव जी ने देवताओं के विनम्रपूर्वक किए गए आग्रह को स्वीकार किया और वे वहीं पर अपने निराकार रूपी ज्योतिर्लिंग में स्थापित हो गए। इसी शिवलिंग को आज भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है।
इस ज्योतिर्लिंग से जुड़ी दूसरी कहानी कुछ इस प्रकार है कि जब कुम्भकर्ण का पुत्र भीम धरती पर अपना भय बनाये रखने के लिए पूजा-पाठ बंद करवा रहा था तभी एक दिन वहां पर भगवान शिव की तपस्या कर रहे कामरूपेश्वर नामक राजा को भीम ने देख लिया और उसे बंदी बनाकर कैदखाने में डाल दिया। राजा ने कैदखाने में भी भगवान शिव की तपस्या जारी रखी और वहीँ पर एक शिवलिंग बना लिया।
जब भीम को यह बात मालूम हुई कि राजा ने अभी भी पूजा करनी बंद नहीं की तो उसने वहां पर स्थापित शिवलिंग को तोड़ने का प्रयास किया। हजारों-लाखों कोशिशों के बावजूद भीम उस शिवलिंग को तोड़ पाने में असफल रहा। अंततः वहां पर भगवान् शिव प्रकट हो गए और दोनों के बीच भीषण युद्ध में भगवान शिव की ही जीत हुई। भीम का वध करने के बाद सभी देवताओं ने शिव जी को उसी स्थान पर शिवलिंग में वास करने के लिए आग्रह किया। तभी से शिव जी अपने निराकार रूप में इस स्थान पर विराजमान है जिसे Bhimashankar Jyotirlinga कहा जाता है।
भीमाशंकर प्रसिद्ध क्यों है? ( Why is Bhimashankar famous? )
भीमाशंकर मंदिर ( Bhimashankar Mandir ) अपनी वास्तुकला और पौराणिक महत्व के लिए अत्यधिक प्रसिद्ध माना जाता है। यहाँ के आस-पास कई कुंड मौजूद है जिन्हें मोक्ष कुंड, कुशारण्य कुंड, सर्वतीर्थ कुंड, ज्ञान कुंड के नाम से जाना जाता है। इनमें से मोक्ष कुंड का संबंध महर्षि कौशिक से है।
वहीँ कुशारण्य कुंड की बात करें तो इसका उद्गम भीमा नदी से हुआ है। इन कुंडों की विशेषता यह है कि इनमें स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है भीमाशंकर नदी की स्थापना से पहले ही यहाँ पर माता पार्वती का एक सुप्रसिद्ध था जो कमलजा मंदिर के नाम से लोकप्रिय है।
वहीँ कुशारण्य कुंड की बात करें तो इसका उद्गम भीमा नदी से हुआ है। इन कुंडों की विशेषता यह है कि इनमें स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है भीमाशंकर नदी की स्थापना से पहले ही यहाँ पर माता पार्वती का एक सुप्रसिद्ध था जो कमलजा मंदिर के नाम से लोकप्रिय है।
महाराष्ट्र में कितने शिवलिंग है? ( Maharashtra me kitne Shivling hai? )
भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में शामिल तीन ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र में स्थित हैं जिनमें भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग पुणे के निकट, घृणेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के औरंगाबाद और त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र प्रान्त के नासिक जिले में अवस्थित है।