षटतिला एकादशी का क्या महत्व है? ( Shattila Ekadashi ka kya mahatva hai? )
Shattila Ekadashi का वैष्णव परंपरा में अत्यधिक महत्व है क्योंकि यह दान करने के लिए सबसे विशेष व्रत माना जाता है। इस दिन जो भी जातक व्रत का पालन करते हैं और श्री हरि का ध्यान करते हैं उन्हें अवश्य ही बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। षटतिला एकादशी ( Shatila Ekadashi ) दान के लिए काफी ख़ास मानी जाती है क्योंकि इस दिन कुल 6 प्रकार के कर्म कर व्यक्ति के लिए मोक्ष की प्राप्ति का द्वार खुलता है।
षटतिला एकादशी का व्रत कैसे किया जाता है? ( Shattila Ekadashi ka vrat kaise kiya jata hai? )
षटतिला एकादशी व्रत विधि ( Shattila Ekadashi Vrat Vidhi ) :
1. एकादशी व्रत के नियमों का पालन दशमी रात्रि से आरम्भ करना चाहिए।
2. एकादशी के दिन प्रातःकाल तिल के उबटन से स्नान करें।
3. इसके बाद भगवान विष्णु के सामने व्रत का संकल्प लें।
4. इसके उपरांत पांच मुट्ठी तिल लेकर भगवान विष्णु के मंत्र का 108 बार जप करें।
”ओम नमो भगवते वासुदेवाय”
5. घी का दीपक और धूप जलाएं।
6. भगवान को फल, पुष्प और नैवेद्य चढ़ाएं।
7. द्वादशी के दिन किसी ब्राह्मण को तिल से बना भोजन खिलाएं।
8. फिर दक्षिणा में तिल शामिल कर ही अपना व्रत खोलें।
( एकादशी के दिन Original Tulsi Mala से भगवान विष्णु का जाप करना चाहिए क्योंकि तुलसी की माला उन्हें सबसे प्रिय है। भगवान विष्णु के हर अनुष्ठान में तुलसी का होना अनिवार्य बताया गया है तभी वह पूजा सफल मानी जाती है। )
1. एकादशी व्रत के नियमों का पालन दशमी रात्रि से आरम्भ करना चाहिए।
2. एकादशी के दिन प्रातःकाल तिल के उबटन से स्नान करें।
3. इसके बाद भगवान विष्णु के सामने व्रत का संकल्प लें।
4. इसके उपरांत पांच मुट्ठी तिल लेकर भगवान विष्णु के मंत्र का 108 बार जप करें।
”ओम नमो भगवते वासुदेवाय”
5. घी का दीपक और धूप जलाएं।
6. भगवान को फल, पुष्प और नैवेद्य चढ़ाएं।
7. द्वादशी के दिन किसी ब्राह्मण को तिल से बना भोजन खिलाएं।
8. फिर दक्षिणा में तिल शामिल कर ही अपना व्रत खोलें।
( एकादशी के दिन Original Tulsi Mala से भगवान विष्णु का जाप करना चाहिए क्योंकि तुलसी की माला उन्हें सबसे प्रिय है। भगवान विष्णु के हर अनुष्ठान में तुलसी का होना अनिवार्य बताया गया है तभी वह पूजा सफल मानी जाती है। )
षटतिला एकादशी व्रत कथा ( Shattila Ekadashi Vrat Katha )
प्राचीन समय में एक नगर में ब्राह्मणी निवास किया करती थी जो भगवान विष्णु की बहुत बड़ी भक्त थी। उसकी भक्ति इतनी अधिक थी कि वह ब्राह्मणी भगवान विष्णु के किसी भी व्रत को नहीं छोड़ती, पूरी श्रद्धा से व्रत का पालन करती। एक बार उस ब्राह्मणी ने एक माह तक उपवास रखने का निश्चय किया और इसे पूर्ण भी किया। ब्राह्मणी ने अपना दृढ निश्चय तो पूरा कर लिया परन्तु उपवास से वह बहुत दुर्बल हो गई। ब्राह्मणी का तन तो दुर्बल हो गया परन्तु मन पवित्र हो गया।
ब्राह्मणी ने व्रत तो बड़ी श्रद्धा से रखा पर उसकी भक्ति में एक कमी थी कि उसने इस दौरान किसी को दान नहीं दिया था। दान न देने के चलते उसे बैकुंठ धाम में स्थान नहीं मिल सकता था इसके लिए स्वयं भगवान विष्णु जी दान लेने के लिए ब्राह्मणी के घर चले आये।
जब ब्राह्मणी से उन्होंने भिक्षा मांगी तो ब्राह्मणी ने उन्हें एक मिट्टी का पिण्डा दे दिया। विष्णु जी उसी पिण्डा को अपने साथ लेकर चले आये। कुछ समय बाद ब्राह्मणी का निधन हुआ तो वह बैकुंठ धाम पहुंची। उसे वहां रहने के लिए कुटिया मिली जिसमें केवल एक आम का पेड़ था बाकी कुछ नहीं।
इसपर उसने भगवन से पूछा कि मेरे इतने व्रत करने का आखिर क्या लाभ हुआ? विष्णु जी बोले कि तुमने अपने मनुष्य जीवन में कभी किसी वस्तु या धन तक का दान-पुण्य नहीं किया। ब्राह्मणी को अपने किये पर बहुत पश्चाताप हुआ। उसने भगवन से इसका उपाय पूछा।
तब भगवान विष्णु ने कहा कि जब देव कन्यायें तुम्हारी कुटिया में आये तो तुम उनसे षटतिला व्रत की विधि पूछे बगैर कुटिया का द्वार न खोलना। ब्राह्मणी ने ठीक वैसा ही किया जैसा भगवान विष्णु ने उसे करने के लिए कहा था। जब देव कन्यायें आईं तो ब्राह्मणी ने षटतिला व्रत की विधि पूछ ली।
षटतिला व्रत विधि जानने के बाद उसने व्रत का पालन किया और इस तरह उसकी कुटिया सभी आवश्यक वस्तुओं और धन-धन्य से भर गई। कहते हैं कि Shattila Ekadashi के दिन तिल का दान करने से मनुष्य को सौभाग्य की प्राप्ति होती है और उसे दरिद्रता का सामना नहीं करना पड़ता।
ब्राह्मणी ने व्रत तो बड़ी श्रद्धा से रखा पर उसकी भक्ति में एक कमी थी कि उसने इस दौरान किसी को दान नहीं दिया था। दान न देने के चलते उसे बैकुंठ धाम में स्थान नहीं मिल सकता था इसके लिए स्वयं भगवान विष्णु जी दान लेने के लिए ब्राह्मणी के घर चले आये।
जब ब्राह्मणी से उन्होंने भिक्षा मांगी तो ब्राह्मणी ने उन्हें एक मिट्टी का पिण्डा दे दिया। विष्णु जी उसी पिण्डा को अपने साथ लेकर चले आये। कुछ समय बाद ब्राह्मणी का निधन हुआ तो वह बैकुंठ धाम पहुंची। उसे वहां रहने के लिए कुटिया मिली जिसमें केवल एक आम का पेड़ था बाकी कुछ नहीं।
इसपर उसने भगवन से पूछा कि मेरे इतने व्रत करने का आखिर क्या लाभ हुआ? विष्णु जी बोले कि तुमने अपने मनुष्य जीवन में कभी किसी वस्तु या धन तक का दान-पुण्य नहीं किया। ब्राह्मणी को अपने किये पर बहुत पश्चाताप हुआ। उसने भगवन से इसका उपाय पूछा।
तब भगवान विष्णु ने कहा कि जब देव कन्यायें तुम्हारी कुटिया में आये तो तुम उनसे षटतिला व्रत की विधि पूछे बगैर कुटिया का द्वार न खोलना। ब्राह्मणी ने ठीक वैसा ही किया जैसा भगवान विष्णु ने उसे करने के लिए कहा था। जब देव कन्यायें आईं तो ब्राह्मणी ने षटतिला व्रत की विधि पूछ ली।
षटतिला व्रत विधि जानने के बाद उसने व्रत का पालन किया और इस तरह उसकी कुटिया सभी आवश्यक वस्तुओं और धन-धन्य से भर गई। कहते हैं कि Shattila Ekadashi के दिन तिल का दान करने से मनुष्य को सौभाग्य की प्राप्ति होती है और उसे दरिद्रता का सामना नहीं करना पड़ता।
2022 षटतिला एकादशी कब है? ( 2022 Shattila Ekadashi Kab hai? )
माघ मास कृष्ण पक्ष28 जनवरी 2022
एकादशी तिथि आरंभ – 28 जनवरी को 2:16 पर
एकादशी तिथि समाप्ति – 28 जनवरी को 11:35 पर
अभिजित मुहूर्त – दोपहर 12:13 से दोपहर 12:56 तक
विजय मुहूर्त – दोपहर 2:22 से दोपहर 3:05 तक
एकादशी तिथि आरंभ – 28 जनवरी को 2:16 पर
एकादशी तिथि समाप्ति – 28 जनवरी को 11:35 पर
अभिजित मुहूर्त – दोपहर 12:13 से दोपहर 12:56 तक
विजय मुहूर्त – दोपहर 2:22 से दोपहर 3:05 तक
एकादशी का व्रत कब से रखना चाहिए? ( Ekadashi ka Vrat kab se rakhna chahiye? )
यदि आप एकादशी व्रत की शुरुआत करना चाहते हैं तो इसकी शुरुआत उत्पन्ना एकादशी से शुरू करें। बताते चलें कि इसके अलावा आप एकादशी शुक्ल पक्ष से भी शुरू कर सकते हैं। शुक्ल पक्ष से भी व्रत शुरू करना शुभ माना जाता है।
षटतिला एकादशी को क्या दान करना चाहिए? ( Shattila Ekadashi ko kya daan karna chahiye? )
षटतिला ( Sat Tila Ekadasi ) जैसा कि इसके नाम से ही हमें ज्ञात होता है कि इस एकादशी में तिल का बहुत महत्व है। इस दिन तिल के 6 तरह के दान करने के चलते ही इसका नाम षटतिला एकादशी पड़ा है। इस पवित्र तिल का उबटन, तिल स्नान, तिल का तर्पण, तिल का हवन, तिल का दान और तिल का भोजन आदि 6 कर्म करने से मनुष्य के घर में मौजूद दरिद्रता और अशांति दूर होती है।