छिन्नमस्तिका मंदिर कहां है? ( Where is Chinnamasta Temple Located? )
Chinnamasta Mandir झारखंड राज्य की राजधानी रांची से करीब 80 किलोमीटर और रामगढ़ से 28 किमी दूर रजरप्पा में अवस्थित है। रजरप्पा में भैरवी-भेड़ा और दामोदर नामक नदी के संगम पर मौजूद देवी का यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ माना जाता है। इस बात से ही इस मंदिर के महत्व के बारे में ज्ञात होता है। यह मंदिर इसलिए भी और लोकप्रिय है क्योंकि यहां बिना सिर वाली देवी को पूजा जाता है या दूसरे शब्दों में कहें तो इस शक्तिपीठ में देवी के कटे हुए सिर की पूजा की जाती है। साल में आने वाले चैत्र और शारदीय नवरात्रों के दौरान यहां भक्तों की भीड़ दोगुनी हो जाती है।
छिन्नमस्ता मंदिर का इतिहास : छिन्नमस्ता मंदिर कितना प्राचीन है? ( Chinnamasta Temple History : How old is Chinnamasta Temple? )
छिन्नमस्ता मंदिर के संबंध में इतिहासकारों का मानना है कि यह 6000 वर्ष प्राचीन मंदिर है जबकि कुछ इतिहासकार इसे महाभारत काल का मंदिर बताते हैं। अभी तक इसके बारे में कोई स्पष्ट जानकारी हासिल नहीं हो पाई है। आपको बता दें कि Rajrappa Jharkhand में छिन्नमस्तिका मंदिर के अलावा महाकाली मंदिर, सूर्यदेव को समर्पित मंदिर, दस महाविद्या से जुड़ा मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंगबली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर समेत कुल सात मंदिर अवस्थित हैं।
छिन्नमस्ता देवी की कहानी ( Chinnamasta Devi Story )
Chhinnamasta के कटे हुए सिर को देखकर सभी के मन में यह सवाल जरूर उठता होगा कि आखिर देवी ने अपने ही कटे हुए सिर को हाथ में क्यों लिया हुआ है। दरअसल देवी के कटे सिर से जुड़ी एक कहानी प्रचलित है जिसके अनुसार एक बार जब मां अपनी सहेलियों के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान के लिए गईं तो कुछ समय वहां रुकने के कारण उनकी दो सहेलियां भूख से व्याकुल हो उठी। दो सहेलियों की भूख इतनी अधिक थी कि सभी का रंग तक काला पड़ गया।
दोनों सहेलियां Maa Chinmastika से भोजन की मांग करने लगी। इसपर माता ने उन्हें धैर्य रखने के लिए कहा परंतु सहेलियां भूख से तड़प रही थी। उनमें धैर्य अब बिल्कुल भी नहीं रह गया था। माता ने अपनी सहेलियों का यह हाल देख खड्ग से अपना ही सिर काट दिया। जब मां ने अपना सिर काटा तो उनका कटा हुआ उनके बाएं हाथ में आ गिरा।
उसमें से फिर रक्त की तीन धाराएं बहने लगी। दो धाराओं को तो माता ने सहेलियों की ओर कर दिया जबकि एक बची हुई धारा से खुद रक्तपान करने लगी। इसी के बाद से उन्हें रजरप्पा मंदिर माता Chinnamasta के नाम से पूजा जाने लगा जिसमें उनकी मूर्ति एक कटे हुए सिर को बाएं से पकड़ हुए है।
दोनों सहेलियां Maa Chinmastika से भोजन की मांग करने लगी। इसपर माता ने उन्हें धैर्य रखने के लिए कहा परंतु सहेलियां भूख से तड़प रही थी। उनमें धैर्य अब बिल्कुल भी नहीं रह गया था। माता ने अपनी सहेलियों का यह हाल देख खड्ग से अपना ही सिर काट दिया। जब मां ने अपना सिर काटा तो उनका कटा हुआ उनके बाएं हाथ में आ गिरा।
उसमें से फिर रक्त की तीन धाराएं बहने लगी। दो धाराओं को तो माता ने सहेलियों की ओर कर दिया जबकि एक बची हुई धारा से खुद रक्तपान करने लगी। इसी के बाद से उन्हें रजरप्पा मंदिर माता Chinnamasta के नाम से पूजा जाने लगा जिसमें उनकी मूर्ति एक कटे हुए सिर को बाएं से पकड़ हुए है।
अन्य छिन्नमस्ता देवी की कहानी ( Another Chinnamasta Story )
ऐसा कहा जाता है कि बहुत पुराने समय में छोटा नागपुर में रज नामक राजा का शासन था जिनकी पत्नी का नाम रुपमा था। इन्हीं दोनों के नामों का मिश्रण कर क्षेत्र का नाम रजरूपमा किया गया जिसे आज रजरप्पा ( Rajrappa ) के नाम से जाना जाता है। एक बार राजा पूर्णिमा की रात्रि में दामोदर-भैरवी नदी के संगम पर पहुंचे। रात्रि में वहां विश्राम करते समय उन्होंने अपने स्वप्न में एक लाल वस्त्र धारण किये हुए तेजस्वी कन्या को देखा।
कन्या Chinnamasta Kali ने राजा से स्वपन में कहा कि हे! राजन तुम्हारी कोई संतान न होने के कारण तुम्हारा जीवन अधूरा और सूना सा प्रतीत होता है। मेरी आज्ञा मान लो तुम्हारे जीवन का सूनापन हमेशा के लिए दूर हो जाएगा। जब राजा ने भड़भड़ाते हुए अपनी आँखे खोली तो वह उस कन्या को ढूंढने लगे। फिर उन्होंने देखा कि वही कन्या जल के भीतर से प्रकट हो रही है।
कन्या को जल से निलते देख राजा भयभीत हो उठे। प्रकट होकर वह कन्या बोली कि हे! राजन मैं छिन्मस्तिका देवी हूँ जो यहाँ गुप्त रूप से निवास करती है। मैं तुम्हें यह वरदान देती हूँ कि अगले नौ महीनों में तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी। कन्या आगे बोली कि इसी नदी के संगम स्थल पर तुम्हें एक मंदिर दिखाई देगा जहाँ मैं विराजमान हूँ। तुम मेरी पूजा कर वहां बलि चढ़ाओ। तभी से यह स्थल रजरप्पा के रूप में जाना जाने लगा जहाँ आज Chinnamasta Temple स्थित है।
कन्या Chinnamasta Kali ने राजा से स्वपन में कहा कि हे! राजन तुम्हारी कोई संतान न होने के कारण तुम्हारा जीवन अधूरा और सूना सा प्रतीत होता है। मेरी आज्ञा मान लो तुम्हारे जीवन का सूनापन हमेशा के लिए दूर हो जाएगा। जब राजा ने भड़भड़ाते हुए अपनी आँखे खोली तो वह उस कन्या को ढूंढने लगे। फिर उन्होंने देखा कि वही कन्या जल के भीतर से प्रकट हो रही है।
कन्या को जल से निलते देख राजा भयभीत हो उठे। प्रकट होकर वह कन्या बोली कि हे! राजन मैं छिन्मस्तिका देवी हूँ जो यहाँ गुप्त रूप से निवास करती है। मैं तुम्हें यह वरदान देती हूँ कि अगले नौ महीनों में तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी। कन्या आगे बोली कि इसी नदी के संगम स्थल पर तुम्हें एक मंदिर दिखाई देगा जहाँ मैं विराजमान हूँ। तुम मेरी पूजा कर वहां बलि चढ़ाओ। तभी से यह स्थल रजरप्पा के रूप में जाना जाने लगा जहाँ आज Chinnamasta Temple स्थित है।
छिन्नमस्ता देवी कौन सी है? ( Who is Goddess Chinnamasta? )
Ramgarh Temple की देवी छिन्नमस्ता को छिन्नमस्तिका, चिंतपुरणी और प्रचंड चंडिका के नाम से भी जाना जाता है। इनका संबंध आदि शक्ति की दस महाविद्याओं से हैं और वे इन 10 महाविद्याओं में से छठी देवी मानी जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि Maa Chinnamasta महाविद्या सकल चिंताओं का अंत करती है और हर मनोकामना को पूर्ण करती हैं।
छिन्नमस्ता की पूजा क्यों की जाती है? ( Why Chinnamasta is worshipped? )
Rajrappa Mandir माँ छिन्नमस्ता की पूजा विशेष रूप से शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए की पूजा की जाती है। मां के उग्र रूप के कारण तंत्र-मंत्र की क्रियाओं में भी इनकी पूजा किये जाने की परंपरा है। इन्हें बलि चढ़ाकर और तंत्र साधना के माध्यम से भक्त अपनी मनोकमना को पूर्ण करते हैं।
छिन्नमस्ता बीज मंत्र ( Chinnamasta Beej Mantra )
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐ वज्र वैरोचनीये हुं हुं फट् स्वाहा ।।
माँ छिन्नमस्ता रजरप्पा मंदिर क्यों प्रसिद्ध है? ( Why is Chinnamasta Rajrappa Temple famous? )
Rajrappa Mandir Jharkhand छिन्नमस्ता इसलिए अत्यधिक प्रसिद्ध है क्योंकि यह देवी के 51 शक्तिपीठों में शामिल है साथ ही दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ माना जाता है। मंदिर के भीतर माता छिन्नमस्ता की जो प्रतिमा कमलपुष्प पर विराजमान है उनके तीन नेत्र हैं। उनके दाएं हाथ में तलवार व बाएं हाथ में देवी का अपना ही कटा हुआ सिर है जिसमें से तीन धाराओं में रक्त बह रहा है। साथ ही देवी के पांव के नीचे विपरीत मुद्रा में कामदेव और रति शयन अवस्था में विराजित हैं। मां छिन्नमस्तिका के केश खुले और बिखरे हैं और उन्होंने सर्पमाला तथा मुंडमाला धारण की हुई है। माता आभूषणों से सुसज्जित नग्नावस्था में अपने दिव्य रूप में यहाँ विराजित हैं।