दंडवत प्रणाम | Dandvat pranam In Hindi
हमारे सनातन धर्म में dandvat pranam का अपना विशेष महत्व है इसे भक्ति का ही एक भाग माना गया है। अपने इष्टदेव और घर में बड़े बुजुर्गों को दंडवत प्रणाम कर हम अपनी संस्कृति को और भी सुंदर रूप दे देते हैं। आज के इस लेख में हम जानेंगे दंडवत प्रणाम का अर्थ, उसका महत्व, प्रणाम लिए जाने के फायदे और कई अन्य सवालों के जवाब।
दंडवत प्रणाम का अर्थ क्या है? | Sashtang Dandvat Pranam Meaning | Sashtang Pranam | dandavat pranam
दंडवत प्रणाम जिसे हम Ashtanga Namaskara, Sashtanga Namaskar या अष्टाङ्ग दण्डवत प्रणाम भी कहते हैं, हिन्दू धर्म में सबसे सर्वश्रेष्ठ नमस्कार माना जाता है। यह सूर्य देव को प्रणाम करने का एक चरण भी है जिसमें व्यक्ति अपने शरीर के अष्ट अंगों के द्वारा धरती को स्पर्श करता है।
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अष्ट अंगों में दोनों पाँव, दोनों घुटने, छाती, ठुण्डी और दोनों हथेलियाँ शामिल हैं। इस प्रकार के प्रणाम को हम ‘दण्डवत प्रणाम’ इसलिए भी कहते हैं क्योंकि इसमें हमारे शरीर की मुद्रा ‘दण्डवत’ यानी डंडे के समान हो जाती है।
दंडवत प्रणाम का महत्व | Significance of Sashtang Namaskara | साष्टांग दंडवत प्रणाम का अर्थ | दंडवत प्रणाम के लाभ | how to do dandvat pranam
ईश्वर और अपने से बड़ों को दंडवत प्रणाम या Ashtanga Namaskar करने की यह प्रथा कई सदियों से चली आ रही है। सनातन धर्म में पूजा के विभिन्न प्रकारों का वर्णन हमें मिलता है इनमें पंचोपचार, दशोपचार, षोडशोपचार पूजन शामिल है। इन सभी प्रकारों में सर्वश्रेष्ठ प्रकार षोडषोपचार पूजा विधि को माना गया है। आपको बता दें कि षोडषोपचार पूजा में सोलह उपचारों से भगवान की पूजा करने की बात कही गई है और इन सोलह उपचारों में अंतिम उपचार षाष्टांग दंडवत प्रणाम ( Sashtang Namaskara ) बताया गया है।
दंडवत प्रणाम या Namaskara के संबंध में ऐसी मान्यताएं हैं कि इस तरह प्रणाम करने से व्यक्ति की सारी गलतियों की क्षमा उसे मिल जाती है। एक तरह से देखें तो प्रणाम की यह क्रिया हमारे भीतर बसे अहंकार की समाप्ति करती है। ईश्वर के निकट जाने के लिए भी सर्वप्रथम अहंकार को त्यागना पड़ता है। शस्त्रों में तो यहां तक उल्लेख मिले है कि दंडवत प्रणाम करने से एक यज्ञ के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। अभिमान कम होता है और पापों से मुक्ति भी मिलती है। फिर एक समय ऐसा आता है कि मनुष्य के भीतर आध्यात्मिक क्रियाओं में लगे रहने की भावना जागृत होने लगती है। इन सभी बातों से हम દંડવત પ્રણામ के महत्व को जान सकते हैं।
दंडवत प्रणाम कैसे करते हैं? | Dandvat Pranam kaise karte hai? | Sashtang Pranam kaise karte hain
अपने शरीर को दंडवत मुद्रा में लाते हुए सिर, हाथ, पैर, जाँघे, मन, ह्रदय, नेत्र और वचन को मिलकर लेट कर प्रणाम करें। साष्टांग दंडवत प्रणाम में ठुड्डी, छाती, दोनों हाथ, घुटने, पैर और पूरा शरीर धरती को स्पर्श करता है। बस ध्यान रहे कि पेट धरती पर स्पर्श न करे।
अष्टांग नमस्कार के लाभ | Ashtanga Namaskara Benefits | bhagwan ko pranam kaise kare
ईश्वर की भक्ति के लिए अपने भीतर के सभी नकारात्मक तत्वों को हमें त्यागना पड़ता है और खुद को ईश्वर के चरणों में समर्पित करना होता है। ऐसा हम तभी कर सकते हैं जब हमारे भीतर मौजूद अभिमान हमारे अंतर्मन से निकल जाए। इसलिए शष्टांग प्रणाम के बढ़ावा दिया गया है । आइये जानते हैं अष्टांग दंडवत नमस्कार करने के लाभों के बारे में :
1. दंडवत प्रणाम करने से व्यक्ति जीवन के असली अर्थ को समझ पाता है और आगे की दिशा में बढ़ पाता है।
2. व्यक्ति के भीतर समान भाव की प्रवृत्ति जागृत होती है और अभिमान खत्म हो जाता है।
3. ईश्वर के निकट पहुंचने का रास्ता है दंडवत प्रणाम।
4. मन में दया और विनम्रता जैसे भाव पनपने लगते हैं।
5. आत्मविश्वास बढ़ाने में सहायक है अष्टाङ्ग नमस्कार
6. मसल्स के स्टिम्युलेशन और एक्टिव प्रयोग से पीठ मजबूत होने लगती है।
7. व्यक्ति अपने शरीर में ऊर्जा महसूस करने लगता है।
8. पाचन क्रिया में संतुलन बनाये रखने में लाभकारी है।
1. दंडवत प्रणाम करने से व्यक्ति जीवन के असली अर्थ को समझ पाता है और आगे की दिशा में बढ़ पाता है।
2. व्यक्ति के भीतर समान भाव की प्रवृत्ति जागृत होती है और अभिमान खत्म हो जाता है।
3. ईश्वर के निकट पहुंचने का रास्ता है दंडवत प्रणाम।
4. मन में दया और विनम्रता जैसे भाव पनपने लगते हैं।
5. आत्मविश्वास बढ़ाने में सहायक है अष्टाङ्ग नमस्कार
6. मसल्स के स्टिम्युलेशन और एक्टिव प्रयोग से पीठ मजबूत होने लगती है।
7. व्यक्ति अपने शरीर में ऊर्जा महसूस करने लगता है।
8. पाचन क्रिया में संतुलन बनाये रखने में लाभकारी है।
स्त्रियों को दंडवत प्रणाम क्यों नहीं करना चाहिए? | Why women don’t do Sashtanga Namaskaram?
दंडवत प्रणाम (Sashtanga Namaskara) को सभी प्रणामों में सर्वश्रेष्ठ माने के जाने बावजूद स्त्रियों के लिए यह प्रतिबंधित है। अक्सर जब हम समाज में समानता की बात करते हैं तो यह सवाल जरूर मन में उठता है कि आखिर क्यों स्त्रियों के लिए हिंदू धर्म में कुछ कार्य प्रतिबंधित हैं? आखिर क्यों हिंदू धर्म में स्त्रियां ईश्वर की उपासना करते समय उन्हें दंडवत प्रणाम नहीं कर सकती? आज हम आपको इसी सवाल का उत्तर देंगे। दरअसल शास्त्रों में स्त्रियों को दंडवत प्रणाम करना सर्वथा निषेध है। हमारे शास्त्रों में माना गया है कि स्त्रियों को कभी किसी को भी दंडवत प्रणाम नहीं करना चाहिए। ऐसा लिए जानें से वे पाप की भोगी बन सकती हैं। ‘धर्मसिन्धु’ नामक ग्रंथ में इसका उत्तर हमें मिलता है, जिसमें स्पष्ट तौर पर निर्देश दिया गया है-
‘ब्राह्मणस्य गुदं शंखं शालिग्रामं च पुस्तकम्। वसुन्धरा न सहते कामिनी कुच मर्दनं।।’
अर्थात् –
ब्राह्मणों का पृष्ठभाग, शंख, शालिग्राम, धर्मग्रंथ एवं स्त्रियों का वक्षस्थल यदि प्रत्यक्ष रूप से भूमि का स्पर्श करते हैं तो हमारी पृथ्वी इस भार को सहन नहीं कर सकती है। यदि पृथ्वी इस असहनीय भार को सहन कर भी लेती है तो वह इस भार को डालने वाले से उसकी अष्ट-लक्ष्मियों का हरण कर लेती है।
स्त्रियां ऐसे करें प्रणाम :
स्त्रियां दंडवत प्रणाम के बजाय घुटनों के बल बैठकर अपने मस्तक को भूमि से लगाकर प्रणाम कर सकती हैं।
‘ब्राह्मणस्य गुदं शंखं शालिग्रामं च पुस्तकम्। वसुन्धरा न सहते कामिनी कुच मर्दनं।।’
अर्थात् –
ब्राह्मणों का पृष्ठभाग, शंख, शालिग्राम, धर्मग्रंथ एवं स्त्रियों का वक्षस्थल यदि प्रत्यक्ष रूप से भूमि का स्पर्श करते हैं तो हमारी पृथ्वी इस भार को सहन नहीं कर सकती है। यदि पृथ्वी इस असहनीय भार को सहन कर भी लेती है तो वह इस भार को डालने वाले से उसकी अष्ट-लक्ष्मियों का हरण कर लेती है।
स्त्रियां ऐसे करें प्रणाम :
स्त्रियां दंडवत प्रणाम के बजाय घुटनों के बल बैठकर अपने मस्तक को भूमि से लगाकर प्रणाम कर सकती हैं।