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    Home » खंडोबा मंदिर (Khandoba Temple) : यहाँ विराजमान भगवान् शिव के मार्तण्ड भैरव रूप की कहानी
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    खंडोबा मंदिर (Khandoba Temple) : यहाँ विराजमान भगवान् शिव के मार्तण्ड भैरव रूप की कहानी

    Prabhu BhaktiBy Prabhu BhaktiJuly 25, 2023Updated:July 25, 2023
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    खंडोबा मंदिर का रहस्य ( Khandoba Mandir ka rahasya )

    भारत में पाए जाने वाले मंदिरों की ख़ास बात यह है कि यहाँ मौजूद लगभग हर मंदिर अपने साथ कोई न कोई रहस्य समेटे हुए है। भगवान् शिव (Bhagwan Shiv) के अनेकों मंदिर अपनी एक अलग पौराणिक कथा और खासियत को लेकर प्रसिद्ध है। इन्हीं मंदिरों में से एक है खंडोबा मंदिर (Khandoba Mandir) जो भगवान् शिव को समर्पित है।

    यह महाराष्ट्र के पुणे जिले में जेजोरी नामक नगर में अवस्थित है। मराठी भाषा में इस स्थान को ‘खंडोबाची जेजुरी’ (Khandobachi Jejuri Mandir) कहा जाता है। जेजोरी खंडोबा मंदिर (Jejuri Khandoba Temple) 718 किलोमीटर की ऊंचाई पर मौजूद है इसलिए यहाँ तक पहुँचने वाले सभी श्रद्धालुओं को 200 से ऊपर सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।

    इस मंदिर का नाम खंडोबा कैसे पड़ा? ( Is Mandir ka naam Khandoba kaise pada? )

    एक छोटी सी पहाड़ी पर अवस्थित इस मंदिर में जो भगवान् विराजमान हैं उन्हें खंडोबा, मल्हारी और मार्तण्ड भैरव के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल खंडोबा नाम से प्रचलित यह मंदिर भगवान् शिव के दूसरे रूप का प्रतीक है। इस रूप से संबंधित एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।

    खंडोबा मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा ( Khandoba Mandir se judi pauranik katha ) 

    एक बार सतयुग के दौरान धर्मपुत्र सप्तर्षि मणिचूल पर्वत पर तप करने में लीन थे। वहां मल्ल और मणि नाम के दो राक्षसों ने अपना उपद्रव शुरू कर दिया। उन राक्षसों ने वहां इतना उत्पात मचाया कि ऋषि का तपोवन ध्वस्त हो गया। यह सब देख ऋषि परेशान अवस्था में इंद्र देव के पास पहुंचे और सहायता मांगी। इंद्र देव ने उन्हें बताया कि दोनों ही राक्षसों को ब्रह्मा से अमर रहने का वरदान प्राप्त है इसलिए आप अपनी समस्या लेकर भगवान् विष्णु के पास जाइये।

    जब ऋषि ने भगवान् विष्णु के पास जाकर अपनी समस्या सुनाई तो भगवान् विष्णु ने भी इस संबंध में सहायता करने की असमर्थता व्यक्त की। इस बात दुःखी होकर वे अंत में भगवान् शिव के पास पहुंचे। भोलेनाथ ने जैसे ही ऋषि की परेशानी सुनी तो उन्होंने दोनों ही राक्षस मल्ल और मणि का वध करने के लिए मार्तण्ड भैरव का रूप धारण कर लिया। इसके बाद वे अपने पुत्र कार्तिकेय के नेतृत्व में सात कोटि गणों के साथ मणिचूल पर्वत पर पहुंचे और राक्षसों से युद्ध करना आरंभ कर दिया।  

    अंत में मार्तंड भैरव ने मणि का वध कर दिया। जब वह भूमि पर गिरा तब उसने शिव से प्रार्थना की कि वह उसे एक अश्व के रूप में अपने पास रहने की आज्ञा प्रदान करें। भगवान् शिव ने मणि का अनुरोध स्वीकार कर लिया। इसी तरह से मल्ल ने भी अपनी मृत्यु से पूर्व भगवान् शिव के मार्तंड भैरव रूप से प्रार्थना की कि मेरे नाम से आप मल्लारि नाम से जाने जाएँ।
    दोनों राक्षसों का वध किये जाने के बाद सप्तर्षि ने प्रसन्न होकर भगवान् मार्तण्ड भैरव से प्रार्थना की और कहा कि वे स्वयम्भूलिंग के रूप में प्रेमपुर में रहें। ऋषि के आग्रह को भी उन्होंने स्वीकार कर लिया। तभी से भगवान् शिव का मार्तण्ड रूप प्रख्यात हुआ।     

    खंडोबा नाम के पीछे का रहस्य ( Khandoba naam ke pichhe ka rahasya )

    खंडोबा (Khandoba) नाम के पीछे के रहस्यों की बात करें तो लोग इसे स्कंद का अवतार मानते हैं। वहीँ कुछ लोग मानते हैं कि खंडोबा नाम से एक वीर पुरुष हुआ करते थे जिन्हें देवता माना लिया गया था। इस संबंध में साक्ष्यों की बात करें तो इसका ज़िक्र ‘समयपरीक्षा’ नाम के कन्नड़ भाषी ग्रंथ में मिलता है। खंडोबा कर्नाटक और महाराष्ट्र के अधिकतर लोगों के कुल देवता माने जाते हैं।     

    खंडोबा मंदिर की विशेषताएं  ( Khandoba Mandir ki Visheshtaye ) 

    भगवान् शिव के खंडोबा रूप को समर्पित इस मंदिर को हेमाड़पंथी शैली में निर्मित किया गया है। यह दो रूपों में बांटा गया है जिसमें पहला भाग मंडप कहलाता है जबकि दूसरे भाग को गर्भगृह कहा जाता है। यहाँ पर कई प्राचीन हथियार भी वर्षों से रखे हुए हैं। वहीँ विजयदशमी के दिन यहाँ एक बड़ी ही अजीब और काफी लोकप्रिय प्रतियोगिता आयोजित की जाती है जिसमें भक्त एक भारी तलवार को अपने दाँतों के सहारे उठाते हैं।  

    भगवान् शिव के मार्तण्ड रूप को हिंसक और उग्र माना जाता है इसलिए यहाँ की जाने वाली हर पूजा बड़े ही कायदे से की जाती है। सामान्य पूजा-अर्चना तो होती है साथ ही कई बार यहाँ बकरी का मांस भी मंदिर के बाहर चढ़ाया जाता है।  

    (भोलेनाथ का आशीर्वाद बनाये रखने के लिए तथा काल और मृत्यु के भय से मुक्ति पाने के लिए धारण करें Maha Mrityunjaya Kavach)

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