आज हम आपको एक ऐसा मंदिर जहाँ के दर्शन कराएंगे जहा पर देवी के योनि की पूजा होती है. जी हां यह सच है. सबसे बड़ा चमत्कार तो इस मंदिर का यह है की यहां पर माता रजस्वला होती है यानी की मासिक धर्म से गुजरती है. कहा जाता है की माता के रजस्वला होने से पहले मंदिर के अंदर सफेद कपड़ा बिछा दिया जाता है और मंदिर के कपाट उसके बाद तीन दिन के लिए बंद कर दिए जाते है. और इन तीन दिनों तक ना तो कोई भक्त और ना ही कोई पुजारी मंदिर के अंदर जाता है. तीन दिन बाद जब कपाट खोला जाता है तो वह सफेद कपड़ा लाल खून में डूबा होता है. माता का यह चमत्कार हर साल में 1 बार होता है. इतना ही नहीं दोस्तों इस मंदिर के पास जो ब्रह्मपुत्र नदी बहती है वह भी माता के रजस्वला के दिनों में पूरी लाल हो जाती है. कामख्या मंदिर के अंदर कोई भी देवी की मूर्ति नहीं है, यहां पर देवी के सिर्फ योनि भाग की ही पूजा करि जाती है. मंदिर के अंदर ही चमत्कारी रूप से एक प्राकृतिक झरना बना है जो इस जगह को गीला रखता है. कहा जाता है की जो भी बीमार व्यक्ति जिस की बिमारी किसी भी दवा आदि से सही नहीं हुई है इस झरने का पानी पीकर वह स्वस्थ हो गया. ऐसा है माँ का चमत्कार.
ऐसी मान्यता है की जो भी भक्त माँ के दर्शन के लिए यहां आया है वह कभी खाली हाथ नहीं गया. माता ने हर भक्त के बिगड़े काम बनाये है. आप को यह भी जानकार आश्चर्य होगा की यहां भक्तो को समान्य प्रसाद नहीं मिलता बल्कि माता के मासिक धर्म से जो कपड़ा लाल हुआ था वही प्रसाद के रूप में बाँटा जाता है. और अगर यह पवित्र कपडा आपको मिल गया तो समझो आपके भाग्य खुल गए. जो भी भक्त यह कपड़ा प्राप्त करता है और घर लेकर आता है उसके हर कार्य माता सिद्ध कर देती है. कहते है की कामख्या मंदिर के सिंदूर में बहुत ही अद्भुत दिव्य शक्ति होती है जो किसी भी विवाहित महिला की मनोवांछित मनोकामना को पूरी कर देती है. कहते है इसे आसानी से हासिल नहीं किया जा सकता है. पुराणों एवं शास्त्रों में भी यह वर्णन दिया गया है की कामख्या मंदिर का सिंदूर जो भी स्त्री धारण करती है उसे माता कामख्या का साक्षात् आशीर्वाद प्राप्त होता है. ऐसी स्त्री अखंड शोभाग्यवति होती है और इनके तथा इनके पति के बिच का प्रेम बहुत ही अटूट होता है. कामख्या मंदिर ही एक ऐसी जगह है जो तंत्र साधना के लिए सबसे महत्वपूर्ण जगह मानी जाती है।यहां पर साधु और अघोरियों का तांता लगा रहता है। यहां पर अधिक मात्रा में काला जादू भी किया जाता है. यदि किसी व्यक्ति पर बहुत ही बुरी आत्मा लगी है या किसी ने शक्तिशाली काला जादू कर दिया है तो कामख्या मंदिर में कदम रखते है इन सभी से तरुंत निजात पाता है. कहा जाता है की कामाख्या के तांत्रिक और साधू साक्षात् चमत्कार करने के क्षमता रखते है. कई लोग विवाह, बच्चे, धन और दूसरी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कामाख्या की तीर्थयात्रा पर जाते हैं। कहते हैं कि यहां के तांत्रिक बुरी शक्तियों को दूर करने में भी समर्थ होते हैं। हालांकि वह अपनी शक्तियों का इस्तेमाल काफी सोच-विचार कर करते हैं।एक ऐसा मंदिर ..
इस मंदिर के पास की सीढ़ियां आपको अधूरी ही दिखाई देंगी. इसके पीछे एक अनोखी और अजीब कथा प्रचलित है. कहा जाता है की नारका नामक एक राक्षस देवी कामख्या देवी की खूबसूरती पर मोहित हो गया और उसने ठान ली की वह देवी से शादी करेगा. उसने देवी के पास आकर अपनी मन की बात बोल दी परन्तु देवी कामख्या ने पहले उसके सामने एक शर्त रख दी. की वह एक रात में निलांचन पर्वत से मंदिर तक सीढ़ियां बना पायेगा तब में तुम से विवाह कर लुंगी. नारका ने देवी की बात मान ली और सीढ़ियां बनाने लगा. देवी को लगा की नारका सीढ़ियां बना लेगा इसलिए उन्होंने एक तरकीब निकली. उन्होंने के कौवे को मुर्गा बना कर भोर से पहले ही बांग देने को कहा. नारका ने यह बात गुप्त शक्तियों से जान ली और वह तुरंत उस मुर्गे को मरने दौड़ा. और उसकी बलि दे दी. जिस स्थान पर मुर्गे के बलि दी गई आज उस जगह को कुकराकता नाम से जाना जाता है. इस मंदिर की सीढ़ियां आज भी अधूरी है. यह मंदिर 51 शक्तिपीठियो में से एक है. तथा महा तांत्रिक जैसे मचंद्रनाथ, गोरखनाथ, लोनाचमारी ये सभी महान साधक इसी स्थान पर ही साधना करके सिद्धियों और शक्तियो की प्राप्ति करि थी. शस्त्रो के आसार पिता द्वार किया जा रहे यज्ञ में कूदकर शती के आत्मदाह करने के बाद जब महादेव उनके शव को लेकर तांडव कर रहे थे . तब भगवान विष्णु ने उनके क्रोध को शांत करने के लिए अपना सुदर्शन चक्र छोड़कर शती के शव के टुकड़े टुकड़े कर दिए थे. उस समय शती की योनि तथा गर्भ आकर गिरे थे आज उसी स्थान पर कामख्या मंदिर स्थापित है. इस मंदिर को लेकर अनेक कथाये प्रचलित है. जैसे की जब एक बार काम के देवता काम देव ने अपना पुरुष तत्व खो दिया था तब इस स्थान पर रखे शती के गर्भ और योनि की सहायता से उन्हें अपना पुरुष तत्व हासिल हुआ हुआ था. एक और कथा यह भी कहती है की इसी जगह पर भगवान शिव एवं माता पार्वती के प्रेम का आरम्भ हुआ था.
मुख्य मंदिर जहां कामाख्या माता को समर्पित है, वहीं यहां मंदिरों का एक परिसर भी है जो दस महाविद्या को समर्पित है। ये महाविद्या हैं- मातंगी, कामाला, भैरवी, काली, धूमावति, त्रिपुर सुंदरी, तारा, बगुलामुखी, छिन्नमस्ता और भुवनेश्वरी। इससे यह स्थान तंत्र विद्या और काला जादू के लिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह स्थान प्रचीन खासी था जहां बलि दी जाती थी। कामाख्या मंदिर एक ऐसी जगह है जहां अंधविश्वास और वास्तविकता के बीच की पतली लकीर अपना वजूद खो देती है। यानी कि यहां जादू, आस्था और अंधविश्वास का अस्तित्व एक साथ देखने को मिलता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप आस्तिक हैं या नास्तिक। अगर आप रहस्यवाद को करीब से देखना चाहते हैं तो यहां जरूर जाएं।एक ऐसा मंदिर …