जानिये सृष्टि के पालन हार भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की कहानी 

भगवान विष्णु के अवतार का महत्व  ( Importance of Lord Vishnu Avatar )

भगवान विष्णु जो इस सृष्टि के पालन हार माने जाते हैं समय समय पर अवतार लेकर संसार का कल्याण और उनकी रक्षा करते हैं। उनके कई अवतार हुए जिनमें से आज हम भगवान विष्णु के कूर्म अवतार के बारे में बात करने जा रहे हैं।

भगवान विष्णु के कूर्म अवतार को कच्छप अवतार भी कहा जाता है, यह विश्व कल्याण के लिए लिया गया उनका दूसरा अवतार था। अपने कूर्म अवतार में विष्णु जी एक कछुए के रूप में अवतरित हुए थे इसलिए इन्हें Tortoise God कहा गया है। आइए जानते हैं आखिर भगवान विष्णु के Kachhap Avatar Ki Katha.

कुर्म अवतार की कहानी ( Kurma Avatar Story In Hindi )

विष्णु जी के एक कछुए के रूप में अवतार लेने का कारण समुद्र मंथन से जुड़ा हुआ है। दरअसल समुद्र मंथन के दौरान देव गणों और दैत्यों की सहायता करने के लिए उन्होंने कच्छप रूप धारण किया था। Lord Vishnu Kurma Avatar Story In Hindi कुछ इस प्रकार है कि एक समय की बात है जब देवताओं को अपनी शक्ति का खूब अभिमान हो चला था और इस अभिमान में डूबे हुए देवों ने ऋषि दुर्वासा का अपमान किया तो उन्होंने क्रोध में आकर देवताओं को श्राप दे डाला था कि समय आने पर तुम सभी शक्तिहीन हो जाओगे तुम्हारी सारी शक्ति क्षीण हो जाएगी।

इसी श्राप के परिणामस्वरूप दैत्यों से युद्ध करते समय देवताओं की शक्ति कम होने लगी। शक्तिहीनता का लाभ उठाते हुए दैत्यों ने देवराज इंद्र को चुटकियों में पराजित कर डाला। इस तरह अब सभी दैत्यों दानवों का तीनों लोकों पर राज हो गया। शक्तिहीन हुए सभी देव भय की अवस्था में भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे उपाय पूछा। भगवान विष्णु ने Samudra Manthan का उपाय सुझाया। अभी अभी सतयुग की शुरुआत हुई थी पृथ्वी को प्रलय झेले हुए कुछ ही समय बीता था और सभी बहुमूल्य रत्न प्रलय के कारण समुद्र में गिर गए थे। ऐसे में समुद्र मंथन का विष्णु जी का सुझाव सबसे सही था।

Kachhap Avatar Ki Kahani का आरम्भ भी यहीं से होता है। समुद्र मंथन का कार्य करना अकेले देवताओं के बस में नहीं था इसलिए दैत्यों को साथ में लाना एक मजबूरी थी। विष्णु जी ने बताया था कि समुद्र मंथन से अमृत निकलेगा जिसका पान कर सभी देवता अमर हो जाएंगे। इस तरह वे फिर से शक्तिशाली हो जाएंगे और पुरानी अवस्था में लौट आएंगे।

Kurma Avatar In Hindi की कहानी आगे इस प्रकार है कि अब समुद्र मंथन का कार्य आरंभ हुआ जिसके लिए विशाल मदारी की आवश्यकता थी जिससे समुद्र को मथा जा सके। इसके लिए विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र की मदद से मंदार पर्वत को काटकर समुद्र में रखा। इसकी सहायता से ही देव व दानव समुंद्र को मथने का कार्य कर सकते थे। इस पर्वत को घुमाने के लिए रस्सी के रूप में भगवान विष्णु के वासुकी नाग का प्रयोग किया गया। वासुकी नाग को मंदार पर्वत पर लपेटा गया। नाग के मुख को दैत्यों की ओर तथा तथा पूँछ को देवताओं की ओर रखा गया।

भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार क्यों लिया था? ( What was the purpose of Kurma avatar? )

Vishnu Ka Kachua Avatar की कहानी में अब एक और परेशानी सामने आई क्योंकि समुद्र गहरा होता है इसलिये मंदार पर्वत अंदर रसातल में डूबता जा रहा था। मंदार पर्वत के डूबने से समुद्र मंथन का कार्य पूर्ण होना असंभव था। यह दृश्य देखकर भगवान विष्णु ने एक बार फिर सहायता की और अपना द्वितीय कूर्म अवतार लिया। 

Kurma अवतार में उन्होंने मंदार पर्वत का सारा भार अपनी पीठ पर उठाए रखा और वे तब भार सहन करते रहे जब तक समुद्र मंथन का कार्य पूर्ण नहीं हो गया। Kurma avatar of Vishnu के कारण ही समुद्र मंथन का कार्य संपन्न हो पाया, देवताओं को अमृत मिल पाया और चौदह रत्नों को भी प्राप्ति हुई।

कूर्म का मतलब क्या है? ( What is the meaning of Kurma? )

कूर्म का अर्थ होता है ऐसा जीव जिसकी पीठ पर ठोस ढाल हो, इसलिए कछुए को कूर्म कहा जाता है और भगवान विष्णु द्वारा लिए गए अवतार को भी कूर्म कहते हैं।  

कूर्म अवतार कब हुआ था? ( When was Kurma avatar taken? )

भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार सत्ययुग में समुद्र मंथन के दौरान लिया था। यह संसार के कल्याण के लिया लिया गया उनका दूसरा अवतार माना जाता है।

ऐसे करें असली Chandan की पहचान, जानें इसके फायदे और टोटके

हिंदू धर्म में चंदन का क्या महत्व है? ( Importance of Sandalwood in hindu religion )

हिंदू धर्म में चंदन ( Sandalwood ) का महत्व इस बात से जाना जा सकता है कि इसका प्रयोग वैष्णव और शैव परंपरा दोनों में किया जाता है। तिलक के रूप में चंदन ललाट की शोभा बढ़ाता है तो पूजा में देवी देवताओं को चंदन अर्पित किए जाने से उन्हें प्रसन्न करने का मार्ग खुल जाता है। चंदन का पौधा जैसे जैसे बढ़ता रहता है वैसे वैसे ही Chandan ka ped के तने में तेल का अंश भी बढ़ता रहता है जो सुगंधित होने के साथ ही बह फायदेमंद है। चंदन का तेल हर्बल औषधियों के लिए प्रयोग में लाया जाता है जबकि कई अध्ययन इस बात का दावा करते हैं कि यह हमारे अवसाद और चिंताओं को दूर करने में बहुत मददगार साबित हो सकता है।

चन्दन की ही तरह Chandan Mala भी सुख-शांति और समृद्धि का प्रतीक मानी गई है। लाल चन्दन की माला माता लक्ष्मी को अत्यंत प्रिय है, Original Chandan Mala से यदि माँ लक्ष्मी के मन्त्रों का जाप किये जाए तो जातक को शीघ्र शुभ फल की प्राप्ति होती है और उनकी मनोकामना भी पूर्ण होती है।

चंदन लगाने से क्या फायदे हैं? ( Sandalwood Benefits )

Uses of Sandalwood in hindi :

1. चंदन की सुंगध हमारे भीतर पनप रहे अवसाद और तनाव वाले हार्मोंस को नियंत्रित करने का कार्य करती है।

2. चंदन हमारी कई तरह की मानसिक बीमारियों से रक्षा करता है और उदासी जैसी अवस्था से भी बचाता है।

3. भगवान को चंदन अर्पित करने का हमारा भाव यह रहता है कि जिस प्रकार चंदन सुगंधित है उसी प्रकार हमारा जीवन भी हमेशा सुगंधित रहे।

4. इसे ललाट पर लगाए रखने से पवित्रता और शांति का एहसास होता रहता है। साथ ही आज्ञा चक्र सक्रिय होकर शुभ फल देने लगता है।

5. Sandalwood uses में चंदन को बालों के कंडीशनर के रूप में भी प्रयोग में लाया जा सकता है, इससे बाल मजबूत होते हैं।

चन्दन के टोटके ( Chandan ke totke )

1. चन्दन को पीसकर उसके पाउडर, अश्वगंधा और गोखरूचूर्ण में कपूर का मिश्रण कर लगातार 40 दिन तक हवन करने से घर का वास्तु दोष दूर होता है।

2. यदि आपको ऐसा लगता है कि आप हर समय परेशानियों से घिरे रहते हैं तो गुरुपुष्य नक्षत्र से एक दिन पहले चन्दन के पेड़ की जड़ पर पीले चावल और जल चढ़ाएं फिर धूप दिखाकर उसे आमंत्रित कर दें। उसके अगले दिन उसी पेड़ की लकड़ी लें और एक लाल कपड़े में उसे बांधकर अपने घर के मुख्यद्वार पर टांग दें। इससे आपकी सभी समस्याएं दूर हो जाएंगी और आने वाले सभी संकट टल जाएंगे।  

3. यदि चन्दन के वृक्ष को घर की पश्चिम या दक्षिण दिशा में लगाया जाए तो यह अत्यधिक शुभ फल प्रदान करता है।

4. किसी व्यक्ति या बच्चे को नज़र लगी हो तो उसे चन्दन की छाल का धुआं देना चाहिए इससे नज़र तुरंत उतर जाती है।    

5. Safed Chandan का वृक्ष घर की सीमा में लगाने से वास्तु दोष और समस्त प्रकार के रोगों से परिवार के सदस्यों को छुटकारा मिलता है।  

असली चंदन की पहचान क्या है? ( How to Identify real Chandan? )

असली चन्दन की पहचान करनी हो तो उसे जमीन या ठोस सतह पर घिसे और तब तक घिसे जब तक वह गर्म न हो जाए। जैसे ही चन्दन गर्म होगा उसमें से सुगंध आनी शुरू हो जाएगी। सुगन्धित चन्दन ही असली चन्दन की पहचान मानी जाती है। 

चन्दन की क्या विशेषता है? ( What is the specialty of Sandalwood? )

चन्दन की विशेषता के बारे में सबसे उत्तम जानकारी हमें संस्कृत का यह श्लोक देता है : ”चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग” अर्थात चन्दन के वृक्ष में शीतलता के कारण विषधारी सांप लिपटे रहते हैं इसके बावजूद चंदन के वृक्ष पर साँपों के विष का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। यह चन्दन की सबसे बड़ी विशेषता है। चन्दन हमारे मन-मस्तिष्क को शान्ति और स्थिरता प्रदान करता है। इसके प्रयोग से आज्ञा चक्र शुभ फल देने लगता है, यह सौभाग्य में वृद्धि का भी सूचक है।

चन्दन कितने प्रकार के होते है? ( Types of Chandan in hindi )

Chandan दो प्रकार का होता है : सफेद चन्दन और लाल चंदन। इन दोनों के ही अपने अद्भुत फायदे हैं।

लाल चंदन लगाने से क्या होता है? ( Laal Chandan lagane se kya hota hai? )

लाल चन्दन में कई तरह के पॉलीफेनोलिक यौगिक, ग्लाइकोसाइड, जरूरी तेल, फ्लेवोनोइड, टैनिन और फेनोलिक एसिड जैसे गुण पाए जाते है जो इसे अलग पहचान देते हैं। लाल चन्दन को चेहरे पर लगाने से त्वचा से संबंधित रोगों एक्ने, चकत्ते और झाइयों से शीघ्र ही मुक्ति मिलती है।  

लाल चंदन को कैसे पहचाने? ( Laal Chandan ko kaise pehchane? )

लाल Chandan ki lakdi पानी में बाकी लकड़ियों के मुकाबले जल्दी डूबती है। इसके पीछे की प्रमुख वजह यह है कि लाल चन्दन की लकड़ी का घनत्व पानी से ज्यादा होता है। इसलिए लाल चन्दन की लकड़ी की पहचान करनी हो तो उसके लिए सामान्य लकड़ी और लाल Chandan ki lakadi लें। दोनों को साथ में पानी में डुबोये यदि लाल चन्दन की लकड़ी जल्दी पानी में डूब जाए तो वह असली लाल चन्दन है। लाल चन्दन श्वेत चन्दन की तरह सुगन्धित नहीं होता है।  

हिन्दू माथे पर चन्दन क्यों लगाते हैं? ( Why do Hindus put chandan on forehead? ) 

हिन्दू धर्म में माथे पर Chandan का तिलक लगाना बहुत शुभ माना गया है। हमारे शास्त्रों में यह बात वर्णित है कि चन्दन का तिलक लगाने से सौभाग्य में वृद्धि होती है। पापों का नाश होता है तथा व्यक्ति के शरीर को एक नई ऊर्जा प्राप्त होती है।  

Krishna Butter Ball : इस पत्थर को क्यों कहते हैं कृष्णा का माखन? क्या एलियन लाये ये पत्थर?

पत्थर के कृष्णा बटर बॉल का रहस्य ( Krishna Butter Ball Mystery )

एक विशाल पत्थर जिसे देखते ही सभी भय से लगे कांपने? क्या ये पत्थर कभी भी गिर सकता है नीचे? दोस्तों आज हम आपको एक ऐसे पत्थर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे सभी देखते हैं आस्था भरी नज़रों से, जी हाँ यह कोई आम पत्थर नहीं बल्कि इसके पीछे एक अद्भुत रहस्य छिपा हुआ है जिसका पता आज तक कोई भी नहीं लगा पाया। यहां तक कि वैज्ञानिक भी इस रहस्य को नहीं सुलझा पाए।  आखिर कैसा है ये पत्थर ? आखिर क्यों नहीं हिला पाया आज तक कोई भी इस पत्थर को? आखिर कौन लेकर आया इस विशाल पत्थर को यहां? क्या ये प्राकृतिक तौर पर इस स्थान पर मौजूद है या फिर कोई इसे यहां तक लेकर आया था ? ये जानने के लिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ियेगा। 

दोस्तों ये बात है सन 1908  की, जब मद्रास के गवर्नर आर्थर को पता चला कि Mahabalipuram Chennai में एक ऐसा स्थान मौजूद है जंहा पर एक विशालकाय गोल चट्टान मिली है जो कि एक ढलान पर टिकी हुई थी। आर्थर जब इस स्थान पर पहुंचे तो वे काफी हैरान हो गए कि एक विशाल पत्थर यानी एक ऐसी चट्टान जिसका आकार बिलकुल गोल है। आखिर वह 45 डिग्री के कोण पर एक ढलान पर कैसे टिकी हुई है। उन्होंने सोचा कि अगर ये चट्टान यहां से अचानक गिरती है तो कई लोगों को जान तथा माल का काफी नुकसान होगा।  इसलिए उन्होंने इस पत्थर को हटाने के लिए सात हाथियों की मदद ली।  लेकिन हैरान कर देने वाली बात ये थी कि सात हाथी मिलकर भी इस चट्टान को नीचे गिरा नहीं पाए। काफी पुरजोर प्रयास के बाद गवर्नर ने हार मान ली और इसे ऐसे ही छोड़ दिया गया। इस पत्थर को देखने पर ऐसा लगता है मानों यह किसी भी समय लुढ़ककर नीचे गिर सकता है।  

दोस्तों इस पत्थर को लेकर एक खास बात ये है कि यह पत्थर कृष्णा butterball के नाम से काफी प्रसिद्ध है। माना जाता है कि श्री कृष्णा अक्सर माखन चोरी करते थे और एक बार माखन का यह टुकड़ा स्वर्ग से सीधा धरती पर आकर गिरा और फिर यह सूख गया। इसलिए इसे krishna’s butterball तथा स्वर्ग का पत्थर भी कहा जाता है जो कि Sree Krishna द्वारा माखन खाते समय सीधा स्वर्ग से धरती पर गिरा था।  

20 फीट ऊँचे और 5 मीटर चौड़े इस पत्थर को लेकर कई लोगों ने दावा किया है कि यह Shri Krishna का ही एक चमत्कार है इसलिए यह एक ढलान पर बिना लुढ़के टिका हुआ है। कई लोगों का ये भी मानना है कि यह पत्थर प्राकृतिक रूप से इस स्थान पर मौजूद है लेकिन जियोलॉजिस्ट के अनुसार कोई भी प्राकृतिक पदार्थ असामान्य आकार के पत्थर का निर्माण नहीं कर सकते।  

कई लोगों ने भी इस पत्थर को हिलाने का काफी प्रयास किया लेकिन ये पत्थर टस से मस नहीं हुआ।  यंहा तक कि कई बड़ी बड़ी आपदाएं भी इस पत्थर को आज तक नहीं हिला पायी। ये पत्थर ( Ball butter Krishna ) कई सालों से अपने स्थान से जरा सा भी नहीं हिला है। न तो इस पत्थर को नीचे लुढ़काया जा सकता है और ही ऊपर की और धकेला जा सकता है।

फिर सवाल ये उठता है कि आखिर ये पत्थर इस स्थान पर कहां से आया? क्या सच में ये Shree Krishna के माखन का एक प्रतीक है या फिर इस पत्थर ( Butterball Mahabalipuram ) को कोई एलियन इस स्थान पर लेकर आया। दोस्तों इस बारे में आपका क्या कहना है अपने विचार हमें हमें कमेंट बॉक्स में जरूर साझा कीजियेगा। दोस्तों अगर आपके आस-पास या आपके साथ कोई ऐसी घटना घटित हुई है जो किसी चमत्कार से कम नहीं है तो आप हमारे साथ जरूर साझा कीजियेगा।

Chinnamasta Temple : दुनिया के दूसरे बड़े शक्तिपीठ के रूप में स्थापित Maa Chinnamasta की कहानी

छिन्नमस्तिका मंदिर कहां है? ( Where is Chinnamasta Temple Located? )

Chinnamasta Mandir झारखंड राज्य की राजधानी रांची से करीब 80 किलोमीटर और रामगढ़ से 28 किमी दूर रजरप्पा में अवस्थित है। रजरप्पा में भैरवी-भेड़ा और दामोदर नामक नदी के संगम पर मौजूद देवी का यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ माना जाता है। इस बात से ही इस मंदिर के महत्व के बारे में ज्ञात होता है। यह मंदिर इसलिए भी और लोकप्रिय है क्योंकि यहां बिना सिर वाली देवी को पूजा जाता है या दूसरे शब्दों में कहें तो इस शक्तिपीठ में देवी के कटे हुए सिर की पूजा की जाती है। साल में आने वाले चैत्र और शारदीय नवरात्रों के दौरान यहां भक्तों की भीड़ दोगुनी हो जाती है।

छिन्नमस्ता मंदिर का इतिहास : छिन्नमस्ता मंदिर कितना प्राचीन है? (  Chinnamasta Temple History : How old is Chinnamasta Temple? )

छिन्नमस्ता मंदिर के संबंध में इतिहासकारों का मानना है कि यह 6000 वर्ष प्राचीन मंदिर है जबकि कुछ इतिहासकार इसे महाभारत काल का मंदिर बताते हैं। अभी तक इसके बारे में कोई स्पष्ट जानकारी हासिल नहीं हो पाई है। आपको बता दें कि Rajrappa Jharkhand में छिन्नमस्तिका मंदिर के अलावा महाकाली मंदिर, सूर्यदेव को समर्पित मंदिर, दस महाविद्या से जुड़ा मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंगबली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर समेत कुल सात मंदिर अवस्थित हैं।

छिन्नमस्ता देवी की कहानी   ( Chinnamasta Devi Story ) 

Chhinnamasta के कटे हुए सिर को देखकर सभी के मन में यह सवाल जरूर उठता होगा कि आखिर देवी ने अपने ही कटे हुए सिर को हाथ में क्यों लिया हुआ है। दरअसल देवी के कटे सिर से जुड़ी एक कहानी प्रचलित है जिसके अनुसार एक बार जब मां अपनी सहेलियों के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान के लिए गईं तो कुछ समय वहां रुकने के कारण उनकी दो सहेलियां भूख से व्याकुल हो उठी। दो सहेलियों की भूख इतनी अधिक थी कि सभी का रंग तक काला पड़ गया।

दोनों सहेलियां Maa Chinmastika से भोजन की मांग करने लगी। इसपर माता ने उन्हें धैर्य रखने के लिए कहा परंतु सहेलियां भूख से तड़प रही थी। उनमें धैर्य अब बिल्कुल भी नहीं रह गया था। माता ने अपनी सहेलियों का यह हाल देख खड्ग से अपना ही सिर काट दिया। जब मां ने अपना सिर काटा तो उनका कटा हुआ उनके बाएं हाथ में आ गिरा।

उसमें से फिर रक्त की तीन धाराएं बहने लगी। दो धाराओं को तो माता ने सहेलियों की ओर कर दिया जबकि एक बची हुई धारा से खुद रक्तपान करने लगी। इसी के बाद से उन्हें रजरप्पा मंदिर माता Chinnamasta के नाम से पूजा जाने लगा जिसमें उनकी मूर्ति एक कटे हुए सिर को बाएं से पकड़ हुए है।

अन्य छिन्नमस्ता देवी की कहानी ( Another Chinnamasta Story )

ऐसा कहा जाता है कि बहुत पुराने समय में छोटा नागपुर में रज नामक राजा का शासन था जिनकी पत्नी का नाम रुपमा था। इन्हीं दोनों के नामों का मिश्रण कर क्षेत्र का नाम रजरूपमा किया गया जिसे आज रजरप्पा ( Rajrappa ) के नाम से जाना जाता है। एक बार राजा पूर्णिमा की रात्रि में दामोदर-भैरवी नदी के संगम पर पहुंचे। रात्रि में वहां विश्राम करते समय उन्होंने अपने स्वप्न में एक लाल वस्त्र धारण किये हुए तेजस्वी कन्या को देखा।

कन्या Chinnamasta Kali ने राजा से स्वपन में कहा कि हे! राजन तुम्हारी कोई संतान न होने के कारण तुम्हारा जीवन अधूरा और सूना सा प्रतीत होता है। मेरी आज्ञा मान लो तुम्हारे जीवन का सूनापन हमेशा के लिए दूर हो जाएगा। जब राजा ने भड़भड़ाते हुए अपनी आँखे खोली तो वह उस कन्या को ढूंढने लगे। फिर उन्होंने देखा कि वही कन्या जल के भीतर से प्रकट हो रही है।  

कन्या को जल से निलते देख राजा भयभीत हो उठे। प्रकट होकर वह कन्या बोली कि हे! राजन मैं छिन्मस्तिका देवी हूँ जो यहाँ गुप्त रूप से निवास करती है। मैं तुम्हें यह वरदान देती हूँ कि अगले नौ महीनों में तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी। कन्या आगे बोली कि इसी नदी के संगम स्थल पर तुम्हें एक मंदिर दिखाई देगा जहाँ मैं विराजमान हूँ। तुम मेरी पूजा कर वहां बलि चढ़ाओ। तभी से यह स्थल रजरप्पा के रूप में जाना जाने लगा जहाँ आज Chinnamasta Temple स्थित है।  

छिन्नमस्ता देवी कौन सी है?  ( Who is Goddess Chinnamasta? )

Ramgarh Temple की देवी छिन्नमस्ता को छिन्नमस्तिका, चिंतपुरणी और प्रचंड चंडिका के नाम से भी जाना जाता है। इनका संबंध आदि शक्ति की दस महाविद्याओं से हैं और वे इन 10 महाविद्याओं में से छठी देवी मानी जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि Maa Chinnamasta महाविद्या सकल चिंताओं का अंत करती है और हर मनोकामना को पूर्ण करती हैं।  

छिन्नमस्ता की पूजा क्यों की जाती है? ( Why Chinnamasta is worshipped? )

Rajrappa Mandir माँ छिन्नमस्ता की पूजा विशेष रूप से शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए की पूजा की जाती है। मां के उग्र रूप के कारण तंत्र-मंत्र की क्रियाओं में भी इनकी पूजा किये जाने की परंपरा है। इन्हें बलि चढ़ाकर और तंत्र साधना के माध्यम से भक्त अपनी मनोकमना को पूर्ण करते हैं।

छिन्नमस्ता बीज मंत्र ( Chinnamasta Beej Mantra )

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐ वज्र वैरोचनीये हुं हुं फट् स्वाहा ।।

माँ छिन्नमस्ता रजरप्पा मंदिर क्यों प्रसिद्ध है? ( Why is Chinnamasta Rajrappa Temple famous? )

Rajrappa Mandir Jharkhand छिन्नमस्ता इसलिए अत्यधिक प्रसिद्ध है क्योंकि यह देवी के 51 शक्तिपीठों में शामिल है साथ ही दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ माना जाता है। मंदिर के भीतर माता छिन्नमस्ता की जो प्रतिमा कमलपुष्प पर विराजमान है उनके तीन नेत्र हैं। उनके दाएं हाथ में तलवार व बाएं हाथ में देवी का अपना ही कटा हुआ सिर है जिसमें से तीन धाराओं में रक्त बह रहा है। साथ ही देवी के पांव के नीचे विपरीत मुद्रा में कामदेव और रति शयन अवस्था में विराजित हैं। मां छिन्नमस्तिका के केश खुले और बिखरे हैं और उन्होंने सर्पमाला तथा मुंडमाला धारण की हुई है। माता आभूषणों से सुसज्जित नग्नावस्था में अपने दिव्य रूप में यहाँ विराजित हैं।

Story of Parshuram : हिन्दू समाज के आदर्श माने जाने वाले परशुराम की कहानी

परशुराम की कहानी : आखिर परशुराम कौन थे? ( Story of Parshuram in hindi : Parshuram kaun the? )

Parshuram ki kahani इस प्रकार है कि परशुराम का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था उनके पिता महर्षि भृगु के पुत्र महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका थीं। उनके जन्म के संबंध में प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि जमदग्नि ने पुत्रेष्टि यज्ञ किया था जिससे प्रसन्न होकर देवराज इन्द्र ने उनकी पत्नी रेणुका को वरदान दिया था।

इस वरदान के परिणामस्वरूप ही उनकी पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख की शुक्ल तृतीया यानी अक्षय तृतीय को पांचवें पुत्र के रूप में परशुराम का जन्म हुआ। परशुराम का जन्म स्थान मध्यप्रदेश के इन्दौर जिला ग्राम मानपुर के जानापाव पर्वत था।

परशुराम का इतिहास ( History of Parshuram )

Parshuram ji का उल्लेख रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और यहाँ तक की कल्कि पुराण तक में मिलता है। वैसे उनकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण अहंकारी और धृष्ट हैहय वंशी क्षत्रियों का पृथ्वी से 21 बार संहार किया जाना है। मान्यता यह भी है कि भारत में मौजूद अधिकतर ग्राम भगवान परशुराम द्वारा ही बसाये गए हैं। उनका प्रमुख उद्देश्य पृथ्वी पर हिन्दू वैदिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार करना था।  

Bhagwan Parshuram भले ही ब्राह्मण परिवार से संबंध रखते हो पर वे केवल ब्राह्मण समाज के ही आदर्श नहीं है बल्कि पूरे हिन्दू समाज के आदर्श माने जाते हैं। सतयुग में जब उन्हें भगवान शिव के दर्शन करने से गणेश जी द्वारा रोका गया तो उन्होंने अपने परशु से गणेश जी के दन्त पर प्रहार कर दिया था तभी से गणेश जी एकदन्त कहलाए। 

प्रभु श्री राम के काल में भी उनका उल्लेख हमें मिलता है तो महाभारत काल में भी उन्होंने श्री कृष्ण को सुदर्शन चक्र देकर उपलब्ध कराकर अपना प्रमाण दिया। इसी वजह से यह कहा जाता है कि कलिकाल के अंत में भी Parshuram avatar अवशय ही दिखाई देंगे।   

ऐसे पड़ा परशुराम नाम  ( What does Parshuram mean? )

Parshuram Bhagwan विष्णु के छठे और आवेशावतार माने जाते हैं। अपने पितामह महर्षि भृगु द्वारा किये गए नामकरण संस्कार के बाद राम कहलाए और शिवजी द्वारा दिए गए फरसा के कारण उनका नाम परशुराम पड़ा। साथ ही बता दें कि वे महर्षि जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य भी कहलाये जाते हैं।

परशुराम की प्रतिज्ञा : क्यों परशुराम ने क्षत्रियों का 21 बार संहार किया? ( Why did Parshuram killed Kshatriyas 21 times? )

प्रतिज्ञा से जुड़ी Parshuram katha के अनुसार हैहय वंश के क्षत्रिय राजा सहस्त्रार्जुन को अपनी शक्ति का बहुत घमंड हो गया था और इस घमंड के चलते उन्होंने ब्राह्राणों और ऋषि-मुनियों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। ऐसे ही एक बार सहस्त्रार्जुन अपनी सेना लेकर भगवान परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि के आश्रम पहुंचा। महर्षि जमदग्नि ने सेना का खूब आदर सत्कार किया और अच्छे से खान पान की व्यवस्था भी की।

महर्षि जमदग्नि ने आश्रम में मौजूद चमत्कारी कामधेनु गाय के दूध से समस्त सैनिकों की भूख को शांत किया। सहस्त्रार्जुन के मन में कामधेनु गाय के चमत्कार को देखकर उसे पाने का लालच पैदा आया। अपने लालच के कारण उसने महर्षि से कामधेनु गाय को बलपूर्वक छीन लिया। जब इस बात की भनक परशुराम को लगी तो उन्होंने क्रोध में आकर सहस्त्रार्जुन का वध कर डाला।

फिर यहीं से शुरू परशुराम की प्रतिज्ञा की कहानी आरम्भ होती है जब सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोध की अग्नि में जलते हुए महर्षि जमदग्नि का वध कर दिया। पिता की हत्या किये जाने के बाद उनकी माँ रेणुका भी वियोग में चिता पर सती हो गयीं। Parashuram ने अपने पिता के शरीर पर 21 घाव को देखे थे इन घावों को देखते हुए ही उसी क्षण परशुराम ने प्रतिज्ञा ली कि वह इस धरती से समस्त क्षत्रिय वंशों का 21 संहार करेंगे।

भगवान परशुराम के कितने नाम है? ( Names of Parshuram )

Parshuram ji ki katha में उनके अनेकों नाम है जिनमें से हमने उनके कुल 21 नामों का ज़िक्र किया है जो इस प्रकार है – भार्गव, भृगुपति, रेणुकेय, कोङ्कणासुत, जामदग्न्य, राम, परशुधर, खण्डपरशु, ऊर्ध्वरेता, मातृकच्छिद, मातृप्राणद, कार्त्तवीर्यारि, क्षत्रान्तक, न्यक्ष,  न्यस्तदण्ड, क्रौञ्चारि, ब्रह्मराशि, स्वामिजङ्घी, सह्याद्रिवासी, चिरञ्जीवी आदि।

परशुराम ने माता का वध क्यों किया? ( Why Parshuram killed his mother? )

परशुराम ने अपनी माता का वध अपने पिता महर्षि भृगु के कहने पर किया था जब रेणुका के देरी से आने के कारण क्रोध के आवेग में महर्षि भृगु ने माता रेणुका का सिर काटने के आदेश दिया तो उनके सभी भाइयों ने ऐसा करने से मना कर दिया। जिसपर महर्षि भृगु ने उन्हें विचार चेतना नष्ट हो जाने का श्राप दे दिया था।

जब परशुराम से उन्होंने ऐसा करने के लिए कहा तो श्राप के भय और अपने पिता की आज्ञा का उल्लंघन न करते हुए उन्होंने अपनी माता रेणुका का सर धड़ से अलग कर दिया।  महर्षि भृगु परशुराम के आज्ञा पालन से खुश हुए और फिर उन्होंने वरदान मांगने को कहा। Parshurami ने अपने पिता से तीन वरदान मांगे जिसमें से पहला वरदान था उनकी माता को जीवित कर दिया जाए। दूसरा वरदान था भाइयों की विचार चेतना नष्ट न हो और तीसरा वरदान था कि उन्हें मरने की स्मृति याद न रहे।  

भगवान परशुराम जी की पत्नी का क्या नाम था? ( Parshuram Wife’s name )

श्रीमदभागवतम में परशुराम के विवाह के संबंध में कोई उल्लेख नहीं मिलता है, इसलिए अधिकतर लोगों का मानना है कि वे आजीवन ब्रह्मचारी रहे। जबकि विष्णु पुराण में परशुराम की पत्नी के संबंध में हमें वर्णन इस प्रकार मिलता है :

”पुनश्चपद्मा सम्पादित यदादित्योऽभवद्धरिः।
यदा च भार्गवो रामस्तदाबुद्धित्व धातु।।”

अर्थात पद्म का जन्म तब हुआ जब हरि आदित्य (अदिति के पुत्र) बने और जब वे भार्गव राम बने, तो वह धरणी के रूप में आईं। पौराणिक Parshuram story में वे भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं इसलिए उनकी पत्नी माता लक्ष्मी की अवतार धरणी बताई गई हैं।  

परशुराम के शिष्य कौन कौन थे?

परशुराम के शिष्य भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य और अंगराज कर्ण उनके शिष्य थे जिन्होंने महाभारत के युद्ध में 17 दिनों तक युद्ध की कमान संभाले रखी थी।  

परशुराम ने माता का सिर क्यों काटा?

परशुराम की कथा के अनुसार उन्होंने अपने पिता महर्षि भृगु की आज्ञा का पालन करते हुए अपनी माता का सिर काटा था।

भगवान परशुराम कितने भाई थे?

परशुराम महर्षि भृगु और रेणुका के पांचवे पुत्र थे, इस प्रकार भगवान परशुराम के चार भाई थे – रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्‍वानस।

Durva Grass : हिन्दू धर्म में दूर्वा का महत्व, इसके अनगिनत फायदे और टोटके 

हिन्दू धर्म में दूर्वा का महत्व ( Significance of Durva Grass in Hindu Religion )

 दूर्वा जिसे दूब की घास भी कहते हैं, हिन्दू धर्म में बहुत पवित्र और पूजनीय मानी जाती है। दूर्वा को दूब, अमृता, अनंता और महौषधि जैसे अनेकों नामों से जाना जाता है। Durva grass का प्रयोग विघ्नहर्ता भगवान गणेश की पूजा में विशेष रूप से किया जाता है। इसे मांगलिक कार्यों में जैसे गृह प्रवेश, मुंडन, विवाह आदि में शामिल किये जाने की परंपरा सदियों से प्रचलन में है।   

Durva को जहाँ एक तरफ धार्मिक कार्यों में विशेष रूप से महत्व दिया जाता है वहीँ यह हमारे शरीर को कई तरह से फायदे पहुँचाने के कार्य करती है। दूब त्रिदोष को हरने वाली औषधि कही जाती है। शरीर के लिए फायदेमंद होने के कारण ही इसका प्रयोग चिकित्सा में भी किया जाता है। अपने धार्मिक और औषधीय दोनों को लिए दूर्वा 3 हजार साल प्राचीन बताई जाती है। यह केवल भारत में ही नहीं बल्कि यूनान, अफ्रीका और रोम के कुछ क्षेत्रों में भी पाई जाती है।    

दूर्वा घास के फायदे ( Durva Grass Benefits )

1. दूर्वा भगवान गणेश को सबसे प्रिय है इसका प्रयोग पूजा में करने से गणेश जी की असीम कृपा प्राप्त होती है। 

2. दूर्वा को गाय को खिलाने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।  

3. यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में काफी लाभदायक है। 

4. doob ghas ke fayde में एक फायदा यह है कि यदि कोई दूब का सेवन करता है उसे अनिद्रा जैसी स्थिति से जल्द ही छुटकारा मिलता है।  

5. दूब में एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-सेप्टिक तत्व पाए जाते है इसलिए इसके प्रयोग से त्वचा में खुजली, चकत्ते आदि से राहत मिलती है। इसका पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाया जाता है।  

6. अनीमिया जैसी बीमारियों के लिए दूब बहुत उपयोगी मानी जाती है क्योंकि दूब रक्त कोशिकाओं को बढ़ाने के साथ रक्त साफ करने का कार्य करती है।  

7. प्रातःकाल दूब पर नंगे पांव चलने से आंखों की रोशनी बढ़ती है और durva leaves को गर्म पानी में उबालकर पीने से मुँह के छाले दूर हो जाते हैं।   

दूर्वा घास के टोटके ( Durva grass ke totke )

1. यदि घर में पैसा नहीं टिक रहा और घर पर आर्थिक संकट बना हुआ है तो आप पंचदेवों में प्रथम पूजनीय भगवान गणेश और माता लक्ष्मी को गणेश चतुर्थी या किसी शुभ मुहूर्त पर पांच दूर्वा में 11 गांठे लगाकर उन्हें चढ़ाएं। साथ ही दूर्वा अर्पित करते समय नीचे दिए गए मन्त्र का जाप करें। ऐसा करने से आपको आर्थिक संकट से शीघ्र ही छुटकारा मिलेगा।

‘श्री गणेशाय नमः दूर्वांकुरान् समर्पयामि’  

2. दूर्वा को गाय के दूध में मिलकर उसका लेप बनाये फिर उसे तिलक के रूप में माथे पर लगाए, इससे आपकी मनोकमना जल्द ही पूर्ण होगी।

3. बुधवार यानी भगवान गणेश को समर्पित दिन में गाय को दूर्वा की हरी घास ( doob ghas ) खिलाने से आपको गृह कलेश से मुक्ति मिलेगी और परिवार में प्रेम तथा सद्भाव की भावना बढ़ेगी।  

4. धन प्राप्ति का अपना उद्देश्य पूरा करने के लिए बुधवार के दिन गणेश जी को 11 या 21 दूर्वा चढ़ाएं। ध्यान रहे कि चढ़ाई गई प्रत्येक दूर्वा जोड़े में हो। साथ ही इस दिन Ganesh Kachua (Turtle) Ring को धारण करने से भगवान गणेश की असीम कृपा प्राप्त होती है।

दूब घास की पहचान ( How to identify Durva Grass? )

दुर्वा घास जिसका वैज्ञानिक नाम ( durva meaning in hindi ) – ‘साइनोडॉन डेक्टिलॉन’ है जो पूरे वर्ष भर पाई जाती है। यह घास ज़मीन पर पसरते हुए बढ़ती रहती है, साल में दो बार सितम्बर से अक्टूबर महीने में और फरवरी से मार्च महीने में durva plant में फूल आते हैं। लगभग सभी लोग इस घास के बारे में जानते हैं, भारत जैसे विविधता वाले क्षेत्रों में इसका हर क्षेत्र विशेष के हिसाब से नाम बदलता रहता है। 

दूर्वा चढ़ाने से क्या लाभ होता है? ( Durva chadhane se kyka labh hota hai? )

1. हिन्दू धर्म में प्रथम पूज्य भगवान गणेश को दूर्वा अत्यधिक प्रिय है। उनकी पूजा में 21 दूर्वा चढाने से भगवान गणेश की असीम कृपा प्राप्त होती है।

2. किसी भी पूजा या मांगलिक कार्य को सफल बनाने के लिए दूर्वा का शामिल होना बहुत जरूरी बताया गया है।  

Mumba Devi Temple : मुंबई की सर्वप्रसिद्ध मुम्बा देवी की कहानी और मंदिर का इतिहास

मुंबा देवी मंदिर कहाँ स्थित है? ( In which city is Mumba Devi Temple? )

मुंबा देवी मंदिर महाराष्ट्र के दक्षिणी मुंबई में भुलेश्वर इलाके अवस्थित एक प्रसिद्ध मंदिर है। सबसे ख़ास बात यह है कि इसी मंदिर के नाम पर ही महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई का नाम निकला है। मुंबा देवी मंदिर में मुम्बा देवी की नारंगी चेहरे वाली रजत की प्रतिमा स्थापित है और उनके साथ माँ जगदम्बा और माँ अन्नपूर्णा भी विराजमान है।  कहते हैं कि यहाँ के मछुआरों की रक्षा माँ मुम्बा करती हैं और उनपर किसी तरह की आंच नहीं आने देती। आइये जानते हैं इस मंदिर का इतिहास, Mumbadevi की उत्पत्ति की कहानी और कुछ अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां।

मुम्बा देवी मंदिर का इतिहास : मंदिर का निर्माण किसने करवाया? ( Mumba Devi Temple History : Who built Mumba Devi Temple? )

Mumbadevi Temple का इतिहास आज से करीब 400 वर्ष प्राचीन है। मुम्बा देवी मंदिर का निर्माण वर्ष 1737 में मेंजिस नामक जगह पर बना था। उस स्थान पर आज विक्टोरिया टर्मिनस बिल्डिंग बनी हुई है। ब्रिटिश शासन के दौरान मुम्बा देवी के इस मंदिर को मरीन लाइन्स-पूर्व क्षेत्र में बाजार के बिल्कुल बीचों-बीच स्थापित कर दिया गया था।

इस Mumbai bamba devi mandir को मछुआरों द्वारा अपनी रक्षा के लिए स्थापित किया गया था। कहा जाता है कि इस मंदिर के लिए पांडु नामक सेठ ने अपनी ज़मीन दान में दी थी। शुरू-शुरू में तो Mumbadevi Temple Mumbai का रखरखाव पाण्डु सेठ के परिवार के पास था परन्तु बाद में उच्च न्यायलय के निर्देश पर इसका जिम्मा न्यास को सौंप दिया गया।   

मुम्बा देवी कौन हैं? ( Who is Mumbai God? )

आज के मुंबई शहर में सबसे पहले मछुआरों ने अपना बसेरा बनाया था और समुद्र से आने वाले तूफानों से अपनी रक्षा के लिए उन्होंने देवी का एक मंदिर स्थापित किया। आस्था और विश्वास का यह रूप कब चमत्कार में तब्दील हो गया पता ही नहीं चला। समुद्र से आने वाले हर तूफ़ान और बड़े संकट से देवी ने रक्षा की तो मछुआरों को पूर्ण विश्वास हो गया कि यह देवी का चमत्कार है। तभी से Mumba Devi के नाम से जानी जाने लगी। मुम्बा देवी को माता लक्ष्मी और आदि शक्ति का ही एक रूप माना जाता है जो धन-दौलत और ऐश्वर्य प्रदान करती हैं।

यहाँ के लोगों की आस्था कहती है कि मुम्बा देवी की कृपा से ही मुंबई शहर आज भारत की आर्थिक राजधानी बन पाया। मुंबई को ऊंचाइयों पर पहुंचाने का सारा श्रेय मुम्बा देवी को दिया जाता है यही वजह रही कि इस शहर का नाम Mumbai मुम्बा देवी के नाम से निकला है।  

मुंबा देवी मुंबई शहर में बड़े ही ऐशो आराम से रहा करती हैं। हर दिन अपने अलग-अलग वाहन पर विराजमान होती हैं, सोमवार को वे नंदी पर सवार होती है तो मंगलवार को हाथी पर, बुधवार को देवी मुर्गे को अपना वाहन चुनती हैं तो बृहस्पतिवार को गरुड़ उनकी सवारी होती है। वहीँ शुक्रवार को माता की सवारी हंस है शनिवार को वे हाथी और रविवार के दिन माँ Mumba देवी का वाहन सिंह होता है।  

यदि आप भी घर में सुख-समृद्धि और धन को आकर्षित करना चाहते हैं तो आज ही घर में अलौकिक शक्तियों से भरपूर Dhan Laxmi Kuber Yantra को पूजा विधि के द्वारा स्थापित करें। ज्योतिष शास्त्र में Dhan Laxmi Kuber Yantra का बहुत महत्व बताया गया है, कहते हैं जिस भी स्थान पर यह यन्त्र स्थापित किया जाता है वहां माता लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है।

मुम्बा देवी से जुड़ी मुंबई की कहानी ( Mumba Devi story in hindi )

आज का विकसित मुंबई शहर पहले एक उजड़ा हुआ स्थल हुआ करता था। इस उजड़े हुए स्थल पर सर्वप्रथम मछुआरों ने अपनी बस्ती बनाई। मुंबई में मछुआरों को कोली कहा जाता है। समुद्र के किनारे रहते हुए उन्हें हर वक़्त खतरा रहता था कि कहीं समुद्र के तूफ़ान उनकी बस्ती को उजाड़ न दें। वो कहते है न जब मानवीय सामर्थ्य खत्म हो जाता है तब मनुष्य ईश्वर की भक्ति की ओर आगे बढ़ता है। 

ऐसा ही कुछ उन मछुआरों ने किया, उन्होंने Mumba Devi ka mandir स्थापित किया और पूरी श्रद्धा से उनकी पूजा अर्चना की। उनकी आस्था और विश्वास चमत्कार में तब्दील हो गया, देवी ने मछुआरों की रक्षा का जिम्मा लिया और उन्हें समुद्र से आने वाले हर तूफान से बचाया। इन चमत्कारों के कारण ही देवी को मुम्बा देवी नाम दिया गया।      

बॉम्बे का नाम मुंबई कैसे पड़ा? ( How was Bombay named Mumbai? )

मुंबई के इतिहास पर गौर करें तो हम पाएंगे कि इसका इतिहास पौराणिक काल से संबंध रखता है। आदि शक्ति दुर्गा के नाम अम्बा और माँ को मिलकर इनका नाम मुम्बा पड़ा है। इन्हें देवी लक्ष्मी का रूप भी माना जाता है। वर्ष 1995 में शिवसेना सरकार ने बम्बई का नाम परिवर्तित कर मुंबई कर दिया जो Mumba Devi को समर्पित है। कहते हैं कि इन्हीं की कृपा से मुंबई तरक्की के रास्ते पर चल पाई और आर्थिक राजधानी बन पाने में सक्षम हुई।    

मुम्बा देवी के निकट स्टेशन कौन सा है? ( Which station is near Mumbadevi? )

Mumbra Devi Temple के सबसे निकट का रेलवे स्टेशन मस्जिद रेलवे स्टेशन है जहाँ से आसानी से इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।   

सनातन धर्म में लौंग का महत्व, उसके कुछ ख़ास टोटके और उपाय

हिन्दू धर्म में लौंग का क्या महत्व है? ( Significance of Clove in hindu religion )

हमारे हिन्दू धर्म में लौंग के प्रयोग का खासा महत्व बताया गया है, लौंग जहाँ एक तरफ हमारी सेहत के लिए बहुत फ़ायदेदमंद है वहीँ दूसरी तरफ पूजा विधि में लौंग का उपयोग करना सदियों से चला आ रहा है। लौंग ज्योतिष शास्त्र में विशेष स्थान रखती है क्योंकि इसके माध्यम से किये गये कुछ उपाय या टोटके ऐसे हैं जो हमारी समस्या को दूर करने में सक्षम है। लौंग का प्रयोग पूजा पाठ में होने के साथ तंत्र-मंत्र के क्रियाओं तक में किया जाता है। अधिकतर हम नवरात्रों में माँ दुर्गा की पूजा के समय इसे प्रयोग में लाते हैं। आज हम लौंग के सेवन से होने वाले फायदों, कुछ चमत्कारी टोटकों और uses of clove के बारे में बात करेंगे।  

लौंग के टोटके ( Laung ke totke )

आइये जानते हैं लौंग के चमत्कारी टोटके जिनसे आपकी कई सारी परेशानियों का निकलेगा हल :

1. अपने घर से बुरी और नकरात्मक शक्तियों को हमेशा के लिए बाहर निकलना चाहते हैं तो शनिवार या रविवार की संध्या को पांच लौंग, तीन कपूर और तीन इलाइची लें। इन तीनों को जला दें और जब यह अच्छी तरह से जलने लगे तो इसे अपने पूरे घर में घुमाएं। लौंग के इस मिश्रण के पूरी तरह से जलने के बाद इसकी राख को अपने घर के मुख्य द्वार पर डाल दें। यदि राख को सूखा नहीं डालना चाहते तो इसे पानी में घोलकर मुख्य द्वार पर इसकी छींटे मारे। यह लौंग का टोटका   आपके घर से सभी बुरी शक्तियों का नाश कर देगा।  

2. ज्योतिष शास्त्र में लिखा है कि जिन जातकों की कुंडली में राहु-केतु अशुभ फल दे रहे हैं और हर कार्य में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं तो उन्हें शनिवार के दिन लौंग का दान अवश्य ही करना चाहिए। दान के अलावा आप लौंग को Narmadeshwar Shivling पर भी अर्पित कर सकते हैं। इस क्रिया को लगातार 40 शनिवार तक दोहराएं, इससे जातक की कुंडली से राहु-केतु के दुष्प्रभाव समाप्त हो जाएंगे।  

3. नौकरी हासिल करने में भी लौंग का टोटका तंत्र शास्त्र के अनुसार काफी कारगर माना जाता है। इसके लिए घर से निकलते समय अपने मुहं में दो लौंग रख लें उसके बाद जिस जगह इंटरव्यू के लिए जा रहे हैं वहां द्वार पर उस लौंग के अवशेष फेंक ईश्वर का ध्यान करते हुए प्रवेश करें। इस तरह से आपको वह नौकरी अवश्य ही मिल जाएगी।  

4. किसी का घर में बीमार रहना, हर कार्य में बाधा आना, गृह कलेश रहना ये सभी समस्याएं जीवन को बड़ा मुश्किल बना देती हैं। इनसे निपटने के लिए हर शनिवार को तेल का दीपक जलाकर उसमें 3-4 लौंग डाल दे। उस दीपक को घर की सबसे अँधेरी वाली जगह पर रखें। इस तरह आपके घर से सभी कलेश, संकट और विपत्तियां टल जाएंगी और घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ेगा।  

5. अपने शत्रुओं से छुटकारा पाने के लिए आपको उनसे झगड़ा करने की कोई आवश्यकता नहीं बल्कि केवल लौंग के प्रयोग से आप उनसे बड़ी ही आसानी से छुटकारा पा सकते हैं। हर मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान चालीसा का पाठ करें साथ ही पांच लौंग कपूर के साथ प्रज्वलित करें। जब वह पूरी तरह से जल जाए तो उसकी राख को अपने माथे पर तिलक की तरह लगाएं। यह long ka totka अपनाने से आपको अपने शत्रुओं से जल्दी ही मुक्ति मिल जाएगी।  

लौंग से धन प्राप्ति के उपाय ( long ke upay )

1. धन प्राप्ति के लिए एक long ka upay यह है कि हर रोज़ या हर शुक्रवार को माता लक्ष्मी की पूजा करते समय उन्हें गुलाब के पुष्प के साथ दो लौंग भी अर्पित करें। साथ ही पांच लौंग की कलियों को पांच कौड़ियों के साथ एक कपड़े में बांधकर तिजोरी में रख दे। ऐसा करने से आपके घर में बरकत बनी रहेगी और कभी दरिद्रता का मुँह नहीं देखना पड़ेगा।

2. अपनी आर्थिक समस्या से छुटकारा पाने और अपने कार्य में सफल होने के लिए मंगलवार के दिन हनुमान जी पूजा करने के लिए सरसों के तेल का दीपक जलाएं। उसके बाद दीपक में दो लौंग डालें और हनुमान चालीसा का पाठ करें। 21 मंगलवार long ke totke को अपनाएँ आपकी मनोकामना अवश्य ही पूर्ण होगी।

3. यदि आपका पैसा लंबे समय से कहीं पर अटका हुआ है और वह वापिस नहीं मिल रहा है तो इसके लिए आप किसी भी अमावस्या या पूर्णिमा के दिन कपूर और 21 लौंग से माता लक्ष्मी का हवन करें। हवन करने के पश्चात माता लक्ष्मी से प्रार्थना करें कि आपका दिया हुआ उधार आपको वापिस मिल जाए।  

लौंग खाने के फायदे ( Benefits of Cloves )

1. सर्दी जुकाम से जल्दी राहत पाने के लिए लौंग का प्रयोग किया जाता है।  

2. लौंग पाचन एनजाइम के स्राव को बढ़ाने का कार्य करती है, जिससे कब्ज और अपच की समस्या नहीं होती।  

3. लौंग में विटमिन-B1,B2,B4,B6,B9 और विटमिन-सी, K, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट जैसे तत्व शामिल होते हैं।

4. मधुमेह के रोगियों के लिए भी लौंग बहुत फायदेमंद मानी जाती है। ये सभी laung ke fayde हैं।

लौंग जलाने से क्या होता है? ( Long jalane se kya hota hota hai? )

लौंग जलाने से घर में मौजूद सभी नकारात्मक शक्तियां भी जलकर राख हो जाती हैं। लौंग के टोटके में इसे जलाना मुख्य रूप से शामिल होता है। लौंग हमे कई तरह के दोषों से भी मुक्ति दिलाने का कार्य करती है।  

रोजाना लौंग खाने से क्या होता है? ( Rojana laung khane se kya hota hai? )

यदि कोई रोज लौंग का सेवन करता है तो उसे कब्ज और अपच नहीं होता है। लौंग में 30 प्रतिशत फाइवर पाया जाता है साथ ही इसमें विटमिन-B के कई प्रकार भी पाए जाते हैं जिनमें विटमिन-B1,B2,B4,B6,B9 शामिल है साथ ही इसमें विटमिन-सी तथा बीटा कैरोटीन जैसे तत्व भी पाए जाते हैं।

Hinglaj Mandir : आदिशक्ति के 51 शक्तिपीठों में सबसे पहले शक्तिपीठ हिंगलाज मंदिर की कहानी

हिंगलाज मंदिर कहाँ पर स्थित है? ( Where is Hinglaj Devi Temple? )

Hinglaj Mata Mandir भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त के हिंगलाज नामक क्षेत्र में हिंगोल नदी के निकट अवस्थित है। यह देवी सती के 51 shakti peeth में से सबसे पहला शक्तिपीठ माना जाता है। यह मंदिर पूरे विश्व में बहुत प्रसिद्ध है और पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यक हिन्दू समुदाय के लिए ख़ास महत्व रखता है।     

हिंगलाज में कौन सी देवी है? ( Hinglaj me kaun si devi hai? )

पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त में हिंगुल नदी के निकट अवस्थित प्राचीन Hinglaj Temple देवी को समर्पित है जो देवी सती का अंग माना जाता है। इस तरह से हम कह सकते हैं कि हिंगलाज में देवी सती ही शक्तिपीठ के रूप में वास करती हैं। इस जगह के बारे में ऐसी मान्‍यता है कि प्रभु श्रीराम ने भी अपनी यात्रा के दौरान ब्रह्म हत्या से मुक्ति पाने के लिए इस Hinglaj Devi Mandir शक्तिपीठ में दर्शन किए थे। साथ ही हमारे ग्रंथों में इस बात का भी वर्णन मिलता है कि भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि ने भी इसी स्थान पर घोर तपस्या की थी।  

हिंगलाज माता की उत्पत्ति कैसे हुई? ( How was Hinglaj Mata born? )

Hinglaj Mata की उत्पत्ति से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं कहती है कि वे आदि शक्ति का ही एक रूप हैं जिन्हें आज शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है। आइये जानें आखिर मां हिंगलाज की उत्पत्ति कैसे हुई? :

हिन्दू धर्म में आदि शक्ति के 51 शक्तिपीठों को मान्यता प्राप्त है और इन्हीं शक्तिपीठों में से एक है हिंगलाज shaktipeeth in Pakistan। शक्तिपीठों की स्थापना से जुड़ी कथा का संबंध देवी सती से है। साथ ही हिंगलाज माता की कथा के तार भी इसी कहानी से जुड़े हुए हैं। 

प्रजापति दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया था जिसमें उन्होंने लगभग सभी देवी देवताओं को न्योता भेजा परन्तु भगवान शिव और सती को यज्ञ में शामिल होने का निमंत्रण नहीं आया। देवी सती को इसपर बहुत क्रोध आया और भगवान शिव से यज्ञ में जाने की हठ करने लगी।

शिव जी ने उन्हें अनुमति दी तो उन्होंने वहां जाकर अपने पिता से सवाल जवाब किये परन्तु पिता द्वारा अपने पति का अपमान किया जाना वे सहन नहीं कर पाईं और उन्होंने उसी यज्ञ की पावन अग्नि ने कूद कर अपने प्राण त्याग दिए। भगवान शिव को जब यह पता चला तो वे क्रोधित अवस्था में वहां पहुंचे। उन्होंने देवी सती के जले हुए पार्थिव शरीर को उठा लिया और ब्रह्माण्ड में घूमने लगे।

यह दृश्य देख सृष्टि को भयंकर प्रलय से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से पार्थिव सती के शरीर के टुकड़े ( sati devi body parts ) कर दिए थे। इन्हीं टुकड़ों में से एक टुकड़ा हिंगलाज मंदिर वाले स्थान पर गिरा। कहते हैं कि हिंगलाज मंदिर में देवी सती का ब्रह्मरंध्र गिरा था जिसने devi shakti peeth का रूप धारण कर लिया। माता सती का ब्रह्मरंध्र सिन्दूर यानी हिंगुलु से सुशोभित था जिसे कारण इस स्थान का नाम Hinglaj Mandir पड़ा।  

हिंगलाज माता किसकी कुलदेवी है? ( Hinglaj Mata kiski kuldevi hai? )

लोकगाथाएँ कहती हैं कि चारणों और राजपुरोहितों की कुलदेवी माता हिंगलाज थीं जिनका निवास स्थान Hinglaj Mata Mandir Pakistan हुआ करता था। हिंगलाज देवी के संबंध में गीत का छंद कुछ इस प्रकार है :

    सातो द्वीप शक्ति सब रात को रचात रास।
    प्रात:आप तिहु मात हिंगलाज गिर में॥

अर्थात : सातो द्वीपों में सब शक्तियां रात्रि में रास रचाती है और फिर प्रात:काल सब शक्तियां भगवती हिंगलाज के गिर में आ जाती है।   

पाकिस्तान में कौन सा शक्तिपीठ है? ( Pakistan me kaun sa shaktipeeth hai? )

हिंगलाज माता मंदिर पाकिस्तान में आदिशक्ति के 51 शक्तिपीठों में से सबसे पहला शक्तिपीठ हिंगलाज स्थापित है। यह Shakti peeth in Pakistan सभी शक्तिपीठों में सबसे पहला स्थान इसलिए रखता है क्योंकि जब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से पार्थिव सती के शरीर के टुकड़े किये तो सबसे पहला टुकड़ा ब्रह्मरंध्र यानी मस्तिष्क यहीं पाकिस्तान के बलूचिस्तान Hinglaj mandir में गिरा था। हमारे शास्त्रों में इस शक्तिपीठ को आग्नेय तीर्थ का नाम दिया गया है।

हिंगलाज माता की पूजा कैसे की जाती है? ( Hinglaj Mata ki puja kaise ki jati hai? )

1. कुलदेवी Hinglaj mata की कई तरह से पूजा की जा सकती है फिर चाहे वह पंचोपचार पूजा हो षोडशोपचार पूजा विधि, परन्तु इन सभी में सबसे उत्तम षोडशोपचार पूजा मानी जाती है जिसमें हिंगलाज माता की 16 चीजों से पूजा किये जाने का विधान है।  

2. माता हिगंलाज को पंचामृत से स्नान कराने के साथ चंदन आदि से भी स्नान कराया जाता है।  

3. पूजा में गेहूं या चावल की ढेरी को तांबे के कलश के ऊपर रखा जाता है फिर उसपर नागरबेल के पत्ते, और नारियल रख कलश स्थापना की जाती है। कलश को मौली से बाँधा जाता है।  

4. हिंगलाज माता की पूजा से पहले सर्वप्रथम गणपति जी का ध्यान अवश्य करें।  

5. बता दें माता को लाल गुलाब पुष्प, गुलाब का इत्र, सिन्दूर और लाल चुनरी अत्यंत प्रिय है।  

6. माता की पूजा करते समय उन्हें चन्दन, अक्षत, दूर्वा, फल आदि जरूर अर्पित करें।

7. माता हिंगलाज के ध्यान मंत्र का 108 बार जाप भी अवश्य किया जाना चाहिए।  

Achaleshwar Mahadev Temple : जब पूजा करने के बाद बदला शिवलिंग का रंग

अचलेश्वर महादेव मंदिर का रहस्य ( Achaleshwar Mahadev Temple Mystery )

Devon ke Dev Mahadev जिन्हें संसार में हर कोई पूजता है, हर कोई इनकी भक्ति में लीन रहता है तथा भगवान शिव भी अपने भक्तों को आये दिन अपने होने का विश्वास दिलाते रहते हैं। God siva के चमत्कारों को देख हर कोई आस्था और भक्ति के सागर में डूब जाता है। आज का यह लेख आपको भगवान शिव के होने का प्रमाण जरूर देगा। आज के इस लेख का संबंध एक ऐसे भक्त से है, जिसने lord shankar के मंदिर में एक अद्भुत चमत्कार को होते हुए देखा। जी हाँ एक ऐसा चमत्कार जिसके बारे में सुनकर हर किसी के रोंगटे खड़े हो जाएंगे। आखिर क्या हुआ उसके बाद?

दोस्तों ये shiv ling story जुड़ी है एक ऐसे मंदिर से, जंहा पर स्थापित है एक ऐसा shiva linga जो किसी रहस्य से कम नहीं है। दरअसल कई वर्षों पहले नागपुर में भोला नाम का एक व्यक्ति रहता था, जिसने तीन वर्ष की आयु में ही एक दुर्घटना में अपने माता पिता को खो दिया था।

तीन वर्ष की आयु से ही वह अपने गाँव में बने lord mahadev मंदिर में रहता था, उसने भगवान शिव तथा देवी पार्वती को ही अपना माता-पिता मान लिया था। वह दिन रात उनकी और shivling ki पूजा करता था, उन्हें अपना माता पिता समझकर उनकी सेवा करता था तथा मंदिर में आने वाले सभी श्रद्धालुओं की मदद भी किया करता था।  मंदिर में रोजाना आने वाले श्रद्धालु और पुजारी जी ने ही बच्चे के स्वभाव को देख उसका नाम भोला रखा था। वह अक्सर shivling puja करने के बाद उसके सामने खड़े होकर उनसे विनती कर कहता- हे परमपिता मैं आपकी भक्ति में हमेशा ही लीन रहता हूँ, अतः आप मुझे कोई ऐसा संकेत दीजिये जिससे मुझे ये आभास हो जाए कि आप मेरी भक्ति से प्रसन्न हैं। लेकिन उसे कभी संकेत नहीं मिला और वह निराश हो जाता।

रंग बदलते शिवलिंग का रहस्य ( What is the colour of Shivling? )

भोला जब वह तेईस वर्ष का हुआ तो उसे एक दिन स्वप्न आया, जहां पर भगवान शिव ने उसे Achleshwar Mahadev Mandir जाने को कहा। भोला ने अपने स्वप्न की बात पुजारी जी से बताई, अतः पुजारी जी भी समझ गए थे कि भगवान शिव जरूर उसे कोई न कोई संकेत देना चाहते हैं इसलिए उन्होंने भोले से राजस्थान में स्थित Achleshwar Mandir जाने को कहा। भोला बिना देर किये शाम को ही मंदिर के लिए निकल पड़ा, अगली सुबह वह राजस्थान पहुंचा। मंदिर में उसने यंहा पर स्थित अद्भुत shivling shivling के दर्शन किये, लेकिन न वह समझ नहीं पा रहा था आखिर भगवान शिव ( Lord Shiva ) ने उसे यंहा इतनी दूर क्यों बुलाया है। वह सुबह से लेकर शाम तक शिवलिंग के आगे बैठा रहा लेकिन यहां बैठना उसके लिए किसी चमत्कार से कम साबित नहीं हुआ।

दरअसल यहां आना, ये उससे स्वप्न का वहम था या इसके पीछे कोई रहस्य छिपा था ? वह मन ही मन इसी गुत्थी में उलझा था कि अचानक से से उसने जो देखा, उसे देख उसके होश उड़ गए। दरअसल उसने देखा कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग का रंग बदल चुका था, वह हैरान था कि अचानक शिवलिंग ने फिर से अपना रंग बदल दिया। भोला हैरान था कि आखिर शिवलिंग तीन बार अपना रंग कैसे बदल सकता है। लेकिन भोला समझ चुका था कि Mahadev god ने उसे यहां किस लिए बुलाया था। वो संकेत दिखाने जिसकी प्रतीक्षा वह लगभग बीस सालों से कर रहा था। वह मन ही मन प्रसन्न हुआ और मन ही मन धन्यवाद कर, जोर जोर से “हर हर महादेव” कहने लगा।  

माना जाता है कि अचलेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित stone shivling दिन में तीन बार अपना रंग बदलता है, ऐसा क्यों होता है इस रहस्य को सुलझाने कई वैज्ञानिक भी मंदिर में आये लेकिन वह इस गुत्थी को नहीं सुलझा पाए। एक और हैरान कर देने वाली बात ये है कि इस lord shiva lingam की लम्बाई कितनी है इस बात का पता आज तक कोई नहीं लगा पाया है।  दोस्तों कहा जाता है कि जो भी इस मंदिर में आता है उसकी सभी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती है। अगर आप भी shiva god के इस अद्भुत शिवलिंग के दर्शन करना चाहते हैं तो अचलेश्वर महादेव मंदिर जरूर जाएँ।

यदि आप भगवान शिव के निराकार रूप कहे जाने वाले शिवलिंग का चमत्कार अपने ही घर में देखना चाहते हैं तो आज ही अपने घर में Original & Certified Parad Shivling लेकर आएं। इस शिवलिंग की नियमित रूप से पूजा करें और फिर देखें कैसे आपके घर से नकारात्मकता और बुरी शक्तियां दूर भागती है।  यह आपके घर के माहौल को खुशनुमा बनाये रखने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जिसे प्राण प्रतिष्ठा तक की आवश्यकता नहीं होती।
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