Kalyug | कलयुग में बिरुपाक्ष्य की प्रतिमा: धर्म के खिलाफ
कलयुग एक ऐसा युग, जिसे राक्षस का युग कहा गया हैं, कलयुग को अधर्म और पापों के हवाले सोपा गया हैं। इस राक्षस युग मे भी अन्य भगवान के चमत्कार देखने को मिलते हैं, जिससे हमारी भगवान के प्रति श्रद्धा और आस्था और बड़ जाती हैं। और दूसरी तरफ राक्षस कली (kali) कमजोर होता जाता हैं।
लेकिन बड़ते समय के कारण, kali बहुत जल्द हम इंसानों पर अपना राज करेगा, और पाप और अधर्म को चरम सीमा तक लेके जाएगा, लेकिन कली के राज मे भी कोई ऐसा हैं जो राक्षस कली का साथ देगा और पाप, अधर्म, लालच, हिंसा और कुरुरता को उसकी चरम सीमा तक लेके जाएगा और वह हम इंसानों से अपना बदला लेने आएगा।
आईये जानते हैं बिरुपाक्ष्य प्रतिमा के बारे मे जो धरती को चीरते हुए प्रकट हो रही हैं और क्या ये कलयुग के अंत मे राक्षस कली (kali) का साथ देगी? अगर हाँ! तो क्यूँ और कैसे देगी कलयुग के अंत राक्षस कली (kali) का साथ।
बिरुपाक्ष्य एक एसी प्रतिमा जो धरती को चीरते हुए धीरे-धीरे प्रकट हो रही हैं, बिरुपाक्ष्य प्रतिमा आधी जमीन के नीचे और आधी धरती के ऊपर हैं। लोगों की माने तो उनका कहना हैं पहले इस प्रतिमा को जब उन्होंने कई साल पहले देखा था तो यह काफी नीचे थी लेकिन बड़ते समय के साथ यह प्रतिमा अब अपने पेट से थोड़ा ऊपर आ गई हैं। स्थानिए लोगों की मानी जाए तो यह प्रतिमा जिस दिन पूरी तरह से बाहर आ जाएगी तब धरती का विनाश हो जाएगा।
अब आप सभी के मन मे यह खयाल आ रहा होगा की यह प्रतिमा आखिर कहा हैं? और ये प्रतिमा आखिर यहाँ आई कैसे? तो आईये इस विषय पर भी चर्चा करते हैं।
“पशुपतिनाथ मंदिर: नेपाल के प्राचीन मंदिर में अद्वितीय पूजा और मान्यताएं”
बिरुपाक्ष्य की यह प्रतिमा नेपाल के काठमांडू के देवपतन गाव के भगवान शिव के प्राचीन पशुपतिनाथ मंदिर के बागमती नदी के दाहिने किनारे पर स्थित हैं। बिरुपाक्ष्य की यह प्रतिमा भगवान शिव के प्राचीन मंदिर के कारण बहुत प्रसिद्द हैं।
क्यूंकी इस मंदिर मे Bhagwan shiv की पंचमुखी शिव लिंग (Shivling ) स्थापित हैं, इस शिव लिंग के चारों ओर और ऊपरी तरफ भगवान शिव के मुख बने हुए है, जिसमे हर एक मुख को नाम दिया गया हैं।
जिसमे पूर्व मुख को, तत्पुरुष; पश्चिमी मुख को, सदजयोथ; उतरी मुख को, वामवेद; दक्षिणी मुख को, अघोरा और ऊपरी मुख को, ईशान कहा गया हैं।
इस मंदिर की सबसे प्रसिद्द मान्यता यह हैं की इस मंदिर मे दर्शन करने के बाद मनुष्य को कभी पशु योनि प्राप्त नहीं होती लेकिन इस मंदिर के पश्चिमी हिस्से पर बनी नंदी की एक बहुत बड़ी पीतल की प्रतिमा हैं अगर उसकी पूजा आपने करी तो आपको पशु योनि प्राप्त होगी। इस लिए यहाँ पर सबसे पहले भगवान शिव की पंचमुखी शिव लिंग (Shivling) की ही पूजा करना जरूरी हैं।
जितनी इस मंदिर की खूबसूरत मान्यता हैं, उतनी ही हैरान कर देने वाली स्थापना हैं, पौराणिक कथाओ के मुताबिक जब कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद जब सभी पांडवों को एहसास हुआ की उहोने अपने सभी सगे-संबंदित को मौत के घात उतार दिया, तब सभी पांडव दुखी हो गए। जिससे उन्हे गोत्र-पाप का श्राप लग गया। तब सभी पांडव भगवान शिव (shiv) के पास अपनी की हुई गलती का प्रयश्चित करने जाने लगे, सभी पांडव भगवान शिव को ढूँढने लगे लेकिन भगवान शिव (bhagwan shiv) नहीं चाहते थे की पांडवों को अपनी गलती की सजा इतनी जल्दी मिले। तब कुछ समय बाद सभी पांडव भगवान शिव के पास पहुचे तो भगवान शिव ने उन्ही पांडवों से बचने के लिए एक बैल का रूप धारण किया और बैलों के झुंड मे जा छिपे।
ऐसे मे भीम ने अपना शरीर बहुत बड़ा कर लिया और अपनी टांगों को थोड़ा फेला लिया जिससे सभी बैल भीम के टांगों के नीचे से जाने लगे, लेकिन भगवान महादेव (Bhagwan Mahadev) ररोपी बैल नहीं गए, जिस कारण सभी पांडवों को मालूम हो गया था की यह भगवान शिव ही हैं, और भगवान शिव धरती मे जाने लगे ऐसे मे भीम ने अपने बलशाली शक्ति का इस्तेमाल करके महादेव रूपी बैल की पूंछ पकड़ ली। इतनी शक्ति का प्रयोग करने के कारण महादेव रूपी बैल के टुकड़े हो गए, और उनके कई हिस्से अलग-अलग जगह जा गिरे। जिसमे उनका मस्तिक काठमांडू मे जा गिरा जिसे आज पशुपतिनाथ मंदिर से जाना जाता हैं, और उनका कूबड़ केदारनाथ मे जिसे आज केदारनाथ मंदिर से जाना जाता हैं.. एसे अन्य हिस्से अलग अलग जगहों पर जा गिरे। जिस-जिस स्थान पर वह हिस्से गिरे आज वहाँ एक भगवान शिव के मंदिर हैं।
पशुपतिनाथ मंदिर के बाहर एक नदी हैं जिसे बागमती नदी के नाम से जाना हैं, नदी के दहिणी तरफ ही बिरुपाक्ष्य की प्रतिमा हैं, और इस प्रतिमा के यहाँ होने की कई कहानी प्रचिलित हैं, कोई कहता हैं ये प्रतिमा भगवान शिवे के गले मे वासुकि नाग के इंसानी रूप की हैं, तो कई लोग कहते हैं काठमांडू में स्थित किरात लोगों के पवित्र देवता हैं, जिन्हें प्राचीन नेपाल के किराती राजाओं द्वारा स्थापित किया गया था, जिन्हें पूर्वज माना जाता है। इसे किरात्स्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। किरात बाकी लोग से अलग हैं और इसलिए उनकी मान्यताएँ और देवता भिन्न-भिन्न हैं। बिरुपाक्ष्य को दक्षिण भारत में बिरुपाक्ष्य के नाम से भी पूजा जाता है।

लेकिन इन्ही बीच एक कहानी बहुत प्रचलित हैं जो इसे राक्षस कली (kali) से जोड़ती हैं; माना जाता हैं एक गाव मे एक बहुत गरीब परिवार रहा करता था जिनके पास खाने-पीने तक को कुछ नहीं था, और उस परिवार मे माँ-बाप और उनका बच्चा जिसका नाम बिरुपाक्ष्य था, एक दिन पिता काम की खोज मे बाहर जाते हैं, लेकिन वह शाम को घर नहीं लौटे एसे मे बिरुपाक्ष्य की माँ अपने पति की खोज मे निकल जाती हैं, कुछ समय बीता बिरुपाक्ष्य अब 7 साल का हो चुका था।
और वह भी अपने पिता को ढूंढने निकाल जाता हैं, और उन्हे ढूंढते-ढूंढते 10 साल बीत जाते हैं, एक दिन वह रात के अंधेरे मे जा रहे थे उन्हे अराम करने की जगह नहीं मिल रही थी कुछ समय बाद उन्हे गुफा मिली जिसमे एक महिला पहले से शरण कर रही थी, वह शरण लेने उस गुफा मे गए और अंधेरा होने के कारण उन्हे उस महिला का चेहरा नहीं दिखा। एसे मे दोनों ने शारीरक संबंध बना लिए।
“बिरुपाक्ष्य: कलयुग का अंत और बदलाव की शुरुआत”
जब सुबह हुई तो बिरुपाक्ष्य को उनका चेहरा दिखा, तब उन्हे मालूम चला ये महिला और कोई नहीं बिरुपाक्ष्य की माँ हैं। एसे मे माना जाता हैं की तभी से कलयुग की शुरुआत हुई थी। विरुपाक्ष अपराध बोध से भरकर पशुपतिनाथ मंदिर गया जहाँ उन्हे एक साधु दिखे जो भगवान शिव थे, जो कुछ नशीला पदार्थ तैयार करते देखा।
शिव जी (Shiv ji) ने बिरुपाक्ष्य से गर्म बर्तन का ढक्कन खोलने को कहा। ढक्कन खोलते समय तांबे के बर्तन की गर्मी से विरुपाक्ष का चेहरा जल गया। उनका मुख काला पड़ गया जिससे बिरुपाक्ष्य को गुस्सा आया। उसने भगवान शिव को सभी गाव वालों के सामने श्राप दिया और फिर जंगल की ओर चल दिया।
फिर वह वहा से बुद्ध के पास गए जो पास में ही ध्यान कर रहे थे। बुद्ध ने उसे एक माला दी और माला के मुरझाने तक जप करने को कहा, बिरुपाक्ष्य वही उनके पास बैठ कर जाप करने लगे, काफी देर तक जप करने के बाद भी माला नहीं मुरझाने के कारण वह निराश हो गए और क्रोध मे अपने स्थान की ओर चल दिए। थोड़ा आगे गए तो उन्हे एक लड़का लोहे की छड़ को पत्थर पर खरोंच रहा है। बिरुपाक्ष्य ने लड़के से पूछा कि वह ऐसा क्यों कर रहा है? लड़के ने उत्तर दिया कि वह अपने फटे कपड़े सिलने के लिए सुई बनाना चाहता है। लड़के की इतनी कठोर मेहनत को देख कर, बिरुपाक्ष्य का हृदय रो उठा और तब उन्हे एहसास हुआ की उन्होंने कितनी बड़ी गलती करी।
और फिर वह वापस वही भगवान शिव के पास गए और वही बैठ कर जप करने लगे। जब लोगों ने उन्हे पशुपति मंदिर में बुद्ध की माला लेकर जप करते देखा तो उसे जमीन में गाड़ दिया क्योंकि उसने पहले शिव का अपमान किया था। ऐसा माना जाता हैं
बिरुपाक्ष्य की जो प्रतिमा हैं वह स्वयं बिरुपाक्ष्य ही हैं। और कलयुग के अंत मे वह धरती से बाहर आ जाएंगे और राक्षस कली (kali) का साथ देंगे और इंसानों से अपना बदल लेंगे। और धरती पर पाप और अधर्म को चरम सीमा तक पहुचने मे कली की मदद करेंगे।