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    Home » Saraswati: ज्ञान और यादाश्त बढ़ाने के लिए ऐसे करें देवी सरस्वती की उपासना
    Saraswati

    Saraswati: ज्ञान और यादाश्त बढ़ाने के लिए ऐसे करें देवी सरस्वती की उपासना

    Prabhu BhaktiBy Prabhu BhaktiAugust 4, 2023Updated:August 4, 2023
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    क्या है देवी Saraswati के Kavach और Yantra का महत्व

    Saraswati Kavach और Yantra में मां सरस्वती के सभी गुणों का सम्मिश्रण होता है जिसकी कामना हर महत्वकांक्षी व्यक्ति को होती है। वैदिक साहित्य में goddess saraswati ज्ञान का आधार बताई गई हैं।  जहां भी ज्ञान, कला, कौशल विद्यमान है वहां देवी सरस्वती का वास होने से ही यह सब संभव हो पाया है। 

    देवी सरस्वती के इन सभी गुणों को अपने भीतर जागृत करने के लिए सरस्वती कवच का प्रयोग किया जाता है। सरस्वती कवच और Yantra के महत्व और इसके प्रयोग के बारे में जानने से पहले हम आपको बताएंगे कि आखिर माता सरस्वती का जन्म कैसे हुआ और किस प्रकार वे विद्या की देवी के रूप में जानी गई। 

    किसी बालक के जन्म लेने से ही उसके सीखने की प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है।  विद्यालय में जाते ही उसे सर्वप्रथम saraswati vandana ही सिखाई जाती है ताकि छात्र माता सरस्वती के महत्व को समझ सके।

    आइये अब आपको बताते हैं saraswati mata के उद्भव की कहानी

    मां सरस्वती साहित्य, कला और संगीत की देवी हैं। saraswati symbol की बात करें तो इनके हाथ में जो वीणा (Musical instrument) है वह संगीत, पुस्तक साहित्य की और हंस कला का प्रतीक है। मां सरस्वती नाम से दो देवियां हिन्दू धर्म में जानी जाती है एक तो ब्रह्मा जी की पत्नी सरस्वती और दूसरी ब्रह्मा जी की पुत्री और विष्णु जी की पत्नी देवी सरस्वती।

    ब्रह्मा जी की पत्नी तो तीन प्रमुख त्रिदेवियों में से एक हैं जबकि ब्रह्मा जी की पुत्री और विष्णु जी की पत्नी का जन्म ब्रह्मा जी की जिव्ह से हुआ था। शास्त्रों की मानें तो दोनों ही देवियों का स्वरुप, प्रकृति और विद्या एक जैसी ही मानी गई है इसलिए दोनों की ही पूजा लगभग एकसमान है।[1]

    जब भी यह सवाल उठाया जाता है कि who is the father of maa saraswati तो इसका जवाब है ब्रह्मा जी जिनकी जीवा से वे जन्मी थीं। इसी तरह is saraswati married? सवाल का यही जवाब है कि ब्रह्मा जी की जीवा से जन्मी सरस्वती देवी का विवाह भगवान विष्णु से हुआ था। देवी के अनेकों नाम है जैसे- शुक्लवर्ण, शारदा, वाणी, हंसवाहिनी, वागीश्वरी, बुद्धिदात्री, भुवनेश्वरी और चंद्रकांति।

    ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-

    प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।

    भावार्थ:- इस saraswati shloka का भावार्थ यह है कि देवी सरस्वती परम चेतना हैं। सरस्वती रूप में ये हमारी बुद्धि और मनोवृत्तियों की रक्षा करने वाली हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अत्यधिक है।

    पुराणो में भगवान श्रीकृष्ण ने सरस्वती से प्रसन्न होकर कहा था कि उनकी बसंत पंचमी के दिन पूजा करने वालों के ज्ञान में वृद्धि होगी। यही वजह है कि आज तक वसंत पंचमी के दिन सभी लोग देवी सरस्वती की आराधना करते हैं। अपनी पाठ्यपुस्तक और अन्य ज्ञान अर्जित करने वाली सामग्री को पूजते हैं। ऐसा माना जाता है कि देवी सरस्वती की उपासना से मूर्ख व्यक्ति भी विद्वान हो जाता है।

    अब आपको बताएंगे कि सरस्वती कवच के क्या फायदे हैं और इसका प्रयोग कैसे किया जाता है-

    सरस्वती कवच(saraswati kavach) क्या है?

    सरस्वती कवच व्यक्ति के भीतर इस भावना को जागृत करता है और शिक्षा ग्रहण की दिलचस्पी को बढ़ाता है। वहीँ अगर बात करें कि सरस्वती कवच किस दिन पहना चाहिए तो सरस्वती कवच को पहनने के लिए सबसे शुभ दिन तो basant panchami बताया गया है लेकिन इसे बृहस्पतिवार को भी धारण किया जा सकता है। बात करें what is the effect of saraswati kavach तो कवच का पाठ किये जाने से देवी सरस्वती की साधक पर कृपा बनी रहती है।

    सरस्वती कवच(saraswati kavach) के लाभ

    • सरस्वती कवच व्यक्ति को मानसिक तौर पर मजबूती प्रदान करता है।
    • मान्यता है कि इस कवच का 5 लाख बार उच्चारण करने से व्यक्ति बृहस्पति के समान बुद्धिमान हो जाता है।
    • इस कवच का पाठ करने से व्यक्ति संगीत, कला और ज्ञान के क्षेत्र में खूब तरक्की हासिल कर सकता है।
    • यह याददाश्त को तेज करने में भी काफी लाभकारी है।

    प्रयोग करने की विधि

    • Kavach का पाठ करने की भी प्रक्रिया है जिसके द्वारा ही जातक कवच का पाठ कर आशीर्वाद पा सकते है।
    • पाठ को शुरू करने से पहले प्रातः काल स्नान करें और श्वेत या पीले वस्त्र धारण करें।
    • उसके बाद सरस्वती मां की प्रतिमा रखे और सच्चे भाव से दिए गए mantra का जाप करें। यह प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद ही कवच को धारण किया जा सकता है।

    ॥ब्रह्मोवाच॥
    श्रृणु वत्स प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वकामदम्।
    श्रुतिसारं श्रुतिसुखं श्रुत्युक्तं श्रुतिपूजितम्॥
    उक्तं कृष्णेन गोलोके मह्यं वृन्दावने वमे।
    रासेश्वरेण विभुना वै रासमण्डले॥

    • यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि बिना किसी विधि के इस कवच को धारण नहीं करना चाहिए।

    What is Saraswati Yantra? । सरस्वती यंत्र

    व्यक्ति सफलता प्राप्ति के लिए भरसक प्रयास करता है और जब वे सभी प्रयास भी व्यक्ति को  उसके इच्छा के मुताबिक फल नहीं दे पाते हैं तो वह अपनी उन सभी महत्वकांक्षाओं की पूर्ती के लिए दुसरे तरह के टोटके अपनाना आरम्भ कर देता है। इन्हीं दूसरे तरीके या टोटके में से एक है saraswati yantra.

    शास्त्रों की मानें तो शिक्षा प्राप्ति के लिए यन्त्र का प्रयोग करने से कई तरह के लाभ व्यक्ति को हासिल होते है, जिनका उल्लेख आज हम करने वाले हैं : 

    सरस्वती यंत्र के फायदे। Saraswati Yantra Benefits

    • बौद्धिक क्षमता और एकाग्रता शक्ति को बढ़ाने के लिए saraswati mata yantra काफी लाभकारी है ।
    • maa saraswati yantra कमजोर यादाश्त और परीक्षा के भय को समाप्त करता है ।
    • जिस भी छात्र का मन पढाई में कम लगता है, उसका ध्यान बढ़ाने के लिए इसे प्रयोग में लाया जा सकता है ।
    • कुंडली में मौजूद वो सभी दोष जो व्यक्ति को सफल होने से रोक रहें हैं उन सभी को दूर करने में यह shree saraswati yantra अत्यधिक लाभकारी है ।
    • साथ ही प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षाओं की तैयारी में लगे छात्र, कला, साहित्य क्षेत्र में कार्यरत और शोधकर्ताओं के लिए यन्त्र एक अहम भुमका निभा सकता है।
    • बताते चलें कि यन्त्र या सरस्वती यंत्र लॉकेट (saraswati yantra locket) या saraswati yantra pendant में से किसी का भी प्रयोग किया जा सकता है। दोनों के ही समान लाभ व्यक्ति को मिलेंगे।

    How to make Saraswati Yantra। सरस्वती यंत्र कैसे बनाएं

    जानें क्या है सरस्वती यंत्र बनाने की विधि:-

    saraswati mata yantra की सबसे ख़ास बात यह है कि यदि कोई इसे अपने हाथो से बनाएगा तो उसका अधिक लाभ उस व्यक्ति को प्राप्त होगा क्योंकि हाथ से बना हुआ यन्त्र काफी शुभ माना जाता है। सरस्वती यंत्र बनाने की विधि में अनार की कलम या अष्टगंध की स्याही से भोजपत्र पर बना इसकी स्वयं पूजा करने से बहुत लाभ मिलता है।

    ध्यान देने योग्य बात यह कि सरस्वती यंत्र की स्थापना करते समय सरस्वती चालीसा व “ऊं ग्रां ग्रीं ग्रों स: गुरूवे: नम:” जाप करना चाहिए क्योंकि इसका सच्चे मन से जाप करने से अत्यधिक लाभ प्राप्त होता है।

    saraswati vidya yantra बनाने के लिए सर्वप्रथम एक सफ़ेद पन्ने पर 7 बिंदु बनायें उसी श्रृंखला में नीचे सात बिंदुओं के बीच में आठ बिंदु बनायें । इसके पश्चात फिर से ऊपर की बिंदुओं के मध्य में नीचे सात बिंदु बनायें इसी तरह नीचे के क्रम में 6 और फिर नीचे के क्रम में आते-आते एक बिंदु कम करते जाएँ।

    ध्यान रहे कि यह बिंदु 2 पर समाप्त होना चाहिए। सर्वप्रथम बनाये गए सात बिंदुओं पर 9 के आकर बनायें और नीचे के बिंदुओं को तिरछी रेखा में जोड़ दें। इस तरह से saraswati yantra symbol अपने हाथ से बना जा सकता है।

    सिद्ध अष्ट सरस्वती यंत्र

    जानें क्या है ashta saraswati yantra

    शास्त्रों के मुताबिक सिद्ध अष्ट सरस्वती यंत्र का प्रयोग करने वाला छात्र तेजस्वी और बुद्धिमान होता है इसलिए जिन विद्यार्थियों का पढाई में मन नहीं लगता है, उन्हें अष्ट सरस्वती यंत्र को छात्र को गले में पहनने की सलाह दी जाती है। 

    How Saraswati Yantra Works

    यन्त्र एक प्रकार की ज्यामितिक रचना होती है जिसमें कोई आकृति या चिन्ह आदि बने होते है। इस पर बनी आकृतियां विशेष तरह की होती हैं जिसका निर्माण विशेष नक्षत्रों में किया जाता है। अतः सरस्वती यन्त्र के बिल्कुल मध्य में ध्यान केंद्रित करने से ब्रह्माण्ड में मौजूद शक्तियां और ऊर्जा व्यक्ति के मस्तिष्क तक पहुँचती है और ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है।

    ये सभी ऊर्जा व्यक्ति के सभी बुरे दोषों और नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त कर देती हैं। saraswati yantra education स्तर में वृद्धि के लिए बहुत फायदेमंद है इसलिए इसका प्रयोग ख़ासकर छात्र करते हैं. ध्यान रहे कि इस यन्त्र का प्रभाव 4 वर्ष और 4 माह तक ही रहता है।

     

    सरस्वती माता के अति विशेष मन्त्र

    सरस्वती माता मंत्र:

    ओम ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नमः।

    विद्या प्राप्ति मंत्र

    अधिकतर छात्र माता सरस्वती की आराधना विद्या प्राप्ति के लिए करते है इसलिए आज हम विद्या प्राप्ति के लिए सरस्वती मंत्र बताएंगे जिसके माध्यम से ज्ञान वृद्धि की जा सकती है।

    विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु।

    त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुति: स्तव्यपरा परोक्ति:।।

    भावार्थ: इस श्लोक के माध्यम से देवी के व्यापक स्वरुप की व्याख्या की गई है और कहा गया है कि हे देवी समस्त स्त्रियों में और पूरे जगत में तुम्हारा वास है। तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? तुम तो स्तवन करने वाले उन सभी पदार्थों से बिल्कुल परे हो।

    नील सरस्वती कवच। neel saraswati kavach

    ॐ श्रीं ह्रीं हसौ: हूँ फट नीलसरस्वत्ये स्वाहा ॥ ( 11 माला जाप करे ) मंत्र जाप के बाद स्तोत्र का पाठ करे 

    सरस्वती गायत्री मंत्र

    सरस्वती ध्यान मंत्र

    Saraswati Chalisa

    जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥

    जय जय जय वीणाकर धारी।करती सदा सुहंस सवारी॥

    रूप चतुर्भुज धारी माता।सकल विश्व अन्दर विख्याता॥

    जग में पाप बुद्धि जब होती।तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥

    तब ही मातु का निज अवतारी।पाप हीन करती महतारी॥

    भावार्थ : सम्पूर्ण सृष्टि का ज्ञान और बुद्धि बल रखने वाली हे देवी सरस्वती आपकी जय हो। सब कुछ जानने वाली, कभी न नष्ट होने वाली मां सरस्वती आपकी जय हो। हाथ में वीणा धारण कर हंस की सवारी करने वाली देवी सरस्वती आपकी जय हो। हे देवी आपका चार भुजाओं का रुप पूरे संसार में  विख्यात है। जब-जब इस दुनिया में विनाशकारी बुद्धि बढ़ती है, हे मां तब आप अवतार लेती हैं व इस धरती को पाप से मुक्ति दिलाती हैं।

    वाल्मीकिजी थे हत्यारा।तव प्रसाद जानै संसारा॥

    रामचरित जो रचे बनाई।आदि कवि की पदवी पाई॥

    कालिदास जो भये विख्याता।तेरी कृपा दृष्टि से माता॥

    तुलसी सूर आदि विद्वाना।भये और जो ज्ञानी नाना॥

    तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा।केव कृपा आपकी अम्बा॥

    भावार्थ : जिन वाल्मीकि जी को हत्यारा कहा जाता था । उनको आपके द्वारा मिले प्रसाद के कारण सारा संसार जानता है, उन्होंने रामचरितमानस बनाई और वे विख्यात कवि के नाम से जाने गए। इसी तरह कालिदास, तुलसीदास भी आपकी कृपा दृष्टि से ऐसे ही विख्यात हुए।

    करहु कृपा सोइ मातु भवानी। दुखित दीन निज दासहि जानी॥

    पुत्र करहिं अपराध बहूता। तेहि न धरई चित माता॥

    राखु लाज जननि अब मेरी। विनय करउं भांति बहु तेरी॥

    मैं अनाथ तेरी अवलंबा। कृपा करउ जय जय जगदंबा॥

    भावार्थ : हे माता भवानी ! मुझ जैसे दीन दुखी को अपना दास समझकर मुझपर अपनी कृपा बरसाओ। पुत्र तो कई अपराध करते हैं आप उन्हें चित में धारण न करें अर्थात मेरी गलतियों को माफ़ करें। हे मां मैं आपकी प्रार्थना करता हूं, मेरी लाज रखना। हे मां मुझ जैसे अनाथ को बस आपका ही सहारा है। मां जगदंबा दया करना, आपकी जय हो।

    मधुकैटभ जो अति बलवाना। बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना॥

    समर हजार पाँच में घोरा। फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा॥

    मातु सहाय कीन्ह तेहि काला। बुद्धि विपरीत भई खलहाला॥

    तेहि ते मृत्यु भई खल केरी। पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥

    चंड मुण्ड जो थे विख्याता। क्षण महु संहारे उन माता॥

    रक्त बीज से समरथ पापी। सुरमुनि हदय धरा सब काँपी॥

    काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा। बारबार बिन वउं जगदंबा॥

    जगप्रसिद्ध जो शुंभनिशुंभा। क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा॥

    भावार्थ : जब मधुकैटभ नामक दानव से भगवान विष्णु ने युद्ध किया तो वे पांच हजार साल तक युद्ध करने के बाद भी उसे हराने में नाकाम रहे। हे मां तब तुमने ही उसकी बुद्धि को विपरीत कर दिया तब राक्षस का वध हुआ। मां मेरी भी मनोकामना पूरी करो। चण्डमुण्ड का वध भी आपने कुछ ही पलों में कर दिया और रक्तबीज जैसे पापी जिससे सब देवता कांपते थे, उसका संहार भी क्षणभर में ही कर दिया। हे! मां मैं आपकी प्रार्थना करता हूँ, आपको नमन करता हूँ, मेरा भी उद्धार करो। 

    भरतमातु बुद्धि फेरेऊ जाई। रामचन्द्र बनवास कराई॥

    एहिविधि रावण वध तू कीन्हा। सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा॥

    को समरथ तव यश गुन गाना। निगम अनादि अनंत बखाना॥

    विष्णु रुद्र जस कहिन मारी। जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥

    रक्त दन्तिका और शताक्षी। नाम अपार है दानव भक्षी॥

    भावार्थ : हे मां सरस्वती, आप ही थीं जिसने भरत की मां केकैयी की बुद्धि फेरी और प्रभु श्री राम को वनवास करवाया। इसी तरह रावण का संहार करने वाली भी आप ही हैं। देवताओं, मनुष्यों, ऋषि-मुनियों सभी को सुख-शांति प्रदान की। आपकी जीत की गाथाएं तो अनादि काल से चली आ रही हैं जो कि अनंत हैं। जिनकी संरंक्षिका आप हैं उन्हें स्वयं भगवान विष्णु या शिव भी नहीं मार सकते। रक्त दंतिका, शताक्षी, दानव भक्षी आपके अनेकों नाम प्रचलित हैं।

    दुर्गम काज धरा पर कीन्हा। दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥

    दुर्ग आदि हरनी तू माता। कृपा करहु जब जब सुखदाता॥

    नृप कोपित को मारन चाहे। कानन में घेरे मृग नाहे॥

    सागर मध्य पोत के भंजे। अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥

    भूत प्रेत बाधा या दुःख में। हो दरिद्र अथवा संकट में॥

    नाम जपे मंगल सब होई। संशय इसमें करई न कोई॥

    भावार्थ : हे सरस्वती मां दुर्गम कार्यों को करने के कारण समस्त संसार ने आपको दुर्गा रूप की संज्ञा दी है। आप कष्टों को हरने वाली हैं, आप जब भी हम पर कृपा बरसाती हैं तो सुख की प्राप्ती होती है। जब राजा गुस्से में मरना चाहता हो, या फिर जंगल में खूंखार जानवरों से घिर गए हों, या समंदर के बीचों बीच फंस जाए और तूफ़ान आ जाये, भूत पिशाच सता रहे हों या निर्धनता का कष्ट सता रहा हो। हे मां केवल सरस्वती नाम जपते ही सब कुछ फिर से सामान्य हो जाता है। इसमें कोई संशय नहीं है कि आपका नाम मात्र जपने से ही सभी बड़े संकट भी टल जाते है।

    पुत्रहीन जो आतुर भाई। सबै छांड़ि पूजें एहि भाई॥

    करै पाठ नित यह चालीसा। होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा॥

    धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै। संकट रहित अवश्य हो जावै॥

    भक्ति मातु की करैं हमेशा। निकट न आवै ताहि कलेशा॥

    बंदी पाठ करें सत बारा। बंदी पाश दूर हो सारा॥रामसागर बाँधि हेतु भवानी।कीजै कृपा दास निज जानी॥[2]

    भावार्थ :जिनके कोई संतान नहीं हैं, वे आपकी पूजा करें और प्रतिदिन इस चालीसा का पाठ करें, तो उन्हें प्रतिभाशाली संतान की अवश्य ही प्राप्ति होगी। इसी के साथ मां के समक्ष धूप और नैवेद्य अर्पित करने से सभी संकट मिट जाते हैं। जो भी माता की सच्चे मन से भक्ति करता है, वे सभी तरह के कष्ट से दूर रहता है    और जो भी सौ बार इसका ह्रदय से पाठ करता है, उसके सभी बंदी पाश दूर हो जाते हैं। हे मां भवानी आप सदा  मुझे दास समझ, अपनी कृपा बरसायें।

    Saraswati Stotram

    सरस्वती स्तोत्र कुछ इस प्रकार है

    Neel Saraswati Stotram

    Vishwavijay Saraswati Kavach

    ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार विश्वविजय सरस्वती कवच का प्रतिदिन पाठ करने से चमत्कारी शक्तियां प्राप्त होती है। पुराणों में इस बात का उल्लेख है कि देवी सरस्वती के इस विश्वविजय कवच को धारण कर ही महर्षि वेदव्यास, ऋष्यश्रृंग, भारद्वाज, देवल तथा जैगीषव्य ऋषियों ने सिद्धि प्राप्त की थी।

    विश्वविजय सरस्वती कवच

    What is Basant Panchami?


    Basant Panchmi वर्षों से देवी सरस्वती की उपासना करने के लिए मनाया जाने वाला एक पर्व है। इस दिन हिन्दू धर्म से संबंध रखने वाले सभी लोग अपने शैक्षिक सामग्री की पूजा अर्चना कर मां का आशीर्वाद पाने की कामना करते है ताकि वे अपने अपने क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सके।

    सरस्वती पूजा को भारत के पूर्वोत्तर भाग, पश्चिम बंगाल, असम में बड़ी ही धूमधाम से मनाई जाती है। साथ ही पड़ोसी राज्यों बांग्लादेश और नेपाल में भी इस पूजा को मनाया जाता है।

    वहीँ बात करें कि what to do on basant panchami तो इस दिन देवी सरस्वती कीपूरे विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है और सभी स्कूलों, शिक्षण संस्थानों, विश्विद्यालयों आदि में देवी की आराधना भव्य रूप में की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पढाई नहीं कीजाती बल्कि उन किताबों को देवी के समक्ष रख पूजा की जाती है।

    Why we celebrate Basant Panchami?

    इस पूजा को मनाये जाने के पीछे के महत्व पर चर्चा करें तो इसकी एक पौराणिक कथा भगवान श्री कृष्ण और देवी सरस्वती की वार्ता से जुड़ी है जिसमें  भगवान श्री कृष्ण ने देवी सरस्वती को वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन हर साल तुम्हारी उपासना की जाएगी जिस कारण हर वर्ष बसंत पंचमी मनाई जाती है। जबकि दूसरी कहानी ब्रह्मा जी की सृष्टि रचना से जुड़ी हुई है।

    उपनिषदों के अनुसार जब भगवान शिव की आज्ञा का पालन कर ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया तो उन्हें उस वक़्त कुछ कमी सी महसूस हुई और इस कमी को पूरा करने के लिए ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल लेकर भगवान विष्णु की स्तुति करते हुए नवदुर्गा का निर्माण किया।

    दुर्गा के निर्माण के इसी समय दुर्गा के शरीर से एक श्वेत रंग के वस्त्र धारण करते हुए एक चार भुजाओं वाली सुन्दर स्त्री का जन्म भी हुआ जिन्होंने हाथ में वीणा और पुस्तक ली हुई थी और इस तरह देवी सरस्वती अवतरित हुई।

    देवी सरस्वती के इस रूप को देखकर दुर्गा मां ने ब्रह्मा जी से कहा कि जिस प्रकार भगवान विष्णु की शक्ति देवी लक्ष्मी है। महादेव की शक्ति देवी पार्वती है, उसी प्रकार श्वेत वस्त्र धारण की हुई देवी सरस्वती आपकी शक्ति बनेंगी।

    कैसे करें Saraswati Puja?


    1. सर्वप्रथम प्रातःकाल स्नान कर saraswati mata की प्रतिमा को अपने चौकी पर रखें।  

    2. माता के समक्ष केसरियां फूल चढ़ाएं और घी का दीपक जलाएं।  

    3. अन्य शृंगार सामग्री भी अर्पित करें।  

    4. माता को श्वेत वस्त्र पहनाएं क्योंकि यह रंग उन्हें अत्यधिक प्रिय है।  

    5. भोग में उन्हें खीर अर्पित करें।  

    6. इसके पश्चात दिए गए सरस्वती ध्यान मंत्र का जाप 108 बार करें।   

    Which day is for Saraswati Mata?


    सरस्वती मां की उपासना के लिए सबसे शुभ दिन बृहस्पतिवार का होता है। हर गुरूवार को देवी की उपासना करने से साधक पर माता की कृपा बनी रहती है। 

    How to make Saraswati Maa happy?


    प्रतिदिन एक निर्धारित समय पर सरस्वती मां का ध्यान करने और मंत्र जाप करने से देवी सरस्वती को प्रसन्न किया जा सकता है। देवी को श्वेत सामग्री अर्पित करने से भी माँ प्रसन्न होती हैं क्योंकि यह रंग उनका प्रिय है।

    Who Wrote Saraswati Stotram?


    शास्त्रों की मानें तो मां सरस्वती स्तोत्र महर्षि पुलस्त्य ऋषि के बेटे महर्षि अगस्त्य द्वारा लिखी गया है। महर्षि अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा थीं जिन्हें वैदिक काल की विदुषियों में एक गिना जाता है। इनके ऊपर मां सरस्वती की अति कृपा थी।[4]

    Saraswati Temple

    देवी सरस्वती के सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है शारदा पीठ मंदिर। यह देवी सरस्वती का एक प्राचीन मंदिर है और पाक अधिकृत कश्मीर यानी pok में अवस्थित है। आपको बता दें कि यह 18 शक्ति पीठों में से एक है जिसकी हिन्दू धर्म में अत्यधिक मान्यता है। [5]
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    2 Comments

    1. P Sudhakar Patro on August 21, 2022 10:57 am

      प्रणाम, मेरा पोता ७साल का है । अव तक बोल नहीं पा रहा है । एक पंडित जी ने नील सरस्वती कवच और श्री वृहस्पति कवच चांदी की ताविज में धारण करने को कहा है । क्या आप हमें मार्ग दर्शन कराने की कृपा करेंगे ?
      जय जगन्नाथ
      सुधाकर पात्र
      ओडिशा

      Reply
    2. 99techspot.in on December 2, 2022 10:55 pm

      Enjoyed reading your post keep sharing such amazing post will come back to read more. Here I have written about Lord Shri Hanuman Chalisa, please have a look.hanumanchalisalyrics

      Reply

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