वामन अवतार की कहानी ( Vamana Avatar Story )
भगवान विष्णु के वामन रूपी अवतार की कहानी बड़ी ही रोचक है क्योंकि इस पौराणिक कथा में देवों और दैत्यों के बीच हुए युद्ध में जीत और हार के साथ ही अपने वचन निभाने की कसौटी का बड़ी ही ख़ूबसूरती से वर्णन किया गया है। इस कहानी में बताया गया है कि आखिर कैसे दैत्यराज महाबली ( Mahabali ) अपने वचन को निभाने के लिए खुद को समर्पित कर देते हैं। इस कहानी में यह भी बताया गया है कि भले ही उस युग में राक्षसों, असुरों और दैत्यों का आतंक था फिर भी उनमें सत्यनिष्ठा और वचनबद्धता के गुण विद्यमान थे। चलिए जानते हैं इस रोचक कहानी के बारे में :
भगवान विष्णु ने वामन अवतार क्यों लिया? ( Why did Lord Vishnu took Vamana Avatar? )
भगवान विष्णु के वामन अवतार की कथा ( Vaman Avatar ki Katha ) कुछ इस प्रकार है कि देव और दैत्यों के बीच जब युद्ध हो रहा था तब सभी दैत्य हार ही चुके थे। पराजित दैत्य इसके बाद मृत दैत्यों और घायलों को लेकर चले जाते हैं वहीं दैत्यराज बलि को इंद्र देव घायल कर देते हैं। उस समय दैत्यों के गुरु कहे जाने वाले शुक्राचार्य संजीवनी विद्या के बल पर दैत्यराज बलि और बाकी मृत दैत्यों को जीवित कर देते हैं।
इसके बाद राजा बलि के लिए शुक्राचार्य ( Shukracharya ) एक विशाल यज्ञ में माध्यम से अग्निदेव को प्रसन्न कर वरदान के रूप में रथ, बाण और अभेद्य कवच हासिल कर लेते हैं। अग्निदेव से प्राप्त किए शस्त्रों के कारण दैत्य वर्ग अब बलशाली हो चला है और उसने अपनी विशाल सेना को युद्ध के मैदान में उतरकर अमरावती पर आक्रमण कर दिया। यहां दैत्यों की बढ़ती शक्ति के संबंध में देवताओं के राजा इंद्र को सब ज्ञात होता है। इंद्र देव यह बात भली भांति जानते हैं कि दैत्यराज बलि सौ यज्ञ करने के बाद स्वर्ग पर जीत पाने में भी सक्षम हो जाएगा।
इस बात से इंद्र देव ( Indradev ) भय खाने लगते हैं और भगवान विष्णु की शरण में पहुंचते हैं। इंद्रदेव की समस्या को सुन भगवान विष्णु उन्हें सहायता करने का आश्वासन देते हैं। विष्णु जी कहते हैं कि वे Vamana Avatharam रूप में अदिति के गर्भ से अवतार लेंगे। भगवान विष्णु से आश्वासन पाकर अब इंद्र देव निश्चिंत होकर चल देते हैं।
इधर दैत्यराज बलि ( Mahabali ) देवों को पराजित कर देते हैं यह देख महर्षि कश्यप के कहने पर माता अदिति पुत्र प्राप्ति की कामना करते हुए उपासना आरंभ करती हैं। इसी उपासना के बाद भगवान विष्णु ने भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन माता अदिति के गर्भ से वामन रूपी अवतार लिया। विष्णु जी अपने इस अवतार में ब्रह्मचारी ब्राह्मण का रूप धारण करते हैं।
महर्षि कश्यप ( Rishi Kashyap ) उनका ऋषियों के साथ उपनयन संस्कार करते हैं। इस तरह वामन बटुक को महर्षि पुलह यज्ञोपवीत, अगस्त्य मृगचर्म, मरीचि पलाश का दंड, आंगिरस वस्त्र, सूर्य छत्र, भृगु खड़ाऊं, गुरु देव जनेऊ तथा कमंडल, माता अदिति कोपीन, सरस्वती रुद्राक्ष की माला तथा कुबेर भिक्षा पात्र प्रदान करते हैं।
सभी से कुछ न कुछ लेकर Vamana Avatar पिता से आज्ञा लेते हैं और फिर दैत्यराज बलि के समीप जाते हैं। जिस समय वामन राजा बलि के पास पहुंचते हैं उस समय बलि नर्मदा नदी के तट पर अपना अंतिम 100वां यज्ञ संपन्न करने जा रहे होते हैं।
Vaman Avatar लिए विष्णु जी राजा बलि से भिक्षा मांगते हैं और भिक्षा में भी तीन पग भूमि। दैत्यों के राजा बलि अपने गुरु शुक्राचार्य के मना करने के बावजूद विष्णु को तीन पग भूमि दान में देने का वचन दे देते हैं।
इस तरह Bhagwan Vishnu ka Vaman Avatar एक पग में स्वर्ग लोक और दूसरे पग में सम्पूर्ण पृथ्वी नाप लेते हैं। अब उनके पास तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचता। यह देख बलि चिंतित हो उठता है कि तीसरा पग रखने के लिए वह अब स्थान कहां से लाए और अगर उन्होंने अपना वचन पूरा नहीं किया तो अधर्म हो जाएगा। आखिरकार बलि को तीसरा स्थान मिल ही जाता है और वह अपना सिर विष्णु जी के आगे कर देते हैं और कहते हैं प्रभु आप तीसरा पग मेरे सिर पर रख दीजिए।
Vaman Bhagwan बलि की बात मानकर वैसा ही करते हैं और दैत्यराज बलि को पाताल लोक में रहने का आदेश देते हैं। बलि की वचनबद्धता देख भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं और उसे कहते हैं कि कहो तुम्हारी क्या इच्छा है? बलि अपने वर में रात-दिन विष्णु जी को अपने सामने रहने के लिए कहते हैं। इस प्रकार विष्णु जी अपने वचन का पालन करते हुए पाताल लोक में दैत्यों के राजा बलि का द्वारपाल बन उसके सामने रहना स्वीकार कर लेते हैं।
इसके बाद राजा बलि के लिए शुक्राचार्य ( Shukracharya ) एक विशाल यज्ञ में माध्यम से अग्निदेव को प्रसन्न कर वरदान के रूप में रथ, बाण और अभेद्य कवच हासिल कर लेते हैं। अग्निदेव से प्राप्त किए शस्त्रों के कारण दैत्य वर्ग अब बलशाली हो चला है और उसने अपनी विशाल सेना को युद्ध के मैदान में उतरकर अमरावती पर आक्रमण कर दिया। यहां दैत्यों की बढ़ती शक्ति के संबंध में देवताओं के राजा इंद्र को सब ज्ञात होता है। इंद्र देव यह बात भली भांति जानते हैं कि दैत्यराज बलि सौ यज्ञ करने के बाद स्वर्ग पर जीत पाने में भी सक्षम हो जाएगा।
इस बात से इंद्र देव ( Indradev ) भय खाने लगते हैं और भगवान विष्णु की शरण में पहुंचते हैं। इंद्रदेव की समस्या को सुन भगवान विष्णु उन्हें सहायता करने का आश्वासन देते हैं। विष्णु जी कहते हैं कि वे Vamana Avatharam रूप में अदिति के गर्भ से अवतार लेंगे। भगवान विष्णु से आश्वासन पाकर अब इंद्र देव निश्चिंत होकर चल देते हैं।
इधर दैत्यराज बलि ( Mahabali ) देवों को पराजित कर देते हैं यह देख महर्षि कश्यप के कहने पर माता अदिति पुत्र प्राप्ति की कामना करते हुए उपासना आरंभ करती हैं। इसी उपासना के बाद भगवान विष्णु ने भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन माता अदिति के गर्भ से वामन रूपी अवतार लिया। विष्णु जी अपने इस अवतार में ब्रह्मचारी ब्राह्मण का रूप धारण करते हैं।
महर्षि कश्यप ( Rishi Kashyap ) उनका ऋषियों के साथ उपनयन संस्कार करते हैं। इस तरह वामन बटुक को महर्षि पुलह यज्ञोपवीत, अगस्त्य मृगचर्म, मरीचि पलाश का दंड, आंगिरस वस्त्र, सूर्य छत्र, भृगु खड़ाऊं, गुरु देव जनेऊ तथा कमंडल, माता अदिति कोपीन, सरस्वती रुद्राक्ष की माला तथा कुबेर भिक्षा पात्र प्रदान करते हैं।
सभी से कुछ न कुछ लेकर Vamana Avatar पिता से आज्ञा लेते हैं और फिर दैत्यराज बलि के समीप जाते हैं। जिस समय वामन राजा बलि के पास पहुंचते हैं उस समय बलि नर्मदा नदी के तट पर अपना अंतिम 100वां यज्ञ संपन्न करने जा रहे होते हैं।
Vaman Avatar लिए विष्णु जी राजा बलि से भिक्षा मांगते हैं और भिक्षा में भी तीन पग भूमि। दैत्यों के राजा बलि अपने गुरु शुक्राचार्य के मना करने के बावजूद विष्णु को तीन पग भूमि दान में देने का वचन दे देते हैं।
इस तरह Bhagwan Vishnu ka Vaman Avatar एक पग में स्वर्ग लोक और दूसरे पग में सम्पूर्ण पृथ्वी नाप लेते हैं। अब उनके पास तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचता। यह देख बलि चिंतित हो उठता है कि तीसरा पग रखने के लिए वह अब स्थान कहां से लाए और अगर उन्होंने अपना वचन पूरा नहीं किया तो अधर्म हो जाएगा। आखिरकार बलि को तीसरा स्थान मिल ही जाता है और वह अपना सिर विष्णु जी के आगे कर देते हैं और कहते हैं प्रभु आप तीसरा पग मेरे सिर पर रख दीजिए।
Vaman Bhagwan बलि की बात मानकर वैसा ही करते हैं और दैत्यराज बलि को पाताल लोक में रहने का आदेश देते हैं। बलि की वचनबद्धता देख भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं और उसे कहते हैं कि कहो तुम्हारी क्या इच्छा है? बलि अपने वर में रात-दिन विष्णु जी को अपने सामने रहने के लिए कहते हैं। इस प्रकार विष्णु जी अपने वचन का पालन करते हुए पाताल लोक में दैत्यों के राजा बलि का द्वारपाल बन उसके सामने रहना स्वीकार कर लेते हैं।
वामन अवतार कौन से युग में हुआ? ( In which era did Vamana Avatar take place? )
भगवान विष्णु का पांचवा वामन रूपी अवतार सतयुग के बाद दूसरे युग यानी त्रेतायुग में देवताओं को दैत्यों के आक्रमण से बचाने के लिए और स्वर्गलोक की रक्षा करने के लिए हुआ था।
वामन अवतार का अर्थ क्या है? ( What is the meaning of vamana avatar? )
श्री हरी ने दैत्यों को पराजित करने के लिए एक छोटे बालक रूपी ब्राह्मण का अवतार लिया था। छोटे ब्राह्मण बालक को ही वामन कहा गया है। श्री हरि के वामन अवतार को दक्षिण भारत में उपेंद्र के नाम से जाना जाता है।
वामन से किसे पराजय मिली? ( Who was defeated by Vamana? )
भगवान विष्णु के वामन अवतार से दैत्यों के राजा बलि को पराजय मिली। राजा बलि ने अपनी वचनबद्धता के चलते भगवान विष्णु को उनका तीसरा पग अपने सिर पर रखने के लिए कहा था जिससे वे पाताल लोक चले गए।