समुद्र मंथन क्या है? ( What is Samudra Manthan? )
संसार की रचना से पूर्व कई ऐसी घटनाएं हुई जिसका उल्लेख हिन्दू धर्म में मिलता है, इसमें से एक है समुद्र मंथन (Samudra Manthan) की घटना। मंथन का शाब्दिक अर्थ होता है बिलौना या किसी गूढ़ तत्व की गहरी छानबीन इस प्रकार समुद्र मंथन से तातपर्य है समुद्र में किसी गूढ़ तत्व को ढूंढने की प्रक्रिया।
जब सृष्टि का सृजन किया जाना था तब उस सृष्टि में सभी वस्तुओं और तत्वों को एक व्यवस्थित रूप देने के लिए समंदर में मंथन करने की योजना बनाई गई जिसका ज़िक्र आज हम करने वाले हैं।
समुद्र मंथन की कथा ( Story of Samudra Manthan )
जब दैत्यों का राजा कहे जाने वाले बलि ने अपने अहंकार और शुक्राचार्य द्वारा दी गई शक्ति के बल पर तीनों लोकों पर नियंत्रण पा लिया तब सभी देवताओं में भय का माहौल बन गया था। उस दौरान इंद्र देव ऋषि दुर्वासा (Rishi Durvasa) के शाप का फल भोग रहे थे।
देखते ही देखते दैत्य बलि का आतंक बढ़ता चला गया और देवताओं का जीना दूभर हो गया। अपनी परेशानी का हल निकालने के लिए ब्रह्मा जी के नेतृत्व में सभी देवता गण भगवान् विष्णु (Lord Vishnu) की शरण में पहुंचे।
सभी देवता बोले कि असुरों, दैत्यों और राक्षसों की प्रगति हो रही है और हम लोग अवनति के कगार पर हैं। भगवान् विष्णु ने सभी देवताओं की चिंता को सुनने के पश्चात इसके समाधान के रूप में समुद्र मंथन (samudra manthan) किये जाने का सुझाव दिया। भगवान् विष्णु ने कहा कि तुम इस समस्या को युद्ध के बजाय मित्रता से हराओ।
इसके लिए तुम सब इन दैत्यों, राक्षसों और असुरों के साथ मित्रता कर क्षीरसागर के मंथन (Manthan) के लिए मनाओ। उन्हें मनाने के बाद समुद्र को मथ कर उसमें से अमृत निकालकर पान कर लो। अमृत ग्रहण कर तुम सदा के लिए अमर हो जाओगे जिससे बड़ी ही सरलता से तुम दैत्यों, राक्षसों और असुरों का वध करने में समर्थ हो सकोगे।
इस तरह से भगवान् के द्वारा दिए गए आदेश के अनुसार इंद्र देव (Indra Dev) ने असुर बलि को अमृत की बात बताई और समुद्र मंथन के लिए उसे तैयार कर लिया। मंथन की इस प्रक्रिया के लिए मंदराचल पर्वत (mandrachal parvat) को मथनी के तौर पर और वासुकि नाग (vasuki naag) को नेति के तौर पर प्रयोग में लाया गया। साथ ही भगवान् विष्णु (Lord Vishnu) ने स्वयं कच्छप अवतार (Kurma Avatar) धारण कर मंदराचल पर्वत (mandrachal parvat) को उठाने का कार्यभार संभाला। इसके पश्चात विष्णु ने देवताओं और दानवों में शक्ति का संचार किया और वासुकि नाग जिसे नेति बनाया गया को गहरी नींद में सुलाकर उसे सारे कष्ट को दूर कर दिया।
अब शुरू हुई मथने की प्रक्रिया तो देवता गण नाग को मुख की ओर पकड़ने लगे। यह देख दैत्य पक्ष को देवताओं पर कुछ संदेह हुआ और उन्होंने कहा कि हम भी बहुत शक्तिशाली हैं इसलिए हम इसे मुख की ओर से पकड़ेंगे। फिर देवताओ ने वासुकि नाग की पूँछ की ओर से उसे पकड़ा।
समुद्र मंथन से निकले 14 रत्न कौन से हैं? ( What 14 things came from Samudra Manthan? )
मथने की प्रक्रिया के आरम्भ में सबसे पहले हलाहल विष (Halahala) निकला जिसे देखकर सभी देवता और असुर गण घबरा गए। आखिर सभी की चाह तो अमृत को लेकर थी और यह तो मृत्यु का न्योता लिए विष निकला था। विष को देखकर सभी की कांति फीकी होती रही।
विष की समस्या से निपटने के लिए सभी ने भगवान् शिव (Lord Shiva) का स्मरण किया। भगवान् शिव प्रकट होकर उस विष का पान कर लेते हैं लेकिन उसे अपने कंठ से नीचे नहीं उतरने देते। भगवान् शिव द्वारा की गई विषपान की प्रक्रिया के कारण ही उनका नीलकंठ (Neelkanth) पड़ा।
समुद्र मंथन (Samudra Manthan) की प्रक्रिया एक बार फिर से आरंभ हुई और दूसरा रत्न कामधेनु (Kamadhenu) गाय थी। जिसे ऋषियों ने अपने पास रख लिया। तीसरा रत्न उच्चैःश्रवा (Uchhaishravas) घोड़ा था जिसे असुर बलि ने अपने पास रखा। चौथा रत्न ऐरावत (Airavata) हाथी था जिसे इंद्र देव ने ले लिया।
मंथन के दौरान पांचवें रत्न के रूप में कौस्तुभमणि (Kaustubha) निकली जिसे भगवान् विष्णु ने अपने पास रखा। इसके बाद छठे रत्न के रूप में कल्पवृक्ष (Kalpavriksha) और सातवें रत्न के रूप में रम्भा (Rambha) निकली थी। दोनों ही रत्नों को देवलोक में स्थान मिला।
आठवें रत्न के रूप में देवी लक्ष्मी (Goddess Lakshmi) की उत्पत्ति
आठवें रत्न के रूप में देवी लक्ष्मी (Goddess Lakshmi) का उद्भव हुआ जिन्होंने भगवान् विष्णु को अपने वर के रूप में अपना लिया था इस कारण वे भगवान् विष्णु के साथ हो गईं।
इसके बाद के कन्या का रूप धारण किये वारुणी मदिरा (Varuni) का उद्भव हुआ जिसे असुर पक्ष ने ले लिया। आगे के क्रम में अन्य रत्न चन्द्रमा(Chandra), पारिजात वृक्ष (Parijata) और पाञ्चजन्य शंख (Shankha) निकले और सबसे अंत में धन्वन्तरि (Dhanvantari) अमृत(amṛta) का घट लेकर प्रकट हुए।
धन्वंतरि को देख दैत्यों ने उनसे अमृत का घट छीन लिया परन्तु असुर, दैत्य और राक्षसों की आपस में ही अमृत को लेकर लड़ाई छिड़ गई। वहीँ सभी देवता गण ऋषि दुर्वासा के शाप के चलते शक्तिहीन थे इसलिए वे अमृत के लिए लड़ पाने में सक्षम नहीं थे। देवता निराश होकर यह लड़ाई देख ही रहे थे कि भगवान् विष्णु ने तुरंत एक सुन्दर मोहिनी का भेष धारण किया और असुरों को आकर्षित करने लगे। मोहिनी का रूप इतना अधिक मोहक था कि स्वयं भगवान् शिव भी उनकी ओर मोहित हो गए थे।
आपस में लड़ाई कर रहे असुरों ने जब उस मनमोहक मोहिनी को देखा तो वे सभी लोग कामासक्त हो गए। असुर ने मोहिनी से सवाल किया कि हे! सुंदरी आप हो कौन? लगता है तुम हमारे झगड़े का निपटारा करने के लिए समाधान तलाश रही हो। ओ हम सभी को अमृतपान कराओ। ये सुन मोहिनी ने कहा कि तुम्हें मुझपर विशवास नहीं करना चाहिए। बेहतर यही होगा कि आप सब आपस में सुलह कर अमृत पान करो। सुन्दर स्त्री के मुख यह वचन सुन सभी असुरों को उस पर पूर्ण विश्वास हो गया और उन्होंने अमृत से भरा वह घट मोहिनी को दे दिया।
अब मोहिनी ने अमृत घट को अपने हाथों में लेकर दोनों पक्षों असुर और देवताओं को एक पंक्ति में बैठने को कहा। इसके बाद विश्वमोहिनी ने सर्वप्रथम देवताओं को अमृत पान कराना आरम्भ किया। जब वे असुरों के पास गई तो वे स्त्री के सौंदर्य रूप में इतने अधिक मदहोश हो चुके थे कि अमृत पीना ही भूल गए।
Rahu Ketu Story
इन असुरों में से एक असुर ऐसा था जो भगवान् विष्णु की इस चाल को समझ गया। उसका नाम था स्वरभानु वह अमृत ग्रहण करने के लिए देवताओं वाली पंक्ति में जाकर बैठ गया। स्वरभानु (Svarbhānu) अमृत को मुख में डालने में भी सफल हो गया। परन्तु सूर्य और चन्द्रमा ने जोर से पुकार कर कहा कि यह तो दैत्य राहु है।
भगवान् विष्णु ने जैसे ही वह पुकार सुनी तुरंत सुदर्शन चक्र से राहु का सिर उसके धड़ से अलग कर दिया। स्वरभानु का यही सिर राहु (Rahu) और धड़ केतु (Ketu) के नाम से जाना गया। क्योंकि सूर्य और चन्द्रमा ने स्वरभानु का सच उजागर किया था इसलिए वे इन दोनों पर ग्रहण लगाते हैं।
इसके बाद सभी देवताओं को अमृत ग्रहण कराने के पश्चात भगवान् विष्णु लोप हो गए और मदहोश बैठे सभी असुर होश में आये। अमृत पान के लिए उनके विरुद्ध रचाये गए षड्यंत्र के चलते वे क्रोधित हो उठे। वे देवताओं पर प्रहार करने लगे पर अब सभी देवता अमृत पान के पश्चात अपने असली अस्तित्व में आ चुके थे। वे शक्तिहीन नहीं थे अब बलशाली थे जिस कारण वे असुर, दैत्यों और राक्षसों को पराजित कराने में सफल हुए। इस तरह से समुद्र मंथन की प्रक्रिया संपन्न हुई।
(Note : जैसा कि हमने जाना कि दक्षिणावर्ती शंख को भी समुद्र मंथन के दौरान निकले 14 रत्नों में से एक माना गया है। यह शंख अपने साथ कई तरह की अलौकिक शक्तियों को लिए हुए है जिसे यदि घर या ऑफिस में रखा जाए तो यह वातावरण में मौजूद सभी बुरी शक्तियों का नाश कर देता है। साथ ही सकारात्मकता के प्रभाव को आभामंडल में अधिक सक्रिय करता है। यदि आप Original Dakshinavarti Shankh को खरीदने के इच्छुक हैं तो इसे आज ही Online Order करें।)