सोमनाथ मंदिर कहाँ है? ( Somnath Mandir kaha hai? )
सोमनाथ मंदिर ( Somnath Temple ) भारत के गुजरात राज्य में सौराष्ट्र क्षेत्र में वेरावल बंदरगाह के निकट अवस्थित है। यह भगवान शिव को समर्पित 12 ज्योतिर्लिंग में शामिल है जिसे प्राचीन मंदिरों की श्रेणी में शामिल किया जाता है। इस प्राचीन मंदिर का उल्लेख स्कन्दपुराण, श्रीमद्भागवत गीता, शिव पुराण और ऋग्वेद में भी किया गया है।
सोमनाथ में कौन से भगवान है? ( Somnath me kaun se Bhagwan hai? )
सोमनाथ मंदिर में भगवान शिव एक ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित है जिन्हें चंद्र देव ने प्रार्थना कर देवी पार्वती के साथ निवास करने के लिए कहा था।
सोमनाथ मंदिर का इतिहास ( Somnath Temple History )
सोमनाथ मंदिर का इतिहास काफी पुराना है क्योंकि इसका संबंध हिन्दू धार्मिक ग्रंथों से जुड़ा हुआ है। इस मंदिर को बनाने की प्रक्रिया कई बार की गई है क्योंकि यहाँ आक्रमणों की एक शृंखला सी बन गई थी। कई बार पुनर्निमाण के बाद भी आज यह वर्तमान में भक्तों की श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है।
आइये जानते है इस सोमनाथ मंदिर किसने बनवाया? ( Somnath Mandir kisne banvaya? )
ऋग्वेद में सोमनाथ मंदिर का वर्णन किया गया है और उसके अनुसार इस मंदिर को स्वयं चंद्र देव ने बनवाया था। जबकि ऐतिहासिक तथ्यों को खोजें तो हमें ज्ञात होता है कि इस मंदिर पर कई बार आक्रमण हुआ, वर्ष 815 में प्रतिहार राजा नागभट्ट ने इसका पुनर्निर्माण कराया। सन 1025 में ग़ज़नवी ने इस पर आक्रमण किया था। इस हमले के बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निमाण करवाया था।
दुर्भाग्यवश इस मंदिर को वर्ष 1297 में फिर से एक आक्रमण का सामना करना पड़ा जब दिल्ली सल्तनत के अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खां ने यहाँ हमला कर इस मंदिर को ध्वस्त कर दिया। इसे फिर हिन्दू राजाओं ने बनवाया।
सोमनाथ मंदिर पर तीसरी बार आक्रमण गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह ने वर्ष 1395 में किया और यहाँ की सब संपत्ति को लूट लिया। इस मंदिर के एक बार फिर से निर्माण के बाद सुल्तान के बेटे अहमद शाह ने वर्ष 1412 में फिर से इस मंदिर को तोड़ डाला। इतना ही नहीं सोमनाथ मंदिर को मुग़ल शासक औरंगजेब के आक्रमण का भी साल 1665 में सामना करना पड़ा।
इसके बाद सन 1783 में अहिल्याबाई ने पुणे के पेशवा के साथ मिलकर ध्वस्त मंदिर के पास अलग मंदिर का निर्माण कराया। अभी वर्तमान में जो मंदिर गुजरात के सौराष्ट में अवस्थित है उसके पुनर्निर्माण का कार्य सरदार वल्लभ भाई पटेल ने वर्ष 1950 में पूर्ण करवाया था।
आइये जानते है इस सोमनाथ मंदिर किसने बनवाया? ( Somnath Mandir kisne banvaya? )
ऋग्वेद में सोमनाथ मंदिर का वर्णन किया गया है और उसके अनुसार इस मंदिर को स्वयं चंद्र देव ने बनवाया था। जबकि ऐतिहासिक तथ्यों को खोजें तो हमें ज्ञात होता है कि इस मंदिर पर कई बार आक्रमण हुआ, वर्ष 815 में प्रतिहार राजा नागभट्ट ने इसका पुनर्निर्माण कराया। सन 1025 में ग़ज़नवी ने इस पर आक्रमण किया था। इस हमले के बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निमाण करवाया था।
दुर्भाग्यवश इस मंदिर को वर्ष 1297 में फिर से एक आक्रमण का सामना करना पड़ा जब दिल्ली सल्तनत के अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खां ने यहाँ हमला कर इस मंदिर को ध्वस्त कर दिया। इसे फिर हिन्दू राजाओं ने बनवाया।
सोमनाथ मंदिर पर तीसरी बार आक्रमण गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह ने वर्ष 1395 में किया और यहाँ की सब संपत्ति को लूट लिया। इस मंदिर के एक बार फिर से निर्माण के बाद सुल्तान के बेटे अहमद शाह ने वर्ष 1412 में फिर से इस मंदिर को तोड़ डाला। इतना ही नहीं सोमनाथ मंदिर को मुग़ल शासक औरंगजेब के आक्रमण का भी साल 1665 में सामना करना पड़ा।
इसके बाद सन 1783 में अहिल्याबाई ने पुणे के पेशवा के साथ मिलकर ध्वस्त मंदिर के पास अलग मंदिर का निर्माण कराया। अभी वर्तमान में जो मंदिर गुजरात के सौराष्ट में अवस्थित है उसके पुनर्निर्माण का कार्य सरदार वल्लभ भाई पटेल ने वर्ष 1950 में पूर्ण करवाया था।
सोमनाथ मंदिर की वास्तुकला ( Architecture of Somnath Temple )
सोमनाथ मंदिर को कैलाश महामेरू प्रासाद शैली में निर्मित किया गया है। यह मंदिर तीन भागों में विभाजित है जिनमें से एक भाग गर्भगृह, दूसरा भाग सभामंडप, तीसरा भाग नृत्यमंडप है। इसका करीब 150 फुट ऊँचा शिखर है जिसपर स्थापित कलश का वजन 10 टन है, वहीँ इसकी ध्वजा 27 फ़ीट ऊँची है।
सोमनाथ मंदिर की कहानी ( Somnath Temple Story in Hindi )
पौराणिक कहानी में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग ( Somnath Jyotirlinga ) मंदिर के बारे में कहानी यह मिलती है कि प्रजापति दक्ष की 27 कन्याओं का विवाह सोम यानी चंद्रदेव से किया गया था। परन्तु चंद्रदेव दक्ष की केवल एक ही पुत्री रोहिणी को प्रेम और सम्मान दिया करते थे। जब प्रजापति दक्ष की सभी कन्याएं अपने पिता के पास शिकायत करने पहुंची तो प्रजापति दक्ष को बहुत क्रोध आया। उन्होंने इसी क्रोध में चंद्रदेव को क्षय रोग का श्राप दे डाला और कहा कि अब से हर दिन तुम्हारी क्षीण होगी।
अपने श्वसुर के श्राप से पीड़ित सोम ने दुःखी अवस्था में भगवान शिव की पूजा अर्चना और महा मृत्युंजय जाप करना आरम्भ कर दिया। सोम ( चंद्रदेव ) की तपस्या से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने चंद्र के श्राप से निवारण किया। भगवान शिव पूर्णतः तो श्राप का निवारण न कर सके परन्तु उन्होंने वरदान देते हुए कहा कि कृष्ण पक्ष में तुम्हारी एक-एक कला क्षीण अवस्था में होगी और शुक्ल पक्ष में वह कला एक-एक करके बढ़ती रहेगी।
चंद्रमा अपने इस श्राप से मुक्त होकर बहुत प्रसन्न हुए। इसके बाद वे भगवान शिव से प्रार्थना करने लगे कि आप इस स्थान पर माता पार्वती के साथ निवास करें। इस तरह से चंद्रमा द्वारा जिस स्थान पर चंद्रदेव ने पूजा अर्चना कर और महा मृत्युंजय जाप कर शिव जी को प्रसन्न किया था वहां सोमनाथ ज्योतिर्लिंग स्थापित हो गया। बात करें सोमनाथ नाम की तो सोम चंद्रमा को कहते हैं वहीँ नाथ से तात्पर्य भगवान शंकर, जिन्हें सोम ने अपना नाथ माना था।
अपने श्वसुर के श्राप से पीड़ित सोम ने दुःखी अवस्था में भगवान शिव की पूजा अर्चना और महा मृत्युंजय जाप करना आरम्भ कर दिया। सोम ( चंद्रदेव ) की तपस्या से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने चंद्र के श्राप से निवारण किया। भगवान शिव पूर्णतः तो श्राप का निवारण न कर सके परन्तु उन्होंने वरदान देते हुए कहा कि कृष्ण पक्ष में तुम्हारी एक-एक कला क्षीण अवस्था में होगी और शुक्ल पक्ष में वह कला एक-एक करके बढ़ती रहेगी।
चंद्रमा अपने इस श्राप से मुक्त होकर बहुत प्रसन्न हुए। इसके बाद वे भगवान शिव से प्रार्थना करने लगे कि आप इस स्थान पर माता पार्वती के साथ निवास करें। इस तरह से चंद्रमा द्वारा जिस स्थान पर चंद्रदेव ने पूजा अर्चना कर और महा मृत्युंजय जाप कर शिव जी को प्रसन्न किया था वहां सोमनाथ ज्योतिर्लिंग स्थापित हो गया। बात करें सोमनाथ नाम की तो सोम चंद्रमा को कहते हैं वहीँ नाथ से तात्पर्य भगवान शंकर, जिन्हें सोम ने अपना नाथ माना था।
भगवान शिव के महा मृत्युंजय मंत्र के बारे में कहा जाता है कि यह किसी मरते व्यक्ति को जीवन दान तक दे सकता है। इस प्रकार यदि आप शक्तिशाली महा मृत्युंजय कवच ( Maha Mrityunjaya Kavach ) को धारण करें तो यह आपके सभी संकटों को टालने में सक्षम है। महा मृत्युंजय कवच काल और मृत्यु के भय से मुक्ति दिलाने के साथ आकस्मिक मृत्यु के संकट से भी रक्षा प्रदान करता है।
सोमनाथ मंदिर की क्या विशेषता है? ( Somnath Mandir ki kya Visheshta hai? )
सोमनाथ मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि 6-7 बार इसे तोड़े जाने के बावजूद इसकी लोकप्रियता में कमी नहीं आई। आज यह मंदिर भारत के प्राचीन मंदिरों में से एक है जहाँ हर वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुँचते हैं और सोमनाथ जी के दर्शन करते है।
इस स्थान का वर्णन मनुष्य के अस्तित्व के पहले लिखे गए वेदों, पुराणों में मिलता है। यहाँ ईश्वर के होने का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि आक्रमणों की मार झेलने के बावजूद इसे किसी न किसी राजा या रानी ने बनवाया। जिसका अर्थ है कि स्वयं भगवान शिव ने ही उन्हें किसी न किसी तरह से ऐसा करने के संकेत तो दिए ही होंगे।
इस स्थान का वर्णन मनुष्य के अस्तित्व के पहले लिखे गए वेदों, पुराणों में मिलता है। यहाँ ईश्वर के होने का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि आक्रमणों की मार झेलने के बावजूद इसे किसी न किसी राजा या रानी ने बनवाया। जिसका अर्थ है कि स्वयं भगवान शिव ने ही उन्हें किसी न किसी तरह से ऐसा करने के संकेत तो दिए ही होंगे।