सप्त ऋषि कौन हैं? ( Who are the 7 rishis? )
मनुष्य जब भी अपने वैदिक इतिहास की ओर रुख करता है तो वह पाता है कि हमारे धार्मिक ग्रंथों, ज्ञान, अस्त्र-शस्त्र, खगोल, ज्योतिष, वास्तु, योग, विज्ञान और भाषा से लेकर व्यवहार तक में ऋषि मुनियों का योगदान रहा है। इसी कारण से प्राचीन काल में ही ऋषि मुनियों को राजाओं से भी ऊपर की पदवी दी गई। हिंदू धर्म में ईश्वर द्वारा दिए गए निर्देशानुसार सप्तऋषि ( Saptarshi ) पृथ्वी पर अच्छे और बुरे का संतुलन बनाए रख सृष्टि के संचालन में अपनी भूमिका निभाते हैं। हमारे वेदों में तो सप्तऋषियों को वैदिक धर्म का संरक्षक कहा गया है। संस्कृत श्लोक के माध्यम से सप्त ऋषियों के नामों ( 7 rishis names ) के बारे में बताया गया है जो कि इस प्रकार है :
।।सप्त ब्रह्मर्षि, देवर्षि, महर्षि, परमर्षय:।
कण्डर्षिश्च, श्रुतर्षिश्च, राजर्षिश्च क्रमावश:।।
अर्थात : 1. ब्रह्मर्षि, 2. देवर्षि, 3. महर्षि, 4. परमर्षि, 5. काण्डर्षि, 6. श्रुतर्षि और 7. राजर्षि- ये 7 ऋषि होते हैं जिन्हें सप्तर्षि की संज्ञा दी गई है।
हिंदू धर्म की वैदिक संहिता में तो हमें सप्त ऋषियों की संख्या से संबंधित कोई जानकारी नहीं मिलती है पर उपनिषद् में Saptarishis का बखूबी वर्णन मिलता है। जिन सप्तऋषियों का उल्लेख हमें मिलता है, उनमें सप्तऋषि के नाम हैं- वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, शौनक और वामदेव। जबकि हमारे पुराणों में ऋषियों के नाम अलग हैं। विष्णु पुराण में मन्वन्तर का हवाला देते हुए वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज Sapt rishiyon ke naam का उल्लेख किया गया है।
।।सप्त ब्रह्मर्षि, देवर्षि, महर्षि, परमर्षय:।
कण्डर्षिश्च, श्रुतर्षिश्च, राजर्षिश्च क्रमावश:।।
अर्थात : 1. ब्रह्मर्षि, 2. देवर्षि, 3. महर्षि, 4. परमर्षि, 5. काण्डर्षि, 6. श्रुतर्षि और 7. राजर्षि- ये 7 ऋषि होते हैं जिन्हें सप्तर्षि की संज्ञा दी गई है।
हिंदू धर्म की वैदिक संहिता में तो हमें सप्त ऋषियों की संख्या से संबंधित कोई जानकारी नहीं मिलती है पर उपनिषद् में Saptarishis का बखूबी वर्णन मिलता है। जिन सप्तऋषियों का उल्लेख हमें मिलता है, उनमें सप्तऋषि के नाम हैं- वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, शौनक और वामदेव। जबकि हमारे पुराणों में ऋषियों के नाम अलग हैं। विष्णु पुराण में मन्वन्तर का हवाला देते हुए वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज Sapt rishiyon ke naam का उल्लेख किया गया है।
सप्त ऋषियों का जन्म कैसे हुआ? ( How was Saptarishi born? )
सप्त ऋषियों के जन्म से जुड़ी पौराणिक कथा कहती है कि इनका जन्म ब्रह्मा जी के मस्तिष्क से हुआ था। यही कारण है सप्त ऋषि को ज्ञान-विज्ञान, धर्म-ज्योतिष और योग में सर्वोपरि विद्वान माना जाता है। इनके होने से ही हमें धार्मिक वेद और पुराण प्राप्त हुए।
सप्त ऋषि की कहानी क्या है? ( What is the story of Saptarishi? )
आइये जानते हैं saptarishi katha के बारे में :
1. वशिष्ठ : ऋषि वशिष्ठ राजा दरशरथ के कुल गुरु हुआ करते थे और इनसे ही राजा दशरथ के चारों पुत्र राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न ने शिक्षा प्राप्त की थी। ऋषि वशिष्ठ के कहे अनुसार ही राजा दशरथ ने श्री राम और श्री लक्ष्मण को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में राक्षसों का वध करने के लिए भेजा था।
2. विश्वामित्र : दूसरे ऋषि विश्वामित्र की बात करें तो वे ऋषि होने के साथ साथ राजा भी थे। इनके संबंध में एक कथा बहुत लोकप्रिय है। कथा के अनुसार ऋषि विश्वामित्र ने ऋषि वशिष्ठ की कामधेनु गाय हासिल करने के लिए भीषण युद्ध किया था। इस भीषण युद्ध में वे ऋषि वशिष्ठ से पराजित हो गए थे।
ऋषि विश्वामित्र की तपस्या और मेनका द्वारा उनकी तपस्या को भंग किया जाने का प्रसंग बहुत प्रसिद्ध है। कहते हैं कि ऋषि विश्वामित्र ने अपनी तपस्या के बल पर त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग के दर्शन करा दिए थे। उन्होंने हरिद्वार में घोर तपस्या करके इंद्रदेव से रूठ कर एक अलग स्वर्ग लोक बनाकर खड़ा कर दिया था। वे ऋषि विश्वामित्र ही थे जिन्होनें हमें गायत्री मन्त्र की रचना करके दी जो आज सभी की जीव्हा पर रहता है।
3. कण्व : सप्तऋषियों की सूची में तीसरे स्थान पर ऋषि कण्व हैं जिनके बारे में ऐसी मान्यता है कि हिंदू रीति-रिवाजों में सबसे प्रमुख सोमयज्ञ की शुरुआत कण्व ऋषियों ने ही थी। वे कण्व ऋषियों का ही आश्रम था जिसमें हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के साथ ही उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण किया गया था।
4. भारद्वाज : सप्तऋषियों में भारद्वाज ऋषियों को सबसे सर्वोच्च स्थान मिला हुआ है। दरअसल भारद्वाज ऋषि श्री राम के पूर्व हुआ करते थे। वेदों में से अथर्ववेद में भारद्वाज ऋषि के कुल 23 मंत्र मिलते हैं। ऋषि भारद्वाज के पुत्रों में 10 ऋषि ऋग्वेद के मन्त्रदृष्टा हैं और उनकी एक रात्रि नामक पुत्री रात्रि सूक्त की मन्त्रदृष्टा हैं।
5. अत्रि : सप्तऋषियों में ऋषि अत्रि ब्रह्मा के पुत्र,अनुसूया के पति, सोम के पिता थे। हमारे देश में कृषि विकास के लिए ऋषि अत्रि का योगदान सबसे अहम माना जाता है। इनके बारे में कहा जाता है वे लोग सिंधु नदी को पार कर ईरान तक पहुंच गए थे। ईरान में पहुंचकर यज्ञों का खूब प्रचार प्रसार किया। पारसी धर्म की शुरुआत भी अत्रि ऋषियों में कारण ही हुई थी।
6. वामदेव : ऋषि वामदेव सप्तऋषियों में छठे स्थान पर है जिन्होंने संगीत का सूत्रपात किया था। दरअसल वामदेव गौतम ऋषि के बेटे थे। वे ही गौतम ऋषि जो अपने तपबल पर ब्रह्मगिरी के पर्वत पर मां गंगा को लेकर आए थे।
7. शौनक : सप्त ऋषियों में सातवें ऋषि शौनक हैं जिन्होंने दस हजार विद्यार्थियों के गुरुकुल का संचालन किया था। हजारों विद्यार्थियों के विशाल गुरुकुल को ही चलाने के लिए उन्हें कुलपति की उपाधि मिली थी।
1. वशिष्ठ : ऋषि वशिष्ठ राजा दरशरथ के कुल गुरु हुआ करते थे और इनसे ही राजा दशरथ के चारों पुत्र राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न ने शिक्षा प्राप्त की थी। ऋषि वशिष्ठ के कहे अनुसार ही राजा दशरथ ने श्री राम और श्री लक्ष्मण को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में राक्षसों का वध करने के लिए भेजा था।
2. विश्वामित्र : दूसरे ऋषि विश्वामित्र की बात करें तो वे ऋषि होने के साथ साथ राजा भी थे। इनके संबंध में एक कथा बहुत लोकप्रिय है। कथा के अनुसार ऋषि विश्वामित्र ने ऋषि वशिष्ठ की कामधेनु गाय हासिल करने के लिए भीषण युद्ध किया था। इस भीषण युद्ध में वे ऋषि वशिष्ठ से पराजित हो गए थे।
ऋषि विश्वामित्र की तपस्या और मेनका द्वारा उनकी तपस्या को भंग किया जाने का प्रसंग बहुत प्रसिद्ध है। कहते हैं कि ऋषि विश्वामित्र ने अपनी तपस्या के बल पर त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग के दर्शन करा दिए थे। उन्होंने हरिद्वार में घोर तपस्या करके इंद्रदेव से रूठ कर एक अलग स्वर्ग लोक बनाकर खड़ा कर दिया था। वे ऋषि विश्वामित्र ही थे जिन्होनें हमें गायत्री मन्त्र की रचना करके दी जो आज सभी की जीव्हा पर रहता है।
3. कण्व : सप्तऋषियों की सूची में तीसरे स्थान पर ऋषि कण्व हैं जिनके बारे में ऐसी मान्यता है कि हिंदू रीति-रिवाजों में सबसे प्रमुख सोमयज्ञ की शुरुआत कण्व ऋषियों ने ही थी। वे कण्व ऋषियों का ही आश्रम था जिसमें हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के साथ ही उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण किया गया था।
4. भारद्वाज : सप्तऋषियों में भारद्वाज ऋषियों को सबसे सर्वोच्च स्थान मिला हुआ है। दरअसल भारद्वाज ऋषि श्री राम के पूर्व हुआ करते थे। वेदों में से अथर्ववेद में भारद्वाज ऋषि के कुल 23 मंत्र मिलते हैं। ऋषि भारद्वाज के पुत्रों में 10 ऋषि ऋग्वेद के मन्त्रदृष्टा हैं और उनकी एक रात्रि नामक पुत्री रात्रि सूक्त की मन्त्रदृष्टा हैं।
5. अत्रि : सप्तऋषियों में ऋषि अत्रि ब्रह्मा के पुत्र,अनुसूया के पति, सोम के पिता थे। हमारे देश में कृषि विकास के लिए ऋषि अत्रि का योगदान सबसे अहम माना जाता है। इनके बारे में कहा जाता है वे लोग सिंधु नदी को पार कर ईरान तक पहुंच गए थे। ईरान में पहुंचकर यज्ञों का खूब प्रचार प्रसार किया। पारसी धर्म की शुरुआत भी अत्रि ऋषियों में कारण ही हुई थी।
6. वामदेव : ऋषि वामदेव सप्तऋषियों में छठे स्थान पर है जिन्होंने संगीत का सूत्रपात किया था। दरअसल वामदेव गौतम ऋषि के बेटे थे। वे ही गौतम ऋषि जो अपने तपबल पर ब्रह्मगिरी के पर्वत पर मां गंगा को लेकर आए थे।
7. शौनक : सप्त ऋषियों में सातवें ऋषि शौनक हैं जिन्होंने दस हजार विद्यार्थियों के गुरुकुल का संचालन किया था। हजारों विद्यार्थियों के विशाल गुरुकुल को ही चलाने के लिए उन्हें कुलपति की उपाधि मिली थी।
सप्त ऋषि के पिता कौन हैं? ( Who is the father of Saptarishi? )
सप्त ऋषियों के पिता सृष्टि की रचना करने वाले ब्रह्मा जी को माना जाता है जिनके मस्तिष्क से सप्त ऋषियों का जन्म हुआ ताकि वे संसार में ज्ञान-विज्ञान का प्रचार-प्रसार कर सकें।
सप्त ऋषियों के गुरु कौन थे? ( Who was the guru of Saptarishi in hindi? )
सप्त ऋषि जिन्हें ब्रह्मा जी ने अपने मस्तिष्क से जन्म तो दिया था पर उनकी शिक्षा का जिम्मा भगवान शिव के पास था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने सर्वप्रथम जिन 7 लोगों को योग, शैव कर्म और वैदिक ज्ञान दिया था वे ही आगे चलकर Saptarishi ke naam से जाने गए। सनातन धर्म में जितने भी धार्मिक ग्रन्थ मौजूद है उनमें सप्त ऋषियों का योगदान किसी से छिपा नहीं है। इसलिए हम कह सकते हैं कि भगवान शिव ही थे जिन्होंने गुरु बनकर सप्त ऋषियों को ज्ञान दिया और सप्त ऋषियों ने उस ज्ञान को संसार में जन-जन तक पहुंचाया।
क्या सप्त ऋषि जीवित हैं? ( Are Saptarishi alive? )
आज भी तारा मंडल में हमारे बीच saptrishi tara के रूप में जीवित हैं जो ध्रुव तारे की परिक्रमा करते हैं। इसे फाल्गुन-चैत्र माह से लेकर श्रावण-भाद्र माह तक आकाश में कुल 7 saptarishi star के समूह के रूप में हम देख है। सप्त ऋषियों के जीवनकाल को समझने के लिए सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि ब्रह्मा का 1 दिन एक कल्प कहलाता है उस एक कल्प में कुल 14 मनु होते हैं।
इन हर एक मनु के काल को मन्वंतर कहा जाता हैं। इन्हीं आने वाले प्रत्येक मन्वंतर में अलग-अलग सप्तऋषि हुआ करते हैं। वर्तमान की बात करें तो अभी वैवस्वत मनु का काल चल रहा है और इस काल के सप्तऋषि हैं – कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और भारद्वाज। इस तरह से हम कह सकते हैं कि सप्त ऋषियों का जीवनकाल मन्वंतर पर आधारित है।
( यदि आपकी कुंडली में चंद्रमा अशुभ फल प्रदान कर रहा है तो शुभ मुहूर्त देखकर चन्द्रमा की पूजा करने के पश्चात Original Chandra Yantra Locket धारण करें। इस Chandra Yantra Locket लॉकेट में शामिल शक्तियां आपको चंद्र दोषों से मुक्ति दिलाएंगी। )
इन हर एक मनु के काल को मन्वंतर कहा जाता हैं। इन्हीं आने वाले प्रत्येक मन्वंतर में अलग-अलग सप्तऋषि हुआ करते हैं। वर्तमान की बात करें तो अभी वैवस्वत मनु का काल चल रहा है और इस काल के सप्तऋषि हैं – कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और भारद्वाज। इस तरह से हम कह सकते हैं कि सप्त ऋषियों का जीवनकाल मन्वंतर पर आधारित है।
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