
रथ सप्तमी ( Rathasapthami ) माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को आती है। जिसे सूर्य जयंती, भानु सप्तमी, माघी सप्तमी, अर्क सप्तमी, अचला सप्तमी जैसे अलग – अलग नामों से जाना जाता है। यह दिन इसलिए ख़ास है क्योंकि रथ सप्तमी के दिन ही सूर्य देव का जन्म हुआ था। कहते हैं कि इस विशेष तिथि को सूर्य देव अपने सात घोड़ों के साथ अवतरित हुए थे।
रथ सप्तमी के दिन व्रत रखने और सूर्य भगवान की पूजा – अर्चना किए जाने का विधान है। मत्स्य पुराण में इस बात का वर्णन हमें मिलता है कि यह दिन सूर्य देव को समर्पित है। हिंदू धार्मिक मान्यताएं कहती हैं कि इस दिन व्रत का पालन करने से सुख – समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। व्यक्ति अपने जीवन में सात प्रकार के पापों का भागीदार होता है। ये पाप जाने या अनजाने, मन से, वचन से, शारीरिक क्रिया के माध्यम से, वर्तमान जन्म और पिछले जन्मों में किए गए पाप हैं। रथ सप्तमी में नियमों का पालन कर व्यक्ति अपने पापों से छुटकारा पा सकता है।
रथ सप्तमी ( Ratha Saptami ) से जुड़ी पौराणिक कहानी के अनुसार एक नगर में गणिका इंदुमती नामक महिला रहा करती थी। उसने अपने पूरे जीवनकाल में कभी कोई दान पुण्य नहीं किया था और अब उसका अंत काल बहुत नज़दीक था। महिला चिंतित थी वह अपनी समस्या लेकर मुनि वशिष्ठ के पास पहुंची और उसने सारी बात बताई। महिला ने कहा कि मैंने अपने जीवन में कभी किसी तरह का दान पुण्य नहीं किया है और अब मेरा अंत समय करीब है। कृपया मुझे मुक्ति प्राप्त करने का रास्ता बताएं।
महिला की बात सुनकर मुनि वशिष्ठ ने हल के तौर पर कहा कि माघ मास की सप्तमी तिथि को अचला सप्तमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन किया गया दान पुण्य हजारों गुना दान पुण्य के समान होता है। रथ सप्तमी के नाम से भी जाना जाने वाला यह दिन स्नान के लिए भी खास है। इस दिन पवित्र नदी ने स्नान करने के पश्चात भगवान सूर्य को अर्घ्य दें और फिर दीप दान करें।
व्रत का पालन करते हुए दिन में एक ही बार नमक का भोजन ग्रहण करें। गणिका ने वशिष्ठ गुरु द्वारा बताई गए हर नियम का पालन किया। व्रत रखे जाने के कुछ ही दिनों बाद गणिका ने अपना देह त्याग दिया। रथ सप्तमी के दिन रखे गए व्रत के प्रभाव से उसे स्वर्ग के रहा इंद्र की अप्सराओं का प्रधान बनने का सौभाग्य हासिल हुआ था।
Ratha Saptami से जुड़ी दूसरी कहानी के अनुसार श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को अपने शारीरिक बल पर बहुत अहंकार हो गया था। अपने अहंकार में डूबते हुए साम्ब ने ऋषि दुर्वासा का अपमान कर डाला। ऋषि दुर्वासा ने अपमान होता देख साम्ब को कुष्ठ रोग का श्राप दे डाला। अपने पुत्र को कुष्ठ रोग से पीड़ित देख श्री कृष्ण ने साम्ब को सूर्य देव की आराधना करने के लिए कहा। साम्ब ने पूरी श्रद्धा से सूर्य देव की आराधना की और अंततः सूर्य देव उनसे प्रसन्न हुए। सूर्य देव ने साम्ब को वरदान स्वरुप कुष्ठ रोग से मुक्ति प्रदान की।
आइये जानें रथ सप्तमी पूजा विधि ( Ratha Saptami puja vidhi ) :
1. ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. सूर्य देव को सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए अर्घ्य दें और व्रत का संकल्प लें।
3. सूर्य देव के 12 नामों का जाप करें।
4. अर्घ्य देने के पश्चात मिट्टी का घी से भरा हुआ दीपक जलाएं।
5. अब घर के मंदिर में एक दीपक जलाकर आसन पर बैठ जाएँ।
6. सूर्य सहस्त्रनाम मंत्र का और गायत्री मंत्र का 108 बार जाप करने से शुभ फल और सौभाग्य की प्राप्ति होगी।
7. सूर्य जयंती के दिन Surya Yantra Locket धारण करने से कुंडली पर से सूर्य के अशुभ प्रभाव समाप्त हो जाते हैं।
8. इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना और जरूरतमंदों को दान करना बहुत शुभ माना जाता है।
9. सूर्य देव को भोग में चावल अर्पित किये जाते हैं।
रथ सप्तमी के दिन व्रत का संकल्प लेकर सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। फिर पूरे दिन सूर्य मन्त्रों का जाप किया जाता है। इस दिन घर में सूर्यदेव के रथ वाली सुन्दर और आकर्षक रंगोली बनाई जाती है। घर के आंगन में बड़े बर्तन में दूध को रख सूर्य की गर्मी से उसे उबाला जाता है फिर उसमें चावल डालकर सूर्य देव को भोग में चढ़ाया जाता है।
7 फरवरी 2022 , सोमवार
प्रारंभ : 7, फरवरी दोपहर 4:37 से शुरू
समाप्त : 8 फरवरी मंगलवार, सुबह 6:15 तक
स्नान मुहूर्त : 7, फरवरी, सुबह 5:24 से सुबह 7:09 तक
कुल अवधि : 1 घंटा 45 मिनट
अर्घ्य के लिए सूर्योदय का समय : सुबह 7:05 मिनट