कामाख्या मंदिर का महत्व ( Kamakhya Mandir ka mehtva )
कामाख्या मंदिर (Kamakhya Mandir) देवी के 51 सर्वप्रसिद्ध शक्तिपीठों (Shaktipeethas) में से एक है। जब भगवान् विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े किये थे तो ये ही 51 शरीर के टुकड़े शक्तिपीठ कहलाये। यहाँ गुवहाटी से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित कामाख्या में ही सती का योनि भाग गिरा था जिस कारण कामाख्या मंदिर में देवी सती के योनि की पूजा-अर्चना सदियों से चली आ रही है। आपको जानकार हैरानी होगी कि यहाँ देवी की कोई मूर्ति या प्रतिमा नहीं है बस एक योनि आकार का शिलाखंड मौजूद है।
कामाख्या मंदिर किस राज्य में स्थित है? ( Kamakhya Mandir kis rajya me sthit hai? )
विश्व विख्यात Kamakhya Mandir असम की राजधानी दिसपुर के निकट गुवहाटी से करीब 7 किलोमीटर की दूरी पर कामरूप में ‘नीलांचल पर्वत’ नामक पहाड़ी पर अवस्थित है।
कामाख्या मंदिर का निर्माण किसने करवाया? ( Kamakhya Mandir ka Nirman kisne karvaya? )
इतिहासकारों की मानें तो इस मंदिर का निर्माण 7 वीं और 8वीं शताब्दी के बीच किया गया था लेकिन 1564 में इस मंदिर को मुस्लिम आक्रमणकारियों ने तोड़ दिया था। इसके बाद 17वीं शताब्दी में बिहार के म्लेच्छ वंश के राजा नारायण नरसिंह ने इस मंदिर को पुनर्निर्मित करवाया था।
कामाख्या देवी की उत्पत्ति कैसे हुई? ( Kamakhya Devi ki utpati kaise hui? )
पुराणों में कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) की उत्पत्ति के बारे में यह उल्लेख मिलता है कि प्रजापति दक्ष ने ‘बृहस्पति सर्व’ नाम से एक यज्ञ का आयोजन किया था। जिसमें उन्होंने सभी देवताओं ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र, सूर्य सभी को आमंत्रित किया था केवल सती और उनके पति को ही कोई न्यौता नहीं आया था। अपने पिता का इस तरह का व्यवहार देख देवी सती भगवान् शिव से यज्ञ में जाने की जिद पकड़ कर बैठ गईं। अंततः अपनी पत्नी की जिद के आगे शिव हार गए और उन्हें जाने की अनुमति दे दी।
यज्ञ में पहुँचते ही सती ने प्रजापति दक्ष से उनको आमंत्रित न किये जाने का कारण पूछा तो वे क्रोध करने लगे और भगवान् शिव को अपशब्द कहने लगे। अपमान की अग्नि में जलते हुए देवी सती खुद को रोक नहीं पाई और वही यज्ञ कुंड की अग्नि में कूद गईं। सती जैसे ही अग्निकुंड में कूदी भगवान् शिव की तीसरी आँख खुल गई।
भोलेनाथ यज्ञ में पहुंचे और देवी सती के पार्थिव शरीर को उन्होंने अपने कन्धों पर उठा लिया। फिर भगवान् शिव दुःखी अवस्था में पार्थिव शरीर लिए घूमते रहे। यह देख इस सृष्टि को एक भयंकर प्रलय से बचाने के लिए भगवान् विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े कर दिए थे। इन्हीं टुकड़ों में से एक टुकड़ा कामरूप में कामख्या मंदिर में योनि के रूप में पूजा जाता है।
यज्ञ में पहुँचते ही सती ने प्रजापति दक्ष से उनको आमंत्रित न किये जाने का कारण पूछा तो वे क्रोध करने लगे और भगवान् शिव को अपशब्द कहने लगे। अपमान की अग्नि में जलते हुए देवी सती खुद को रोक नहीं पाई और वही यज्ञ कुंड की अग्नि में कूद गईं। सती जैसे ही अग्निकुंड में कूदी भगवान् शिव की तीसरी आँख खुल गई।
भोलेनाथ यज्ञ में पहुंचे और देवी सती के पार्थिव शरीर को उन्होंने अपने कन्धों पर उठा लिया। फिर भगवान् शिव दुःखी अवस्था में पार्थिव शरीर लिए घूमते रहे। यह देख इस सृष्टि को एक भयंकर प्रलय से बचाने के लिए भगवान् विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े कर दिए थे। इन्हीं टुकड़ों में से एक टुकड़ा कामरूप में कामख्या मंदिर में योनि के रूप में पूजा जाता है।
कामाख्या मंदिर में मनाया जाता है अम्बुवाची पर्व ( Kamakhya Mandir me manaya jata hai ambubachi parv )
कामाख्या मंदिर में हर वर्ष जून माह में अम्बुवाची नामक पर्व का आयोजन किया जाता है जिसे देवी के रजस्वला पर्व भी कहा जाता है। कामाख्या मंदिर का रहस्य यह है कि इस पर्व को मनाये जाने के दिनों में ही ब्रह्मपुत्र नदी में बहने वाला पानी लाल रंग का हो जाता है।
पानी के लाल रंग में तब्दील होने के पीछे की मान्यता ये है कि यह देवी के मासिक धर्म के चलते ऐसा होता है। मासिक धर्म की वजह से मंदिर के द्वार तीन दिनों के बंद कर दिए जाते हैं।
(यदि आप देवी का आशीर्वाद पाना चाहते हैं तो आपको Shri Durga Kavach Locket अवश्य ही धारण करना चाहिए। इसे धारण करने से देवी दुर्गा हर कदम पर आपकी रक्षक बनकर खड़ी रहेंगी और बुरी शक्तियों से सरंक्षण प्रदान करेंगी।
पानी के लाल रंग में तब्दील होने के पीछे की मान्यता ये है कि यह देवी के मासिक धर्म के चलते ऐसा होता है। मासिक धर्म की वजह से मंदिर के द्वार तीन दिनों के बंद कर दिए जाते हैं।
(यदि आप देवी का आशीर्वाद पाना चाहते हैं तो आपको Shri Durga Kavach Locket अवश्य ही धारण करना चाहिए। इसे धारण करने से देवी दुर्गा हर कदम पर आपकी रक्षक बनकर खड़ी रहेंगी और बुरी शक्तियों से सरंक्षण प्रदान करेंगी।
कामाख्या देवी मंदिर क्यों प्रसिद्ध है? ( Kamakhya Devi Mandir kyon prasiddh hai? )
51 शक्तिपीठों में शामिल कामख्या देवी का मंदिर तंत्र-मंत्र के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यह स्थान अघोरियों की साधना और तंत्र-मंत्र साधना का एक तरह से गढ़ माना जाता है।
कामाख्या मंदिर कब जाना चाहिए? ( Kamakhya Mandir Kab jana chahiye )
कामख्या मंदिर में जाने के लिए साल में कोई भी दिन शुभ माना जा सकता है लेकिन यदि आप देवी का आशीर्वाद शीघ्र पाना चाहते हैं तो यहाँ नवरात्रि के समय में जायें। बताते चलें कि देवी सती के योनि रूप की पूजा की जाती है इसलिए यहाँ महिलाएं अपने मासिक धर्म के दौरान भी जा सकती है।
कामाख्या का अर्थ क्या है? ( Kamakhya ka arth kya hai? )
कामाख्या को अधिकतर तंत्र-मंत्र से जोड़कर देखा जाता है। यह देवी दुर्गा के प्रचलित नामों में से एक है। कामाख्या का सबसे निकटतम रूप देवी काली या त्रिपुर सुंदरी हैं।
स्टेशन से कामाख्या मंदिर की दूरी कितनी है? ( Station se Kamakhya Mandir ki doori kitni hai? )
गुवहाटी रेलवे स्टेशन से यह मंदिर लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
कामाख्या मंदिर में किसकी पूजा होती है? ( Kamakhya Mandir me kiski pooja hoti hai? )
गुवाहाटी के निकट मौजूद इस मंदिर में देवी सती के योनि भाग की पूजा की जाती है। क्योंकि यहाँ पर उनके शरीर के टुकड़े होते समय योनि का भाग गिरा था। यहाँ पर देवी की कोई मूर्ति नहीं है बल्कि एक योनि रूपी शिलाखंड स्थापित है।