एक धार्मिक स्थल,दो दावेदार और उसके बीच में पीस रही करोड़ों लोगों की आस्था। वो धार्मिक स्थल,जिसे हिन्दू भी अपना मानता है और मुसलमान भी। जी हाँ ! अब तक तो आप समझ हीं गए होंगे कि,हम किसकी बात कर रहे हैं। हम बात कर रहे हैं,उस ज्ञानवापी मस्जिद की…जहाँ से निकलते हिन्दू आस्था के प्रतीकों ने सबको हिला कर रख दिया है। ऐसे में उस मस्जिद पर सर्वेक्षणों का दौर शुरू हो चूका है और इनसे जो तथ्य सामने आ रहे हैं,उसे जानकर आप भी चौंक जाएंगे। दोस्तों ! वर्षों से काशी विश्वनाथ बनारस की रगों में बसे हुए हैं। ऐसा कहा जाता है कि,बनारस के कण कण में महादेव का वास है और यहाँ वर्षों से उनकी पूजा होती चली आ रही है। लेकिन यहाँ जानने वाली बात ये है कि,आखिर शिव जी के इस धाम में मस्जिद कहाँ से आया? और आखिर कैसे बाबा विश्वनाथ के मंदिर के पास,ज्ञानवापी मस्जिद ने जन्म लिया ? जानकर आप भी दांग रह जाएंगे। तो आखिर क्या है एक हिन्दू मंदिर के,मस्जिद बनने की कहानी? आखिर क्या है इस ज्ञानवापी मस्जिद का पूरा सच? और आखिर क्या हुआ तब,मस्जिद से निकले हिन्दू प्रतिक। पूरी कहानी जानने के लिए,इस लेख को अंत तक पढ़िएगा।
कैसे शुरू हुआ ज्ञानवापी मस्जिद विवाद?
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित,ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़े कई मामले अदालतों में चल रहे हैं। उनमें से एक मामला ज्ञानवापी परिसर स्थित, देवी श्रृंगार गौरी के पूजन-दर्शन का है। अभी अंजुमन इंजामिया मसाजिद कमेटी परिसर की देखभाल करती है। पिछले दिनों वाराणसी की अदालत के आदेश पर परिसर का सर्वे किया गया था। जहाँ पांच महिला याचिकाकर्ताओं की याचिका पर,निचली अदालत ने ज्ञानवापी परिसर का सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था। इन पांच याचिकाकर्ताओं में राखी सिंह मामले की अगुवाई कर रही हैं। आपको बता दें ! यहाँ सर्वे में एक शिवलिंग के मिलने का दावा किया गया था। एक याचिकाकर्ता लक्ष्मी देवी के पति डॉक्टर सोहन लाल आर्य ने,1996 में ज्ञानवापी को लेकर एक मामला दर्ज कराया था। सर्वे में परिसर की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी कर साक्ष्य जुटाए गए थे। अदालत ने सर्वे के लिए एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त किए थे। दो कोर्ट कमिश्नर अजय मित्रा और विशाल सिंह ने अलग-अलग सर्वे किए थे और अदालत में रिपोर्ट सौंपी थी। एडवोकेट कमिश्नर के सहायक,मुकदमे के पक्ष और विपक्ष के वकील भी सर्वे की टीम में शामिल थे।
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ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे में क्या मिला?
सर्वे टीम के अनुसार,नंदी के ठीक सामने मस्जिद के अंदर वजू खाने में शिवलिंग मिला है। काशी विश्वनाथ परिसर में स्थित नंदी की प्रतिमा का मुंह मस्जिद की तरफ है। वजू खाने का पहले पानी खाली कराया गया, फिर उसके बाद वहां शिवलिंग मिला। ज्ञानवापी परिसर सर्वे के तीसरे दिन टीम मस्जिद के भीतर गई। ज्ञानवापी मस्जिद परिसर से करीब एक से डेढ़ हजार तस्वीरें ली गई हैं। साथ ही कई घंटे की वीडियोग्राफी भी की गई है। ये सभी तस्वीरें कोर्ट कमिश्नर को सौंपी गई हैं।सर्वे पूरा होने के बाद हिंदू पक्ष ने दावा किया कि,मस्जिद के भीतर 12 फीट 8 इंच का शिवलिंग मिला है। हिंदू पक्षकार सोहन लाल ने मीडिया से बात करते हुए कहा, ‘बाबा मिल गए। वही बाबा जिनकी प्रतीक्षा नंदी कर रहे थे।’ उन्होंने बताया कि,नंदी के ठीक सामने शिवलिंग मिला है। गुंबद, दीवार और फर्श पर कई सबूत दबे हुए से दिखे हैं।हिंदू पक्ष ने संस्कृत श्लोक, दिया रखने की जगह, शिवलिंग, स्वास्तिक और प्राचीन शिलाएं मिलने का भी दावा किया है। वहीं मुस्लिम पक्ष ने सभी बातों को नकारते हुए,ऐसा कुछ भी नहीं मिलने की बात कही है।ज्ञानवापी के वुजूखाने में 16 मई, 2022 को मिले कथित शिवलिंग की,कार्बन डेटिंग कराने को लेकर हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था। वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में मिले कथित शिवलिंग के, साइंटिफिक सर्वे और कॉर्बन डेटिंग के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है।
क्या है ज्ञानवापी मस्जिद का इतिहास?
ज्ञानवापी मस्जिद वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी हुई है। दावा किया जाता है कि,मंदिर को तोड़कर यह मस्जिद बनाई गई थी। ज्ञानवापी परिसर एक बीघा, नौ बिस्वा और छह धूर में फैला क्षेत्र है। हिंदू पक्ष दावा करता है कि,ज्ञानवापी मस्जिद के नीचे 100 फीट ऊंचा विशेश्वर का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है। काशी विश्वनाथ मंदिर के निर्माण को लेकर कई दावे किए जाते हैं। कहा जाता है कि,काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण 2050 साल पहले महाराजा विक्रमादित्य ने करवाया था। मुगल सम्राट अकबर के नौ रत्नों में से एक राजा टोडरमल ने,1585 में काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निमाण कराया था। 18 अप्रैल 1669 में मुगल आक्रंता औरंगजेब ने,मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। इसके बाद मंदिर गिराकर इसकी जगह मस्जिद बना दी गई थी। मस्जिद के निर्माण में मंदिर के अवशेषों का इस्तेमाल किया गया था। इसके बाद मराठा साम्राज्य की महारानी,अहिल्याबाई होल्कर ने 1780 में मौजूदा काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण शुरू कराया था। ज्ञानवापी को लेकर बताया ज्यादा है कि,आजादी से पहले भी इस मामले में कई विवाद हुए थे। एक विवाद मस्जिद परिसर के बाहर मंदिर के क्षेत्र में नमाज पढ़ने का भी था। 1809 में विवाद को लेकर सांप्रदायिक दंगा भड़क गया था। 1991 के बाद ज्ञानवापी मस्जिद के चारों तरफ लोहे की बाड़ बना दी गई थी।
कैसे शुरू हुआ ज्ञानवापी मस्जिद मुकदमा?
ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर पहली बार मुकदमा 1991 में वाराणसी की अदालत में दाखिल किया गया था। याचिका में ज्ञानवापी में पूजा करने की अनुमति मांगी गई थी। प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विश्वेशर की ओर से सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय इस मामले के याचिकाकर्ता थे। 1991 में ही केंद्र सरकार ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट बनाया था। इस कानून के मुताबिक, आजादी के बाद इतिहासिक और पौराणिक स्थलों को उनकी यथास्थिति में बरकरार रखने का विधान है। मस्जिद कमेटी ने इसी कानून का हवाला देते हुए,इलाहाबाद हाई कोर्ट में सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय की याचिका को चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने 1993 में विवादित जगह को लेकर स्टे लगा दिया था और यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद स्टे के आदेश की वैधता को लेकर 2019 को वाराणसी कोर्ट में फिर सुनवाई हुई। 18 अगस्त 2021 को राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, सीता शाहू, मंजू व्यास और रेखा पाठक की ने ज्ञानवापी परिसर में श्रृंगार गौरी की पूजा-दर्शन की मांग करते हुए अदालत में याचिका दायर की थी।