गंगा नदी (Ganga River) के बारे में हिन्दू धर्म के वेदों, पुराणों से लेकर महाभारत और रामायण तक में इसका वर्णन मिलता है। गंगा नदी भारत की एकमात्र ऐसी नदी है जिसका जल कभी सड़ता नहीं है। गंगा मैया (Ganga Maiya) को धार्मिक ग्रंथों में तो स्थान मिला ही हुआ है साथ ही इसके जल में जो विशेष गुण पाए जाते हैं उसके वैज्ञानिक आधार भी मौजूद है। आज हम गंगा के जन्म से लेकर इसके पवित्र होने तक के पीछे की कहानी के बारे में बात करेंगे।
गंगा का जन्म कैसे हुआ ? (How is Ganga born?)
गंगा (Ganga) का जन्म वैशाख में शुक्ल पक्ष की सप्तमी को हुआ था। वामन पुराण में गंगा के जन्म के संबंध में यह जानकारी मिलती है कि उनका जन्म भगवान् विष्णु के चरण कमलों से हुआ था। जब भगवान् विष्णु (Lord Vishnu) ने वामन रूप धारण करते हुए एक पैर को आकाश की ओर ऊपर उठाया तो उस समय ब्रह्मा जी (Lord Brahma) ने विष्णु के चरणों को धोकर उस जल को कमंडल में भर लिया था। कमंडल में भरे हुए जल के अत्यधिक तेज से गंगा का जन्म हुआ था। ब्रह्मा जी ने गंगा को हिमालय पर्वत (Himalaya Mountain) को सौंप दिया था जिसके बाद से गंगा पार्वती की बहन मानी गई।
गंगा धरती पर कैसे आईं? (How Ganga came to earth?)
गंगा (Ganga) के स्वर्ग से धरती पर आने की भी एक कहानी प्रचलित है जिसके अनुसार प्रभु श्री राम के पूर्वज इक्ष्वाकु वंश के राजा भगीरथ के अथक प्रयासों के कारण ही गंगा स्वर्ग से धरती पर आई थीं। इसके लिए उन्होंने कड़ी तपस्या की थी उनकी तपस्या से खुश होकर ब्रह्मा जी ने भगीरथ से यह सवाल किया था ‘तुम धरती पर गंगा को लाना तो चाहते हो पर क्या तुमने धरती माता से यह प्रश्न किया था कि वे गंगा के वेग को सँभालने में सक्षम हैं या नहीं’। इसके बाद ब्रह्मा जी कहते है कि मुझे ऐसा लगता है कि गंगा के वेग को सँभालने की अद्भुत शक्ति केवल भगवान् शिव के पास है। इसलिए आप सर्वप्रथम भगवान् शिव से गंगा के वेग को सँभालने का अनुग्रह प्राप्त कीजिये।
ब्रह्मा जी की बात सुनकर भगीरथ ने अनुग्रह प्राप्त किया। इसके बाद जाकर ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से गंगा को पृथ्वी पर छोड़ा। इस प्रक्रिया के दौरान भगवान् शिव ने गंगा के वेग को सँभालते हुए जलधारा को अपनी जटाओं में भरकर उन्हें बाँध लिया। ब्रह्मचारिणी गंगा के स्पर्श के बाद भगवान् शंकर ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में भी स्वीकार कर लिया था।
गंगा का विवाह किसके साथ हुआ? (Who is Ganga married to?)
अपने पिछले जन्म में राजा शांतनु (Shantanu) महाभिष थे और वे ब्रह्मा जी की सेवा में लगे हुए थे। उसी दौरान गंगा वहां पर आयी दोनों एक दुसरे को देखकर मोहित हो गए। जब ब्रह्मा जी ने यह देखा उन्हें मनुष्य योनि में जन्म लेने और दुःख झेलने का श्राप दे दिया।
इसी श्राप के चलते गंगा ने ऋषि जह्नु की पुत्री के रूप में और महाभिष ने कुरू वंश में राजा शांतनु के रूप में जन्म लिया। एक बार जब राजा प्रतीप गंगा के किनारे पुत्र प्राप्ति के लिए तपस्या कर रहे थे। उस वक़्त राजा के रूप और सौंदर्य को देखकर गंगा उनकी दाईं जंघा पर बैठ गई और कहने लगी कि ‘मैं आपसे विवाह करना चाहती हूँ’।
अपनी दाहिनी जंघा पर गंगा को बैठे देख कुरु वंश के राजा प्रतीप बोले कि तुम मेरी दाहिनी जंघा पर बैठी हो और पत्नी को वामांगी होना चाहिए। दाहिनी जंघा पुत्र के लिए है इसलिए मैं तुम्हें अपनी पुत्र वधु के रूप में स्वीकार करता हूँ। राजा के मुख से यह वचन सुन गंगा वहां से चली गईं।
पुत्र प्राप्ति राजा प्रतीप ने जो तपस्या की थी उसका फल उन्हें मिला और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। उस पुत्र का नाम राजा प्रतीप ने शांतनु रखा था। आगे चलकर शांतनु से ही गंगा का विवाह हुआ था और इनकी आठवीं संतान ही देवव्रत (Devvrat) कहलाई जिन्हें भीष्म के नाम से भी जाना जाता है।
गंगा का जल पवित्र क्यों है? (Why Ganga water is pure?)
हिमालय (Himalaya) से अपनी यात्रा आरंभ करने वाली गंगा (Ganga) अपने साथ कई सारे ऐसे खनिज, जड़ी बूटियां और उपजाऊ मिट्टी बहाकर लाती है जो इसके जल को कभी सड़ने नहीं देते हैं। लखनऊ के नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट ने एक अनुसंधान के माध्यम से यह प्रमाणित किया है कि गंगा के पानी में किसी भी रोग को जन्म देने वाले कोलाई नामक बैक्टेरिया को मारने की क्षमता मौजूद है।
इस संबंध में वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके पानी में बैक्टीरियोफ़ाज नामक एक वायरस पाया जाता है। यह पानी में किसी भी रोग को जन्म देने वाले बक्टेरिया को उत्पन्न होते ही मार देता है। जैसे ही ये बैक्टीरियोफ़ाज वायरस इन जीवाणुओं को मार देता है तुरंत छिप जाता है।
(यदि आप पवित्र गंगाजल को Dakshinavarti Shankh में भरकर घर में स्थापित करते हैं तो यह घर के वातावरण को शुद्ध करने का कार्य करता है।)