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    Home » भगवान श्री कृष्ण द्वारा बसाई गई द्वारका नगरी के डूबने के पीछे का रहस्य
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    भगवान श्री कृष्ण द्वारा बसाई गई द्वारका नगरी के डूबने के पीछे का रहस्य

    HarshBy HarshFebruary 26, 2024Updated:February 26, 2024
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    Dwarka Nagri Samudra mein kaise dubi? | द्वारका नगरी समुद्र में कैसे डूब गई?
     

    श्रीकृष्ण पर किसी शिकारी ने हिरण समझकर बाण चला दिया था, जिससे भगवान श्रीकृष्ण देवलोक चले गए, उधर, जब पांडवों को द्वारका में हुई अनहोनी का पता चला तो अर्जुन तुरंत द्वारका गए और श्रीकृष्ण के बचे हुए परिजनों को अपने साथ इंद्रप्रस्थ लेकर चले गए. इसके बाद देखते ही देखते पूरी द्वारका नगरी रहस्यमयी तरीके से समुद्र में समा गई।  

    हिंदू लेखों में कहा गया है कि जब कृष्ण ने आध्यात्मिक दुनिया में शामिल होने के लिए पृथ्वी छोड़ दी, तो कलि युग शुरू हुआ और द्वारका और उसके निवासी समुद्र में डूब गए। जलमग्न होने की कहानियां 2004 में भारत में आई सुनामी जैसी सुनामी भी पैदा कर सकती हैं।

    मथुरा छोड़ने के बाद श्री कृष्ण ने अपने परिजनों और यदुवंश की रक्षा के लिए समुद्र के निकट द्वारका नगरी का निर्माण विश्वकर्मा के हाथों करवाया था। द्वारका नगरी के समुद्र में डूबने के पीछे दो पौराणिक घटनाएं जिम्मेदार मानी जाती हैं। एक घटना गांधारी के श्राप से जुड़ी है वहीँ दूसरी घटना का संबंध श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को ऋषियों से मिला श्राप था। 

    Kya Dwarka sach mein paani ke niche hain? | क्या द्वारका सच में पानी के नीचे है?

    कहा जाता है कि प्राचीन भारत का द्वारका शहर अरब सागर के नीचे डूब गया था । अब, पानी के नीचे पुरातत्वविद् इसके अस्तित्व को साबित करने के लिए इसकी शहर की दीवारों की नींव की तलाश कर रहे हैं। भारत के सात पवित्र तीर्थस्थलों में से एक, द्वारका शहर का न केवल धार्मिक महत्व है, बल्कि पुरातात्विक महत्व भी है।

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    दरअसल गांधारी ने युधिष्ठिर के राजतिलक के बाद महाभारत की घटना के भगवान कृष्ण को ज़िम्मेदार ठहराया था। अपने पुत्रों के मारे जाने के दुःख और क्रोध की अग्नि में जलती हुई गांधारी ने श्री कृष्ण को श्राप देते हुए कहा था कि जिस प्रकार मेरे कुल का नाश तुमने नाश किया है और मुझे दुःख दिया है उसी प्रकार तुम्हारे कुल का भी नाश हो जाएगा।  

    दूसरी घटना का संबंध ऋषियों द्वारा श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को दिया गया श्राप था। एक दिन जब महर्षि विश्वामित्र, कण्व और देवर्षि नारद द्वारका पहुंचे तो वहां यादव कुल के नवयुवक ने उनके साथ हंसी-ठिठोली करने की सोची।
    हंसी-मजाक के उद्देश्य से वे श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को एक स्त्री भेष में उन सभी ऋषियों के पास ले गए।  वे नवयुवक कहने लगे कि ये स्त्री गर्भवती है, क्या आप बता सकते हैं कि इसके गर्भ से कौन उत्पन्न होगा?

    Dwarka Nagri Paani me kyu doob gayi? | द्वारका नगरी पानी में क्यों डूबी थी?

    हिंदू लेखों में कहा गया है कि जब कृष्ण ने आध्यात्मिक दुनिया में शामिल होने के लिए पृथ्वी छोड़ दी, तो कलि युग शुरू हुआ और द्वारका और उसके निवासी समुद्र में डूब गए। जलमग्न होने की कहानियां 2004 में भारत में आई सुनामी जैसी सुनामी भी पैदा कर सकती हैं।

    ऋषियों ने नवयुवकों को ऐसी बाते करते देखा तो उन्हें अपना अपमान महसूस हुआ। वे अपने इस अपमान को सहन नहीं कर पाए और उन्होंने श्री कृष्ण के पुत्र को श्राप दे डाला कि कृष्ण का यह पुत्र वृष्णि और अंधकवंशी पुरुषों का नाश करने के लिए लौह से निर्मित मूसल को उत्पन्न करेगा। 

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    उस मूसल के द्वारा तुम और तुम्हारे जैसे क्रूर लोगों के समस्त कुल का नाश हो जाएगा।  साथ ही यह भी कहा कि उत्पन्न हुए उस मूसल के प्रभाव से केवल कृष्ण और बलराम ही बच पाएंगे। जब श्री कृष्ण को इस श्राप के बारे में ज्ञात हुआ तो उन्होंने कहा कि श्राप की यह अवश्य ही सत्य होगी ऋषियों द्वारा मिला यह श्राप व्यर्थ नहीं जाएगा।  

    Kya Dwarka sach mein paani ke niche hain? | क्या द्वारका सच में पानी के नीचे है?

    ऋषि मुनियों का श्राप इतना प्रभावशाली था कि अगले ही दिन साम्ब ने मूसल को उत्पन्न किया।  राजा उग्रसेन को जब मूसल के उत्पन्न होने की बात मालूम हुई तो राजा ने उस मूसल को चुराकर समुद्र में डलवा दिया। समुद्र में मूसल को डलवाने के बाद श्री कृष्ण और राजा उग्रसेन ने नगर में यह घोषणा करवाई कि आज से कोई भी वृष्णि और अंधकवंशी अपने गृह में मदिरा तैयार नहीं करेगा। यदि कोई ऐसा करता है तो उसकी सज़ा मृत्युदंड होगी। इस ऐलान के बाद सभी द्वारकावासियों ने मदिरा को घर पर नहीं बनाने का प्रण लिया।

    समय बीतता गया और द्वारका में अपशकुन बढ़ते चले गए। रोज़ तेज़ आंधी चलने लगी और नगर में चूहों की संख्या इतनी बढ़ने लगी थी कि द्वारका में लोगों से ज्यादा चूहे हो गए थे। अजीबों-गरीब भयंकर घटनाएं होने लगी, इन्हें देखते हुए श्री कृष्ण को लगने लगा कि अब गांधारी का श्राप सत्य होने का समय आ गया है।
    श्री कृष्ण ने पक्ष की अमावस्या पर गौर किया तो ये ठीक वैसा ही योग है जैसा महाभारत के युद्ध के समय बना था।  गांधारी के श्राप को सत्य में परिवर्तित करने के लिए श्री कृष्ण ने यदुवंशियों को तीर्थ करने का आदेश दिया। इसके पश्चात आज्ञा का पालन करते हुए राजवंशी समुद्र के तट पर तीर्थ से आकर निवास करने। एक दिन अंधक और वृष्णि के बीच किसी बात पर बहस हो गई। उपहास और अनादर इतना अधिक बढ़ गया कि दोनों ने एक दूसरे पर हमले करना और वध करना शुरू कर दिया।

    Dwarka ko shraap kisne diya tha? | द्वारका को शाप किसने दिया था?

    द्वारका के ठीक बाहर, भगवान कृष्ण और उनकी पत्नी रुक्मिणी देवी को ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण यहां रुकने के लिए मजबूर होना पड़ा था, जिन्होंने क्रोध में हजारों साल पहले शर्त लगाई थी कि यह स्थान पीने के पानी से रहित होगा। ऐसे में आज तक पूरे द्वारका क्षेत्र में लोगों को पीने का पानी मिलने में दिक्कत होती है।

    इस दौरान ऋषियों का शाप इस तरह सत्य हुआ कि साम्ब ने जिस मूसल को उत्पन्न किया था उसके प्रभाव से मैदान में मौजूद खड़ी एरका घास को लड़ाई के दौरान को भी उखड़ता उससे एक मूसल उत्पन्न होने लगता।  वह मूसल बहुत शक्तिशाली था जिसके के केवल एक वार से मृत्यु संभव थी।  इस तरह वहां मौजूद सभी लोग मारे गए। जब श्री कृष्ण उस प्रभास क्षेत्र में पहुंचे तो अपने परिजनों को मृत देखकर अत्यंत दुःखी हो गए। क्रोध में आकर श्री कृष्ण ने वहां खड़ी घास को उखाड़ा तो वह मूसल में तब्दील हो गई।  इसके बाद श्री कृष्ण ने उस मूसल से वहां मौजूद जीवित लोगों पर वार कर दिया क्योंकि इन लोगों ने अपने ही लोगों को मारा था। श्री कृष्ण ने  वासुदेवजी को इस संहार के बारे में बताया और कहा कि आप स्त्रियों और बच्चों को लेकर अर्जुन के साथ हस्तिनापुर चले जाइये।  

    Shri krishna ko Gandhari ne shraap kyu diya? | कृष्ण को गांधारी ने श्राप क्यों दिया था?

    जब उसने पांडवों के सभी पुत्रों की मृत्यु की खबर सुनी, तो उसने पांडवों को गले लगाया और उनके नुकसान के लिए उन्हें सांत्वना दी। बाद में यह सारा विनाश होने देने के लिए उसका क्रोध कृष्ण पर भड़क गया। उसने श्राप दिया कि वह, उसका शहर और उसकी सारी प्रजा नष्ट हो जायेगी । कृष्ण ने श्राप स्वीकार कर लिया.
     
    इसके बाद श्री कृष्ण प्रभास क्षेत्र में पहुंचे तो उस समय उनके बड़े भाई बलराम जी ध्यान मुद्रा में थे। श्री कृष्ण को देखकर बलराम के शरीर से शेष नाग निकले और समुद्र में चले गए। फिर श्री कृष्ण श्राप और नरसंहार के बारे में विचार करते हुए इधर-उधर घूमने लगे।  घूमते हुए वे पेड़ के नीचे विश्राम करने के लिए बैठे।

    इसी दौरान जरा नामक शिकारी का बाण उनके पैर के अंगूठे में जाकर लगा। जरा शिकारी ने यह हिरन का मुख समझ मारा था। श्री कृष्ण के पैरों में लगा बाण देख शिकारी उनसे क्षमा मांगने लगा तो उन्होंने जरा को अभयदान दिया और अपने प्राणों को त्याग दिया। इसके बाद यदुवंशियों का अंतिम संस्कार किया गया जिसके अगले ही दिन वासुदेवजी ने भी प्राण त्याग दिए। अर्जुन वहां से स्त्रियों और बच्चों को जैसे ही हस्तिनापुर की ओर चले द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई। 

    द्वारका का निर्माण कैसे हुआ? | Dwarka ka nirman kaise hua?

    आज से लगभग पांच हजार साल पहले श्री कृष्ण ने मथुरा छोड़कर द्वारका का निर्माण विश्वकर्मा के हाथों करवाया था। श्री कृष्ण अपने साथ यदुवंशियों को साथ लाये थे और इस नगर को अपना बसेरा बनाया था। द्वारका श्री कृष्ण की कर्मभूमि मानी जाती है जिसपर उन्होंने 36 वर्षों तक शासन किया।

    जब श्री कृष्ण ने अपने मामा कंस का वध कर दिया तो कंस के श्वसुर जरासंध ने श्री कृष्ण और यदुवंशियों का खात्मा करने की कसम खाई थी। इसके लिए वह आय दिन मथुरा पर आक्रमण करता रहता था। अन्तः यादवों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए श्री कृष्ण ने मथुरा को छोड़कर द्वारका जाने का निश्चय किया। द्वारका में उन्होंने लगभग 36 वर्षों तक शासन किया था।

    Shri Krishna mathura chor ke Dwarka kyu gaye? | कृष्ण मथुरा छोड़कर द्वारका क्यों गए? 

    पौराणिक कथा के अनुसार, जरासंध द्वारा प्रजा पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए भगवान श्री कृष्ण मथुरा को छोड़कर चले गए थे. श्रीकृष्ण ने समुद्र किनारे अपनी एक दिव्य नगरी बसायी. इस नगरी का नाम द्वारका रखा. माना जाता है कि महाभारत के 36 वर्ष बाद द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई थी. महाभारत में पांडवों की विजय हुई और सभी कौरवों का नाश हो गया था. इसके बाद जब युधिष्ठिर का हस्तिनापुर में राजतिलक हो रहा था, उस समय श्रीकृष्ण भी वहां मौजूद थे.

    तब गांधारी ने श्रीकृष्ण को महाभारत युद्ध का दोषी ठहराते हुए भगवान श्रीकृष्ण को श्राप दिया कि अगर मैंने अपने आराध्य की सच्चे मन से आराधना की है और मैंने अपना पत्नीव्रता धर्म निभाया है तो जो जिस तरह मेरे कुल का नाश हुआ है, उसी तरह तुम्हारे कुल का नाश भी तुम्हारी आंखों के समक्ष होगा. कहते हैं इस श्राप की वजह से श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी पानी में समा गई.

    द्वारका क्यों प्रसिद्ध है? | Why is Dwarka Nagri famous?

    द्वारका नगरी के प्रसिद्ध होने के कई कारण है। द्वारका सप्तपुरियों और चार धाम के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण और रुक्मणि से संबंधित प्राचीन द्वारकाधीश मंदिर अवस्थित है। साथ ही आपको बताते चलें कि यहाँ 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Nageshwar Jyotirlinga) भी स्थापित है।

    Kya hum Dwarka Nagri dekh sakte hai? | क्या हम द्वारका देख सकते हैं?

    यहीं पर आप प्राचीन द्वारका के पानी के नीचे के अवशेष देख सकते हैं जिनकी हाल ही में पुरातत्वविदों द्वारा खुदाई की गई थी । द्वारका शहर के समुद्र तट टूर कंपनियों से भरे हुए हैं जो आपको द्वारका में स्कूबा डाइविंग करने और पानी के नीचे प्राचीन द्वारका के अवशेषों को देखने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करते हैं।

    गोताखोरी का अनुभव अपने आप में किसी अन्य से भिन्न है। गुरुत्वाकर्षण की सीमाओं को पीछे छोड़ते हुए, आप लहरों के नीचे सहजता से सरक सकते हैं, एक पूरी नई दुनिया को देखकर आश्चर्यचकित हो सकते हैं जिसे आपने केवल स्क्रीन पर देखा है। जब आप द्वारका में स्कूबा डाइविंग के लिए जाते हैं और पानी के नीचे प्राचीन द्वारका के अवशेष देखते हैं, तो एक प्रतिष्ठित गोताखोर कंपनी चुनना सुनिश्चित करें जो उचित प्रशिक्षण और अधिक महत्वपूर्ण रूप से सुरक्षा प्रोटोकॉल प्रदान करती है। जब आप प्राचीन द्वारका के अवशेषों का पता लगाते हैं तो कुछ कंपनियां आपको पानी के भीतर फोटो खिंचवाने का मौका भी देती हैं।

    Dwarka Nagri ka itihaas | History of Dwarka Nagri | द्वारका नगरी का इतिहास

    गुजरात का द्वारका शहर वह स्थान है, जहां 5000 साल पहले भगवान कृष्ण ने द्वारका नगरी बसाई थी। जिस स्थान पर उनका निजी महल और हरिगृह था, वहां आज द्वारकाधीश मंदिर है। इसलिए कृष्ण भक्तों की दृष्टि में यह एक महान तीर्थ है। वैसे भी द्वारका नगरी आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित देश के चारों धाम में से एक है। यही नहीं, द्वारका नगरी पवित्र सप्तपुरियों में से भी एक है। मंदिर का वर्तमान स्वरूप 16 सदी में प्राप्त हुआ। जन्माष्टमी के अवसर पर आप जानेंगे कि किस तरह से नष्ट हुई थी द्वारका नगरी। 

     
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