द्वारिका का निर्माण कैसे हुआ? ( Dwarka ka nirman kaise hua? )
आज से लगभग पांच हजार साल पहले श्री कृष्ण ( Shri Krishna ) ने मथुरा छोड़कर द्वारका ( Dwarka ) का निर्माण विश्वकर्मा के हाथों करवाया था। श्री कृष्ण अपने साथ यदुवंशियों को साथ लाये थे और इस नगर को अपना बसेरा बनाया था। द्वारका श्री कृष्ण की कर्मभूमि मानी जाती है जिसपर उन्होंने 36 वर्षों तक शासन किया।
कृष्ण भगवान मथुरा छोड़कर द्वारका क्यों गए? ( Why Krishna went To Dwarka in Hindi? )
जब श्री कृष्ण ( Shri Krishna ) ने अपने मामा कंस का वध कर दिया तो कंस के श्वसुर जरासंध ने श्री कृष्ण और यदुवंशियों का खात्मा करने की कसम खाई थी। इसके लिए वह आय दिन मथुरा पर आक्रमण करता रहता था। अन्तः यादवों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए श्री कृष्ण ने मथुरा को छोड़कर द्वारका जाने का निश्चय किया। द्वारका में उन्होंने लगभग 36 वर्षों तक शासन किया था।
द्वारका समुद्र में कैसे डूबी? ( Dwarka samudra me kaise doobi? )
मथुरा ( Mathura ) छोड़ने के बाद श्री कृष्ण ( Shri Krishna ) ने अपने परिजनों और यदुवंश की रक्षा के लिए समुद्र के निकट द्वारका ( Dwarka ) नगरी का निर्माण विश्वकर्मा के हाथों करवाया था। द्वारका नगरी के समुद्र में डूबने के पीछे दो पौराणिक घटनाएं जिम्मेदार मानी जाती हैं। एक घटना गांधारी के श्राप से जुड़ी है वहीँ दूसरी घटना का संबंध श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को ऋषियों से मिला श्राप था।
दरअसल गांधारी ( Gandhari ) ने युधिष्ठिर के राजतिलक के बाद महाभारत की घटना के भगवान कृष्ण को ज़िम्मेदार ठहराया था। अपने पुत्रों के मारे जाने के दुःख और क्रोध की अग्नि में जलती हुई गांधारी ने श्री कृष्ण को श्राप देते हुए कहा था कि जिस प्रकार मेरे कुल का नाश तुमने नाश किया है और मुझे दुःख दिया है उसी प्रकार तुम्हारे कुल का भी नाश हो जाएगा।
दूसरी घटना का संबंध ऋषियों द्वारा श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को दिया गया श्राप था। एक दिन जब महर्षि विश्वामित्र, कण्व और देवर्षि नारद द्वारका पहुंचे तो वहां यादव कुल के नवयुवक ने उनके साथ हंसी-ठिठोली करने की सोची।
हंसी-मजाक के उद्देश्य से वे श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को एक स्त्री भेष में उन सभी ऋषियों के पास ले गए। वे नवयुवक कहने लगे कि ये स्त्री गर्भवती है, क्या आप बता सकते हैं कि इसके गर्भ से कौन उत्पन्न होगा?
ऋषियों ने नवयुवकों को ऐसी बाते करते देखा तो उन्हें अपना अपमान महसूस हुआ। वे अपने इस अपमान को सहन नहीं कर पाए और उन्होंने श्री कृष्ण के पुत्र को श्राप दे डाला कि कृष्ण का यह पुत्र वृष्णि और अंधकवंशी पुरुषों का नाश करने के लिए लौह से निर्मित मूसल को उत्पन्न करेगा।
उस मूसल के द्वारा तुम और तुम्हारे जैसे क्रूर लोगों के समस्त कुल का नाश हो जाएगा। साथ ही यह भी कहा कि उत्पन्न हुए उस मूसल के प्रभाव से केवल कृष्ण और बलराम ही बच पाएंगे। जब श्री कृष्ण को इस श्राप के बारे में ज्ञात हुआ तो उन्होंने कहा कि श्राप की यह अवश्य ही सत्य होगी ऋषियों द्वारा मिला यह श्राप व्यर्थ नहीं जाएगा।
ऋषि मुनियों का श्राप इतना प्रभावशाली था कि अगले ही दिन साम्ब ने मूसल को उत्पन्न किया। राजा उग्रसेन को जब मूसल के उत्पन्न होने की बात मालूम हुई तो राजा ने उस मूसल को चुराकर समुद्र में डलवा दिया। समुद्र में मूसल को डलवाने के बाद श्री कृष्ण और राजा उग्रसेन ने नगर में यह घोषणा करवाई कि आज से कोई भी वृष्णि और अंधकवंशी अपने गृह में मदिरा तैयार नहीं करेगा। यदि कोई ऐसा करता है तो उसकी सज़ा मृत्युदंड होगी। इस ऐलान के बाद सभी द्वारकावासियों ने मदिरा को घर पर नहीं बनाने का प्रण लिया।
समय बीतता गया और द्वारका में अपशकुन बढ़ते चले गए। रोज़ तेज़ आंधी चलने लगी और नगर में चूहों की संख्या इतनी बढ़ने लगी थी कि द्वारका में लोगों से ज्यादा चूहे हो गए थे। अजीबों-गरीब भयंकर घटनाएं होने लगी, इन्हें देखते हुए श्री कृष्ण को लगने लगा कि अब गांधारी का श्राप सत्य होने का समय आ गया है।
श्री कृष्ण ने पक्ष की अमावस्या पर गौर किया तो ये ठीक वैसा ही योग है जैसा महाभारत के युद्ध के समय बना था। गांधारी के श्राप को सत्य में परिवर्तित करने के लिए श्री कृष्ण ने यदुवंशियों को तीर्थ करने का आदेश दिया। इसके पश्चात आज्ञा का पालन करते हुए राजवंशी समुद्र के तट पर तीर्थ से आकर निवास करने। एक दिन अंधक और वृष्णि के बीच किसी बात पर बहस हो गई। उपहास और अनादर इतना अधिक बढ़ गया कि दोनों ने एक दूसरे पर हमले करना और वध करना शुरू कर दिया।
इस दौरान ऋषियों का शाप इस तरह सत्य हुआ कि साम्ब ने जिस मूसल को उत्पन्न किया था उसके प्रभाव से मैदान में मौजूद खड़ी एरका घास को लड़ाई के दौरान को भी उखड़ता उससे एक मूसल उत्पन्न होने लगता। वह मूसल बहुत शक्तिशाली था जिसके के केवल एक वार से मृत्यु संभव थी।
इस तरह वहां मौजूद सभी लोग मारे गए। जब श्री कृष्ण उस प्रभास क्षेत्र में पहुंचे तो अपने परिजनों को मृत देखकर अत्यंत दुःखी हो गए। क्रोध में आकर श्री कृष्ण ने वहां खड़ी घास को उखाड़ा तो वह मूसल में तब्दील हो गई। इसके बाद श्री कृष्ण ने उस मूसल से वहां मौजूद जीवित लोगों पर वार कर दिया क्योंकि इन लोगों ने अपने ही लोगों को मारा था। श्री कृष्ण ने वासुदेवजी को इस संहार के बारे में बताया और कहा कि आप स्त्रियों और बच्चों को लेकर अर्जुन के साथ हस्तिनापुर चले जाइये।
इसके बाद श्री कृष्ण प्रभास क्षेत्र में पहुंचे तो उस समय उनके बड़े भाई बलराम जी ध्यान मुद्रा में थे। श्री कृष्ण को देखकर बलराम के शरीर से शेष नाग निकले और समुद्र में चले गए। फिर श्री कृष्ण श्राप और नरसंहार के बारे में विचार करते हुए इधर-उधर घूमने लगे। घूमते हुए वे पेड़ के नीचे विश्राम करने के लिए बैठे।
इसी दौरान जरा नामक शिकारी का बाण उनके पैर के अंगूठे में जाकर लगा। जरा शिकारी ने यह हिरन का मुख समझ मारा था। श्री कृष्ण के पैरों में लगा बाण देख शिकारी उनसे क्षमा मांगने लगा तो उन्होंने जरा को अभयदान दिया और अपने प्राणों को त्याग दिया।
इसके बाद यदुवंशियों का अंतिम संस्कार किया गया जिसके अगले ही दिन वासुदेवजी ने भी प्राण त्याग दिए। अर्जुन वहां से स्त्रियों और बच्चों को जैसे ही हस्तिनापुर की ओर चले द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई।
दरअसल गांधारी ( Gandhari ) ने युधिष्ठिर के राजतिलक के बाद महाभारत की घटना के भगवान कृष्ण को ज़िम्मेदार ठहराया था। अपने पुत्रों के मारे जाने के दुःख और क्रोध की अग्नि में जलती हुई गांधारी ने श्री कृष्ण को श्राप देते हुए कहा था कि जिस प्रकार मेरे कुल का नाश तुमने नाश किया है और मुझे दुःख दिया है उसी प्रकार तुम्हारे कुल का भी नाश हो जाएगा।
दूसरी घटना का संबंध ऋषियों द्वारा श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को दिया गया श्राप था। एक दिन जब महर्षि विश्वामित्र, कण्व और देवर्षि नारद द्वारका पहुंचे तो वहां यादव कुल के नवयुवक ने उनके साथ हंसी-ठिठोली करने की सोची।
हंसी-मजाक के उद्देश्य से वे श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को एक स्त्री भेष में उन सभी ऋषियों के पास ले गए। वे नवयुवक कहने लगे कि ये स्त्री गर्भवती है, क्या आप बता सकते हैं कि इसके गर्भ से कौन उत्पन्न होगा?
ऋषियों ने नवयुवकों को ऐसी बाते करते देखा तो उन्हें अपना अपमान महसूस हुआ। वे अपने इस अपमान को सहन नहीं कर पाए और उन्होंने श्री कृष्ण के पुत्र को श्राप दे डाला कि कृष्ण का यह पुत्र वृष्णि और अंधकवंशी पुरुषों का नाश करने के लिए लौह से निर्मित मूसल को उत्पन्न करेगा।
उस मूसल के द्वारा तुम और तुम्हारे जैसे क्रूर लोगों के समस्त कुल का नाश हो जाएगा। साथ ही यह भी कहा कि उत्पन्न हुए उस मूसल के प्रभाव से केवल कृष्ण और बलराम ही बच पाएंगे। जब श्री कृष्ण को इस श्राप के बारे में ज्ञात हुआ तो उन्होंने कहा कि श्राप की यह अवश्य ही सत्य होगी ऋषियों द्वारा मिला यह श्राप व्यर्थ नहीं जाएगा।
ऋषि मुनियों का श्राप इतना प्रभावशाली था कि अगले ही दिन साम्ब ने मूसल को उत्पन्न किया। राजा उग्रसेन को जब मूसल के उत्पन्न होने की बात मालूम हुई तो राजा ने उस मूसल को चुराकर समुद्र में डलवा दिया। समुद्र में मूसल को डलवाने के बाद श्री कृष्ण और राजा उग्रसेन ने नगर में यह घोषणा करवाई कि आज से कोई भी वृष्णि और अंधकवंशी अपने गृह में मदिरा तैयार नहीं करेगा। यदि कोई ऐसा करता है तो उसकी सज़ा मृत्युदंड होगी। इस ऐलान के बाद सभी द्वारकावासियों ने मदिरा को घर पर नहीं बनाने का प्रण लिया।
समय बीतता गया और द्वारका में अपशकुन बढ़ते चले गए। रोज़ तेज़ आंधी चलने लगी और नगर में चूहों की संख्या इतनी बढ़ने लगी थी कि द्वारका में लोगों से ज्यादा चूहे हो गए थे। अजीबों-गरीब भयंकर घटनाएं होने लगी, इन्हें देखते हुए श्री कृष्ण को लगने लगा कि अब गांधारी का श्राप सत्य होने का समय आ गया है।
श्री कृष्ण ने पक्ष की अमावस्या पर गौर किया तो ये ठीक वैसा ही योग है जैसा महाभारत के युद्ध के समय बना था। गांधारी के श्राप को सत्य में परिवर्तित करने के लिए श्री कृष्ण ने यदुवंशियों को तीर्थ करने का आदेश दिया। इसके पश्चात आज्ञा का पालन करते हुए राजवंशी समुद्र के तट पर तीर्थ से आकर निवास करने। एक दिन अंधक और वृष्णि के बीच किसी बात पर बहस हो गई। उपहास और अनादर इतना अधिक बढ़ गया कि दोनों ने एक दूसरे पर हमले करना और वध करना शुरू कर दिया।
इस दौरान ऋषियों का शाप इस तरह सत्य हुआ कि साम्ब ने जिस मूसल को उत्पन्न किया था उसके प्रभाव से मैदान में मौजूद खड़ी एरका घास को लड़ाई के दौरान को भी उखड़ता उससे एक मूसल उत्पन्न होने लगता। वह मूसल बहुत शक्तिशाली था जिसके के केवल एक वार से मृत्यु संभव थी।
इस तरह वहां मौजूद सभी लोग मारे गए। जब श्री कृष्ण उस प्रभास क्षेत्र में पहुंचे तो अपने परिजनों को मृत देखकर अत्यंत दुःखी हो गए। क्रोध में आकर श्री कृष्ण ने वहां खड़ी घास को उखाड़ा तो वह मूसल में तब्दील हो गई। इसके बाद श्री कृष्ण ने उस मूसल से वहां मौजूद जीवित लोगों पर वार कर दिया क्योंकि इन लोगों ने अपने ही लोगों को मारा था। श्री कृष्ण ने वासुदेवजी को इस संहार के बारे में बताया और कहा कि आप स्त्रियों और बच्चों को लेकर अर्जुन के साथ हस्तिनापुर चले जाइये।
इसके बाद श्री कृष्ण प्रभास क्षेत्र में पहुंचे तो उस समय उनके बड़े भाई बलराम जी ध्यान मुद्रा में थे। श्री कृष्ण को देखकर बलराम के शरीर से शेष नाग निकले और समुद्र में चले गए। फिर श्री कृष्ण श्राप और नरसंहार के बारे में विचार करते हुए इधर-उधर घूमने लगे। घूमते हुए वे पेड़ के नीचे विश्राम करने के लिए बैठे।
इसी दौरान जरा नामक शिकारी का बाण उनके पैर के अंगूठे में जाकर लगा। जरा शिकारी ने यह हिरन का मुख समझ मारा था। श्री कृष्ण के पैरों में लगा बाण देख शिकारी उनसे क्षमा मांगने लगा तो उन्होंने जरा को अभयदान दिया और अपने प्राणों को त्याग दिया।
इसके बाद यदुवंशियों का अंतिम संस्कार किया गया जिसके अगले ही दिन वासुदेवजी ने भी प्राण त्याग दिए। अर्जुन वहां से स्त्रियों और बच्चों को जैसे ही हस्तिनापुर की ओर चले द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई।
द्वारका क्यों प्रसिद्ध है? ( Why is Dwarka famous? )
द्वारका ( Dwarka ) नगरी के प्रसिद्ध होने के कई कारण है। द्वारका सप्तपुरियों और चार धाम के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण और रुक्मणि से संबंधित प्राचीन द्वारकाधीश मंदिर अवस्थित है। साथ ही आपको बताते चलें कि यहाँ 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक नागेश्वर ज्योतिर्लिंग ( Nageshwar Jyotirlinga ) भी स्थापित है।
( भगवान श्री कृष्ण की पूजा को सफल बनाने के लिए तुलसी माला का जप करना अनिवार्य माना जाता है। तुलसी उनकी सबसे प्रिय मानी जाती है। आज ही Online Order करें Original Tulsi Mala )
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