सर कटी देवी का क्या है रहस्य? आखिर क्यों बहता है माता की गर्दन से खून? क्यों माता ने किया खुद का सर धड़ से अलग? क्यों अपने ही हाथ में पकड़ा हुआ है देवी ने अपना कटा हुआ सर? आखिर क्यों माना जाता है इस मंदिर को दूसरा बड़ा शक्तिपीठ (Shakti Peeth)? आखिर क्यों करते हैं भक्त इस सर कटी माता की पूजा? आखिर क्या है इस 6000 साल पुराने मंदिर का रहस्य ( Mandir ka Rahasya )? आखिर क्यों है माता के गले में सर्प और मुंडमाला? क्यों निकलती है मां के गर्दन से खून की तीन धाराएं?
दोस्तों आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे सुनकर आपके भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे। आखिर कौन सा है ये रहस्यमयी मंदिर? आखिर कहाँ पर स्थित है सिर कटी देवी का ये मंदिर दिव्य मंदिर? ये जानने के लिए लेख को अंत तक जरूर पढ़ियेगा।
माँ छिन्नमस्तिका की कहानी ( Maa Chinnamasta story in hindi )
दोस्तों झारखंड के रजरप्पा में स्थित माता का यह दूसरा सबसे बड़ा मंदिर है जिसे रजरप्पा मंदिर ( Rajrappa Mandir ) के नाम से भी जाना जाता है। यह Rajrappa Mandir Jharkhand माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है। जंहा पर माता अपनी ही गर्दन से निकले हुए रक्त का पान कर रही है। छिन्नमस्तिका मंदिर ( Chhinmastika Mandir ) के नाम से जाना जाने वाला ये मंदिर बहुत ही रहस्यमयी (Mysterious Temple) है। इस मंदिर में Chinnamasta Kali अपने कटे हुए सर को लेकर अपनी दो सहेलियों डाकिनी और साकिनी के साथ खड़ी है। माँ भवानी की गर्दन से खून की तीन धाराएं निकल रही है, साथ ही उनके एक हाथ में तलवार है और दूसरे हाथ में उन्होंने अपना कटा हुआ सर पकड़ा हुआ है।
गले में सर्प तथा मुंडमाला धारण की हुई है और उनके तीन नेत्र भी है। Maa Chinnamasta का दायां पैर आगे की तरफ है और बायां पैर पीछे की तरफ है। माँ भवानी इस मंदिर में अपने विकराल रूप में विराजमान है। लेकिन सोचने वाली बात ये है कि आखिर देवी भवानी की गर्दन से खून कैसे निकला और उन्होंने अपने ही सर को अपने हाथ में क्यों पकड़ा हुआ है? इसके पीछे भी एक पौराणिक पौराणिक कथा छिपी हुई है।
दोस्तों माना जाता है कि एक बार देवी Chhinnamasta अपनी दो सखियों जाया और विजया के साथ नदी में स्नान के लिए गयी थी। स्नान के पश्चात् माता की दोनों सखियों को बहुत भूख लगने लगी, भूख के कारण उनका शरीर काला पड़ने लगा । तभी उन्होंने देवी से कहा कि उन्हें भूख लगी है लेकिन माँ भवानी ने उन्हें थोड़ी देर विश्राम करने को कहा। परन्तु जब दोनों सखियाँ भूख से तड़प गयी तो उन्होंने फिर से माँ भवानी को ये बात याद दिलाई।
माता से भी अपनी सहेलियों को भूख से तड़पते हुए नहीं देखा गया और उन्होंने अपना सर धड़ से अलग कर दिया। ऐसा करने से माता की गर्दन से खून की तीन धाराएं बहने लगी, उन्होंने दो धाराओं से अपनी सहेलियों को रक्त-पान करवाया तथा खुद भी किया। माता को अपने सर को छिन्न कर देने के कारण ही उनका नाम छिन्नमस्तिका ( Chhinmastika ) पड़ा।
छिन्नमस्तिका देवी ( Chhinmastika Devi ) काली का चंडिका स्वरुप है जो बुराई पर अच्छाई का प्रतीक हैं। देवी बुराई का सर्वनाश करने के लिए विशेष तौर पर जानी जाती हैं। कहते हैं इनकी कृपा से काले जादू का बुरा प्रभाव और हर प्रकार के भय खत्म हो जाते हैं। इनकी कृपा पाने के लिए काली कवच (Kali Kavach) को धारण करें इसमें शामिल अलौकिक और चमत्कारिक शक्तियां आपके आभामंडल में कवच बनाकर आपकी रक्षा करेंगी।
गले में सर्प तथा मुंडमाला धारण की हुई है और उनके तीन नेत्र भी है। Maa Chinnamasta का दायां पैर आगे की तरफ है और बायां पैर पीछे की तरफ है। माँ भवानी इस मंदिर में अपने विकराल रूप में विराजमान है। लेकिन सोचने वाली बात ये है कि आखिर देवी भवानी की गर्दन से खून कैसे निकला और उन्होंने अपने ही सर को अपने हाथ में क्यों पकड़ा हुआ है? इसके पीछे भी एक पौराणिक पौराणिक कथा छिपी हुई है।
दोस्तों माना जाता है कि एक बार देवी Chhinnamasta अपनी दो सखियों जाया और विजया के साथ नदी में स्नान के लिए गयी थी। स्नान के पश्चात् माता की दोनों सखियों को बहुत भूख लगने लगी, भूख के कारण उनका शरीर काला पड़ने लगा । तभी उन्होंने देवी से कहा कि उन्हें भूख लगी है लेकिन माँ भवानी ने उन्हें थोड़ी देर विश्राम करने को कहा। परन्तु जब दोनों सखियाँ भूख से तड़प गयी तो उन्होंने फिर से माँ भवानी को ये बात याद दिलाई।
माता से भी अपनी सहेलियों को भूख से तड़पते हुए नहीं देखा गया और उन्होंने अपना सर धड़ से अलग कर दिया। ऐसा करने से माता की गर्दन से खून की तीन धाराएं बहने लगी, उन्होंने दो धाराओं से अपनी सहेलियों को रक्त-पान करवाया तथा खुद भी किया। माता को अपने सर को छिन्न कर देने के कारण ही उनका नाम छिन्नमस्तिका ( Chhinmastika ) पड़ा।
छिन्नमस्तिका देवी ( Chhinmastika Devi ) काली का चंडिका स्वरुप है जो बुराई पर अच्छाई का प्रतीक हैं। देवी बुराई का सर्वनाश करने के लिए विशेष तौर पर जानी जाती हैं। कहते हैं इनकी कृपा से काले जादू का बुरा प्रभाव और हर प्रकार के भय खत्म हो जाते हैं। इनकी कृपा पाने के लिए काली कवच (Kali Kavach) को धारण करें इसमें शामिल अलौकिक और चमत्कारिक शक्तियां आपके आभामंडल में कवच बनाकर आपकी रक्षा करेंगी।
छिन्नमस्तिका मंदिर का इतिहास ( History of Chhinmastika Temple )
दोस्तों Chinnamasta Mandir को महाभारत कालीन का भी बताया गया है, साथ ही इस मंदिर का उल्लेख कई पुराणों में भी हुआ। माना जाता है कि इस मंदिर में जो भी आता है उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है इसलिए इसे मनोकामना पूर्ण करने वाली देवी भी कहा जाता है। इस मंदिर के साथ साथ यंहा अन्य देवी देवताओं के सात और मंदिर हैं तथा मंदिर के सामने बलि का एक स्थान भी बना हुआ है, जहां पर तकरीबन सौ से दो सौ बकरों की बलि दी जाती है।
इस मंदिर के पास दामोदर नदी तथा भैरवी नदी का अनोखा संगम है। पुरातत्व विभाग आज भी इस मंदिर के निर्माण का सटीक प्रमाण नहीं दे पाया है, कोई इस मंदिर को महाभारत के समय का बताता है तो कोई इस मंदिर को 6000 साल पुराना बताता है। लेकिन ये मंदिर कितने समय पुराना है ये आज भी एक रहस्य बना हुआ है।
दोस्तों मां Chinnamasta के इस अद्भुत शक्तिपीठ के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे? क्या आपने कभी छिन्नमस्तिका मंदिर के बारे में सुना है? या फिर कभी आप इस मंदिर में गए हैं? अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरूर साझा कीजिएगा। अगर आपके आस-पास या आपके साथ कोई ऐसी घटना घटित हुई है जो किसी चमत्कार से कम नहीं है तो आप हमारे साथ जरूर साझा कीजियेगा।
इस मंदिर के पास दामोदर नदी तथा भैरवी नदी का अनोखा संगम है। पुरातत्व विभाग आज भी इस मंदिर के निर्माण का सटीक प्रमाण नहीं दे पाया है, कोई इस मंदिर को महाभारत के समय का बताता है तो कोई इस मंदिर को 6000 साल पुराना बताता है। लेकिन ये मंदिर कितने समय पुराना है ये आज भी एक रहस्य बना हुआ है।
दोस्तों मां Chinnamasta के इस अद्भुत शक्तिपीठ के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे? क्या आपने कभी छिन्नमस्तिका मंदिर के बारे में सुना है? या फिर कभी आप इस मंदिर में गए हैं? अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरूर साझा कीजिएगा। अगर आपके आस-पास या आपके साथ कोई ऐसी घटना घटित हुई है जो किसी चमत्कार से कम नहीं है तो आप हमारे साथ जरूर साझा कीजियेगा।