गोवर्धन की परिक्रमा का महत्व ( Govardhan Parikrama Significance ) :
Govardhan Ki Parikrama – गोवर्धन वासी साँवरें की लीलाओं से सभी लोग भली भांति परिचित हैं पर आज हम आपको श्री कृष्ण की किसी लीला के बारे में बताने नहीं जा रहे हैं बल्कि हम आपको Goverdhan ji परिक्रमा के साक्षात् दर्शन कराने जा रहे हैं, वही गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा, जिसके आस पास का क्षेत्र ब्रजभूमि कहलाता है, वही गोवर्धन पर्वत जिसे गिरिराज जी ( Girraj Maharaj ) के नाम से भी जाना जाता है।
Govardhan Parvat के हर छोटे और बड़े पत्थर में श्री कृष्ण का वास है ये पत्थर इतने पावन है कि ब्रज में हर जगह इन पवित्र पत्थरों की पूजा होती दिखाई देती है। कान्हा द्वारा अपनी कनिष्ठ उंगली पर उठाये गए इस पर्वत पर लोगों का विश्वास इतना अडिग है कि यहाँ का बच्चा-बच्चा आपको पत्थरों पर चरणों के चिन्ह, गौमाता और राधा-कृष्ण की छवि तक दिखा देंगे। तो चलिए आज हम आपको लेकर चलेंगे प्रभुभक्ति के माध्यम से Govardhan hill की परिक्रमा के इस सफर पर
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Govardhan parikrama in km | Govardhan parvat parikrama distance
वैसे तो goverdhan ji parikrama 21 किलोमीटर की होती है पर भक्त इस परिक्रमा को अपनी श्रद्धा अनुसार कर सकते हैं। यह परिक्रमा दो तरीके से की जाती है बड़ी परिक्रमा और छोटी परिक्रमा। जो भक्त बड़ी परिक्रमा करने में सक्षम नहीं है वे छोटी परिक्रमा भी कर सकते हैं। लेकिन आपको बता दें कि दोनों ही परिक्रमा अपने आप में महत्वपूर्ण है और समान रूप से फल देती है। सबसे पहले हम बड़ी परिक्रमा के सफर पर आपको लेकर चलेंगे जो 12 किलोमीटर ( Govardhan parikrama distance ) की होती है।
गोवर्धन पर्वत बड़ी परिक्रमा | Govardhan Parvat Badi Parikrama
1. दानघाटी मंदिर ( Daan Ghati Mandir ) : दानघाटी Govardhan Temple वह स्थान है जहाँ से गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का शुभारंभ होता है। यह गिरिराज जी की परिक्रमा का सबसे पहला पड़ाव है और गोवर्धन परिकर्मा यही से शुरू होती है | यहाँ गिरिराज जी का दूध से अभिषेक किये जाने की परम्परा है। एक समय ऐसा था जब सुनसान सी दिखने वाली दानघाटी के बारे में कोई नहीं जानता था पर आज यहाँ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का वैभव दिखाई पड़ता है। इस पवित्र स्थली के बारे में हमारा धार्मिक इतिहास बहुत कुछ बखान करता है। कहते हैं इसी जगह से होते हुए ब्रज की समस्त गोपियाँ राजा कंस को माखन कर चुकाने जाया करती थीं और यहीं पर माखन चोर कान्हा अपने ग्वाल बालों के संग माखन और दही का दान लिया करते थे।
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यह कान्हा का ही अटूट प्रेम था जिसने कान्हा को अपने भक्तों से दान मांगने पर विवश कर दिया था। दान लिए जाने की इसी वजह के कारण इसे दानघाटी के नाम से जाना जाता है। दानकेलि कौमुदी ग्रन्थ में तो इस सुन्दर लीला का वर्णन बहुत विस्तार से किया गया है। क्योंकि यहाँ कान्हा अपने बालरूप में आते थे इसलिए इस मंदिर में प्रभु को भोग स्वरुप माखन-मिश्री और दूध दिया जाता है।
2. संकर्षण कुंड ( Sankarshan Kund ) : Govardhan Parikrama में आगे चलते हुए अब संकर्षण कुंड के दर्शन होते हैं जिसके पास में ही दाऊजी का एक बहुत प्राचान मंदिर भी मौजूद है जिसके बारे में ऐसी मान्यता है कि आज से पांच हजार वर्ष पहले भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने दाऊ जी को विराजमान किया था। संकर्षण भगवान ही दाऊ जी हैं जिन्हें हम बलराम, बालभद्र के नाम से भी जानते हैं।
3. पूंछरी का लौठा ( Poonchhri ka Lautha ) : अब हमारे मार्ग में पड़ेगा पूंछरी का लौठा, नाम थोड़ा अजीब है पर इसकी कहानी उतनी ही दिलचस्प है। पूंछरी का लौठा को भगवान श्री कृष्ण का सखा कहा जाता है। कहते हैं कि यहाँ पर जो भी व्यक्ति सच्ची श्रद्धा से govardhan ji परिक्रमा करने के लिए आता है उसकी हर मनोकमना पूर्ण होती है। यह स्थान भले ही छोटा हो पर इसका महत्व बहुत अधिक है। बंदरों से घिरे हुए इस स्थान के बारे में ऐसी मान्यता है कि यहाँ आने वाले हर भक्त को इस स्थान पर हाजिरी लगाना अनिवार्य है नहीं तो Giriraj Govardhan परिक्रमा पूरी नहीं मानी जाती है।
4. श्रीनाथ जी मंदिर ( Shri Nath Ji Temple, Govardhan ) : समर्पण भाव को समेटे हुए जतीपुरा का श्री नाथ मंदिर राधा कृष्ण के प्रेम की कहानी कहता है, यहाँ तक पहुँचने के लिए आपको गिरिराज जी की शिलाओं के ऊपर से जाना पड़ेगा। यहाँ प्रभु श्री नाथ जी के शयन कक्ष में ही प्रेम गुफा का एक द्वार बना हुआ है। श्री नाथ मंदिर में बनी यह गुफा दो प्रदेशों की अमर प्रेम कहानियों का बखान करती है। मेवाड़ की अजब कुमारी के पिता की जब तबियत खराब हुई तो वे अपने पिता के शीघ्र स्वस्थ होने की मनोकामना को लिए हुए गोवर्धन तक चली आईं। गोवर्धन पहुँचते ही श्री नाथ जी को कुमारी ने निहारा और उन्हें मन ही मन अपना पति स्वीकार कर लिया।
उन्होंने मीरा की भांति ही श्री कृष्ण की आराधना और सेवा में लीन हो गई। अपने भक्त की भक्ति को देख श्री कृष्ण प्रसन्न हो उठे और कुमारी को अपने विराट दर्शन दिए। कुमारी ने प्रभु से नाथ द्वारा चलकर अपने बीमार पिता को दर्शन देने का आग्रह किया। परन्तु श्री कृष्ण तो ब्रजवासियों के प्रेम में बंधे हुए थे इसलिए उन्होंने ब्रज के बाहर जाने से मना कर दिया। पर भक्त के वशीभूत भगवान कृष्ण ने रोजाना सोने के लिए ब्रज में आने की शर्त पर अजब कुमारी का आग्रह स्वीकार कर लिया। जब से मान्यता है, इस गुफा के रास्ते प्रभु श्री कृष्ण shree नाथ चले जाते हैं और नयनों में नींद भरते ही वापस गोवर्धन की ओर लौट आते हैं।
5. इंद्रमानभंग ( Indraman Bhang ) : यह वह स्थान हैं जहाँ पर देवराज इंद्र अपने ऐरावत हाथी के साथ उतरे थे और जैसा कि इसके नाम से प्रतीत होता है यह वही स्थान है जहाँ पर इंद्र देव का मान भंग हुआ था। आपको जानकार हैरानी होगी कि यहाँ पर ऐरावत हाथी के पदचिन्ह अभी तक दिखाई देते हैं। आप इन चिन्हों को मान भांग वाले मंदिर के निकट देख सकते हैं।
6. जतीपुरा मुखारबिंद ( Jatipura Temple ) : Govardhan ki parikrama के अगले पड़ाव में दर्शनीय स्थल जतीपुरा है जिसके बारे में ऐसी मान्यताएं है कि भगवान कृष्ण का मुख होने का यहाँ आभास होता है। जतीपुरा में पहुंचकर श्रद्धालु प्रसाद अर्पण करते हैं क्योंकि परिक्रमा के दौरान इस मंदिर के प्रसाद का बहुत महत्व बताया गया है। यहाँ पर आपको भगवान गिरिराज जी के मुखारविन्दु में श्री कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम के मुख के दर्शन होते है इसीलिए यहाँ पर छप्पन भोग लगाए जाने की परम्परा है।
अब गोवर्धन पर्वत की छोटी परिक्रमा का आरंभ करते हैं
2. संकर्षण कुंड ( Sankarshan Kund ) : Govardhan Parikrama में आगे चलते हुए अब संकर्षण कुंड के दर्शन होते हैं जिसके पास में ही दाऊजी का एक बहुत प्राचान मंदिर भी मौजूद है जिसके बारे में ऐसी मान्यता है कि आज से पांच हजार वर्ष पहले भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने दाऊ जी को विराजमान किया था। संकर्षण भगवान ही दाऊ जी हैं जिन्हें हम बलराम, बालभद्र के नाम से भी जानते हैं।
3. पूंछरी का लौठा ( Poonchhri ka Lautha ) : अब हमारे मार्ग में पड़ेगा पूंछरी का लौठा, नाम थोड़ा अजीब है पर इसकी कहानी उतनी ही दिलचस्प है। पूंछरी का लौठा को भगवान श्री कृष्ण का सखा कहा जाता है। कहते हैं कि यहाँ पर जो भी व्यक्ति सच्ची श्रद्धा से govardhan ji परिक्रमा करने के लिए आता है उसकी हर मनोकमना पूर्ण होती है। यह स्थान भले ही छोटा हो पर इसका महत्व बहुत अधिक है। बंदरों से घिरे हुए इस स्थान के बारे में ऐसी मान्यता है कि यहाँ आने वाले हर भक्त को इस स्थान पर हाजिरी लगाना अनिवार्य है नहीं तो Giriraj Govardhan परिक्रमा पूरी नहीं मानी जाती है।
4. श्रीनाथ जी मंदिर ( Shri Nath Ji Temple, Govardhan ) : समर्पण भाव को समेटे हुए जतीपुरा का श्री नाथ मंदिर राधा कृष्ण के प्रेम की कहानी कहता है, यहाँ तक पहुँचने के लिए आपको गिरिराज जी की शिलाओं के ऊपर से जाना पड़ेगा। यहाँ प्रभु श्री नाथ जी के शयन कक्ष में ही प्रेम गुफा का एक द्वार बना हुआ है। श्री नाथ मंदिर में बनी यह गुफा दो प्रदेशों की अमर प्रेम कहानियों का बखान करती है। मेवाड़ की अजब कुमारी के पिता की जब तबियत खराब हुई तो वे अपने पिता के शीघ्र स्वस्थ होने की मनोकामना को लिए हुए गोवर्धन तक चली आईं। गोवर्धन पहुँचते ही श्री नाथ जी को कुमारी ने निहारा और उन्हें मन ही मन अपना पति स्वीकार कर लिया।
उन्होंने मीरा की भांति ही श्री कृष्ण की आराधना और सेवा में लीन हो गई। अपने भक्त की भक्ति को देख श्री कृष्ण प्रसन्न हो उठे और कुमारी को अपने विराट दर्शन दिए। कुमारी ने प्रभु से नाथ द्वारा चलकर अपने बीमार पिता को दर्शन देने का आग्रह किया। परन्तु श्री कृष्ण तो ब्रजवासियों के प्रेम में बंधे हुए थे इसलिए उन्होंने ब्रज के बाहर जाने से मना कर दिया। पर भक्त के वशीभूत भगवान कृष्ण ने रोजाना सोने के लिए ब्रज में आने की शर्त पर अजब कुमारी का आग्रह स्वीकार कर लिया। जब से मान्यता है, इस गुफा के रास्ते प्रभु श्री कृष्ण shree नाथ चले जाते हैं और नयनों में नींद भरते ही वापस गोवर्धन की ओर लौट आते हैं।
5. इंद्रमानभंग ( Indraman Bhang ) : यह वह स्थान हैं जहाँ पर देवराज इंद्र अपने ऐरावत हाथी के साथ उतरे थे और जैसा कि इसके नाम से प्रतीत होता है यह वही स्थान है जहाँ पर इंद्र देव का मान भंग हुआ था। आपको जानकार हैरानी होगी कि यहाँ पर ऐरावत हाथी के पदचिन्ह अभी तक दिखाई देते हैं। आप इन चिन्हों को मान भांग वाले मंदिर के निकट देख सकते हैं।
6. जतीपुरा मुखारबिंद ( Jatipura Temple ) : Govardhan ki parikrama के अगले पड़ाव में दर्शनीय स्थल जतीपुरा है जिसके बारे में ऐसी मान्यताएं है कि भगवान कृष्ण का मुख होने का यहाँ आभास होता है। जतीपुरा में पहुंचकर श्रद्धालु प्रसाद अर्पण करते हैं क्योंकि परिक्रमा के दौरान इस मंदिर के प्रसाद का बहुत महत्व बताया गया है। यहाँ पर आपको भगवान गिरिराज जी के मुखारविन्दु में श्री कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम के मुख के दर्शन होते है इसीलिए यहाँ पर छप्पन भोग लगाए जाने की परम्परा है।
अब गोवर्धन पर्वत की छोटी परिक्रमा का आरंभ करते हैं
गोवर्धन पर्वत छोटी परिक्रमा ( Govardhan Parvat Chhoti Parikrama )
गोवर्धन पर्वत (Govardhan parvat) की छोटी परिक्रमा 9 किलोमीटर ( Govardhan parikrama km 9 ) की है जतीपुरा मुखारबिंद के बाद यह छोटी परिक्रमा शुरू हो जाती है हमारे इस छोटी परिक्रमा के पड़ाव में सबसे पहले लक्ष्मी नारायण मंदिर आता है।
1. लक्ष्मीनारायण मंदिर गोवर्धन ( Laxmi Narayan Mandir Govardhan ) : कोई मनोकामना पूर्ण होने पर या किसी मनोकामना को लेकर दूध की परिक्रमा शुरू इसी लक्ष्मीनारायण govardhan mandir से की जाती है। मंदिर में विराजमान लक्ष्मीनारायण देवता धन, सुख समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं। Govardhan parvat parikrama के लिए आने वाले तथा दूध की धार से परिक्रमा करने वाले सभी भक्त परिक्रमा से पहले लक्ष्मी नारायण मंदिर में पूजा की शुरुआत करते हैं।
2. उद्धव कुंड ( Uddhava Kunda ) : छोटी परिक्रमा के मार्ग में दूसरा स्थान उद्धव कुण्ड ( Uddhava Kunda ) है जो गोवर्धन के बिल्कुल पश्चिम में परिक्रमा मार्ग पर दाईं तरफ स्थित है। हमारे पुराणों में इस कुण्ड का वर्णन बहुत अच्छे से किया गया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार उद्धव जी ने द्वारका की महिषियों को इसी स्थान पर सांत्वना दी थी।
3. राधा कुंड ( Radha Kund ) : अब इस छोटी परिक्रमा के अगले पड़ाव में राधा कुंड आता है। इस radha kund govardhan की कहानी श्री कृष्ण के गौचारण करने से संबंधित है अब आप सोच रहे होंगे कि भला राधा कुंड का गौचारण से क्या संबंध? तो हम आपको बता दें कि गोवर्धन में ही कान्हा गाय चराने आया करते थे। जब अरिष्टासुर को ज्ञात हुआ तो कि कान्हा यहाँ आया करते हैं तो वह बछड़े का भेष धारण कर यहाँ पहुँच गया। बछड़े के भेष में आया अरिष्टासुर जब श्री कृष्ण पर हमला करने के लिए आगे बढ़ा तो उन्होंने उस बछड़े रूपी असुर का वध कर दिया।
वध करने के बाद राधा रानी ने श्री कृष्ण से कहा कि आपने बछड़े का वध किया है इसलिए आप पर गोहत्या का पाप लगेगा। राधा रानी के मुख से यह वचन सुन श्री कृष्ण ने अपनी बांसुरी से एक कुंड खोदा और उसमें स्नान भी किया। तभी से इस स्थान को राधा कुंड के नाम से जाना जाने लगा। मान्यता है कि सप्तमी की रात्रि को पुष्य नक्षत्र में रात्रि 12 बजे राधा कुंड में स्नान किया जाता है। स्नान के बाद सुहागिनें अपने केश खोलकर राधा रानी से पुत्र प्राप्ति की कामना करती हैं। इस राधा कुंड की खासियत यह है की यहाँ का पानी सात रंगों में बदलता है और कभी कभी तो दूध जैसा सफ़ेद भी दिखाई देता है।
4. श्याम कुंड ( Shyam Kunda ) : अब राधा कुंड के बाद श्याम कुंड के दर्शन होते हैं। यह तो शाश्वत सत्य है जहाँ राधा वहां कृष्ण। इसी प्रकार जहाँ पर राधा कुंड कुंड होगा वहां श्याम कुंड होना तो अनिवार्य ही है। जब श्री कृष्ण ने गोहत्या के पाप से मुक्त होने के लिए अपनी बांसुरी से एक कुंड खोदा और उसमें स्नान किया था तो राधा जी ने भी अपने कंगन से पास में ही कुंड खोदा जिसे श्याम कुंड कहा जाता है। श्याम कुंड वही स्थान है जहाँ पर पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान आये थे।
2. उद्धव कुंड ( Uddhava Kunda ) : छोटी परिक्रमा के मार्ग में दूसरा स्थान उद्धव कुण्ड ( Uddhava Kunda ) है जो गोवर्धन के बिल्कुल पश्चिम में परिक्रमा मार्ग पर दाईं तरफ स्थित है। हमारे पुराणों में इस कुण्ड का वर्णन बहुत अच्छे से किया गया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार उद्धव जी ने द्वारका की महिषियों को इसी स्थान पर सांत्वना दी थी।
3. राधा कुंड ( Radha Kund ) : अब इस छोटी परिक्रमा के अगले पड़ाव में राधा कुंड आता है। इस radha kund govardhan की कहानी श्री कृष्ण के गौचारण करने से संबंधित है अब आप सोच रहे होंगे कि भला राधा कुंड का गौचारण से क्या संबंध? तो हम आपको बता दें कि गोवर्धन में ही कान्हा गाय चराने आया करते थे। जब अरिष्टासुर को ज्ञात हुआ तो कि कान्हा यहाँ आया करते हैं तो वह बछड़े का भेष धारण कर यहाँ पहुँच गया। बछड़े के भेष में आया अरिष्टासुर जब श्री कृष्ण पर हमला करने के लिए आगे बढ़ा तो उन्होंने उस बछड़े रूपी असुर का वध कर दिया।
वध करने के बाद राधा रानी ने श्री कृष्ण से कहा कि आपने बछड़े का वध किया है इसलिए आप पर गोहत्या का पाप लगेगा। राधा रानी के मुख से यह वचन सुन श्री कृष्ण ने अपनी बांसुरी से एक कुंड खोदा और उसमें स्नान भी किया। तभी से इस स्थान को राधा कुंड के नाम से जाना जाने लगा। मान्यता है कि सप्तमी की रात्रि को पुष्य नक्षत्र में रात्रि 12 बजे राधा कुंड में स्नान किया जाता है। स्नान के बाद सुहागिनें अपने केश खोलकर राधा रानी से पुत्र प्राप्ति की कामना करती हैं। इस राधा कुंड की खासियत यह है की यहाँ का पानी सात रंगों में बदलता है और कभी कभी तो दूध जैसा सफ़ेद भी दिखाई देता है।
4. श्याम कुंड ( Shyam Kunda ) : अब राधा कुंड के बाद श्याम कुंड के दर्शन होते हैं। यह तो शाश्वत सत्य है जहाँ राधा वहां कृष्ण। इसी प्रकार जहाँ पर राधा कुंड कुंड होगा वहां श्याम कुंड होना तो अनिवार्य ही है। जब श्री कृष्ण ने गोहत्या के पाप से मुक्त होने के लिए अपनी बांसुरी से एक कुंड खोदा और उसमें स्नान किया था तो राधा जी ने भी अपने कंगन से पास में ही कुंड खोदा जिसे श्याम कुंड कहा जाता है। श्याम कुंड वही स्थान है जहाँ पर पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान आये थे।
5. कुसुम सरोवर ( Kusum Sarovar ) : श्याम कुंड के बाद अब कुसुम सरोवर अगला पड़ाव है। यह मथुरा में गोवर्धन से 2 किमी दूर स्थित है कुसुम सरोवर जो 450 फ़ीट लम्बा और 60 फ़ीट गहरा है। कुसुम सरोवर से जुड़ी कई पौराणिक कहानियां हैं जिसमें से एक कहानी राधा कृष्ण से जुड़ी हुई है।
कहते हैं कि भगवान कृष्ण छुप-छुप कर राधा रानी से मिलने के लिए इसी स्थान पर आया करते थे। राधा रानी और उनकी सखिया श्री कृष्ण के लिए पुष्प चुनने के लिए कुसुम सरोवर ही जाया करती थी। इसका सौंदर्य देखते ही बनता है। Kusum Sarovar Govardhan के चारोँ ओर सीढ़ियां बनी हुई है। इसका सौंदर्य ही लोगों को इस स्थान तक खींच कर लाता है। यहाँ के रहने वाले लोगों का मानना है कि इस सरोवर में पारस पत्थर और नागमणि है जिस कारण इस सरोवर को रहस्यमयी कहा जाता है।
6. कान वाले बाबा ( Kaan Wale Baba ) : छोटी परिक्रमा के रास्ते में पड़ने वाला कान वाले बाबा का मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। मंदिर के चमत्कार के किस्से पुरे ब्रज में मशहूर है। इस मंदिर में स्थित गिरिराज जी के पत्थर रूपी स्वरुप में चमत्कारी कान है। परिक्रमा करते हुए भक्त इस मंदिर में आते है और गिरिराज जी महाराज के कान में अपनी मनोकामना मांगते है।
7. मानसी गंगा मुखारबिंद ( Mansi Ganga ) : छोटी परिक्रमा की समाप्ति मानसी गंगा मुखारबिंद पर आकर होती है। मानसी गंगा गोवर्धन गाँव के मध्य में स्थित है, परिक्रमा करने के दौरान मानसी गंगा दाईं ओर पड़ती है जबकि पूंछरी से लौटते समय बाईं ओर हमें इसके दर्शन होते हैं। गंगा के मानसी गंगा बनने की कहानी कुछ ऐसी है कि एक बार नन्द बाबा-यशोदा और सभी ब्रजवासी ने गंगा स्नान का मन बनाया और अपना सफर शुरू किया। चलते-चलते जब सभी goverdhan तक पहुंचे तो शाम हो चुकी थी। रात्रि व्यतीत करने के लिए नन्द जी ने वहीँ पर अपना विश्रामस्थान बनाने की सोची।
यहाँ पर रात्रि गुजारते हुए श्री कृष्ण के मन में विचार आया कि ब्रजधाम में ही सभी-तीर्थों का वास है, परन्तु ब्रजवासी गण इसकी महान महिमा से अनजान हैं। श्रीकृष्ण के मन में ऐसा विचार आते ही गंगा जी अपने मानसी रूप में गिरिराज जी की तलहटी में प्रकट हुई। सुबह जब ब्रजवासियों ने गिरिराज तलहटी में गंगा जी को देखा तो वे सब हैरान रह गए।
सभी हैरान देखते हुए श्री कृष्ण बोले कि ब्रजभूमि की सेवा के लिए तो तीनों लोकों के सभी-तीर्थ यहाँ आकर विराजते हैं और आप सभी गंगा स्नान के लिए ब्रज को छोड़कर जा रहे हैं। यही कारण है यहाँ गंगा मैया स्वयं Mansi Ganga का रूप धारण किये कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को पधारी हैं।
कहते हैं कि भगवान कृष्ण छुप-छुप कर राधा रानी से मिलने के लिए इसी स्थान पर आया करते थे। राधा रानी और उनकी सखिया श्री कृष्ण के लिए पुष्प चुनने के लिए कुसुम सरोवर ही जाया करती थी। इसका सौंदर्य देखते ही बनता है। Kusum Sarovar Govardhan के चारोँ ओर सीढ़ियां बनी हुई है। इसका सौंदर्य ही लोगों को इस स्थान तक खींच कर लाता है। यहाँ के रहने वाले लोगों का मानना है कि इस सरोवर में पारस पत्थर और नागमणि है जिस कारण इस सरोवर को रहस्यमयी कहा जाता है।
6. कान वाले बाबा ( Kaan Wale Baba ) : छोटी परिक्रमा के रास्ते में पड़ने वाला कान वाले बाबा का मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। मंदिर के चमत्कार के किस्से पुरे ब्रज में मशहूर है। इस मंदिर में स्थित गिरिराज जी के पत्थर रूपी स्वरुप में चमत्कारी कान है। परिक्रमा करते हुए भक्त इस मंदिर में आते है और गिरिराज जी महाराज के कान में अपनी मनोकामना मांगते है।
7. मानसी गंगा मुखारबिंद ( Mansi Ganga ) : छोटी परिक्रमा की समाप्ति मानसी गंगा मुखारबिंद पर आकर होती है। मानसी गंगा गोवर्धन गाँव के मध्य में स्थित है, परिक्रमा करने के दौरान मानसी गंगा दाईं ओर पड़ती है जबकि पूंछरी से लौटते समय बाईं ओर हमें इसके दर्शन होते हैं। गंगा के मानसी गंगा बनने की कहानी कुछ ऐसी है कि एक बार नन्द बाबा-यशोदा और सभी ब्रजवासी ने गंगा स्नान का मन बनाया और अपना सफर शुरू किया। चलते-चलते जब सभी goverdhan तक पहुंचे तो शाम हो चुकी थी। रात्रि व्यतीत करने के लिए नन्द जी ने वहीँ पर अपना विश्रामस्थान बनाने की सोची।
यहाँ पर रात्रि गुजारते हुए श्री कृष्ण के मन में विचार आया कि ब्रजधाम में ही सभी-तीर्थों का वास है, परन्तु ब्रजवासी गण इसकी महान महिमा से अनजान हैं। श्रीकृष्ण के मन में ऐसा विचार आते ही गंगा जी अपने मानसी रूप में गिरिराज जी की तलहटी में प्रकट हुई। सुबह जब ब्रजवासियों ने गिरिराज तलहटी में गंगा जी को देखा तो वे सब हैरान रह गए।
सभी हैरान देखते हुए श्री कृष्ण बोले कि ब्रजभूमि की सेवा के लिए तो तीनों लोकों के सभी-तीर्थ यहाँ आकर विराजते हैं और आप सभी गंगा स्नान के लिए ब्रज को छोड़कर जा रहे हैं। यही कारण है यहाँ गंगा मैया स्वयं Mansi Ganga का रूप धारण किये कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को पधारी हैं।
गोवर्धन परिक्रमा के नियम ( Rules of Govardhan Parikrama in hindi ) :
गोवर्धन परिक्रमा करने के नियम भी आपको जान लेना बहुत जरुरी है। गोवर्धन की परिक्रमा शुरू करने से पूर्व सर्वप्रथम गोवर्धन पर्वत को प्रणाम करें और जिस स्थान से परिक्रमा शुरू की है वहीँ पर उसे समाप्त करें। मान्यता है कि जो भी परिक्रमा आरम्भ करना चाहते हैं उन्हें मानसी गंगा में स्नान अवश्य कर लेना चाहिए। साथ ही यह भी ध्यान रखें कि परिक्रमा को बीच में कभी अधूरा न छोड़े।
तो दोस्तों यह थी हमारी गोवर्धन पर्वत की छोटी और बड़ी परिक्रमा साथ ही उससे जुड़ी धार्मिक मान्यताओं की कहानी।
FAQ about Govardhan Parikarma
गोवर्धन परिक्रमा कहां से शुरू होती है | गोवर्धन परिक्रमा कहां से शुरू करें?
यह मानसी-गंगा कुंड से शुरू होती है और भगवान की तीर्थयात्रा करते हुए, यात्रा राधा कुंड गांव की ओर जाती है जहां वृंदावन रोड भक्तों को परिक्रमा पथ पर ले जाती है। गोवर्धन परिकर्मा का सबसे पहला पड़ाव है दानघाटी मंदिर है |
गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त कौन सा है? | Govardhan Puja ka shubh mahort konsa hai
आचार्य राम गोपाल शुक्ला के मुताबिक, गोवर्धन पूजा/Govardhan puja (14 नवंबर) को पूजा के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 43 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 52 मिनट तक है. पूजा की अवधि कुल 2 घंटे 9 मिनट की होगी. वहीं, इस दिन शोभन योग और अनुराधा नक्षत्र का निर्माण हो रहा है. शोभन योग 14 नवंबर को सुबह से दोपहर 1 बजकर 7 मिनट तक है.
गोवर्धन पर्वत का रहस्य क्या है? | Govardhan Parvat ka rahaya kya hai
Govardhan Parvat की कहानी बेहद रोचक है। यह वही पर्वत है जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी एक उंगली पर उठा लिया था और लोगों की रक्षा की थी। माना जाता है कि 5000 साल पहले यह पर्वत 30 हजार मीटर ऊंचा हुआ करता था। अब इसकी ऊंचाई बहुत कम हो गई है।
गोवर्धन पर्वत को शाप किसने दिया था? | Govardhan Parvat ko shaap kisne diya tha
तब बड़े क्रोध में आकर पुलस्त्य मुनि ने Govardhan को श्राप दे दिया। कि वह प्रतिदिन इस हद तक जमीन में धँस जायेगा। प्रतिदिन एक सरसों का दाना।
Giriraj Parvat ki kahani
गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है। पांच हजार साल पहले यह गोवर्धन पर्वत 30 हजार मीटर ऊंचा हुआ करता था और अब शायद 30 मीटर ही रह गया है। पुलस्त्य ऋषि के शाप के कारण यह पर्वत एक मुट्ठी रोज कम होता जा रहा है।इसी पर्वत को भगवान कृष्ण ने अपनी चींटी अंगुली पर उठा लिया था।
गिरिराज जी की उत्पत्ति कैसे हुई?
गोवर्धन व इसके आसपास के क्षेत्र को ब्रज भूमि भी कहा जाता है। यह भगवान श्री कृष्ण की लीलास्थली है। यहीं पर भगवान श्री कृष्ण ने द्वापर युग में ब्रजवासियों को इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिये गोवर्धन पर्वत अपनी कनिष्ठ अंगुली पर उठाया था। गोवर्धन पर्वत को भक्तजन गिरिराज जी भी कहते हैं।
Mathura ki parikrama kitne kilometre hai – Vrindavan ki parikrama kitne kilometre hai ( vrindavan se govardhan kitni dur hai )
mathura vrindavan ki parikrama kitne kilometre ki hai ? इस परिकमा में भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से जुड़े स्थल, सरोवर, वन, मंदिर, कुण्ड आदि का भ्रमण किया जाता है। यह सम्पूर्ण यात्रा लगभग 360 किमी० की है, जिसे यात्री / श्रद्वालु पैदल भजन-कीर्तन एवं धार्मिक अनुष्ठान करते हुए लगभग 40 दिनों में पूरा करते है।
Govardhan Parvat kahan per hai – Govardhan Parvat kaha hai
गोवर्धन पर्वत उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के अंतर्गत एक नगर पंचायत है। गोवर्धन व इसके आसपास के क्षेत्र को ब्रज भूमि भी कहा जाता है। यह भगवान श्री कृष्ण की लीलास्थली है। यहीं पर भगवान श्री कृष्ण ने द्वापर युग में ब्रजवासियों को इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिये गोवर्धन पर्वत अपनी कनिष्ठ अंगुली पर उठाया था।
Govardhan Mandir – Govardhan Parwat
दान-घाटी भारत के मथुरा के पास गोवर्धन में दो मुख्य मंदिर संरचनाओं में से एक है। अन्य मंदिर संरचना को दसविसा कहा जाता है।
vrindavan se Govardhan Parvat ki duri
मथुरा से 21 किमी और वृंदावन से 23 किमी की दूरी पर गोवर्धन पर्वत मौजूद है।
Govardhan ji kaise banate hain
गोवर्धन बनाने के लिए गाय या भैंस का ताजा गोबर, एक लकड़ी गोबर को आकृति देने के लिए, भगवान के वस्त्र, तिलक के लिए सफेद या पीला रंग, मोर पंख, एक दीपक और फूलों की जरूरत पड़ती है। इस दिन गोवर्धन पर्वत को रंग-बिरंगे फूलों से सजाया जाता है। (Govardhan Disha) ध्यान रखें कि गोवर्धन का मुंह पश्चिम दिशा में होना चाहिए।
Govardhan Mandir Timing
9 am–8 pm
Govardhan Parikrama ka Mahatva
शास्त्रों में वर्णित है कि गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। हालांकि यह परिक्रमा सरल नहीं है। गोवर्धन की परिक्रमा सात कोस यानी की 21 किलोमीटर की है। विशेष बात यह है कि गोवर्धन परिक्रमा नंगे पैर की जाती है और इसे पूरा करने में 10 से 12 घंटे लग जाते हैं।
Giriraj ji kahan per hai
गोवर्धन पर्वत उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के अंतर्गत एक नगर पंचायत है।
Govardhan Parikrama Mantra
इस दिन गोवर्धन पूजा का मंत्र (Govardhan puja Mantra) गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक।विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव।। ‘ का जाप जरूर करना चाहिए।
Girraj Maharaj ki Parikrama
श्री गोवर्धन गिरिराज जी की सम्पूर्ण परिक्रमा सात कोस 14 मील (21 किमी०) की है। कोई कोई भक्त अपनी सुविधा अनुसार गोवर्धन गिरिराज जी परिक्रमा को दो भागो में विभाजित कर दो दिन में लगाते हैं। इन दोनों परिक्रमा को छोटी व बड़ी परिक्रमा के नाम से जाना जाता है। परिक्रमा के मध्य में गोवर्धन गाँव पड़ता है।
Banke Bihari ki Parikrama kitne kilometre ki hai
सीएम शिवराज सिंह ने किए बांके बिहारी के दर्शन:गोवर्धन में 5 किमी पैदल, फिर 16 किमी.ई-रिक्शा से की परिक्रमा
गोवर्धन परिक्रमा की दूरी – how long is govardhan parikrama
गोवर्धन पर्वत को भक्तजन गिरिराज जी भी कहते हैं। सदियों से यहां दूर-दूर से भक्तजन गिरिराज जी की परिक्रमा करने आते रहे हैं। यह ७ कोस की परिक्रमा लगभग २१ किलोमीटर की है। मार्ग में पड़ने वाले प्रमुख स्थल आन्यौर, गोविन्द कुंड, पूंछरी का लौठा,जतिपुरा राधाकुंड, कुसुम सरोवर, मानसी गंगा, दानघाटी इत्यादि हैं।
गिरिराज परिक्रमा का महत्व
क्या है इसका पौराणिक महत्व? पूर्णिमा की शुक्ल पक्ष की एकादशी पर सप्तकोसी के लाखों भक्त गिरिराज की परिक्रमा करते हैं। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी का आशीर्वाद मिलता है। जो लोग यह परिक्रमा पूरी करते हैं, उन्हें शांति मिलती है और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
Govardhan Parikrama kab hoti hai
पूर्णिमा की शुक्ल पक्ष की एकादशी पर सप्तकोसी के लाखों भक्त गिरिराज की परिक्रमा करते हैं। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी का आशीर्वाद मिलता है। जो लोग यह परिक्रमा पूरी करते हैं, उन्हें शांति मिलती है और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
गिरिराज जी की परिक्रमा कितने किलोमीटर की है
गोवर्धन पर्वत को भक्तजन गिरिराज जी भी कहते हैं। सदियों से यहां दूर-दूर से भक्तजन गिरिराज जी की परिक्रमा करने आते रहे हैं। यह ७ कोस की परिक्रमा लगभग २१ किलोमीटर की है। मार्ग में पड़ने वाले प्रमुख स्थल आन्यौर, गोविन्द कुंड, पूंछरी का लौठा,जतिपुरा राधाकुंड, कुसुम सरोवर, मानसी गंगा, दानघाटी इत्यादि हैं।
Govardhan Parikrama kab karni chahie
गोवर्धन की परिक्रमा का पौराणिक महत्व है। प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक लाखों भक्त यहां की सप्तकोसी परिक्रमा करते हैं। प्रतिवर्ष गुरु पूर्णिमा पर यहां की परिक्रमा लगाने का विशेष महत्व है।
चौरासी कोस की परिक्रमा कहां से शुरू होती है
ब्रज चौरासी कोस, मथुरा, वृन्दावन, नन्दगाँव, बरसाना, गोवर्धन परिक्रमा की यात्रा यह स्पेशल तीर्थ यात्रा 28 मार्च 2024 को वृंदावन से प्रारम्भ होगी। सम्पूर्ण यात्रा छोटी गाड़ी (सूमो व इको) द्वारा करायी जायेगी।
Vrindavan se Govardhan kaise jaen
ट्रेन द्वारा मथुरा जंक्शन से गोवेर्धन तक की यात्रा में 26 कि. मी. की दूरी तय होती है।
Vrindavan se govardhan parvat kitni dur hai
vrindavan se govardhan parvat 34 min (19.9 km) dur hai
Radha Kund me nahane ke fayde
राधा कुंड स्नान महत्व – अहोई अष्टमी के शुभ दिन पर, जो साधक राधा कुंड के पवित्र जल (Radha Kund Snan) में स्नान करते हैं, उन्हें अहोई माता के साथ-साथ राधा-कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है। वहीं जिन लोगों को संतान प्राप्ति में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, ऐसे लोगों के लिए राधा कुंड का स्नान बेहद शुभ माना गया है।
हनुमान जी की परिक्रमा कितनी बार करनी चाहिए
सूर्य देव की सात, श्रीगणेश की चार, भगवान विष्णु और उनके सभी अवतारों की चार, देवी दुर्गा की एक, हनुमानजी की तीन, शिवजी की आधी प्रदक्षिणा करने का नियम है। शिवजी की आधी प्रदक्षिणा ही की जाती है, इस संबंध में मान्यता है कि जलधारी को लांघना नहीं चाहिए।
गोवर्धन परिक्रमा कितने किलोमीटर का है
यह ७ कोस की परिक्रमा लगभग २१ किलोमीटर की है।
giriraj ji ki shila kya hai
गिरिराज जी पर्वत उनके प्रागत्य का स्थान है। यह मुखारविंद एक गोवर्धन शिला है, जो श्रृंगार स्थली के नाम से भी जानी जाती है। वल्लभ संप्रदाय के अनुसार यह गिरिराज गोवर्धन का मुखारविंद है। यहां पर प्रत्येक वर्ष अन्नकूट पूजन का आयोजन किया जाता है।
prem mandir to govardhan parvat distance
39 min (21.3 km)
10 Comments
Awesome
abhi parkrama ho rahi h ya band h…baad to nahi h prikrama marg par..plz reply
Ho rhi h hum kl hi aye lga prikrma lga kr
Ho rhi h hum kl hi aye lga prikrma lga kr
HARE KRISHNA ,BHUT HI SUNDAR BTAYA GYA HAI GOVERDHAN JI KE BAARE MAI. BHUT AANAND AAYA SAB JAAN KER GIRIRAAJ JI KE BAARE MAI. BHUT SUNDAR.
Please inform train route from Pune Maharashtra.. train No.. and any bhakt Niwas or ashram’s address.. or contact number.. Thanks..
Hare Krishn, Radhe Radhe 🙏🙏🙏🙏🙏
क्या सिर्फ बड़ी परिक्रमा करने से ही मनोकामनाएं पूर्ण हो जाएंगे दोनों परिक्रमा करने में टाइम बहुत लगता है
सच्ची श्रद्धा और मन्न से छोटी परिक्रमा पर भी भगवान प्रसन्न हो जाते है ।
raat ko 8 bje baad car se parikrama puri kar sakte hain kya ?