वैष्णो देवी मंदिर कहाँ है? ( Where is Vaishno Devi Mandir? )
वैष्णो देवी का मंदिर ( Vaishno Devi ka Mandir ) केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के जम्मू क्षेत्र में कटरा के निकट त्रिकुटा की पहाड़ियों पर लगभग 5200 फीट की ऊंचाई पर अवस्थित है। त्रिकुटा की पहाड़ियों में 98 फीट की एक गुफा के भीतर स्वयंभू देवी काली, सरस्वती और लक्ष्मी पिंडियों के रूप में विराजमान हैं। इन तीनों ही पिंडियों के मिश्रित रूप को मां वैष्णो देवी ( Maa Vaishno Devi ) कहते हैं।
वैष्णो माता की कथा ( vaishno mata ki katha )
वैष्णो देवी मंदिर के संबंध में कई तरह की पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। कहते हैं कि एक बार त्रिकुटा की पहाड़ियों में देवी के सुंदर कन्या रूप को देखकर भैरवनाथ उसके पीछे पड़ गए थे। तब वह कन्या हवा के रूप में बदलकर त्रिकुटा की पहाड़ियों की तरफ चली गईं। यह दृश्य देख भैरवनाथ भी देवी के पीछे पीछे भागने लगा परंतु मां की रक्षा के लिए वहां हनुमान जी प्रकट हो गए।
हनुमान जी को जब प्यास लगी तो देवी ने धनुष से इस पर्वत पर बाण चलाया और उसमें से जलधारा निकल आई। देवी ने फिर उसी जल से अपने केश भी धोए। इसके पश्चात उस पर्वत के पास गुफा में देवी ने करीब नौ महीने तक कठोर तपस्या की थी। देवी की रक्षा के लिए आए हनुमान जी ने उसी गुफा के बाहर पहरा भी दिया था।
भैरवनाथ जो देवी का पीछे करते करते पर्वत की ओर आ गए थे, एक बार फिर से उस स्थान पर आ गए। तब वहां मौजूद एक साधु ने भैरवनाथ से कहा कि तू जिस कन्या की तलाश में यहां आया है, वह कोई साधारण कन्या नहीं बल्कि आदि शक्ति मां जगदम्बा हैं, यदि अपनी भलाई चाहता है तो उस कन्या का पीछा करना छोड़ दे।
भैरवनाथ ने उस साधु की बात को अनसुना कर दिया और फिर से तलाश करने में जुट गया। देवी जगदम्बा इस गुफा के दूसरे किसी रास्ते से बाहर निकल आईं। अब कन्या रूपी देवी ने अपना असली स्वरूप धारण कर लिया था। उन्होंने भैरवनाथ से वापिस जाने के लिए कहा परंतु भैरवनाथ देवी का पीछे फिर भी पड़ा रहा और उसने गुफा में प्रवेश करने ही लगा था कि वहां पहरा दे रहे हनुमान जी वहां आ गया। हनुमान जी ने भैरवनाथ को युद्ध के लिए ललकार लगाई और फिर दोनों के बीच भयंकर युद्ध भी हुआ। युद्ध का कोई अंत नहीं निकल रहा था इसलिए देवी ने मां काली का रूप धारण कर भैरवनाथ का वध कर दिया।
ऐसा कहते हैं कि वध के बाद भैरवनाथ को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने देवी से क्षमादान मांगा। देवी जगदम्बा इस बात से भली भांति परिचित थी कि भैरवनाथ ने उनका पीछे मोक्ष प्राप्ति के लिए किया था। इसके लिए उन्होंने भैरव को क्षमादान के रूप में पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की और साथ ही यह भी कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएंगे, जब तक यहां दर्शन करने आया कोई भक्त, मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा। इस प्रकार माँ वैष्णो देवी की सम्पूर्ण कथा ( Maa Vaishno Devi ki Sampurn Katha ) आज तक लोकप्रिय है।
वहीँ बता दें कि जिस स्थान पर देवी ने नौ महीने तक तपस्या की थी उसे आज वर्तमान में अर्द्धकुमारी या आदिकुमारी या गर्भजून के नाम से जाना जाता है। अर्द्धकुमार से पहले माता की चरणपादुका के भी दर्शन होते हैं जहां से पीछे मुड़कर देवी ने भैरवनाथ को देखा था।
हनुमान जी को जब प्यास लगी तो देवी ने धनुष से इस पर्वत पर बाण चलाया और उसमें से जलधारा निकल आई। देवी ने फिर उसी जल से अपने केश भी धोए। इसके पश्चात उस पर्वत के पास गुफा में देवी ने करीब नौ महीने तक कठोर तपस्या की थी। देवी की रक्षा के लिए आए हनुमान जी ने उसी गुफा के बाहर पहरा भी दिया था।
भैरवनाथ जो देवी का पीछे करते करते पर्वत की ओर आ गए थे, एक बार फिर से उस स्थान पर आ गए। तब वहां मौजूद एक साधु ने भैरवनाथ से कहा कि तू जिस कन्या की तलाश में यहां आया है, वह कोई साधारण कन्या नहीं बल्कि आदि शक्ति मां जगदम्बा हैं, यदि अपनी भलाई चाहता है तो उस कन्या का पीछा करना छोड़ दे।
भैरवनाथ ने उस साधु की बात को अनसुना कर दिया और फिर से तलाश करने में जुट गया। देवी जगदम्बा इस गुफा के दूसरे किसी रास्ते से बाहर निकल आईं। अब कन्या रूपी देवी ने अपना असली स्वरूप धारण कर लिया था। उन्होंने भैरवनाथ से वापिस जाने के लिए कहा परंतु भैरवनाथ देवी का पीछे फिर भी पड़ा रहा और उसने गुफा में प्रवेश करने ही लगा था कि वहां पहरा दे रहे हनुमान जी वहां आ गया। हनुमान जी ने भैरवनाथ को युद्ध के लिए ललकार लगाई और फिर दोनों के बीच भयंकर युद्ध भी हुआ। युद्ध का कोई अंत नहीं निकल रहा था इसलिए देवी ने मां काली का रूप धारण कर भैरवनाथ का वध कर दिया।
ऐसा कहते हैं कि वध के बाद भैरवनाथ को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने देवी से क्षमादान मांगा। देवी जगदम्बा इस बात से भली भांति परिचित थी कि भैरवनाथ ने उनका पीछे मोक्ष प्राप्ति के लिए किया था। इसके लिए उन्होंने भैरव को क्षमादान के रूप में पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की और साथ ही यह भी कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएंगे, जब तक यहां दर्शन करने आया कोई भक्त, मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा। इस प्रकार माँ वैष्णो देवी की सम्पूर्ण कथा ( Maa Vaishno Devi ki Sampurn Katha ) आज तक लोकप्रिय है।
वहीँ बता दें कि जिस स्थान पर देवी ने नौ महीने तक तपस्या की थी उसे आज वर्तमान में अर्द्धकुमारी या आदिकुमारी या गर्भजून के नाम से जाना जाता है। अर्द्धकुमार से पहले माता की चरणपादुका के भी दर्शन होते हैं जहां से पीछे मुड़कर देवी ने भैरवनाथ को देखा था।
वैष्णो माता की कहानी ( vaishno devi story )
एक वैष्णो माता ( vaishno mata ki kahani ) की कहानी देवी के परमभक्त श्रीधर से जुड़ी हुई है। कहा जाता है आज से लगभग 700 वर्ष पहले कटरा से कुछ दूरी पर हंसाली नामक गांव में देवी का परमभक्त श्रीधर रहा करता था। श्रीधर निर्धन और निःसंतान था। निर्धन होने के बावजूद उसके मन में देवी का भंडारा करने की इच्छा थी। इसके लिए श्रीधर ने गांव में सभी को प्रसाद ग्रहण करने न्योता भेजा।
भंडारे वाले दिन श्रीधर गांव में सभी के घर बारी से गए ताकि भंडारे के लिए उन्हें सामग्री मिले लेकिन यह मदद आने वाले मेहमानों के लिए काफी नहीं थी। इस बात से श्रीधर चिंतित हो गया और उसे रात भर नींद नहीं आई।
सुबह होने तक उसे कोई समाधान न सूझा बस मन में माता के प्रति श्रद्धा थी। वह अपनी झोपड़ी के बाहर देवी की पूजा करने बैठ गए। अब दोपहर हो चली थी और मेहमानों ने आना शुरू कर दिया। श्रीधर को माता पूजा करते देख वे मेहमान जहां जगह दिखी वहां बैठ गए। आचार्य की बात थी कि सभी लोग श्रीधर की छोटी-सी कुटिया में बैठ गए।
श्रीधर ने पूजा करने के अपनी आंखें खोली तो वह मेहमानों को देख चिंतित हो उठा। तभी उसने एक छोटी वैष्णवी नाम की कन्या को झोपड़ी से बाहर आते देखा। वह छोटी सी कन्या बाहर आकर सभी को भोजन परोस रही थी। अब भंडारा बहुत ही अच्छे से संपन्न हुआ तो श्रीधर ने उस कन्या के बारे में जानना चाहा पर वह तो इससे पहले ही वहां से गायब हो चुकी थी। इसके कुछ दिन बाद श्रीधर को उसी वैष्णवी नाम की छोटी कन्या का स्वप्न आया उसमें श्रीधर को स्पष्ट हुआ कि वह तो मां वैष्णोदेवी थी।
इस स्वप्न में माता रानी के रूप में आई कन्या ने उसे कटरा के त्रिकुटा गुफा के बारे बताया। साथ ही श्रीधर को चार बेटों के वरदान के साथ उसे आशीर्वाद दिया। स्वप्न के अनुसार ही श्रीधर माता वैष्णो देवी ( Mata Vaishno Devi ) की गुफा ढूंढने निकल पड़े और कुछ दिनों की तलाश के बाद उन्हें वहां आखिरकार गुफा मिल गई। तब से लेकर आज तक इस Vaishno Mata Mandir गुफा में भक्तजन माता के दर्शन के लिए आते हैं।
भंडारे वाले दिन श्रीधर गांव में सभी के घर बारी से गए ताकि भंडारे के लिए उन्हें सामग्री मिले लेकिन यह मदद आने वाले मेहमानों के लिए काफी नहीं थी। इस बात से श्रीधर चिंतित हो गया और उसे रात भर नींद नहीं आई।
सुबह होने तक उसे कोई समाधान न सूझा बस मन में माता के प्रति श्रद्धा थी। वह अपनी झोपड़ी के बाहर देवी की पूजा करने बैठ गए। अब दोपहर हो चली थी और मेहमानों ने आना शुरू कर दिया। श्रीधर को माता पूजा करते देख वे मेहमान जहां जगह दिखी वहां बैठ गए। आचार्य की बात थी कि सभी लोग श्रीधर की छोटी-सी कुटिया में बैठ गए।
श्रीधर ने पूजा करने के अपनी आंखें खोली तो वह मेहमानों को देख चिंतित हो उठा। तभी उसने एक छोटी वैष्णवी नाम की कन्या को झोपड़ी से बाहर आते देखा। वह छोटी सी कन्या बाहर आकर सभी को भोजन परोस रही थी। अब भंडारा बहुत ही अच्छे से संपन्न हुआ तो श्रीधर ने उस कन्या के बारे में जानना चाहा पर वह तो इससे पहले ही वहां से गायब हो चुकी थी। इसके कुछ दिन बाद श्रीधर को उसी वैष्णवी नाम की छोटी कन्या का स्वप्न आया उसमें श्रीधर को स्पष्ट हुआ कि वह तो मां वैष्णोदेवी थी।
इस स्वप्न में माता रानी के रूप में आई कन्या ने उसे कटरा के त्रिकुटा गुफा के बारे बताया। साथ ही श्रीधर को चार बेटों के वरदान के साथ उसे आशीर्वाद दिया। स्वप्न के अनुसार ही श्रीधर माता वैष्णो देवी ( Mata Vaishno Devi ) की गुफा ढूंढने निकल पड़े और कुछ दिनों की तलाश के बाद उन्हें वहां आखिरकार गुफा मिल गई। तब से लेकर आज तक इस Vaishno Mata Mandir गुफा में भक्तजन माता के दर्शन के लिए आते हैं।
वैष्णो देवी मंदिर कितना पुराना है? ( Vaishno Devi Mandir kitna purana hai? )
वैष्णो देवी मंदिर से संबंधित एक कहानी के अनुसार यह मंदिर आज से लगभग 700 वर्ष पुराना है जिसे माता के परमभक्त श्रीधर द्वारा बनवाया गया था।
मां वैष्णो देवी की चढ़ाई कितने किलोमीटर है?
मां वैष्णो देवी की चढ़ाई कटरा से आरंभ होकर 14 किलोमीटर तक होती है जिसे भक्त घोड़े, खच्चर, पालकी या पिट्ठू के सहारे भी पूरी कर सकते हैं।
माता वैष्णो देवी किसकी पुत्री थी? ( Mata Vaishno Devi kiski putri thi? )
माता वैष्णो देवी दक्षिण भारत के रहने वाले रत्नाकर सागर की पुत्री थीं। रत्नाकर सागर लंबे समय से निःसंतान थे और देवी वैष्णो के जन्म से ठीक एक दिन पूर्व रत्नाकर ने खुद से यह वचन लिया था कि वे देवी के इच्छा के कभी आड़े नहीं आएंगे। देवी को उनकी बाल्यावस्था में त्रिकुटा के नाम से जाना जाता था।