शुक्र प्रदोष का क्या महत्व है? ( Shukra Pradosh ka kya mahatva hai? )
शुक्रवार ( Shukravar ) के दिन पड़ने वाले प्रदोष को प्रदोष व्रत कहा जाता है जिसे भृगुवरा प्रदोष व्रत भी कहते हैं। शुक्र प्रदोष व्रत का महत्व बहुत अधिक है जो भी जातक इस दिन सच्चे मन से व्रत का पालन करता है उसे भगवान शिव की कृपा के साथ-साथ लक्ष्मी मां की कृपा प्राप्त होती है। साथ ही जातक के शुक्र से संबंधित सभी दोषों की समाप्ति होती।
(यदि आपकी कुंडली में शुक्र दुष्प्रभाव दे रहा है तो आपको शुक्र यन्त्र लॉकेट (Shukra Yantra Locket) धारण करने की सलाह दी जाती है। इस यन्त्र में समाहित शक्तियां शुक्र के बुरे प्रभावों को कम करने के साथ शुभ फल प्रदान करती हैं।)
जिस प्रकार वैष्णव धर्म में एकादशी का महत्व है उतना ही महत्व शैव परम्परा ( Shaivism ) में विश्वास करने वाले लोगों के लिए प्रदोष व्रत ( Pradosh Vrat ) का है। हिन्दू पंचांग में हर महीने की शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष तिथि में त्रयोदशी के दिन पड़ने वाले व्रत को प्रदोष या त्रयोदशी व्रत ( Trayodashi Vrat ) कहा जाता है।
यह महीने में किसी भी दिन पड़ सकता है इसलिए हर दिन पड़ने वाले प्रदोष का महत्व भी अलग-अलग है। आज हम शुक्रवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत ( Shukra Pradosh Vrat Katha ) कथा या त्रयोदश व्रत कथा ( Trayodashi Vrat Katha ) के बारे में बात करेंगे।
(यदि आपकी कुंडली में शुक्र दुष्प्रभाव दे रहा है तो आपको शुक्र यन्त्र लॉकेट (Shukra Yantra Locket) धारण करने की सलाह दी जाती है। इस यन्त्र में समाहित शक्तियां शुक्र के बुरे प्रभावों को कम करने के साथ शुभ फल प्रदान करती हैं।)
जिस प्रकार वैष्णव धर्म में एकादशी का महत्व है उतना ही महत्व शैव परम्परा ( Shaivism ) में विश्वास करने वाले लोगों के लिए प्रदोष व्रत ( Pradosh Vrat ) का है। हिन्दू पंचांग में हर महीने की शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष तिथि में त्रयोदशी के दिन पड़ने वाले व्रत को प्रदोष या त्रयोदशी व्रत ( Trayodashi Vrat ) कहा जाता है।
यह महीने में किसी भी दिन पड़ सकता है इसलिए हर दिन पड़ने वाले प्रदोष का महत्व भी अलग-अलग है। आज हम शुक्रवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत ( Shukra Pradosh Vrat Katha ) कथा या त्रयोदश व्रत कथा ( Trayodashi Vrat Katha ) के बारे में बात करेंगे।
शुक्रवार प्रदोष व्रत कथा (Shukra Pradosh Vrat Katha)
पुराने समय में एक नगर में तीन मित्र रहा करते थे। जिनमें से एक ब्राह्मण, दूसरा राजकुमार और तीसरा धनिक पुत्र था। इन तीनों में से दो मित्रों राजकुमार और ब्राह्मण कुमार का विवाह हो चुका था। परन्तु धनिक पुत्र का विवाह होकर बस गौना होना बाकी था।
जब एक दिन तीनों मित्र स्त्रियों से जुड़ी चर्चा कर रहे थे तब ब्राह्मणकुमार ने उस चर्चा में स्त्री के बारे कहा कि ‘नारीहीन घर भूतों का डेरा होता है’। अपने मित्र के मुख इस तरह की बातें सुन धनिक पुत्र जिसका गौना शेष था अपनी पत्नी को घर लाने की सोचने लगा।
धनिक पुत्र अपने घर गया और माता-पिता से अपनी पत्नी को घर लाने की बात कहने लगा। उसकी बातों को सुन माता-पिता बोले कि अभी शुक्र देव डूबे हुए है ऐसे समय में घर की बहु-बेटियों को घर पर लाना शुभ नहीं माना जाता है। इसलिए तुम अपने मन से अभी यह विचार निकाल दो।
धनिक पुत्र अपने ब्राह्मण मित्र की बात से इतना अधिक प्रभावित था कि उसने अपनी पत्नी को घर लाने की ठान ही रखी थी। अपने मन की पूरी करने के लिए वह ससुराल जा पहुंचा। सुसराल वालों ने भी धनिक पुत्र को समझाने के खूब प्रयास किये कि अभी घर पर ले जाना शुभ नहीं है पर धनिक पुत्र अपनी ज़िद पर अड़ा रहा। अंततः कन्या के माता-पिता को अपने दामाद की ज़िद के आगे हारना पड़ा। इस तरह उन्होंने विवशता में ही सही पर अपनी बेटी को विदा कर दिया।
धनिक पुत्र अपनी पत्नी को लेकर घर से निकला ही था कि बैलगाड़ी का एक पहिया निकल गया और उसकी एक टांग टूट गई। दोनों को चोटें आईं थी परन्तु फिर भी वे आगे बढ़ते रहे। आगे बढ़ते हुए उन्हें डाकुओं ने घेर लिया। डाकुओं के समूह ने उनका सारा धन लूट लिया। किसी तरह वे घायल अवस्था में खाली हाथ घर पहुंचे। घर पर पहुँचते ही धनिक के पुत्र को ज़हरीले सांप ने डस लिया।
धनिक पुत्र के माता-पिता ने घर पर वैद्य को बुलाया तो उन्होंने इलाज करते हुए कहा कि धनिक पुत्र के पास अब केवल तीन ही दिन हैं, उसके बाद वह मर जाएगा। जैसे ही धनिक पुत्र के मित्र ब्राह्मण कुमार को यह सब पता चला उसने धनिक पुत्र के माता-पिता को शुक्र प्रदोष व्रत रखने की सलाह दी। इसी के साथ ब्राह्मण कुमार ने कहा कि इसे पत्नी सहित फिर से इसके ससुराल भेज दें। यह सारी विपदा की जड़ पत्नी की शुक्रास्त में की गई विदाई है इसलिए इन दोनों को वापस भेज दिया जाए।
इससे सारी विपदाएं टल जाएंगी और धनिक पुत्र वहां पहुँचकर ठीक हो जाएगा। धनिक को ब्राह्मण कुमार की बात ठीक लगी और उसने वैसा ही किया। धनिक पुत्र के ससुराल पहुँचते ही हालत सुधरने लगी। वहीँ शुक्र प्रदोष व्रत की महिमा से सारे संकट टलने लगे और हालात सामान्य बन गए। इस कहानी के माध्यम से हमें ज्ञात होता है कि शुक्र प्रदोष व्रत ( Shukra Pradosh Vrat ) का कितना अधिक महत्व है।
जब एक दिन तीनों मित्र स्त्रियों से जुड़ी चर्चा कर रहे थे तब ब्राह्मणकुमार ने उस चर्चा में स्त्री के बारे कहा कि ‘नारीहीन घर भूतों का डेरा होता है’। अपने मित्र के मुख इस तरह की बातें सुन धनिक पुत्र जिसका गौना शेष था अपनी पत्नी को घर लाने की सोचने लगा।
धनिक पुत्र अपने घर गया और माता-पिता से अपनी पत्नी को घर लाने की बात कहने लगा। उसकी बातों को सुन माता-पिता बोले कि अभी शुक्र देव डूबे हुए है ऐसे समय में घर की बहु-बेटियों को घर पर लाना शुभ नहीं माना जाता है। इसलिए तुम अपने मन से अभी यह विचार निकाल दो।
धनिक पुत्र अपने ब्राह्मण मित्र की बात से इतना अधिक प्रभावित था कि उसने अपनी पत्नी को घर लाने की ठान ही रखी थी। अपने मन की पूरी करने के लिए वह ससुराल जा पहुंचा। सुसराल वालों ने भी धनिक पुत्र को समझाने के खूब प्रयास किये कि अभी घर पर ले जाना शुभ नहीं है पर धनिक पुत्र अपनी ज़िद पर अड़ा रहा। अंततः कन्या के माता-पिता को अपने दामाद की ज़िद के आगे हारना पड़ा। इस तरह उन्होंने विवशता में ही सही पर अपनी बेटी को विदा कर दिया।
धनिक पुत्र अपनी पत्नी को लेकर घर से निकला ही था कि बैलगाड़ी का एक पहिया निकल गया और उसकी एक टांग टूट गई। दोनों को चोटें आईं थी परन्तु फिर भी वे आगे बढ़ते रहे। आगे बढ़ते हुए उन्हें डाकुओं ने घेर लिया। डाकुओं के समूह ने उनका सारा धन लूट लिया। किसी तरह वे घायल अवस्था में खाली हाथ घर पहुंचे। घर पर पहुँचते ही धनिक के पुत्र को ज़हरीले सांप ने डस लिया।
धनिक पुत्र के माता-पिता ने घर पर वैद्य को बुलाया तो उन्होंने इलाज करते हुए कहा कि धनिक पुत्र के पास अब केवल तीन ही दिन हैं, उसके बाद वह मर जाएगा। जैसे ही धनिक पुत्र के मित्र ब्राह्मण कुमार को यह सब पता चला उसने धनिक पुत्र के माता-पिता को शुक्र प्रदोष व्रत रखने की सलाह दी। इसी के साथ ब्राह्मण कुमार ने कहा कि इसे पत्नी सहित फिर से इसके ससुराल भेज दें। यह सारी विपदा की जड़ पत्नी की शुक्रास्त में की गई विदाई है इसलिए इन दोनों को वापस भेज दिया जाए।
इससे सारी विपदाएं टल जाएंगी और धनिक पुत्र वहां पहुँचकर ठीक हो जाएगा। धनिक को ब्राह्मण कुमार की बात ठीक लगी और उसने वैसा ही किया। धनिक पुत्र के ससुराल पहुँचते ही हालत सुधरने लगी। वहीँ शुक्र प्रदोष व्रत की महिमा से सारे संकट टलने लगे और हालात सामान्य बन गए। इस कहानी के माध्यम से हमें ज्ञात होता है कि शुक्र प्रदोष व्रत ( Shukra Pradosh Vrat ) का कितना अधिक महत्व है।
शुक्र प्रदोष व्रत विधि ( Shukra Pradosh Vrat vidhi )
1. शुक्रवार के दिन प्रातःकाल स्नान कर लाल और गुलाबी वस्त्र पहनने चाहिए।
2. सूर्य देव को प्रार्थना करते हुए अर्घ्य दें।
3. इसके पश्चात नर्मदेश्वर शिवलिंग पर पंचामृत से जलाभिषेक करें। दीपक और धूप जलाएं।
4. इसके बाद भोग में साबुत चावल की खीर और फल आदि अर्पित करें तब ही व्रत करने के संकल्प लें।
5. फिर आसन पर बैठकर ॐ नमः शिवाय मंत्र का 108 बार जाप करें।
6. शुक्र प्रदोष व्रत के दिन निराहार रहकर ज्यादा से ज्यादा जल का सेवन करना पड़ेगा।
2. सूर्य देव को प्रार्थना करते हुए अर्घ्य दें।
3. इसके पश्चात नर्मदेश्वर शिवलिंग पर पंचामृत से जलाभिषेक करें। दीपक और धूप जलाएं।
4. इसके बाद भोग में साबुत चावल की खीर और फल आदि अर्पित करें तब ही व्रत करने के संकल्प लें।
5. फिर आसन पर बैठकर ॐ नमः शिवाय मंत्र का 108 बार जाप करें।
6. शुक्र प्रदोष व्रत के दिन निराहार रहकर ज्यादा से ज्यादा जल का सेवन करना पड़ेगा।
साल 2022 में शुक्र प्रदोष व्रत कब है? ( 2022 Shukra Pradosh Vrat kab hai? )
मई 13, 2022
शुक्रवार- वैशाख, शुक्ल त्रयोदशी
प्रारम्भ- शुक्ल त्रयोदशी तिथि 13 मई को संध्या काल 5 बजकर 27 मिनट पर
समाप्त- 14 मई को दोपहर 3 बजकर 22 मिनट पर
मई 27, 2022
शुक्रवार- ज्येष्ठ, कृष्ण त्रयोदशी
प्रारम्भ- ज्येष्ठ, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 27 मई को दिन में 11 बजकर 47 मिनट पर
समाप्त- 28 मई को दोपहर 1 बजकर 09 मिनट पर
सितम्बर 23, 2022
शुक्रवार- आश्विन, कृष्ण त्रयोदशी
प्रारम्भ- आश्विन, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 23 सितंबर को देर रात 1 बजकर 17 मिनट पर
समाप्त- 24 सितंबर को देर रात 2 बजकर 30 मिनट पर
अक्टूबर 7, 2022
शुक्रवार- आश्विन, शुक्ल त्रयोदशी
प्रारम्भ- आश्विन, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 7 अक्टूबर को सुबह में 7 बजकर 26 मिनट पर
समाप्त- 8 अक्टूबर को सुबह 5 बजकर 24 मिनट पर
शुक्रवार- वैशाख, शुक्ल त्रयोदशी
प्रारम्भ- शुक्ल त्रयोदशी तिथि 13 मई को संध्या काल 5 बजकर 27 मिनट पर
समाप्त- 14 मई को दोपहर 3 बजकर 22 मिनट पर
मई 27, 2022
शुक्रवार- ज्येष्ठ, कृष्ण त्रयोदशी
प्रारम्भ- ज्येष्ठ, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 27 मई को दिन में 11 बजकर 47 मिनट पर
समाप्त- 28 मई को दोपहर 1 बजकर 09 मिनट पर
सितम्बर 23, 2022
शुक्रवार- आश्विन, कृष्ण त्रयोदशी
प्रारम्भ- आश्विन, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 23 सितंबर को देर रात 1 बजकर 17 मिनट पर
समाप्त- 24 सितंबर को देर रात 2 बजकर 30 मिनट पर
अक्टूबर 7, 2022
शुक्रवार- आश्विन, शुक्ल त्रयोदशी
प्रारम्भ- आश्विन, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 7 अक्टूबर को सुबह में 7 बजकर 26 मिनट पर
समाप्त- 8 अक्टूबर को सुबह 5 बजकर 24 मिनट पर