भूत पिसाच निकट नहीं आवे ,महावीर जब नाम सुनावे ” अर्थात कोई नकारात्मक शक्ति आपके पास भी नहीं आ सकती मात्र हनुमान जी का नाम लेने से। इसका जिवंत उद्धरण देखने को मिला हमें आंध्र प्रदेश के एक गांव गंतुर जिले में जहाँ सौरभ नाम का एक व्यक्ति रहता था , जो की एक मिठाई की दूकान चलाया करता था , सौरभ बचपन से ही हनुमान जी का अनन्य भक्त था इसी कारणवश सौरभ ने अपनी दूकान का नाम भी हनुमान जी के नाम से रखा। वह दिन रात हनुमान जी की भक्ति में लगा रहता , हर मंगलवार व्रत किया करता किसी प्रकार का संकट क्यों न हो वह सहायता हेतु मात्र हनुमान जी को याद किआ करता और उन्हें ही अपना संकट बताया करता। आस पास के लोगो के बीच सौरभ की हनुमान जी के प्रति आस्था अक्सर चर्चा का विषय बनी रहती थी। सदैव सुखी रहने वाले सौरभ के ऊपर किस प्रकार का दुःख आने वाला था इससे वह स्वयं भी अनजान था।
एक दिन जब एक सौरभ विवाह समारोह से लौट रहा था तब उसकी गाडी बीच मार्ग में बंद हो गयी उसने गाडी को चालू करने का बहुत प्रयास किया परन्तु वह सफल ना हुआ। तब उसने गाडी को धक्का देकर आगे बढ़ाना शुरू किया तभी उसे प्रतीत हुआ की जैसे किसी ने उसके दोनों पैर पकड़ लिए हो, उसने आगे बढ़ने का प्रयास किया परन्तु वह असमर्थ था पैरो को पकड़ने वाला बल बहुत ज्यादा था। तभी उसे गाड़ी पर दो बड़े हाथो के निशान दिखाई दिए वह इन सब चीज़ो को अनदेखा कर आगे बढ़ने लगा तभी उसे अपने आगे एक परछाई दिखाई दी जो उसे आगे बढ़ने से रोक रही थी। सौरभ भयभीत हो गया उसे कुछ समज नहीं आ रहा था की उसके साथ क्या हो रहा है और वह करे तो क्या करे।
उसने डरते हुए हनुमान चालीसा का पाठ करते हुए बजरंगबली को याद करना शुरू किया , और परछाई उसे अब भी आगे बढ़ने से रोक रही थी , अचानक से सौरभ को महसूस हुआ की कोई अदृश्य शक्ति उसका गला दबा रही है। सौरभ की साँस घुटने लगी तब उसने चिल्ला कर बजरंग बलि से मदद की गुहार लगायी। तभी वहाँ सौरभ ने उस परछाई को सड़क पर गिरते हुए देखा सौरभ पूर्ण रूप से आज़ाद महसूस कर रहा था। सौरभ ने फिर से हनुमान चालीसा का पाठ शुरू कर दिया। अब सौरभ को दो परछाई दिखाई देने लगी एक वह जो वहाँ उसे आगे बढ़ने से रोक रही थी और दूसरी वह जिसका विशाल शरीर था और हाथ में गदा वह कोई और नहीं स्वयं बजरंगबली थे। इस ओर सौरभ का हनुमान चालीसा का पाठ निरंतर चालू था ओर दूसरी ओर सौरभ को आगे बढ़ने से रोकने वाली परछाई वहाँ से कुछ ही पल में लुप्त हो गयी और तब सौरभ ने हनुमान जी रुपी परछाई के आगे झुक कर नमस्कार व धन्यवाद अर्पित किया।
सौरभ की रक्षा स्वयं बजरंग बलि ने की की है यह जान उसका विश्वास बजरंगबली के प्रति और दृढ हो गया।