बहुत समय पुराने बात है , पूर्वी भारत के इलाके में एक भूरा नाम का चोर रहता था। आस पास का कोई ऐसा धनि व्यक्ति न था जिसके यहाँ भूरा ने चोरी ना की हो इसी कारणवश लोग उसके नाम से भी डरते थे। भूरा इस संसार में पूर्ण रूप से अकेला था , उसने चोरियां कर करके अपने पास बहुत धन जमा कर लिया था। भूरा चोरी करके जो भी लाता उसे वह पास के जंगल में लेजा कर एक पुरानी झोपडी के अंदर मिटटी के मटको में भरकर ज़मीन के नीचे दबा दिया करता था। देखते देखते भूरा ने बहुत धन एकत्रित कर लिया था।
भूरा कोई भी गलत काम करने से पहले कुछ भी नहीं सोचा करता था , लोग भी उसे निर्दयी कहकर पुकारने लगे थे।
भूरा चोरियों को इस प्रकार अंजाम दिया करता की किसी को कोई सबूत नहीं मिलता था , कोई भी कोतवाल आज तक उसे पकड़ने में भी कामयाब न हो सका था। कुछ ही समय पश्चात चोरी करना भूरा की जरूरत नहीं थी अब उसे इस काम में आनंद की प्राप्ति होने लगी थी।
वह यही कदापि नहीं सोचा करता था की उसके इस गलत कृत्य का किसी पर केसा प्रभाव पड़ता है या पड़ेगा।
लोग परेशान हो रहे थे। वहाँ कोई ऐसा व्यक्ति न था जो अपना घर रात तो क्या दिन में भी खाली छोड़ दे। भूरा सभी यहाँ चोरी कर चूका था तो उसने कोई नया स्थान ढूंढना शुरू किया , तब उसे सूर्यास्त के समय एक आश्रम दिखाई दिया , भूरा ने सोचा की यहाँ रहने वाले साधु दिन भर भिक्षा मांगते है इनके पास अवश्य ही बहुत सा धन होगा। फिर वह वहाँ से चला गया और चोरी करने की योजना बनाने लगा। दो दिन तक उसने अपनी योजना तैयार की और रात में श्री करने आश्रम में जा पंहुचा। आश्रम का मुआइना किया और के बड़े से कक्ष में जा कर कीमती सामान ढूंढ़ने लगा , उसी कक्ष में एक साधु ध्यान मुद्रा में बैठे हुए थे , भूरा की नज़र उन पर न पड़ी। सामन उठाते हुए एक चांदी का कटोरा भूरा के हाथ से चटक कर ज़मीन पर गिर गया जिससे साधु का ध्यान टूट गया और उनकी आँखे खुल गयी। भूरा डर गया की अब वहाँ अवश्य ही पकड़ा जाएगा। ध्यान टूटने के कारन साधु भी क्रोध में थे उन्होंने भूरा को पकड़ा नहीं बल्कि उन्होंने भूरा को श्राप दिया की आज तक तूने जिसके यहाँ से जो भी चोरी करके एकत्र किया है वह सब मिटटी हो जायेगा।
इतना सुन कर भूरा डरकर वहाँ से भाग खड़ा हुआ। भूरा वापस उसी झोपडी में आया जहाँ उसने सारा धन छुपाया हुआ था। और थक कर सो गया जब सुबह उठा तो पहले उसने देखा की रात में जो हुआ उस कारन से कोई मुझे ढूंढ तो नहीं रहा। परन्तु कोई बाहर नहीं था, भूरा का मन जो भय से भरा हुआ था वह शांत हो गया , तब उसे साधु से मिला हुआ श्राप याद आया परन्तु उसने सोचा ऐसा कुछ हो ही नहीं सकता और साधु से मिले श्राप को हवा में उड़ा दिया। और दूसरी चोरी की योजना बनाने में लग गया , और योजना बनाकर चोरी करने निकल गया। पर धीरे धीरे कुछ ऐसा होने लगा की अब भूरा जब भी किसी के यहाँ चोरी करने जाता तो या तो उसे वहाँ उसे कुछ भी नहीं मिलता ,या फिर वह पकड़ लिया जाता। एक दो बार तो भूरा को लोगो ने पकड़ के मारा भी। भूरा को समज नहीं आ रहा था की ये सब क्या हो रहा है।
उसने सोचा की ठीक है अब में कुछ दिन बड़ी नहीं छोटी चोरियां करता हूँ , परन्तु नतीजा वही था वह हर प्रकार से नाकामयाब हो रहा था।
तब उसे साधु से मिला हुआ श्राप याद आया उसे अब साधु की बात सच लग रही थी। वह भागा भागा जंगल में झोपडी में जा पहुंचा और ज़मीन के नीचे से सारे मटके निकाले , और उनके मुँह पर बंधा हुआ कपडा हटाने लगा और जब वह कपडा नहीं हटा तो भूरा ने एक एक करके मटके तोड़ने लगा सब मटको से मात्र मिटटी ही निकल रही थी।
यह सब देख भूरा के चेहरे का रंग फीखा पड़ने लगा था।
भूरा ने आखिरी मटका उठा कर गुस्से से ज़मीन पर पटका तब जो हुआ उसे जान सभी हैरान रह गए। उस मटके से एक बड़ा ही चमकता हुआ शिवलिंग निकला और ज़मीन पर कुछ ऐसे गिरा जैसे किसी ने शिवलिंग की स्थापना की हो। भूरा ये देख स्वयं भी आश्चर्य में आ गया, की यह कैसे हो सकता है। शिवलिंग का तेज कुछ ऐसा था की भूरा की आँख भी नहीं खुल पा रही थी।
भूरा ने शिवलिंग को उठाने का प्रयास किया परन्तु आकर में छोटा दिखने वाला शिवलिंग भार में बहुत अधिक था। भूरा को समज आ गया की महादेव मुझसे नाराज़ हो चुके है इसीलिए साधु के श्राप द्वारा मेरा चुराया धन नष्ट करा दिया , और खुद उस धन की जगह विराजमान हो गए , और मुझे ऐसा तेज दे रहे की में उनसे आँख भी ही मिला पा रहा हूँ। उसे अपनी गलती का अहसास हो चूका था।
वहाँ तुरंत ही भाग कर आश्रम में उन्ही साधु के पास पहुंचा ,उनसे माफ़ी मांगी और उन्हें सब कुछ विस्तार से बताया जिस पर साधु मुस्कुराने लगे।
भूरा ने कहा आप हंस रहे है उधर महादेव मुझसे क्रोधित हो उठे है में उन्हें कैसे मनाऊ कोई मार्ग प्रदर्शित करे। इस पर साधु बोले की सब महादेव की माया है तुम अब एक काम करो तुम्हारे कारन मेरा तप भंग हुआ था अब बारी तुम्हारी है तो जाओ महादेव के समक्ष जाकर तप करो प्रभु का क्रोध अवश्य शांत हो जायेगा। भूरा वापस झोपडी की ओर लौटते हुए सोचने लगा यह तो बहुत आसान मार्ग है तप करने में कौन सी बड़ी बात है। वहाँ वापस आकर ध्यान मुद्रा में बैठ गया परन्तु वहाँ ध्यान लगा नहीं पा रहा था , कभी उसे गर्मी से आने वाला पसीना परेशन करता तो कभी छोटे छोटे कीड़े काटते ऐसी अनेक समस्याओं के कारन वह ध्यान नहीं लगा पा रहा था।
पर भूरा ने हार नहीं मानी वहाँ निरंतर प्रयास करता रहा तीन दिन तक भूरा के प्रयास जारी रहे तब एक दिन सूर्योदय के दिन शिवलिंग से निकलने वाली ज्योति ओर तेज हो गयी और भूरा को एक आवाज आयी की पुत्र आँख खोलो। भूरा ने आँख खोली तो सामने कोई और नहीं स्वयं महादेव खड़े हुए है , महादेव बोले की तुम्हे अपनी गलती का पश्चाताप है ये देख मुझे बहुत ख़ुशी है। मैं तुम से प्रसन्न हूँ सदैव सत्य के मार्ग पर चलना। इतना बोल कर महादेव लुप्त हो गए।
भूरा आश्चर्य में रह गया की महादेव ने स्वयं उसे दर्शन दिए , उसके बाद भूरा का हिर्दय परिवर्तन हो गया वहाँ पूर्ण रूप से प्रभु की भक्ति में लीन हो गया बाद में भूरा ने संन्यास भी ले लिया जिसके बाद किसी को पता नहीं चला की वह कहाँ गया परन्तु भूरा ने जाने से पहले उस शिवलिंग को झोपडी से निकल जंगल में नदी किनारे पेड़ के नीचे स्थापित कर दिया। इस प्रकार महादेव ने स्वयं आकर एक शातिर चोर को सही मार्ग प्रदर्शित किया। लोगो ने जब उस शिवलिंग का सच जाना तो वहाँ लोगो की भीड़ लगने लगी धीरे धीरे मान्यता बन गई की वहाँ जाकर महादेव से जो भी मनोकामना की जाये वो अस्वश्य ही पूर्ण होगी।
और किसी को किसी भी गलती का प्रायश्चित करना होता तो सभी लोग वही आकर किया करते , बड़े बड़े मुज़रिम भी महादेव के आगे आकर झूट नहीं बोल पाते थे।
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