वराह अवतार कब हुआ? ( Varaha Avatar Story )
Third avatar of Vishnu Lord Varaha के जन्म से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार बैकुंठ धाम के द्वारपाल जय और विजय ने सप्तऋषियों को एक बार अंदर जाने से रोका था। इसके कारण दोनों को धरती पर तीन जन्मों तक दैत्यों का जीवन भुगतने का श्राप मिला। दोनों अपने पहले शापित जन्म में कश्यप और दिति के पुत्र हुए जिनके नाम थे हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष। विष्णु पुराण में इस बात का उल्लेख हमें मिलता है कि दोनों जुड़वां भाइयों हिरण्यकश्यप और हिरणायक्ष ने जन्म लिया तो धरती तक कांप उठी।
दोनों दैत्यों ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए घोर तप भी किया। उनकी तपस्या से ब्रह्मा जी अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने उन दैत्यों को विजय प्राप्ति का वरदान तक दे दिया। इसके बाद इन दोनों दैत्यों ने पृथ्वी पर उत्पात मचाना शुरू कर दिया। जो भी पूजा पाठ और यज्ञ कर्म करता उनको हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष द्वारा खूब प्रताड़ित किया था। दोनों भाइयों ने इंद्रलोक पर विजय प्राप्त की। इंद्रलोक पर जीत पा लेने के बाद हिरण्याक्ष ने पृथ्वी पर भी अपनी विजय प्राप्त कर ली। अपने वरदान का फायदा उठाते हुए उसने पृथ्वी को समुद्र में डुबो दिया।
दैत्यों में से एक हिरणायक्ष एक बार इधर उधर घूमते हुए वरुण के नगर में पहुंच गया। पाताल लोक में पहुंचते ही हिरण्याक्ष ने वरुण देव को युद्ध के लिए ललकार लगाई। इसपर वरुण देव बोल कि मेरे अंदर युद्ध करने की अब कोई इच्छा नहीं रही है। यदि तुम्हें युद्ध करना है तो भगवान विष्णु से युद्ध करो।
यह दृश्य देख सभी देवताओं ने ब्रह्मा जी और विष्णु जी से हिरण्याक्ष से छुटकारा दिलाने के लिए बहुत आग्रह किया। ब्रह्मा जी ने इसका समाधान निकालने के लिए भगवान विष्णु का ध्यान किया। ध्यान करने के लिए दौरान उनकी नासिका यानी नाक से भगवान विष्णु के Varaha Avatharam की उत्पत्ति हुई। इस तरह भगवान विष्णु के वराह अवतार ने जन्म लिया।
दैत्य हिरण्याक्ष ने वरुण देव की बात सुनकर विष्णु जी से युद्ध करने के निश्चय किया। इसके लिए उसने देवर्षि नारद से भगवान विष्णु का पता पूछा ताकि वह युद्ध के लिए ललकार सके। देवर्षि नारद ने उनसे कहा कि नारायण इस समय वराह रूप धारण किए हुए हैं और वे पृथ्वी को समुद्र से बचाने के लिए गए हुए हैं।
यह सुनकर हिरण्याक्ष तुरंत ही उस मार्ग की ओर निकल पड़ा क्योंकि पृथ्वी को समुद्र में रखे जाने का यह कृत्य उसी ने किया था। अब हिरण्याक्ष उस स्थान पर पहुंच चुका था। वह उस स्थान पर पहुंचकर देखता है कि Vishnu ka varaha avatar पृथ्वी को अपने साथ ले जा रहे है। यह देश देखते ही वह वराह अवतार से युद्ध करने के लिए कूद पड़ा।
Varaha avatar of Vishnu और हिरण्याक्ष के बीच भीषण युद्ध हुआ और इस युद्ध में वराह ने दैत्य हिरण्याक्ष का पेट अपने दांतों से फाड़ डाला। इसके बाद varaha avatar ने पृथ्वी को समुद्र से उठाया और उसके मूल स्थान पर फिर से रख दिया।
( भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए शलिग्राम और तुलसी की माला से जप करना सबसे उत्तम माना जाता है। शालिग्राम भगवान विष्णु का ही निराकार रूप हैं जबकि तुलसी उनकी सबसे प्रिय मानी जाती हैं। भगवान विष्णु की असीम कृपा पाने के लिए आज ही खरीदें Original Shaligram with Tulsi Mala Online. )
दोनों दैत्यों ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए घोर तप भी किया। उनकी तपस्या से ब्रह्मा जी अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने उन दैत्यों को विजय प्राप्ति का वरदान तक दे दिया। इसके बाद इन दोनों दैत्यों ने पृथ्वी पर उत्पात मचाना शुरू कर दिया। जो भी पूजा पाठ और यज्ञ कर्म करता उनको हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष द्वारा खूब प्रताड़ित किया था। दोनों भाइयों ने इंद्रलोक पर विजय प्राप्त की। इंद्रलोक पर जीत पा लेने के बाद हिरण्याक्ष ने पृथ्वी पर भी अपनी विजय प्राप्त कर ली। अपने वरदान का फायदा उठाते हुए उसने पृथ्वी को समुद्र में डुबो दिया।
दैत्यों में से एक हिरणायक्ष एक बार इधर उधर घूमते हुए वरुण के नगर में पहुंच गया। पाताल लोक में पहुंचते ही हिरण्याक्ष ने वरुण देव को युद्ध के लिए ललकार लगाई। इसपर वरुण देव बोल कि मेरे अंदर युद्ध करने की अब कोई इच्छा नहीं रही है। यदि तुम्हें युद्ध करना है तो भगवान विष्णु से युद्ध करो।
यह दृश्य देख सभी देवताओं ने ब्रह्मा जी और विष्णु जी से हिरण्याक्ष से छुटकारा दिलाने के लिए बहुत आग्रह किया। ब्रह्मा जी ने इसका समाधान निकालने के लिए भगवान विष्णु का ध्यान किया। ध्यान करने के लिए दौरान उनकी नासिका यानी नाक से भगवान विष्णु के Varaha Avatharam की उत्पत्ति हुई। इस तरह भगवान विष्णु के वराह अवतार ने जन्म लिया।
दैत्य हिरण्याक्ष ने वरुण देव की बात सुनकर विष्णु जी से युद्ध करने के निश्चय किया। इसके लिए उसने देवर्षि नारद से भगवान विष्णु का पता पूछा ताकि वह युद्ध के लिए ललकार सके। देवर्षि नारद ने उनसे कहा कि नारायण इस समय वराह रूप धारण किए हुए हैं और वे पृथ्वी को समुद्र से बचाने के लिए गए हुए हैं।
यह सुनकर हिरण्याक्ष तुरंत ही उस मार्ग की ओर निकल पड़ा क्योंकि पृथ्वी को समुद्र में रखे जाने का यह कृत्य उसी ने किया था। अब हिरण्याक्ष उस स्थान पर पहुंच चुका था। वह उस स्थान पर पहुंचकर देखता है कि Vishnu ka varaha avatar पृथ्वी को अपने साथ ले जा रहे है। यह देश देखते ही वह वराह अवतार से युद्ध करने के लिए कूद पड़ा।
Varaha avatar of Vishnu और हिरण्याक्ष के बीच भीषण युद्ध हुआ और इस युद्ध में वराह ने दैत्य हिरण्याक्ष का पेट अपने दांतों से फाड़ डाला। इसके बाद varaha avatar ने पृथ्वी को समुद्र से उठाया और उसके मूल स्थान पर फिर से रख दिया।
( भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए शलिग्राम और तुलसी की माला से जप करना सबसे उत्तम माना जाता है। शालिग्राम भगवान विष्णु का ही निराकार रूप हैं जबकि तुलसी उनकी सबसे प्रिय मानी जाती हैं। भगवान विष्णु की असीम कृपा पाने के लिए आज ही खरीदें Original Shaligram with Tulsi Mala Online. )
वराह का क्या अर्थ होता है? ( What is the meaning of Varaha? )
वराह शब्द का अर्थ है शूकर, जो भगवान विष्णु के Varaha अवतार के संबंध में प्रयोग में लाया जाता है। भगवान विष्णु का वराह अवतार ने ब्रह्मा जी के नासिका से जन्म लिया था ताकि वे पृथ्वी को समुद्र से बाहर निकाल सकें।
वराह अवतार को क्या कहते हैं? ( Varaha avatar ko kya kehte hai? )
3rd Avatar of Vishnu वराह को शूकर भी कहा जाता है। यह ईश्वर का पृथ्वी पर मानव रूपी जीवन लेने वाला ऐसा मौका था जब ईश्वर ने मनुष्य जाति को दैत्यों के आतंक से बचाया।
वराह किसका प्रतिनिधित्व करता है? ( What does Varaha represent? )
भगवान विष्णु का तीसरा अवतार वराह शूकर यानी सूअर का प्रतिनिधित्व करता है जिसने अपने दांतों के बल पर पृथ्वी को समुद्र में डूबने से बचाया।
वराह अवतार को किसने मारा? ( Who killed Varaha avatar? )
भगवान शिव के शरभ अवतार ने सर्वप्रथम भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार का क्रोध शांत कर उन्हें वापिस से भगवान विष्णु में समाहित किया और उसके बाद Varah Bhagwan को समाहित किया।
भगवान विष्णु ने पृथ्वी को कैसे बचाया? ( Bhagwan Vishnu ne prithvi ko kaise bachaya? )
भगवान विष्णु ने समुद्र में डूबती पृथ्वी को Varaha god अवतार धारण कर अपने दांतों में उठाकर बचाया था। अपने दांतो पर उठाने के बाद विष्णु अवतार वराह ने पृथ्वी को उसके मूल स्थान पर स्थापित कर दिया था।