सोम प्रदोष क्या है? (What is Som Pradosh?)
जो प्रदोष व्रत ( Pradosh Vrat ) सोमवार को पड़ता है उसे सोम प्रदोष व्रत ( Som Pradosh Vrat ) कहा जाता है। वैसे तो हर महीने की शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष तिथि को त्रयोदशी ( Trayodashi ) के दिन प्रदोष पड़ता है जिनमें से सोम प्रदोष का अपना अलग महत्व है। बता दें कि यह दिन भगवान शिव ( Lord Shiva ) को समर्पित होता है अतः इस दिन भगवान शिव की आराधना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
सोम प्रदोष की पूजा कैसे करें? (Som Pradosh ki puja kaise kare?)
1. प्रातःकाल स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. फिर भगवान शिव की पूजा करें और उन्हें पंचामृत से स्नान कराएं।
3. तत्पश्चात भोलेनाथ को चन्दन लगाएं और बेलपत्र अर्पित करें।
4. चन्दन और बेलपत्र अर्पित करने के बाद दीपक जलाएं तथा धूप जलाएं।
5. इसके बाद भगवान शिव को भोग में फल या सफ़ेद मिठाई चढ़ाएं।
6. सभी पूजा विधि करने के बाद आसन पर बैठकर ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का 108 बार जाप करें।
सोम प्रदोष के दिन क्या करना चाहिए? ( Som Pradosh ke din kya karna chahiye? )
सोम प्रदोष के शुभ दिन पर भगवान शिव और पार्वती की आराधना करनी चाहिए। इस दिन नर्मदेश्वर शिवलिंग को पंचामृत से स्नान कराने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। नर्मदेश्वर शिवलिंग (Narmadeshwar Shivling) नर्मदा नदी से निर्मित होने वाले स्वयंभू श्रेणी के शिवलिंग होते हैं जिन्हें प्राण प्रतिष्ठा तक की आवश्यकता नहीं होती है। इस श्रेणी के शिवलिंग को घर में रखे जाने से उस घर में सदैव भगवान शिव का वास होता है।
सोम प्रदोष के दिन सूर्योदय से पूर्व उठना चाहिए और पूर्ण उपवास रख फलाहार कर सकते हैं। साथ ही बता दें कि उपवास में इस दिन हरी मूंग का सेवन करें क्योंकि यह पृथ्वी तत्व होता है और यह मंदाग्नि को शांत रखने का कार्य करता है। ध्यान देने योग्य बात कि त्रयोदशी के दिन गेहूं, चावल, नमक-मिर्च आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
सोम प्रदोष के दिन सूर्योदय से पूर्व उठना चाहिए और पूर्ण उपवास रख फलाहार कर सकते हैं। साथ ही बता दें कि उपवास में इस दिन हरी मूंग का सेवन करें क्योंकि यह पृथ्वी तत्व होता है और यह मंदाग्नि को शांत रखने का कार्य करता है। ध्यान देने योग्य बात कि त्रयोदशी के दिन गेहूं, चावल, नमक-मिर्च आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
सोम प्रदोष व्रत कथा ( Som Pradosh vrat ki katha )
Somvar Pradosh vrat katha के अनुसार एक नगर में ब्राह्मणी अपने पुत्र के साथ रहा करती थी दुर्भाग्यवश ब्राह्मणी के पति की मृत्यु हो चुकी थी। अपनी आजीविका चलाने के लिए भिक्षा मांगती थी और उसी भिक्षा से अपने और अपने पुत्र का पेट भरा करती थी। वह रोज़ भिक्षा मांगने के लिए घर से निकलती और देर शाम घर को लौटती।
एक बार घर को लौटते वक़्त ब्राह्मणी को एक लड़का घायल अवस्था में दिखा। ब्राह्मणी से उस बालक की दशा देखी नहीं गई और वह उसे अपने साथ घर ले आई। वह लड़का और कोई नहीं बल्कि विदर्भ का राजकुमार था। शत्रुओं ने विदर्भ राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था जिसके बाद उस लड़के का कोई सहारा न था। इस तरह वह लड़का ब्राह्मणी और उसके पुत्र के साथ उसके घर पर रहने लगा। एक दिन जब वह लड़का बाहर गया हुआ था तब अंशुमति नाम की गन्धर्वकन्या की नज़र उसपर पड़ी।
वह कन्या उस लड़के पर मोहित हो गई और अपने माता-पिता के साथ अगले ही दिन वह उस लड़के से मिलने ब्राह्मणी के घर पहुंची। गन्धर्व कन्या के माता-पिता ने भी लड़के को क्षण भर में पसंद कर लिया। राजकुमार से भेंट की कुछ दिनों के बाद गन्धर्व कन्या के माता-पिता को स्वप्न आया। जिसमें भगवान शिव ने उन्हें अपनी कन्या का उस राजकुमार से विवाह करने का आदेश दिया। भगवान शिव के आदेशानुसार उन्होंने ठीक वैसा ही किया।
वह ब्राह्मणी प्रदोष व्रत रखा करती थी, जिसका शुभ प्रभाव यह हुआ कि राजकुमार ने गन्धर्व राज की सेना की सहायता से विदर्भ में अपने शत्रुओं को पराजित कर लिया और अपने पिता को कैद से छुड़ा लिया। वह राजकुमार अपने पिता के साथ ख़ुशी-ख़ुशी रहने लगा।इसके बाद विदर्भ के राजकुमार ने ब्राह्मणी के पुत्र को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया।
इस प्रकार ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत ( Pradosh Vrat ) रखे जाने के प्रभाव से ब्राह्मणी और उसके पुत्र को शुभ फल प्राप्त हुआ और वह विदर्भ राज्य का प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। सोम प्रदोष व्रत ( Som Pradosh Vrat ) की महिमा इतनी अपरंपार है कि जो भी जातक सच्चे मन से इस व्रत का पालन करता है भोलेनाथ उनके बुरे दिन अच्छे दिनों में बदल देते हैं।
एक बार घर को लौटते वक़्त ब्राह्मणी को एक लड़का घायल अवस्था में दिखा। ब्राह्मणी से उस बालक की दशा देखी नहीं गई और वह उसे अपने साथ घर ले आई। वह लड़का और कोई नहीं बल्कि विदर्भ का राजकुमार था। शत्रुओं ने विदर्भ राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था जिसके बाद उस लड़के का कोई सहारा न था। इस तरह वह लड़का ब्राह्मणी और उसके पुत्र के साथ उसके घर पर रहने लगा। एक दिन जब वह लड़का बाहर गया हुआ था तब अंशुमति नाम की गन्धर्वकन्या की नज़र उसपर पड़ी।
वह कन्या उस लड़के पर मोहित हो गई और अपने माता-पिता के साथ अगले ही दिन वह उस लड़के से मिलने ब्राह्मणी के घर पहुंची। गन्धर्व कन्या के माता-पिता ने भी लड़के को क्षण भर में पसंद कर लिया। राजकुमार से भेंट की कुछ दिनों के बाद गन्धर्व कन्या के माता-पिता को स्वप्न आया। जिसमें भगवान शिव ने उन्हें अपनी कन्या का उस राजकुमार से विवाह करने का आदेश दिया। भगवान शिव के आदेशानुसार उन्होंने ठीक वैसा ही किया।
वह ब्राह्मणी प्रदोष व्रत रखा करती थी, जिसका शुभ प्रभाव यह हुआ कि राजकुमार ने गन्धर्व राज की सेना की सहायता से विदर्भ में अपने शत्रुओं को पराजित कर लिया और अपने पिता को कैद से छुड़ा लिया। वह राजकुमार अपने पिता के साथ ख़ुशी-ख़ुशी रहने लगा।इसके बाद विदर्भ के राजकुमार ने ब्राह्मणी के पुत्र को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया।
इस प्रकार ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत ( Pradosh Vrat ) रखे जाने के प्रभाव से ब्राह्मणी और उसके पुत्र को शुभ फल प्राप्त हुआ और वह विदर्भ राज्य का प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। सोम प्रदोष व्रत ( Som Pradosh Vrat ) की महिमा इतनी अपरंपार है कि जो भी जातक सच्चे मन से इस व्रत का पालन करता है भोलेनाथ उनके बुरे दिन अच्छे दिनों में बदल देते हैं।
साल 2022 में सोम प्रदोष व्रत कब है? ( Saal 2022 me Som Pradosh Vrat kab hai? )
फरवरी 14, 2022
सोमवार- माघ, शुक्ल त्रयोदशी
प्रारम्भ- तिथि 13 फरवरी को संध्या काल में 6 बजकर 42 मिनट पर
समाप्त- 14 फरवरी को रात में 8 बजकर 28 मिनट पर
फरवरी 28, 2022
सोमवार- फाल्गुन, कृष्ण त्रयोदशी
प्रारम्भ- तिथि 28 फरवरी को संध्या काल में 5 बजकर 42 मिनट पर
समाप्त- 1 मार्च को दोपहर में 3 बजकर 16 मिनट पर
जुलाई 11, 2022
सोमवार- आषाढ़, शुक्ल त्रयोदशी
प्रारम्भ- तिथि 11 जुलाई को देर रात 11 बजकर 13 मिनट पर
समाप्त- 12 जुलाई को सुबह में 7 बजकर 46 मिनट पर
जुलाई 25, 2022
सोमवार- श्रावण, कृष्ण त्रयोदशी
प्रारम्भ- तिथि 25 जुलाई को शाम में 4 बजकर 15 मिनट पर
समाप्त- 26 जुलाई को शाम में 6 बजकर 46 मिनट पर
नवम्बर 21, 2022
सोमवार- मार्गशीर्ष, कृष्ण त्रयोदशी
प्रारम्भ- तिथि 21 नवम्बर को सुबह में 10 बजकर 07 मिनट पर
समाप्त- 22 नवंबर को सुबह में 8 बजकर 49 मिनट पर
दिसम्बर 5, 2022
सोमवार- मार्गशीर्ष, शुक्ल त्रयोदशी
प्रारम्भ- तिथि 5 दिसंबर को सुबह में 5 बजकर 57 मिनट पर
समाप्त- 6 दिसंबर को सुबह में 6 बजकर 47 मिनट पर
सोमवार- माघ, शुक्ल त्रयोदशी
प्रारम्भ- तिथि 13 फरवरी को संध्या काल में 6 बजकर 42 मिनट पर
समाप्त- 14 फरवरी को रात में 8 बजकर 28 मिनट पर
फरवरी 28, 2022
सोमवार- फाल्गुन, कृष्ण त्रयोदशी
प्रारम्भ- तिथि 28 फरवरी को संध्या काल में 5 बजकर 42 मिनट पर
समाप्त- 1 मार्च को दोपहर में 3 बजकर 16 मिनट पर
जुलाई 11, 2022
सोमवार- आषाढ़, शुक्ल त्रयोदशी
प्रारम्भ- तिथि 11 जुलाई को देर रात 11 बजकर 13 मिनट पर
समाप्त- 12 जुलाई को सुबह में 7 बजकर 46 मिनट पर
जुलाई 25, 2022
सोमवार- श्रावण, कृष्ण त्रयोदशी
प्रारम्भ- तिथि 25 जुलाई को शाम में 4 बजकर 15 मिनट पर
समाप्त- 26 जुलाई को शाम में 6 बजकर 46 मिनट पर
नवम्बर 21, 2022
सोमवार- मार्गशीर्ष, कृष्ण त्रयोदशी
प्रारम्भ- तिथि 21 नवम्बर को सुबह में 10 बजकर 07 मिनट पर
समाप्त- 22 नवंबर को सुबह में 8 बजकर 49 मिनट पर
दिसम्बर 5, 2022
सोमवार- मार्गशीर्ष, शुक्ल त्रयोदशी
प्रारम्भ- तिथि 5 दिसंबर को सुबह में 5 बजकर 57 मिनट पर
समाप्त- 6 दिसंबर को सुबह में 6 बजकर 47 मिनट पर