शुक्रवार का दिन संतोषी माता (Santoshi Mata) को समर्पित माना जाता है। शुक्रवार के दिन संतोषी माता का व्रत (Santoshi Mata ka vrat) रखने से घर में मौजूद दरिद्रता जैसे विनाशकारी तत्व का अपने आप खात्मा हो जाता है और संतोषी माँ ( Maa Santoshi ) प्रसन्न होती हैं। आइये जाने संतोषी माता की व्रत कथा (Santoshi Mata ki vrat katha), इस दिन पूजा करने की विशेष विधि और नियमों के पालन से जुड़ी कुछ अन्य जानकारियां :
संतोषी माता की व्रत कथा (Santoshi Mata ki Vrat Katha ) संतोषी माता की कथा
एक दिन वह अपनी पत्नी से बोला कि मेरी माता मुझे बहुत प्रेम करती हैं रोज भोजन खिलाती हैं। इसपर वह पत्नी बोली कि तुम्हारी माता तुम्हें बाकियो का बचा भोजन परोसती हैं। अगर यकीन नहीं होता तो खुद देख लो।
त्योहार वाले दिन वृद्ध महिला ने कई प्रकार के भोजन बनाए। सातवां बेटा वहीं पर चादर ओढ़कर सो गया ताकि वह जांच परख पाए। वृद्ध महिला ने अपने छयो बेटों को बढ़िया आसनों पर बिठाकर पकवान खिलाए और उसके बाद उन्हीं बचे हुए खाने का एक लड्डू बनाकर सातवें लड़के को खाने के लिए बोला। इसपर वह क्रोधित हो गया और बोला कि अब मैं भोजन नहीं करूंगा। मैं परदेश जा रहा हूं। यह कहकर वह परदेश की ओर चल दिया। जाते जाते वह अपनी पत्नी को भी परदेश जाने का संदेश देता गया।
देखते ही देखते वह सातवां बेटा व्यापारी की दुकान के सभी कार्यों में निपुण हो गया। हिसाब किताब भी करने लगा। व्यापारी भी बहुत खुश हुआ और उसने उस लड़के को आधे मुनाफे का हिस्सेदार बना दिया। इसके बाद वह व्यापारी अपना सारा कामकाज उस लड़के के भरोसे छोड़कर कहीं बाहर चला गया। अब वह लड़का भी धनी सेठ बन चुका था।
वहीं दूसरी तरफ उस लड़के की पत्नी को उसकी जेठानियां तंग करने लगी। वे उसे लकड़ी लेने जंगल में भेज देती। खाने को भूसे की रोटी और फूटे नारियल में पानी दिया करती। एक दिन जब सातवें बेटे की पत्नी लकड़ी लेने जा रही थी तो रास्ते में उसने कई औरतों को व्रत करते देखा। उसने औरतों से पूछा – ‘बहनों यह किसका व्रत है, कैसे करते है और इससे क्या फल मिलता है ? तो एक स्त्री बोली ‘ यह संतोषी माता का व्रत है इसके करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है’ इसके बाद स्त्री ने उसे व्रत करने की विधि बता दी।
फिर रास्ते में सारी लकड़ियां बेचकर उसने गुड़ और चना ले लिया। इसके बाद घर आकर उसने व्रत करने की तैयारी की। एक शुक्रवार उसके पति का पत्र आया और अगले शुक्रवार को पति का भेजा हुआ धन भी प्राप्त हुआ। इसपर जेठ जेठानी और सास नाक सिकोड़ने लगे।
सातवें लड़के की पत्नी धन और पत्र से खुश नहीं थी उसने माता से प्रार्थना की और बोली मुझे धन और पत्र नहीं मेरा पति चाहिए। उसकी श्रद्धा भक्ति से मां तो प्रसन्न ही थी अतः संतोषी माता ने उसके पति के घर आने का भी वरदान दिया। उधर संतोषी माता (Santoshi Mata) ने उसके पति को स्वप्न में आकर पत्नी का स्मरण करवाया।
उसने कहा माँ मैं कैसे जाऊँ, यहां लेन – देन का कोई हिसाब नहीं है।’ इसपर माँ ने कहा प्रातःकाल स्नान कर मेरा नाम लेकर घी का दीपक जलाकर अपनी दुकान बैठना। ऐसा करने से तेरा सारा लेन देन साफ हो जाएगा और तेरे पास पैसों का ढेर लग जाएगा। अगले दिन माता के कहे अनुसार उसने वैसा ही किया। देखते ही देखते थोड़ी देर में सारा लेन देन साफ़ हो गया और धन का ढेर लग गया। इस तरह वह घर के लिए रवाना हो गया। जब वह घर पहुंचा तो पत्नी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। एक ही दिन में पत्नी की किस्मत बदल गई और वे दोनों ठाट बाट में रहने लगे। अब शुक्रवार का दिन आया तो बहू ने पति से कहा कि मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है। इसपर वह बोला ख़ुशी खुशी कर। बहु ने जेठ के लड़कों को जीमने के लिए पुकारा।
पीछे से जिठानियों ने अपने बच्चों को सिखाकर भेजा कि तुम खटाई मांगना ताकि उद्यापन पूरा न हो सके।’ लड़कों ने वहां जाकर खटाई मांगी पर बहू ने मना कर दिया। यह सुनकर लड़के खड़े हो गये और बोले कि पैसा लाओ। वे उन पैसों से इमली की खटाई मंगाकर खाने लगे।
इस पर संतोषी माता को क्रोध आया और उसके पति को राजा के दूत पकड़ कर ले गये। उसने संतोषी माता (Santoshi Mata) से कहा कि मेरी इसमें क्या गलती मैंने तो लड़कों को सिर्फ पैसे दिए थे, मैंने व्रत का पालन पूरी श्रद्धा से लिया था।
मुझे क्षमा करो मैं अगले शुक्रवार फिर उद्यापन करूंगी। माता से प्रार्थना करने में कुछ समय बाद ही उसे अपनी पति रास्ते में आता दिखाई दिया। अब फिर शुक्रवार आया और उसने दोबारा से उद्यापन करना शुरू किया। उसने एक बार फिर जेठ के लड़को को बुलावा भेजा। जेठानियों के कहने पर लड़के ने फिर खटाई मांगी। उसने कहा ‘ खटाई कुछ भी नहीं मिलेगी आना हो तो आओ।’ इतना कहकर वह ब्राह्मणों के लड़को को लाकर भोजन कराने लगी। इस प्रकार संतोषी माता की कृपा से उसके चंद्रमा के समान सुन्दर पुत्र हुआ।
अपनी भक्त को रोज़-रोज़ मंदिर आते देख एक बार संतोषी माता के मन में विचार आया कि आज मैं इसके घर चलती हूँ। माता ने एक भयानक रूप लिया और गुड़-चने से सना मुख, जिन पर मक्खियां भिनभिना रही थी ऐसी सूरत में वह अपने भक्त के घर पहुंची। घर में पाँव रखते ही उसकी सास बोली ‘ देखो कोई इसे भगाओ नहीं तो किसी को खा जायेगी।’
सातवे लड़के की बहु यह सब खिड़की से देख रही थी, अपने सास के व्यवहार पर बोली कि आज मेरी माता मेरे ही घर आई है।’ सासूजी मैं जिनका व्रत करती हूँ, यह वही संतोषी माता हैं। ऐसा कह कर उसने घर की सारी खिड़कियां खोल दी। यह सुनकर सभी ने संतोषी माता के चरण पकड़ लिए और विनती करने लगे कि – “हे माता ! हम मूर्ख हैं, अज्ञानी है, पापिनी है, तुम्हारा व्रत भंग कर हमने बहुत बड़ा अपराध किया है।
हे माता ! हमारा अपराध माफ करो।” माता ने सभी को क्षमा किया और उस घर पर सदैव संतोषी माता की कृपा बनी रही तथा सबका उद्धार होता रहा। इस प्रकार जो भी जातक शुक्रवार के दिन व्रत का विधिपूर्वक पालन कर Santoshi Mata ki Katha का पाठ करते हैं उनके सभी दुःख दर्द दूर हो जाते हैं।
शुक्रवार संतोषी माता के व्रत की विधि (Shukravar Santoshi Mata ke vrat ki vidhi)
2. फिर Santoshi Mata की प्रतिमा को मंदिर में रखें और उस पर गंगाजल से छिड़काव करें।
3. अब एक कलश में जल भरकर प्रतिमा के सामने रखें, साथ ही गुड़ और चना भी कटोरी में रखें।
4. इसके बाद माता के सामने घी का दीपक और धूप जलाकर व्रत का संकल्प लें।
5. ध्यान रहे कि संतोषी माता के व्रत को 16 शुक्रवार तक किया जाता है।
6. माता को गुड़ और चने का भोग लगाकर संतोषी के मंत्र का 108 बार जाप करें।
संतोषी माता महामंत्र :
जय माँ संतोषिये देवी नमो नमः
श्री संतोषी देव्व्ये नमः
ॐ श्री गजोदेवोपुत्रिया नमः
ॐ सर्वकाम फलप्रदाय नमः
शुक्रवार व्रत करने से क्या फल मिलता है? ( Shukravar Vrat karne se kya fal milta hai? )
1. शुक्रवार के दिन कुंवारी लड़कियां व्रत का पालन करती है तो उन्हें योग्य और उत्तम वर की प्राप्ति होती है।
2. किसी भी काम में आ रही बाधाएं दूर होती हैं फिर चाहे वह कोर्ट-कचहरी का मामला हो, परीक्षा हो या व्यापार।
3. घर में सुख-समृद्धि हमेशा बनी रहती है, अन्न और धन की कमी नहीं रहती।
4. शुक्रवार के दिन व्रत का पालन करने से संतान सुख की प्राप्ति भी होती है।
5. सभी तरह के दुःख-दर्द दूर हो जाते हैं और अड़चनें समाप्त हो जाती है।
6. बुरी शक्तियां घर और मन दोनों से हमेशा दूर रहती हैं।
संतोषी माता के शुक्रवार व्रत के नियम (Santoshi Mata ke shukravar vrat ke niyam)
2. देवी को गुड़ और चने का भोग लगाने के साथ ही कमल का फूल भी अर्पित करें।
3. व्रत का पालन करने वाले गुड़ और चने का प्रसाद ग्रहण करें।
4. प्रसाद भी उन्हीं लोगों को बांटे जो इस दिन खट्टा खाने से परहेज करते हों।
शुक्रवार व्रत में क्या खाना चाहिए? ( Shukravar vrat me kya khana chahiye? )
शुक्रवार को खट्टा क्यों नहीं खाना चाहिए? ( Shukravar ko khatta kyu nahi khana chahiye? )
इस दिन जो भी जातक सच्चे मन से संतोषी माता के व्रत का पालन करता है और शुक्र यंत्र लॉकेट ( Shukra Yantra Locket ) को धारण करता है उसकी कुंडली में मौजूद शुक्र के दुष्प्रभाव समाप्त हो जाते हैं और शुक्र शुभ फल देने लगता है।
संतोषी माँ को कौन सा फूल पसंद है? ( Santoshi Maa ko Kaun sa Phool pasand hai? )
संतोषी माता की कथा | Santoshi Mata ki katha
संतोषी माता की कहानी ( Santoshi Mata ki kahani ) कुछ इस प्रकार है कि एक नगर में वृद्ध महिला रहती थी जिसके सात बेटे थे। वृद्ध महिला के सात बेटों में से छः कमाया करते थे जबकि सातवां बेटा कोई काम नहीं करता था। वह वृद्ध महिला अपने छयो बेटों को खुद अच्छे अच्छे पकवान बनाकर खिलाती थी पर सातवां बेटा जो कोई कमाई नहीं करता था उसे उन सभी बेटों की थाली का बचा हुआ भोजन परोसती थी। वृद्ध महिला का सबसे छोटा वह सातवां बेटा भोली प्रवृति का था यह सब बातें नहीं समझता था।
संतोषी माता को खट्टा क्यों पसंद नहीं है? | Santoshi Mata ko khatta kyu Pasand nhi hai
संतोषी माता आरती गीत | Santoshi Mata Aarti lyrics
संतोषी माता व्रत नियम | Santoshi Mata Vrat rules (Santoshi Mata ke vrat me kya khana chaiye)
- सूर्योदय से पहले उठें.
- अपने घर और मंदिर क्षेत्र को साफ करें।
- स्नान करें और साफ कपड़े पहनें.
- फिर अपने घर के किसी पवित्र कोने में या मंदिर क्षेत्र में संतोषी माता की मूर्ति या तस्वीर रखें।
मैं संतोषी माता VRAT में क्या खा सकता हूँ? | Mein Santoshi Mata vrat me kya kha sakta ho
संतोषी माँ का मन पूरी तरह से क्या है? | Santoshi Mata ka maan pure tarah se kya hai
संतोषी माता की पूजा से भक्तों की समृद्धि और धन में वृद्धि होती है। भक्तों की हर सच्ची पूर्ण इच्छा होती है ।
संतोषी माता गणेश की बहन है? | Santoshi Mata ganesh ki behan hai