उज्जैन से श्री कृष्ण का है ख़ास रिश्ता
भगवान् श्री कृष्ण (Bhagwan Shri Krishna) का भी उज्जैन से बहुत ही ख़ास संबंध माना जाता है क्योंकि महाकाल की नगरी उज्जैन में ही उनकी शिक्षा-दीक्षा सम्पन्न हुई थी। 12 ज्योतिर्लिंगों (Jyotirlingas) में शामिल महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग जहाँ अवस्थित है उज्जैन के राजा कहे जाने वाले महाकाल की नगरी मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि कोई भी दूसरा राजा यहाँ पर नहीं रह सकता है। इन मान्यताओं के हटकर यह स्थान भगवान् श्री कृष्ण (Bhagwan Shri Krishna) की शिक्षा-दीक्षा की भूमि भी माना जाता है।
मात्र 64 दिनों में ग्रहण की शिक्षा
यहाँ पर गुरु सांदिपनी (Guru Sandipani) नामक आश्रम मौजूद है जहँ पर भगवान् श्री कृष्ण, बलराम और उनके मित्र सुदामा ने अपनी शिक्षा ग्रहण की थी। इस बात का श्रीमदभागवत, महभारत और अन्य कई पुराणों में उल्लेख किया गया है। कहा जाता है श्री कृष्ण ने मात्र 64 दिनों में जिसमें से 18 दिनों में 18 धर्म पुराण, 6 दिनों में 6 शास्त्र, 4 दिनों में 4 वेद और 20 दिनों में भगवत गीता का संपूर्ण ज्ञान गुरु सांदीपनि (Guru Sandipani) से हासिल किया था। साथ ही अपनी गुरु दक्षिणा और सेवा भी इन दिनों में ही पूरी की।
आइये जानते हैं- गुरु सांदीपनि कौन थे?
गुरु सांदीपनि मूलतः काशी के रहने वाले थे पर वे अपने पुत्रों की मृत्यु के वियोग को सहन नहीं कर पा रहे थे इसलिए उन्होंने काशी छोड़कर उज्जैन में रहने का निश्चय किया था। जब उन्होंने उज्जैन (अवंतिका पूरी) में प्रवेश किया तो वहां सिंहस्थ का मेला लगा हुआ था और वहां अकाल पड़ा था। सभी लोगों में पानी और भोजन को लेकर मरने-मारने की स्थिति बनी हुई थी। जैसे ही वहां के लोगों को पता चला कि अवंतिका पुरी में काशी के विख्यात ऋषि सांदीपनि पधारे हैं तो सभी ऋषि के पास पहुंचे और उन्होंने अपनी नगरी की दशा के बारे में ऋषि को विस्तार से बताया।
यह सुन ऋषि ने इस समस्या के उपाय के तौर पर भगवान शिव की तपस्या करना आरम्भ कर दिया। ऋषि सांदिपनी वर्षों तक तपस्या में लीन रहे और अंततः भगवान् शिव उनसे प्रसन्न होकर प्रकट हुए और इच्छित वर के बारे में पूछा। ऋषि ने कहा कि अवंतिका पुरी में अकाल की स्थिति बनी हुई है कृपा इस संकट से हमें छुटकारा दिलाएं।
भगवान् शिव के वरदान से ही उज्जैन नगरी रहती है समृद्ध
उनकी इच्छा सुनने के बाद भगवान् शिव बोले कि हे! ऋषि जब तक इस नगरी में महाकाल (Mahakal) का मंदिर रहेगा तब तक यहाँ कभी कोई महामारी या अकाल नहीं पड़ेगा। यहाँ सैदव समृद्धि बनी रहेगी। यह वरदान देने के बाद भगवान् शिव ऋषि से बोले कि हे! ऋषि मैं आपकी इस जनकल्याण की भावना से अत्यधिक प्रसन्न हुआ हूँ। अतः आपको मैं स्वयं के लिए एक इच्छित वर मांगने के लिए कहता हूँ। यह सुन ऋषि सांदीपनि ने मृत 7 पुत्रों में से अपने एक पुत्र को जीवित माँगा।
(भगवान् शिव के महाकाल स्वरुप का आशीर्वाद पाने के लिए Mahakal Kavach Locket का प्रयोग करें। यह महाकालेश्वर का आशीर्वाद स्वरुप है।)