पशुपतिनाथ मंदिर ( Pashupatinath Mandir ) को लेकर मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति यहां पर दर्शन के लिए आता है तो उसे किसी जन्म में पशु की योनि नहीं मिलती है। इस मंदिर को लेकर एक दूसरी मान्यता यह भी है कि अगर आपने पशुपति के दर्शन किएं तो आप नंदी के दर्शन न करें। नहीं तो आपको दूसरे जन्म में पशु का जन्म मिलेगा।
पशुपतिनाथ मंदिर कहाँ स्थित है? ( Where is Pashupatinath Temple? )
भारत के पड़ोसी देश नेपाल की राजधानी काठमांडू से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर बागमती नदी के किनारे भगवान शिव को समर्पित पशुपतिनाथ मंदिर ( Pashupatinath Temple Nepal ) अवस्थित है। देवपाटन गाँव में स्थित इस मंदिर की खासियत को देखते हुए ही इसे UNESCO ने विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया है। यह मंदिर नेपाल में भगवान शिव को समर्पित सबसे पवित्र मंदिरों में से एक गिना जाता है।
पशुपतिनाथ की कहानी | Pashupatinath ki kahani
एक कथा के अनुसार पशुपतिनाथ मंदिर/Pashupatinath mandir का संबंध केदारनाथ मंदिर (kedarnath Jyotirling) से है। इसके अनुसार स्वर्ग प्रयाण के समय भगवान शिव ने पांडवों को भैंसे के रूप में दर्शन दिए थे और फिर धरती में समा गए। लेकिन उनके पूरी तरह धरती में समाने से पहले भीम ने पूंछ पकड़ ली, जिस स्थान पर भीम ने यह काम किया।
पशुपतिनाथ मंदिर का महत्व ( Importance of Pashupatinath Mandir )
हिन्दू धर्म में पशुपतिनाथ मंदिर ( Pashupati Mandir ) का बहुत अधिक महत्व है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस स्थान के दर्शन कर लेता है उसे कभी पशु योनि प्राप्त नहीं होती है। इसके पीछे भी एक शर्त है कि यहाँ आकर सर्वप्रथम शिवलिंग के दर्शन करें और उसके बाद ही यहाँ विराजमान नंदी के दर्शन करें।
सबसे पहले नंदी के दर्शन करने से व्यक्ति को पशु योनि मिलती है। वैसा भी कहा गया है कि मनुष्य को 84 लाख योनियों के बाद ही मनुष्य का जन्म प्राप्त होता है। इस प्रकार व्यक्ति इस स्थान पर सच्चे मन से भगवान के दर्शन कर पशु योनि से मुक्ति का वरदान प्राप्त कर सकता है।
भगवान शिव का निराकार स्वयंभू नर्मदेश्वर शिवलिंग और नंदी ( Narmadeshwar Shivling and Crystal Nandi ) को घर में रखने से घर की नकरात्मकता दूरी होती है। नंदी भगवान शिव के द्वारपाल है अतः जिस भी स्थान पर उन्हें भगवान शिव के साथ स्थापित किया जाता है वहां वे बुरी शक्तियों को प्रवेश नहीं करने देते हैं और घर के वातावरण और सदस्यों की रक्षा करते हैं।
पशुपतिनाथ की उत्पत्ति कैसे हुई? ( Pashupatinath ki Utpatti kaise hui? )
पशुपतिनाथ की उत्पत्ति के पीछे दो पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। जिनमें से एक कहानी का संबंध पांडवों और केदारनाथ से है। दरअसल जब पांडव शिव जी को खोजते हुए उत्तराखंड पहुंचे थे तो उनसे छिपने के लिए भगवान शिव ने भैंसे का भेष धारण कर लिया था। केदारनाथ में ही पांडवों को शिव जी ने भैंसे के रूप में अपने दर्शन दिए थे। इसके बाद केदारनाथ में ही वे धरती में समा ही रहे थे कि भीम ने उनकी पूँछ पकड़ ली। कहते हैं कि जिस स्थान से भगवान शिव का मुख बाहर निकला था उसे ही आज वर्तमान में पशुपतिनाथ मंदिर ( Pashupatinath Mandir ) कहा जाता है।
दूसरी कथा के अनुसार भगवान शिवNepal Pasupati में चिंकारे का रूप धारण करके निद्रा में चले गए थे। जब सभी देवता गण उन्हें खोजते हुए यहाँ पहुंचे तो उन्होंने भगवान शिव को वाराणसी लाने का खूब प्रयास किया। उस समय भगवान शिव ने नदी के दूसरे छोर पर छलांग लगा दी जिस कारण उनके सींग के टूटकर चार टुकड़े हो गए थे। इसके बाद ही उस स्थान पर भगवान चतुर्मुखी पशुपतिनाथ शिवलिंग ( Pashupatinath Shivling Nepal ) की रूप में यहाँ पर प्रकट हुए थे।
इतिहास : पशुपतिनाथ मंदिर का निर्माण कब हुआ? ( History : When was Pashupatinath Mandir built? )
पशुपतिनाथ मंदिर ( Pashupatinath Mandir ) के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि यह मंदिर वेदों के लिखे जाने से पूर्व ही यहाँ स्थापित हो गया था। जिस कारण इस मंदिर के बारे में कोई प्रमाणित तथ्य तो स्पष्ट तौर पर नहीं मिलते हैं। परन्तु कई जगह हमें इसके इतिहास से जुड़ी किंवदंतियां कहती है कि इस मंदिर का निर्माण सोमदेव राजवंश से संबंध रखने वाले पशुप्रेक्ष ने तीसरी इससे पूर्व में करवाया था। अभी इस मंदिर के ऐतिहासिक काल से जुड़े दस्तावेज 13वीं सदी के ही मिले हैं।
कहते हैं कि यह मंदिर कितनी ही बार नष्ट हुआ और फिर से इसका पुनर्निर्माण करवाया गया। अभी के वर्तामन मंदिर का पुनर्निर्माण वर्ष 1697 में नरेश भूपतेन्द्र मल्ल ने करवाया था। इन्हीं नरेश भुप्तेन्द्र मल्ल ने यहाँ मंदिर में चार पुजारी (भट्ट) और एक मुख्य पुजारी (मूल-भट्ट) दक्षिण भारत के ब्राह्मणों में से रखे जाने की परंपरा की शुरुआत की थी।
पशुपतिनाथ मंदिर कितना प्राचीन है? ( How much old is Pashupatinath Mandir? )
अभी वर्तमान में जो temple of nepalपशुपतिनाथ/pashupatinath है उसका निर्माण 15 वीं शताब्दी के राजा भूपतेन्द्र मल्ल ने करवाया था। पशुपतिनाथ मंदिर ( Pashupatinath Mandir ) की प्राचीनता के संबंध में किदवंतियाँ कहती है कि इसकी स्थापना वेदों के लिखे जाने से भी पहले हुई थी। परन्तु इससे जुड़े कोई प्रमाण हमें नहीं मिलते हैं।
पशुपतिनाथ का अर्थ क्या है? ( What is the meaning of Pashupatinath? )
पशु से तात्पर्य जीव-जंतु या प्राणी दोनों से है जबकि पति से तात्पर्य स्वामी या ईश्वर है। इस प्रकार पशुपतिनाथ/pashupatinath का स्पष्ट अर्थ है समस्त जीवों के स्वामी।
महादेव को पशुपतिनाथ क्यों कहा जाता है? ( Why is Mahadev called Pashupatinath? )
देवो के देव कहे जाने वाले महादेव का दूसरा नाम पशुपतिनाथ/pashupatinath भी है क्योंकि वे समस्त संसार के भगवान माने जाते हैं। पशुपतिनाथ कहे जाने के पीछे यह वजह कि जितना अधिक प्रेम भगवान संसार के प्राणियों से करते हैं उतना ही अधिक प्रेम वे जीव-जन्तुओ से भी करते हैं। उनके ह्रदय में जीव-जंतुओं और पशुओं के लिए यह अपार प्रेम देख ही उन्हें पशुपतिनाथ कहा जाता है।
पशुपतिनाथ मंदिर का इतिहास हिंदी में | Pashupatinath Temple history in hindi
नेपाल में पशुपतिनाथ का मंदिर( Pashupatinath Mandir ) काठमांडू के पास देवपाटन गांव में बागमती नदी के किनारे स्थित है। मंदिर में भगवान शिव की एक पांच मुंह वाली मूर्ति है। पशुपतिनाथ विग्रह में चारों दिशाओं में एक मुख और एकमुख ऊपर की ओर है। प्रत्येक मुख के दाएं हाथ में रुद्राक्ष की माला और बाएं हाथ में कमंदल मौजूद है।
पशुपतिनाथ व्रत कथा और विधि | Pashupatinath vrat katha aur vidhi
पशुपति व्रत विधि ( Pashupati vrat vidhi )
आप पशुपति व्रत जिस सोमवार से करना प्रारंभ कर रहे हैं। उस सोमवार को स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर पांच सोमवार व्रत करने का संकल्प लें।
फिर आप अपने आस-पास के शिवालय (मंदिर) जाएं।
अपनी पूजा की थाली में (धूप, दीप, चंदन, लाल चंदन, विल्व पत्र, पुष्प, फल, जल) ले जाएं और शिव भगवान का अभिषेक करें।
पशुपति व्रत की कथा | Pashupatinath vrat ki katha
जब शिव एक चिंकारा के रूप में ध्यान कर रहे थे, तब राक्षसों और देवताओं के संघर्ष के कारण तीनों लोकों में अराजकता फैल गई। देवताओं ने महसूस किया कि केवल शिव ही समस्या का समाधान कर सकते हैं और उन्हें वाराणसी में उनके ध्यान से जगाने गए।
पशुपतिनाथ मंदिर का रहस्य | Pashupatinath Mandir ka rahasya
पशुपतिनाथ/pashu pati nath के विषय में कथा है कि महाभारत युद्घ में पाण्डवों द्वारा अपने गुरूओं एवं सगे-संबंधियों का वध किये जाने से भगवान भोलेनाथ पाण्डवों से नाराज हो गये। भगवान श्री कृष्ण के कहने पर पाण्डव शिव जी को मनाने चल पड़े।
गुप्त काशी में पाण्डवों को देखकर भगवान शिव वहां से विलीन हो गये और उस स्थान पर पहुंच गये जहां पर वर्तमान में केदारनाथ स्थिति है।
शिव जी का पीछा करते हुए पाण्डव केदारनाथ पहुंच गये। इस स्थान पर पाण्डवों को आया हुए देखकर भगवान शिव ने एक भैंसे का रूप धारण किया और इस क्षेत्र में चर रहे भैसों के झुण्ड में शामिल हो गये। पाण्डवों ने भैसों के झुण्ड में भी शिव जी को पहचान लिया तब शिव जी भैंस के रूप में ही भूमि समाने लगे। भीम ने भैंस को कसकर पकड़ लिया।
भगवान शिव प्रकट हुए और पाण्डवों को पापों से मुक्त कर दिया। इस बीच भैंस बने शिव जी का सिर काठमांडू स्थित पशुपति नाथ में पहुंच गया।
इसलिए केदारनाथ और पशुपतिनाथ/pashu pati nath को मिलाकर एक ज्योर्तिलिंग भी कहा जाता है। पशुपतिनाथ में भैंस के सिर और केदारनाथ में भैंस के पीठ रूप में शिवलिंग की पूजा होती है।
पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल की यात्रा कैसे करें ? – पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल
पशुपतिनाथ ज्योतिर्लिंग नेपाल के काठमांडू में स्थित है. नेपाल पहुंचने के लिए दिल्ली से ट्रेन, उड़ान और बस सेवाएं उपलब्ध हैं. बजट में यात्रा करने के लिए ट्रेन से यात्रा करें, क्योंकि ट्रेन का किराया फ्लाइट और बसों की तुलना में सस्ता है. दिल्ली से कई ट्रेनें चलती हैं क्योंकि सत्याग्रह एक्सप्रेस रक्सौल तक जाती है.
पशुपति मंदिर क्यों प्रसिद्ध है? | Pashupati Mandir kyu prasid hain
केदारनाथ में ही पांडवों को शिव जी ने भैंसे के रूप में अपने दर्शन दिए थे। इसके बाद केदारनाथ में ही वे धरती में समा ही रहे थे कि भीम ने उनकी पूँछ पकड़ ली। कहते हैं कि जिस स्थान से भगवान शिव का मुख बाहर निकला था उसे ही आज वर्तमान में पशुपतिनाथ मंदिर ( Pashupatinath Mandir ) कहा जाता है।
पशुपतिनाथ की कथा क्या है? | Kedarnath Pashupatinath story in hindi – Pashupatinath Mandir Nepal history in hindi
एक कथा के अनुसार पशुपतिनाथ मंदिर का संबंध केदारनाथ मंदिर (kedarnath Jyotirling) से है। इसके अनुसार स्वर्ग प्रयाण के समय भगवान शिव ने पांडवों को भैंसे के रूप में दर्शन दिए थे और फिर धरती में समा गए। लेकिन उनके पूरी तरह धरती में समाने से पहले भीम ने पूंछ पकड़ ली, जिस स्थान पर भीम ने यह काम किया।
पशुपति व्रत की विधि कैसे करना चाहिए? – पशुपति व्रत के नियम| Pashupati Vrat ki vihi kaise karna chaiye
पशुपति व्रत विधि | Pashupati Vrat Vidhi
आप पशुपति व्रत ( Pahupati Vrat ) जिस सोमवार से करना प्रारंभ कर रहे हैं। उस सोमवार को स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर पांच सोमवार व्रत करने का संकल्प लें।
फिर आप अपने आस-पास के शिवालय (मंदिर) जाएं।
अपनी पूजा की थाली में (धूप, दीप, चंदन, लाल चंदन, विल्व पत्र, पुष्प, फल, जल) ले जाएं और शिव भगवान का अभिषेक करें।
पशुपति व्रत में कुछ अनाज का सेवन किया जा सकता है। जिसमें आटे का हलवा, आटे का चूरमा और खीर शामिल है। जो महिलाएं अनाज ग्रहण नहीं करना चाहती वो- साबूदाने की खीर का सेवन करे, छुहारे की खीर का सेवन करे या फिर मखाने की खीर का सेवन कर सकती हैं।
पशुपति व्रत की शाम की पूजा कितने बजे करनी चाहिए? | Pashupati Vrat ki shaam ki puja kitne baje karne chaiye
ऐसा माना जाता है कि यह पूजा हमेशा सूर्यास्त के समय यानी सूर्यास्त के एक घंटे पहले और सूर्यास्त के एक घंटे बाद तक इसका सही समय होता है। कभी भी संध्याकाल की पूजा रात्रि में नहीं करनी चाहिए। संध्या पूजा का सही समय गोधूलि बेला का ही माना जाता है।
पशुपति व्रत में कितने दिए जलाए जाते हैं? | Pashupatinath Vrat mein kitne diye jalae jaate hain
पशुपति व्रत ( Pahupati Vrat ) शाम/प्रदोष काल की पूजा विधि”6 दीपक 3 भाग प्रसाद”के करने की विधि गलती ना करें |
पशुपतिनाथ के चार मुख कौन से हैं? | Pashupatinath ke char mukh konse hain
उस सींग को पशुपतिनाथ ( Pashupatinath )का पहला चतुर्मुख लिंग (चार मुख वाला लिंग) माना जाता था, जिसकी भगवान शिव अनुयायियों द्वारा पूजा की जाती थी। तत्पुरुष (पूर्व मुख), अघोरा (दक्षिण मुख), सद्योजात (पश्चिम मुख), और वामदेव (उत्तर मुख) चतुर्मुख लिंग के चार मुख हैं।
पशुपति कितने साल का है? | Pashupatinath kitne saal ka hain
यह जानवरों के रक्षक पशुपति के रूप में हिंदू भगवान शिव को समर्पित है। यहां कम से कम 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व से एक धार्मिक आधार रहा है, हालांकि सबसे पुराना दर्ज मंदिर 400 सीई का है ।
पशुपतिनाथ किस चीज से बना है? | Pashupatinath kis cheej se bana hain
देवता. पवित्र गर्भगृह, या मुख्य मूर्ति, एक पत्थर का मुखलिंग है जिसका चांदी का योनि आधार चांदी के नाग से बंधा हुआ है।
पशुपति सील में किस जानवर का चित्रण नहीं है? | Pashupatinath seal mein kis janvar ka chitran nahi hain
सही उत्तर सिंह है। मोहनजोदड़ो में खोजी गई तथाकथित ‘पशुपति’ मुहर पर शेर की आकृति नहीं पाई गई।
पशुपति व्रत करने से क्या होता है? | Pashupati Vrat karne se kya hota hain
पशुपति व्रत भगवान भोलेशंकर को समर्पित है। जब आप बहुत सारी परेशानियों से घिरे हों और उन परेशानियों का आपको कोई निवारण बूझ नहीं रहा हो।और आप अपनी परेशानी किसी को बता भी नहीं पा रहे हों, तब यह व्रत अपनी मनोकामना पूर्ण अवश्य करेगा, अतः पशुपति व्रत को भगवान शंकर पर पूर्ण विश्वास रख कर ही करें।