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    Home » दूसरा नवरात्र : माँ ब्रह्मचारिणी की सम्पूर्ण कथा, ऐसी तपस्या आज तक नहीं देखि होगी …
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    दूसरा नवरात्र : माँ ब्रह्मचारिणी की सम्पूर्ण कथा, ऐसी तपस्या आज तक नहीं देखि होगी …

    VeshaliBy VeshaliOctober 17, 2023Updated:October 17, 2023
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    आप सभी को नवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनाये। आज नवरात्रि का दूसरा दिन है। नवरात्रि के दूसरे दिन हम माँ दुर्गा के रूप , ‘माँ ब्रह्मचारिणी’ की आराधना करते है। माँ ब्रह्मचारिणी एक ऐसी देवी है जिन्होंने अपने तप से पुरे ब्राह्माण को हैरान कर दिया, माँ ने 4000 वर्षों से भी ज़्यादा समय तक जंगल में जीवन बिताते हुए घोर तपस्या की।
    उनकी तपस्या देख कर स्वयं ब्रह्माजी भी धरती पर आ गए। आज तक पूरी सृष्टि में ऐसा कोई भी नहीं है जिन्होंने माँ ब्रह्मचारिणी जितनी कठिन तपस्या की हो। यदि कोई भी भक्त सच्चे मन्न से माँ की पूजा और आराधना करता है तो उसके बिगड़े काम बन जाते है।
    मान्यता है की माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा जिन पर पड़ती है, उन भक्तों की सारी तरह की परेशानियाँ दूर हो जाती है। माँ ब्रह्मचारिणी की सही विधि विधान से पूजा और आराधना करने से भक्त को तप, त्याग, वैराग्य और सदाचार की सिद्धि प्राप्त होती है। तो चलिए हम आपको बताते है माँ ब्रह्मचारिणी की कथा।
    पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में माँ दुर्गा ने देवी पार्वती के नाम से जन्म लिया।
    एक बार जब वह नारदमुनि से मिली तब नारमुनि ने देवी को ‘महादेव के बारे में बताया, उनके बारे में सुनने के बाद देवी ने महादेव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने की ठान ली। देवी पारवती ने अपने माता-पिता के सामने महादेव से विवाह करने की इच्छा ज़ाहिर की , तब उनके माता-पिता ने बताया की महादेव को पति के रूप में पाने के लिए आपको घोर तपस्या करनी पड़ेगी। क्योंकी महादेव ने माँ सती को खोया था, उसके बाद महादेव पूर्ण रूप से वैरागी हो चुके थेऔर उन्हें पिघलना और पति रूप में पाना माता पार्वती के लिए इस जन्म में पहले से भी बहुत कठिन होने वाला था। इसलिए माँ पार्वती ने अपने महल के सुख त्याग कर, हिमालय की ओर चली गयी और जंगल में रह कर घोर तपस्या करने लगी।

    इस कारण से उनका नाम ‘ माँ ब्रह्मचारिणी’ पड़ा। माँ ब्रह्मचारिणी ने एक हज़ार साल तक जंगल में केवल फल और फूल खा कर बिताए। अगले 100 वर्षों तक देवी केवल शाख के ऊपर रही और 3000 वर्षो तक उन्होंने केवल पेड़ के गिरे हुए पत्तों को ही अपना भोजन समझ कर खाया।
    धीरे- धीरे देवी ने ये सब खाना भी छोड़ दिया, पानी का भी त्याग कर दिया और महादेव की निर्जल और निराहार रह कर घोर तपस्या की , जिसकी वजह से देवी का शरीर बहुत कमज़ोर हो गया। इस तरह देवी ने महादेव को पति के रूप में पाने के लिए ब्रह्मचर्य अपनाया।
    ब्रह्मचर्य का मतलब होता है सर्वोच्या ज्ञान, और माँ इस रूप में अपने भक्तों को मोक्ष प्रदान करता है, जिससे देवी का ‘मोक्षदा’ नाम भी पड़ा।
    देवी की इतनी घोर तपस्या देख के सभी देवी देवता चिंतित हो गये। ब्रह्मदेव ने आकाशवाणी कर के घोषड़ा की, ‘ कि आज तक पुरे मानव जीवन या देवलोक में भी किसी ने इतनी कठिन तपस्या नहीं की है और माँ ब्रह्मचारिणी को वरदान दिया की ‘तुम्हें महादेव अवश्य की पत्नी के रूप में स्वीकार करेंगे’। और उसके बाद अगले जन्म में पारवती का विवाह हो गया।
    माँ ब्रह्मचारिणी का मंत्र है ‘या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः’ आप इस मंत्र का 108 बार जाप कर सकते है। इससे माँ ब्रह्मचारिणी आप पर कृपा ज़रूर बरसाएंगी।
    जय माता दी

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