क्यों गए थे पांडव लंका, और कैसे पांचों पांडव कुंभकर्ण की खोपड़ी में डूबने लगे। किसने बचाया पांडवों को डूबने से। क्या था आखिर खोपड़ी का रहस्य। यह कथा द्वापर युद्ध के अंतिम चरण की है। जब महाभारत का युद्ध होने वाला था। जिसके चलते कौरव और पांडव अपनी-2 सेना एकत्रित करने में लगे थे।कौरव और पांडव दोनों पक्ष को सेनाओं की आवश्यक्ता थी। इसलिए दोनों पक्ष अपने सगे संबधियों या जानकारों को युद्ध के लिए आमत्रण भेज रहे थे। एक दिन पांडव अपनी माता कुंती के पास गए। जहां उन्होंने चितिंत होते हुए कहा कि माता यह युद्ध हम कैसे जीतेंगे। क्योंकि कौरवों के पास सेना की तादाद ज्यादा है। तभी माता कुंती पांडवों को सेना के लिए दक्षिण दिशा में जाने की बात कहती है। जहां पर मौजूद थी लंका।
मंदोदरी से मिलने पहुंचे पांडव
पांचों पांडव माता कुंती से आज्ञा लेकर लंका के लिए निकल गए। रास्ते में उन्होंने भगवान शिव के दर्शन किए। लंका तक जाने का इकलौता मार्ग था राम सेतु। जोकि उस समय टूटा हुआ था।इसलिए लंका जाने के लिए उस क्षेत्र के लोग राम सेतू की मरम्मत किया करते थे। उसी सेतु के माध्य से पांडव लंका पहुंचे। तब उन्होंने वहां पहुंत कर माता मंदोदरी से भेंट की।माता मंदोदरी से मिलते ही पांडवों ने माता मंदोदरी को प्रणाम किया, और कहा कि आर्यवर्त में अधर्म फैल चुका है।
माता मंदोदरी से मांगी मदद
जिसके चलते हमें अपने सगे संबंधियों के साथ एक विशाल युद्ध में कूदना पड़ रहा है। जो धर्म और अधर्म की डोर को समेटे हुआ है। हम अपनी माता कुंती के आदेश से ही यहां आए है और आपसे चाहते है कि आप अपनी विशाल सेना से महाभारत के युद्ध में हमारा समर्थन करें।तब मंदोदरी ने कहा कि लंका के राजा रावण पहले ही स्वर्ग सिधार चुके है।स्वर्ग और इंद्र को जीतने वाला मेरा पुत्र मेघनाथ भी पहले ही वीरगति को प्राप्त हो चुका है। वहीं मेरे देवर विभीषण पहले ही खुद को भगवान को समर्पित कर चुके है। इसलिए हम आपकी ज्यादा सहायता नहीं कर सकते है। लेकिन हां लंका के कुछ सैनिक जरूर आपको दे सकते है। लंका की सेना का साथ सुनकर युद्धिष्टर को खुशी हुई। वहीं रात होने की वजह से पांडवों ने लंका में ही निवास किया।
पांचों पांडव स्नान के लिए खोजने लगे सरोवर
सुबह मंदोदरी ने पांचों पांडवों को स्नान के लिए भेजा। पांचों पांडव स्नान के लिए सरोवर की तलाश में निकल पड़े। तभी उन्हें एक सरोवर दिखा। लेकिन आपको बता दें कि वो सरोवर नहीं बल्कि कुंभकर्ण की खोपड़ी थी। जैसे ही पांचों पांडव स्नान के लिए खोपड़ी में उतरे तो पांचों उस सरोवर में डूबने लगे। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिरकार उनके साथ ऐसा क्यों हो रहा है। तभी वहां मौजूद एक गवालें ने पांडवों को खोपड़ी में डूबते देखा, और यह बात जाकर माता मंदोदरी को बताई। मंदोदरी पांडवों की मदद के लिए सरोवर पहुंची।
मंदोदरी ने खोपड़ी को उल्टा कर बचाई पांडवों की जान
उन्होंंने खोपड़ी को उलटा किया और पांडवों को डूबने से बचाया। पांडवों ने माता मंदोदरी से पूछा कि आपने सरोवर को कैसे उल्टाया। तभी माता मंदोदरी बताती है कि सरोवर नहीं बल्कि मेरे देवर कुंभकर्ण की खोपड़ी है। यह सब सुनते ही पांचों पांडव एक पल के लिए हैरान रह गए। इसी के साथ माता मंदोदरी ने पांडवों को रावण की कथा भी सुनाई कि कैसे वो अधर्म के मार्ग पर चलते हुए भगवान श्री राम के हाथों मारे गए। मंदोदरी ने पांडवों को कहा कि अगर तुम धर्म के साथ हो तो निश्चय ही जीत तुम्हारी होगी। तुम्हारी सेना बड़ी हो या छोटी उससे कोई भी फर्क नहीं पड़ता, और इस तरह पांचों पांडवों को माता मंदोदरी से एक सीख मिली।