सौर मंडल में विराजमान मंगल (Mangal) चौथा ग्रह है जो हल्के रक्त वर्ण का होने के चलते लाल ग्रह के नाम से भी जाना जाता है। मंगल जातक को कई सारी आपदाओं से रक्षा करता है। वह व्यक्ति को शनि, राहु और केतु के बुरे प्रभावों से भी बचाता है इसलिए मंगल को सेनापति की भी संज्ञा दी गई।
मंगल के दो रूप हैं और इन रूपों की व्याख्या भी अलग-अलग प्रकार से की गई है। शुभता के प्रतीक मंगल के देवता हनुमान जी (Lord Hanuman) को माना गया है जबकि अशुभता के प्रतीक वाले मंगल के देवता भूत-प्रेत माने गए हैं।
आइये जानते है मंगल के शुभ और अशुभ लक्षणों के बारे में :
अशुभ मंगल के लक्षण (Ashubh Mangal ke lakshan)
1. संपत्ति को लेकर विवाद उत्पन्न होना,
2. व्यक्ति को रक्त से जुड़ी बीमारियां होना,
3. किसी मुक़दमे में फंसना,
4. आत्मविश्वास और साहस का अत्यधिक कमजोर पड़ना,
5. हिंसक स्वभाव व्यक्ति पर हावी होना,
6. कर्जे की स्थिति आ जाना,
7. वैवाहिक जीवन में कड़वाहट आना,
8. भाई से रहता है हमेशा विवाद।
शुभ मंगल के लक्षण (Shubh Mangal ke lakshan)
1. व्यक्ति को बड़े पद या लीडर की जिम्मेदारी मिलना,
2. साहस और आत्मविश्वास में वृद्धि होना,
3. वैवाहिक जीवन सुखी रहता है,
4. सैन्य अधिकारी बनने की संभावना अधिक रहती है,
5. कर्जे से मुक्त होना।
कमजोर मंगल के उपाय (Kamjor Mangal ke upay)
1. हर मंगलवार को हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ करें।
2. नियमित रूप से ‘ॐ भौमाय नम: व ॐ अं अंगारकाय नम:’मंत्र का जाप करने से भी मंगल दोष ठीक होता है।
3. Mangal Yantra मंगल दोष निवारण के उपायों में सबसे सर्वोत्तम है।
4. जिस भी जातक की कुंडली में मंगल कमजोर स्थिति में हो उसे हर मंगलवार को लाल वस्त्र पहनने चाहिए
मंगल की उत्पत्ति कैसे हुई? (Mangal ki utpatti kaise hui?)
पौराणिक कथा में इस बात का वर्णन है कि जब भगवान शिव (Lord Shiva) समाधी में ध्यान लगाए बैठे थे उस समय उनके माथे से गिरी तीन पसीने की बूँद से एक नन्हें बालक का जन्म हुआ। जन्मा वह नन्हा बालक रक्त वर्ण का था जिसकी चार भुजाएं थीं। धरती पर इनका जन्म होने के कारण धरती ने ही उस नन्हें बालक का पालन पोषण किया।
यही वजह है कि वह बालक भौम के नाम से जाना जाने लगा। उस बालक ने जैसे ही प्रौढ़ावस्था में कदम रखा वह आध्यात्मिक नगरी काशी की ओर चल दिया। भौम ने वहीँ रहकर भगवान् शिव की कठोर तपस्या की थी जिससे प्रसन्न होकर भगवान् शंकर ने भौम को मंगल लोक प्रदान किया था।
मंगल के जन्म से संबंधित और भी कई पौराणिक कथाएं है। स्कन्दपुराण (Skand Purana) में यह ज़िक्र मिलता है कि एक बार इंद्र देव को अंधक नाम से लोकप्रिय दैत्य के कनक नामक पुत्र ने युद्ध के ललकारा। इंद्रदेव ने कनक को उस युद्ध में मार डाला। अंधक दैत्य अपने पुत्र की मृत्यु की खबर सुनकर अत्यधिक क्रोधित हो उठा और इंद्रदेव को मारने का प्रण ले बैठा।
जब इंद्रदेव (Indra Dev) को यह बात पता चली तो वह भय खाने लगे क्योंकि अंधकासुर नामक दैत्य बहुत ही शक्तिशाली था। जबकी इंद्रदेव की शक्तियां उसके आगे कुछ भी नहीं थी। इस कारण इंद्रदेव अपने प्राणों की रक्षा करते हुए भगवान शंकर की शरण में पहुंचे। उन्होंने भगवान् शिव से कहा कि ‘हे! भगवन मेरी रक्षा कीजिये और मुझे अंधकासुर के सामने आने के लिए अभय प्रदान कीजिये’।
इंद्रदेव की प्रार्थना स्वीकार करते हुए भगवान् शंकर ने उन्हें अभय प्रदान किया और अंधकासुर को युद्ध के लिए ललकारा। दोनों के पक्षों के बीच इसके बाद भीषण युद्ध हुआ और इसी भीषण युद्ध के दौरान भोलेनाथ के मस्तक से पसीने की बूंदे गिरी। धरती पर गिरी उस बूँद से ही रक्त वर्ण वाले नन्हे बालक का जन्म हुआ। युद्ध के दौरान इनका जन्म हुआ था इसलिए मंगल को क्रोध बहुत अधिक आता है और उनका स्वभाव भी काफी क्रूर माना जाता है।