महाभारत युद्ध के 18 दिनों तक पांडव भीष्म,द्रोण और कर्ण में हीं उलझे रह गए। युद्ध के आखिरी दिन भीमसेन ने दुर्योधन का वध किया और पांडव अपनी जीत में मग्न हो गए। शायद वे ये सोंच रहे थे कि उन्होंने (Mahabharat Story) सभी कौरवों का अंत कर दिया है,लेकिन वे गलत थे। पांडवों के नाक के नीचे कुरुक्षेत्र की रणभूमि से,कुछ कौरव योद्धा जिन्दा बच निकले थे। सालों बाद जब पांडवों को इस बात का पता चला तो उनका गला सुख गया। पांडवों ने उन जीवित बचे कौरव योद्धाओं की खोज शुरू कर दी। क्योंकि जो कौरव योद्धा जिन्दा बचे थे,वे कोई सामान्य योद्धा नहीं थे। वे एक से बढ़कर एक घातक दिव्यास्त्रों का ज्ञान रखते थे,वे जब चाहे पांडवों से बदला लेने आ सकते थे और उनकी जीत को पल में हार में बदल सकते थे। इसी बात ने पांडवों की रातों की नींद उड़ा दी,क्योंकि उन जीवित बचे कौरव योद्धाओं में एक दुर्योधन का भाई भी था। तो आखिर कौन थे वो कौरव योद्धा,जो पांडवों की आँखों में धूल झोंक कर युद्ध से जिन्दा बच निकले थे? आइये जानते हैं।
कौन थे ये कौरव
महर्षि शरद्वान के पुत्र और कुरुवंश के कुल गुरु कृपाचार्य,जीवित बचने वाले कौरवों में सबसे पहले योद्धा थे। अपनी विद्या और धर्म-नीतियों के आधार पर उन्होंने वर्षों तक कुरु वंश का मार्गदर्शन किया था। द्रोणाचार्य से पहले कौरवों और पांडवों की आरम्भिक शिक्षा कृपाचार्य के हांथों हीं हुई थी। कृपाचार्य के दादा महर्षि गौतम सप्तऋषिओं में से एक थे और उनके पिता महर्षि शरद्वान की धनुर्विद्या से देवराज इन्द्र भी भय खाते थे। महाभारत के आदि पर्व अध्याय 67 की माने तो कौरव कुलगुरु कृपाचार्य,रुद्रगणों में से एक के वंशावतार थे। देवी भागवत के अनुसार कृपाचार्य मरुतों में से एक का वंशावतार थे। विष्णुपुराण( Mahabharat Story)अंश तीन की माने तो,आगे होने वाले मन्वन्तर में वे मनु बन प्रलय से बचायेंगे और वे सप्तऋषिओं में से भी एक बनेंगे। वृद्धावस्था में भी कृपाचार्य एक या दो नहीं,बल्कि पुरे के पुरे साठ हजार महारथियों को अकेले हारने की क्षमता रखते थे। वे महारथियों के भी महारथी थे तथा अपने पिता शरद्वान के समान हीं अनेकों युद्ध विद्याओं में माहिर थे। वरुणास्त्र,अग्नेआस्त्र,इन्द्रास्त्र और ब्रह्मास्त्र का ज्ञान रखने वाले वृद्ध ब्राह्मण योद्धा कृपाचार्य कोई साधारण योद्धा नहीं थे। वे पल में पांडवों की जीत को हार में बदलने की शक्ति रखते थे।
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कृपाचार्य के बाद कृतवर्मा वो दूसरा कौरव योद्धा था,जो महाभारत के युद्ध से जिन्दा बच निकला था। कृतवर्मा वृष्णि वंश के सात सेनानायकों में से एक और यदुवंश के अंतर्गत भोजराज हृदिक का पुत्र था। श्री कृष्ण की जिस नारायणी सेना ने कौरवों का साथ दिया था,कृतवर्मा उसी नारायणी सेना का सेनापति था। कृतवर्मा ने अपने शौर्य के दम पर नारायणी सेना के साथ,कई राजाओं को हराया और अनेकों राज्यों को जीता। श्री कृष्ण की आज्ञा से कौरवों का साथ देते हुए कृतवर्मा ने भीम,धृष्टद्युम्न और सात्यकि जैसे वीर पाण्डव योद्धाओं को हराया। युद्ध में कृतवर्मा ने अपनी सेना के साथ इस तरीके से युद्ध किया कि,युद्ध के अंत तक ना वो मरा ना हीं उसकी सेना का कोई अन्य सैनिक। महाभारत(Mahabharat Story) के अंत तक कृतवर्मा ने कौरवों का साथ दिया और युद्ध के बाद अपनी नारायणी सेना के साथ वापस द्वारका लौट आया। महाभारत युद्ध के सालों बाद यादवों में छिड़े गृह युद्ध में कृतवर्मा की मृत्यु हो गई थी। महाभारत के युद्ध में सात्यकि ने भूरिश्रवा का छल से वध किया था। कृतवर्मा ने जैसे हीं सात्यकि को यह याद दिलाया,सात्यकि ने अपने तलवार के एक वार से कृतवर्मा के सर को धड़ से अलग कर दिया और कृतवर्मा अंत हो गया।
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कृपाचार्य और कृतवर्मा के बाद अश्वथामा वो तीसरा कौरव योद्धा था,जो युद्ध के अंत तक जीवित बचा रहा। द्रोणाचार्य का पुत्र और कृपाचार्य का भांजा,महारथी अश्वथामा सभी श्रेष्ट अस्त्रों का ज्ञाता था। गुरु द्रोण ने अपने इस बेटे को एक शक्तिशाली योद्धा के रूप में तैयार किया और उन्होंने अश्वथामा को वो अस्त्र विद्याएँ भी सिखाईं थी,जिनका ज्ञान शायद अर्जुन के पास भी नहीं था। अपने पिता गुरु द्रोण से अश्वथामा ने हर प्रकार के अस्त्र शस्त्र की विधाएँ लीं तथा धर्म निति से सम्बंधित अन्य ज्ञान भी प्राप्त किए। इस प्रकार अश्वथामा का निर्माण एक वीर योद्धा के रूप में हुआ। अश्वथामा गुरु द्रोण और पितामह भीष्म के सामान हीं एक चोटी का योद्धा था तथा धनुर्विद्या में उसकी तरह अन्य कोई दूसरा नहीं था। जब अर्जुन ने द्रुपद को हरा कर गुरु द्रोण को गुरु दक्षिणा( Mahabharat Story)दिया था,तब गुरु द्रोण ने अश्वथामा को उत्तर पांचाल का राजा बना दिया था। शत्रुंजय,शतानीक,राजा द्रुपद,धृष्टद्युम्न और सभी पाण्डवों के पुत्रों के साथ साथ कुंती भोज के 90 पुत्रों का वध अकेले अश्वथामा ने हीं किया था। अश्वथामा के पास अग्नेआस्त्र,वरुणास्त्र,ब्रह्मास्त्र और नारायणास्त्र समेत अनेकों दिव्यास्त्र थे। महाभारत के युद्ध में गुरु द्रोण और अश्वथामा हीं वो दो योद्धा थे,जिनको नारायणास्त्र का ज्ञान था।
ये वो तीन कौरव योद्धा थे,जो महाभारत से जिन्दा बच निकलने में सफल हो पाए थे। अब हम आपको दुर्योधन के उस भाई के बारे में बताते हैं,जो महाभारत युद्ध के बाद भी जीवित था। जिसको भीम समेत कोई भी पाण्डव योद्धा मार नहीं पाया था। दुर्योधन के उस एकमात्र जीवित भाई का नाम युयुत्सु था। महाभारत में वर्णित है कि धृतराष्ट्र के गांधारी से सौ पुत्र हुए,जो युद्ध में भीम के हाँथों मारे गए थे। लेकिन यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि धृतराष्ट्र का उसकी दासी से भी एक पुत्र हुआ था,जिसका नाम युयुत्सु था। महाभारत युद्ध से पहले जब युधिष्ठिर ने आह्वाहन किया,कि जो भी योद्धा अपना पक्ष बदलना चाहता है वो बदल सकता था। युधिष्ठिर के इसी आह्वाहन के बाद युयुत्सु कौरव पक्ष से हटकर पाण्डवों में शामिल हो गया था। युयुत्सु दुर्योधन का सौतेला भाई था,उसने युद्ध में पांडवों का साथ दिया था और यही कारण था कि वो महाभारत(Mahabharat Story) के अंत तक जीवित बचा रहा। तो क्या आप भी किसी ऐसे कौरव योद्धा के बारे में जानते हैं,जो महाभारत के युद्ध के बाद जीवित बचा हो? अगर जानते हैं तो कमेंट कर के जरूर बताइएगा।