क्या महाभारत के इस योध्दा के पास भी था सूर्य पुत्र कर्ण जैसा रक्षक कवच। किसका कवच था ज्यादा ताकतवर। और आखिर कौन था वो योध्दा था, जिसके कवच ने एक पल के लिए सूर्य पुत्र कर्ण को भी कर दिया था सोचने पर मजबूर। क्या यह योद्धा था कर्ण से भी ज्यादा ताकतवार। महाभारत (Mahabharat story) में शक्तिशाली दिव्यास्त्रों के अलावा एक और चीज सबसे शक्तिशाली थी वो थे सूर्य पुत्र कर्ण के कुंडल और उनका कवच। लेकिन आपको बता दें कि उनके जैसा ही दिव्य कवच महाभारत के एक और योध्दा के पास था, और
कौन था वो योद्धा
वो योद्धा कोई और नहीं बल्कि अभिमन्यु था। लेकिन यह कवच अभिमन्यु को जन्मजात( Mahabharat story)से ही उन्होंने प्राप्त नहीं था। बल्कि इसे खास दिव्य मंत्रों द्वारा ही अर्जित किया जाता था। जोकि गुरू द्रोणाचार्य नेयह स्वयं अजुन को भी सिखाया था। जिसे अर्जुन ने स्वयं अपने बेटे अभिमन्यु को प्रदान किया था। युद्ध के 13वें दिन जब अभिमन्यु चक्र को भेदने के लिए इसमें घुसा तब उन्होंने खास दिव्य मंत्रों को सहायता से ही इस खास कवच को प्राप्त किया था। जब अभिमन्यु हर किसी योद्धा को बुरी तरह से परास्त कर रहा था तब दुर्योधन के पूछने पर आचार्य ने कहा कि क्रोध में भरे हुए महारथी इस खास कवच को नही देख पाते। तभी उस समय कर्ण और अभिमन्यु के बीच में युद्ध हुआ।
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अभिमन्यू और कर्ण के बीच लड़ाई में कौन जीता था
अभिमन्यु के बाणों से आहत होकर तभी कर्ण गुरु द्रोणाचार्य के पास गए और उन्हे कहा कि हे गुरु मैं अभिमन्यु के बाणो से पीड़ित होने के बाद भी केवल इसीलिए नहीं खड़ा हुं कि युद्ध के मैदान में खड़े रहना ही क्षत्रिय धर्म है। तेजस्वी कुमार अभिमन्यु के लिए अग्नि के समान तेजस्वी वक्षस्थल को वैद्द्यहीन किेए जा रहे है। यह सुनकर गुरु द्रोणाचार्य (Mahabharat story)ठहाके मार कर हसने लगते है और धीरे से कर्ण से कहते है कि हे कर्ण अभिमन्यु का कवच अभेदय है। मैने उसके पिता को कवच को धारण करने की विधि बताई है। शत्रु नगरी पर विजय पाने वाला खास वीर कुमार निश्चय ही सारी विधि जानता है। और निश्चित ही अर्जुन ने ही यह विधि अभिमन्यु को सिखाई है। जब दुर्योधन और बाकी कौरवों समेत कर्ण ने पूछा की क्या इसका कोई इलाज नहीं है।
द्रोणाचार्य ने बताया अभिमन्यू के कवच को भेदने का उपाय
तब द्रोणाचार्य ने कहा कि इसके कवच को तभी भेदा जा सकता है।जब इस पर घनघोर बाण चलाए जाएं। साथ ही इसकी प्रतियंचा को पीछे से काट दिया जाए। उसके रक्त को क्षीण-बीण कर दिया जाए। और यही वो क्षण था जब दुर्योधन ने इस कार्य की जिम्मेदारी कर्ण को दी, और कहा कि हे राधा पुत्र यदि तुम कर सकते हो तो करो। अब तुम्हे पीछे से ही इसके इस धनुष को नष्ट करना होगा। इसकी प्रतियंचा को काटना होगा। अन्यथा आज दुर्योधन को बचा पाना(Mahabharat story) नामुमकिन है। क्योंकि इससे ना तो देवता जीत सकते है और ना ही कोई असुर। और इसी कारण कर्ण ने अभिमन्यु के इस खास कवच को तोड़ने के लिए प्रतियंचा को काटा और रक्त को क्षीण-बीण कर दिया। जिससे कि वो कवच टूट गया और अभिमन्यु का वध संभन हो पाया। और उसके बाद तो आपको पता ही अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हुए।