लिंगराज मंदिर(Lingaraj Mandir) : प्राचीन मंदिरों में शामिल इस भव्य मंदिर का इतिहास और पौराणिक कथा

लिंगराज मंदिर का इतिहास(Lingaraj Temple History)

भारत एक ओडिशा राज्य की राजधानी कही जाने वाले भुवनेश्वर प्रान्त में लिंगराज मंदिर अवस्थित है। इसे भुवनेश्वर प्रान्त के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है। बता दें कि यह मंदिर त्रिभुवनेश्वर यानी भगवान् शिव को समर्पित है। भगवान् शिव के त्रिभुवनेश्वर रूप से तात्पर्य है तींनों लोकों का स्वामी।

लिंगराज मंदिर का निर्माण कब और किसने करवाया? ( Who built Lingaraj Temple? )

अभी जो मंदिर वर्तमान में मौजूद है वह 12 वीं शताब्दी में निर्मित हुआ था परन्तु इस मंदिर में मौजूद कुछ अवशेष 1400 वर्षों से भी प्राचीन हैं। जिस कारण इस मंदिर का उल्लेख हमें छठी शताब्दी में भी मिलता है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण सोमवंश के राजा ययाति प्रथम के द्वारा करवाया गया था।

लिंगराज मंदिर की कहानी ( Lingaraj Temple Story in hindi ) :  

लिंगराज मंदिर के बारे में ऐसी कथा प्रचलित है कि इसी स्थान पर ‘लिट्टी’ तथा ‘वसा’ नाम के दो राक्षसों का वध किया गया था वो भी देवी पार्वती के द्वारा। राक्षसों से युद्ध के पश्चात देवी पार्वती को प्यास लगती है। इसके लिए भगवान शिव ने एक कूप बनाया और सभी पवित्र नदियों को उस कूप में योगदान के लिए बुलाया। जिसे अब बिंदुसागर सरोवर के नाम से जाना जाता है। इसी बिंदुसागर के निकट यह विशाल लिंगराज मंदिर अवस्थित है। बताते चलें कि यह स्थान शैव संप्रदाय के लोगों का एक मुख्य केंद्र रहा है।

कहने को यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है पर आपको जानकार हैरानी होगी कि इस मंदिर का आधा भाग शिव जी का और आधा भाग विष्णु जी का है। यानी नीचे के भाग में भगवान् शिव निवास करते हैं और ऊपर का हिस्सा भगवान विष्णु को समर्पित है क्योंकि यहाँ विष्णु जी शालिग्राम के रूप में विराजमान है।    

लिंगराज मंदिर स्थापत्य कला ( Lingaraj Temple Architecture )

लिंगराज मंदिर को कलिंग और उड़िया शैली में निर्मित किया गया है। बलुआ पत्थरों से बने इस लिंगराज मंदिर के ऊपरी भाग पर उल्टी घंटी और कलश स्थापित है। जो सभी के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इस मंदिर के ऊपर वाले हिस्से को पिरामिड के आकार का रूप दिया गया है।

यहाँ पर जो शिवलिंग स्थापित है उसकी खासियत यह है कि वह करीब आठ फ़ीट मोटा और एक फीट ऊँचा ग्रेनाइट से निर्मित स्वयंभू शिवलिंग है। इस शिवलिंग के बारे में ऐसी मान्यता है कि भारत में जो 12 ज्योतिर्लिंग पाए जाते है उन सभी का इस शिवलिंग में समाहित है तभी तो इसे लिंगराज नाम दिया गया है।    

मंदिर कुल चार भागों में बंटा हुआ है जिसमें पहला भाग है – गर्भ गृह, दूसरा भाग है – यज्ञ शैलम, तीसरा भोगमंडप और चौथा भाग नाट्यशाला। यहाँ आने वाले भक्तजन सबसे पहले सर्वप्रथम बिन्दुसरोवर में स्नान करते हैं उसके बाद वे अनंत वासुदेव के दर्शन करते हैं। फिर गणेश पूजा होती है और गोपालन देवी के दर्शन किये जाते है। इसके पश्चात भगवान् शिव की सवारी नंदी के दर्शन होते हैं और अंत में लिंगराज महाराज के दर्शन किये जाते हैं।  

लिंगराज मंदिर कैसे पहुंचे? ( How to reach Lingaraj Temple? )

लिंगराज मंदिर ओडिशा के भुवनेश्वर शहर में है जो इस राज्य की राजधानी है और लगभग भारत के सभी शहरों से सम्पर्क में है। यहाँ तक पहुँचने के लिए रेल, सड़क या हवाई मार्ग तीनों में से किसी का भी प्रयोग किया जा सकता है। इस मंदिर के सबसे समीप Lingaraj Temple Road Station है जबकि भुवनेश्वर एयरपोर्ट से इसकी दूरी 5 किलोमीटर है ।

( भगवान शिव के सबसे पवित्र शिवलिंग में पारद शिवलिंग भी माना जाता है। जो घर के दूषित वातावरण यानी नकारात्मक ऊर्जाओं को समाप्त करता है। पारद शिवलिंग को घर में स्थापित कर उसकी नियमित रूप से यदि पूजा की जाए तो व्यक्ति को सुख-शांति की प्राप्ति होती है और गृह कलेश आदि से मुक्ति मिलती है। इसे खरीदने से पहले यह जरूर जान लें कि वह पारद शिवलिंग असली है या नहीं।  यदि आप Original Parad Shivling खरीदने के इच्छुक हैं तो इसे prabhubhakti.in से Online Order करवा सकते है। )

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