लिंगराज मंदिर का इतिहास | Lingaraj Temple History in Hindi | लिंगराज मंदिर कहां स्थित है?
Lingaraj Temple in Hindi- लिंगराज मंदिर का इतिहासइंटरनेट पर दी गई जानकारी के अनुसार यह 10वीं और 11वीं शताब्दी में बनाया गया था। इस मंदिर को सोमवंशी राजा जजाति केसरी द्वारा बनवाया गया था। वहीं मंदिर की ऊंचाई 55 मीटर है और इस पर बेहद शानदार नक़्क़ाशी की गई है। मंदिर का निर्माण कलिंग और उड़िया शैली में किया गया है।
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लिंगराज मंदिर कहा है – भारत एक ओडिशा राज्य की राजधानी कही जाने वाले भुवनेश्वर प्रान्त में लिंगराज मंदिर अवस्थित है। इसे भुवनेश्वर प्रान्त के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है। बता दें कि यह मंदिर त्रिभुवनेश्वर यानी भगवान् शिव को समर्पित है। भगवान् शिव के त्रिभुवनेश्वर रूप से तात्पर्य है तींनों लोकों का स्वामी।
लिंगराज मंदिर का निर्माण कब और किसने करवाया? | Lingraj Mandir ka Nirman kisne karvaya? | लिंगराज मंदिर के निर्माता कौन है? | Lingaraj Temple, built by which century?
lingraj mandir kisne banvaya tha – इस मंदिर का निर्माण सोमवंशी राजा ययाति केशरी ने ११वीं शताब्दी में करवाया था। उसने तभी अपनी राजधानी को जाजपुर से भुवनेश्वर में स्थानांतरिक किया था। इस स्थान को ब्रह्म पुराण में एकाम्र क्षेत्र बताया गया है।
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राजा जजाति केशरी , जिन्हें लिंगराज मंदिर का संस्थापक माना जाता है, ने मुस्लिम आक्रमणकारियों के बढ़ते आक्रमणों के कारण, शैव धर्म के बारे में अपने ज्ञान में वृद्धि के कारण, दक्षिण भारत में स्थानांतरित हुए ब्राह्मणों को स्थानीय ब्राह्मणों के स्थान पर मंदिर के पुजारी के रूप में नियुक्त किया।
अभी जो मंदिर वर्तमान में मौजूद है वह 11 वीं शताब्दी में निर्मित हुआ था परन्तु इस मंदिर में मौजूद कुछ अवशेष 1400 वर्षों से भी प्राचीन हैं। जिस कारण इस मंदिर का उल्लेख हमें छठी शताब्दी में भी मिलता है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण सोमवंश के राजा ययाति प्रथम के द्वारा करवाया गया था।
भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर की कहानी | लिंगराज मंदिर का रहस्य | Lingaraj Temple Story in Hindi | About Lingaraj Temple in Hindi
लिंगराजा मंदीर के बारे में ऐसी कथा प्रचलित है कि इसी स्थान पर ‘लिट्टी’ तथा ‘वसा’ नाम के दो राक्षसों का वध किया गया था वो भी देवी पार्वती के द्वारा। राक्षसों से युद्ध के पश्चात देवी पार्वती को प्यास लगती है। इसके लिए भगवान शिव ने एक कूप बनाया और सभी पवित्र नदियों को उस कूप में योगदान के लिए बुलाया। जिसे अब बिंदुसागर सरोवर के नाम से जाना जाता है। इसी बिंदुसागर के निकट यह विशाल लिंगराज मंदिर अवस्थित है। बताते चलें कि यह स्थान शैव संप्रदाय के लोगों का एक मुख्य केंद्र रहा है।
कहने को यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है पर आपको जानकार हैरानी होगी कि इस मंदिर का आधा भाग शिव जी का और आधा भाग विष्णु जी का है। यानी नीचे के भाग में भगवान् शिव निवास करते हैं और ऊपर का हिस्सा भगवान विष्णु को समर्पित है क्योंकि यहाँ विष्णु जी शालिग्राम के रूप में विराजमान है।
कहने को यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है पर आपको जानकार हैरानी होगी कि इस मंदिर का आधा भाग शिव जी का और आधा भाग विष्णु जी का है। यानी नीचे के भाग में भगवान् शिव निवास करते हैं और ऊपर का हिस्सा भगवान विष्णु को समर्पित है क्योंकि यहाँ विष्णु जी शालिग्राम के रूप में विराजमान है।
लिंगराज मंदिर स्थापत्य कला | Lingaraj Temple Architecture | Lingaraj Temple Hindi
लिंग राज मंदिर को कलिंग और उड़िया शैली में निर्मित किया गया है। बलुआ पत्थरों से बने इस लिंगराज मंदिर के ऊपरी भाग पर उल्टी घंटी और कलश स्थापित है। जो सभी के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इस मंदिर के ऊपर वाले हिस्से को पिरामिड के आकार का रूप दिया गया है।
यहाँ पर जो शिवलिंग स्थापित है उसकी खासियत यह है कि वह करीब आठ फ़ीट मोटा और एक फीट ऊँचा ग्रेनाइट से निर्मित स्वयंभू शिवलिंग है। इस शिवलिंग के बारे में ऐसी मान्यता है कि भारत में जो 12 ज्योतिर्लिंग पाए जाते है उन सभी का इस शिवलिंग में समाहित है तभी तो इसे लिंगराज नाम दिया गया है।
मंदिर कुल चार भागों में बंटा हुआ है जिसमें पहला भाग है – गर्भ गृह, दूसरा भाग है – यज्ञ शैलम, तीसरा भोगमंडप और चौथा भाग नाट्यशाला। यहाँ आने वाले भक्तजन सबसे पहले सर्वप्रथम बिन्दुसरोवर में स्नान करते हैं उसके बाद वे अनंत वासुदेव के दर्शन करते हैं। फिर गणेश पूजा होती है और गोपालन देवी के दर्शन किये जाते है। इसके पश्चात भगवान् शिव की सवारी नंदी के दर्शन होते हैं और अंत में लिंगराज महाराज के दर्शन किये जाते हैं।
यहाँ पर जो शिवलिंग स्थापित है उसकी खासियत यह है कि वह करीब आठ फ़ीट मोटा और एक फीट ऊँचा ग्रेनाइट से निर्मित स्वयंभू शिवलिंग है। इस शिवलिंग के बारे में ऐसी मान्यता है कि भारत में जो 12 ज्योतिर्लिंग पाए जाते है उन सभी का इस शिवलिंग में समाहित है तभी तो इसे लिंगराज नाम दिया गया है।
मंदिर कुल चार भागों में बंटा हुआ है जिसमें पहला भाग है – गर्भ गृह, दूसरा भाग है – यज्ञ शैलम, तीसरा भोगमंडप और चौथा भाग नाट्यशाला। यहाँ आने वाले भक्तजन सबसे पहले सर्वप्रथम बिन्दुसरोवर में स्नान करते हैं उसके बाद वे अनंत वासुदेव के दर्शन करते हैं। फिर गणेश पूजा होती है और गोपालन देवी के दर्शन किये जाते है। इसके पश्चात भगवान् शिव की सवारी नंदी के दर्शन होते हैं और अंत में लिंगराज महाराज के दर्शन किये जाते हैं।
लिंगराज मंदिर कैसे पहुंचे? | How to reach Lingaraj Temple?
लिंगराज मंदिर ओडिशा के भुवनेश्वर शहर में है जो इस राज्य की राजधानी है और लगभग भारत के सभी शहरों से सम्पर्क में है। यहाँ तक पहुँचने के लिए रेल, सड़क या हवाई मार्ग तीनों में से किसी का भी प्रयोग किया जा सकता है। इस मंदिर के सबसे समीप Lingaraj Temple Road Station है जबकि भुवनेश्वर एयरपोर्ट से इसकी दूरी 5 किलोमीटर है।
लिंगराज मंदिर क्यों प्रसिद्ध है? | Lingaraj Mandir kyu Prasidh hai?
लिंगराज का विशाल मन्दिर अपनी अनुपम स्थापत्यकला के लिए प्रसिद्ध है। मन्दिर में प्रत्येक शिला पर कारीगरी और मूर्तिकला का चमत्कार है। इस मन्दिर का शिखर भारतीय मन्दिरों के शिखरों के विकास क्रम में प्रारम्भिक अवस्था का शिखर माना जाता है।