शुक्र है कौरवों ने नहीं बनाया महाभारत के इस परमवीर योद्धा को अपना सेनापति,शुक्र है पांडवों ने नहीं बनाया इस योद्धा को अपना निशाना और शुक्र है इस कौरव योद्धा ने नहीं किया अपनी पूरी शक्ति का प्रयोग। स्वयं श्री कृष्ण भी इस कौरव योद्धा की शक्ति से परिचित थे,इसलिए उन्होंने हमेशा पांडवों को इस योद्धा से दूर रहने को कहा। स्वयं भीम और अर्जुन भी महाभारत के इस परमवीर योद्धा से भय खाते थे तथा उन्होंने कभी भी इस कौरव योद्धा से युद्ध नहीं किया।
वास्तव में आज हम आपको जिस कौरव योद्धा के बारे में बताने जा रहे हैं,वो महाभारत का सोता हुआ शेर था। जिसे जगाने की हिम्मत ना तो कौरवों में थी और ना हीं पांडवों में। स्वयं पितामह भीष्म,गुरु द्रोण और श्री कृष्ण भी इनकी शक्तियों के कायल थे। अनेकों भयानक दिव्यास्त्रों का ज्ञान होने के बावजूद इस योद्धा ने कभी उनका प्रयोग नहीं किया। तो आखिर कौन था ये कौरव योद्धा? क्यों दिया उसने कौरवों का साथ? और क्या हुआ तब जब दुर्योधन ने उठाए इस योद्धा पर प्रश्न? जानने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़िएगा। लेकिन सबसे पहले “जय श्री कृष्ण ” कमेंट करना बिल्कुल भी मत भूलिएगा। भगवान श्री कृष्ण की कृपा आपके घर परिवार पर बनी रहेगी।
कौन था महाभारत का गुमनाम कौरव योद्धा? | Who Was The Unsung Kaurava Warriors
महाभारत में एक समय ऐसा आता है,जब दुर्योधन को ऐसा लगता है कि कृपाचार्य युद्ध में क्या करेंगे? वे तो एक साधारण ब्राह्मण हैं,उनका युद्ध से क्या सम्बन्ध? दुर्योधन अपने मन में आए इस विचार को पितामह भीष्म से साझा करता है। तब पितामह भीष्म दुर्योधन को कृपाचार्य की वास्तविक सच्चाई बताते है। जिससे सुनने के बाद दुर्योधन के कृपाचार्य के प्रति विचार बदल जाते हैं। भीष्म ने बताया कि सप्तऋषि गौतम के पोते और ऋषि शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य,एक या दो नहीं बल्कि पुरे के पुरे साठ हजार महारथियों को अकेले हारने कि क्षमता रखते हैं। वृद्धावस्था में भी कृपाचार्य महारथियों के भी महारथी हैं तथा अपने पिता शरद्वान के समान हीं अनेकों युद्ध विद्याओं में माहिर हैं। कृपाचार्य का जन्म भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय कि तरह हीं सरकंडे से हुआ है। वे चाहे तो पांडव सेना में हाहाकार मचा सकते हैं,परन्तु वे इस बात को भी जानते हैं कि धर्म पांडवों के साथ है इसलिए वे अपनी पूरी शक्ति का प्रयोग नहीं कर रहे। वरुणास्त्र,अग्नेआस्त्र,इन्द्रास्त्र और ब्रह्मस्त्र का ज्ञान रखने वाले योद्धा कृपाचार्य कोई साधारण ब्राह्मण नहीं। बल्कि भगवान परशुराम और गुरु द्रोण के समान हीं शास्त्र और शस्त्र का ज्ञान रखने वाले एक महावीर ब्राह्मण हैं।
इस योद्धा की क्यों होती है सप्तऋषियों में गिनती? | Why Is This Warrior Counted Among The Seven Sages?
कृपाचार्य की सच्चाई जानने के बाद स्वयं दुर्योधन भी हैरान हो गया और उसने उस वीर ब्राह्मण योद्धा को सामान्य समझना बंद कर दिया। हस्तिनापुर के कुलगुरु कृपाचार्य,अनेकों भयानक अस्त्रों से लेकर दिव्यास्त्रों तक का ज्ञान रखते थे। राजा शांतनु के जाने के बाद भीष्म पितामह ने ही उन्हें अपने कुरु वंश का कुलगुरु बनाया था। वे धर्म,निति और शास्त्र के बड़े विद्वान थे। धृतराष्ट्र की सभा में विदुर,भीष्म पितामह और गुरु द्रोणाचार्य के समान हीं कृपाचार्य भी विशेष स्थान रखते थे। अपनी विद्या और धर्म-नीतियों के आधार पर उन्होंने वर्षों तक कुरु वंश का मार्गदर्शन किया। कौरवों और पांडवों को आरम्भिक शिक्षा कृपाचार्य ने हीं दी थी और बाद में वे गुरु द्रोण के आश्रम में गए। कुरुवंश के कुलगुरु कृपाचार्य की कृपी नाम की एक बहन भी थीं,जिनका विवाह द्रोणाचार्य से हुआ और महारथी अश्वथामा कृपी और द्रोणाचार्य के हीं पुत्र थे। महाभारत के आदि पर्व अध्याय 67 के अनुसार कृपाचार्य रुद्रगणों में से एक के वंशावतार थे। देवी भागवत में कृपाचार्य को मरुतों में से एक का वंशावतार माना गया है। विष्णुपुराण अंश तीन के अनुसार,आगे होने वाले मन्वन्तर में वे मनु बन प्रलय से बचायेंगे और वे सप्तऋषिओं में से भी एक बनेंगे।
महाभारत के इस कौरव योद्धा का,क्या था हनुमान जी से सम्बन्ध? | What Was The Relationship Of This Kaurava Warrior With Hanuman Ji?
कृपाचार्य के दादा महर्षि गौतम सप्तऋषिओं में से एक थे। ऋग्वेद में कई सारे सूक्त आज भी उन्ही के नाम से जाने जाते हैं। गौतम ऋषि का विवाह ब्रह्मदेव की मानस पुत्री देवी अहिल्या के साथ हुआ,जिनकी गिनती प्राचीन काल स्मरणीय पंच कन्याओं में की जाती हैं। ऐसा कहा जाता है कि उस काल में अहिल्या से ज्यादा सुन्दर कोई दूसरी महिला नहीं थी। अहिल्या वही देवी हैं जो भगवान श्री राम के चरण स्पर्श से पत्थर से महिला बन गई थी। हनुमान जी की माता अंजनी,महर्षि गौतम और अहिल्या की हीं पुत्री थीं।
ऐसा माना जाता है एक बार गौतम ऋषि को गौ हत्या का पाप लग गया था। राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में स्तिथ गौतमेश्वर महादेव तीर्थ में स्थित मंदाकिनी गंगा कुंड के बारे में यह मान्यता है कि,इसी कुंड में स्नान करने के पश्चात महर्षि गौतम को गौ हत्या के दोष से मुक्ति मिली थी। इसके पश्चात महर्षि गौतम ने यहाँ महादेव की आराधना करके एक स्वयंभू शिवलिंग प्रकट किया था,जो आज भी उन्ही के नाम पर गौतमेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। गौतम ऋषि के पुत्र का नाम शरद्वान था,जिनका जन्म बाणों के साथ हुआ था। उन्हें वेदाभ्यास में थोड़ी भी रुचि नहीं थी तथा धनुर्विद्या से उन्हें अत्यधिक लगाव था।
महाभारत के बाद भी कैसे जिन्दा बचा ये कौरव योद्धा? | How Did This Kaurava Warrior Survive Even After The Mahabharata?
शरद्वान धनुर्विद्या में इतने निपुण थे कि देवराज इन्द्र भी उनसे भय खाते थे। इन्द्र ने उन्हें साधना से डिगाने के लिए नामपदी नामक एक देवकन्या को उनके पास भेज दिया। उस देवकन्या के सौन्दर्य के प्रभाव से शरद्वान इतने कामपीड़ित हुए कि उनकी उत्तेजना का असर वहां पड़े सरकंडे पर गिर गया। वह सरकंडा दो भागों में विभक्त हो गया,जिसमें से एक भाग से कृप नामक बालक उत्पन्न हुआ और दूसरे भाग से कृपी नामक कन्या उत्पन्न हुई। इन दोनों को जंगल में छोड़ शरद्वान वहां से चले गए।
भीष्म पितामह के पिता शांतनु इन बच्चों को जंगल से हस्तिनापुर ले आए और इनका पालन पोषण करने लगे। शरद्वान ने अपने ध्यान साधना के दम पर यह देख लिया और वे गुप्त तरीके से कृप के पास आकर इनको वो सभी विद्याएं सिखाने लगे जो वे जानते थे। इस प्रकार कृप नामक वह बालक अपने पिता के सामान हीं वीर और विद्वान बन गया। अनेकों भयानक दिव्यास्त्रों से लेकर शास्त्रों तक का ज्ञान रखने वाला कृप नामक वही बालक,आगे चलकर कृपाचार्य कहलाया। तो क्या आप कृपाचार्य की इस कहानी से परिचित थे? हमें कमेंट कर के जरूर बताइएगा।