गुरु प्रदोष का महत्व ( Guru Pradosh Vrat ka Mahatva )
हिन्दू पंचाग में हर महीने की शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में त्रयोदशी तिथि को गुरूवार के दिन पड़ने वाले व्रत को गुरु प्रदोष व्रत ( Guru Pradosh Vrat ) कहा जाता है। इस दिन का विशेष महत्व है, प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है जबकि गुरुवार का दिन भगवान विष्णु का माना जाता है। इस तरह से गुरूवार के दिन रखे जाने वाले प्रदोष व्रत में दोनों ही भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
साथ ही यदि आपकी कुंडली में गुरु अशुभ फल दे रहा है तो इस दिन गुरु यन्त्र लॉकेट ( Guru Yantra Locket ) को धारण करने से गुरु दोष के बुरे प्रभावों में कमी आती है।
साथ ही यदि आपकी कुंडली में गुरु अशुभ फल दे रहा है तो इस दिन गुरु यन्त्र लॉकेट ( Guru Yantra Locket ) को धारण करने से गुरु दोष के बुरे प्रभावों में कमी आती है।
गुरु प्रदोष व्रत कथा ( Guru Pradosh Vrat Katha )
एक बार की बात है इंद्र और वृत्रासुर की सेना में भीषण युद्ध हुआ जिसमें देवताओं ने दैत्यों की सेना को पराजित कर दिया। अपनी हार को देख कर वृत्रासुर को बहुत क्रोध आया और वह स्वयं युद्ध करने के लिए तैयार हो गया। असुरों की शक्ति से उसने विकराल रूप धारण कर लिया जिसे देख कर सभी देवता गण भय खाने लगे। इसी भयभीत अवस्था में वे बृहस्पतिदेव के पास समाधान के लिए पहुंचे। देवताओं की चिंता देख बृहस्पतिदेव बोले कि सर्वप्रथम मुझे वृत्रासुर का परिचय देना होगा।
वृत्रासुर दैत्य बड़ा ही कर्मनिष्ठ और तपस्वी प्रवृति का है। अपनी इसी प्रवृति के चलते उसने गंधमादन पर्वत पर कठोर तपस्या कर भगवान शिव ( Bhagwan Shiv ) का आशीर्वाद पाया है। अपने पीछे जन्म में वृत्रासुर एक चित्ररथ नामक एक राजा हुआ करता था। एक बार वह कैलाश पर्वत पहुंचा तो वहां भगवान शिव के वाम अंग में माता पार्वती विराजमान थी जिसे देख कर चित्ररथ ने उपहास उड़ाना शुरू कर दिया। चित्ररथ बोला कि मोह माया में फंसकर हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं। परन्तु ऐसा कभी देवलोक में नहीं देखा कि स्त्री आलिंगनबद्ध होकर सभा में बैठी हो।
भगवान शिव ( Bhagwan Shiv ) ने तो यह उपहास हंसकर टाल दिया। शिव जी ने कहा कि इस संबंध में मेरा दृष्टिकोण सभी से अलग है। मैंने विषपान किया है फिर तुम इस प्रकार उपहास उड़ाते हो। वहीँ चित्ररथ की सभी बातें सुनकर देवी पार्वती क्रोधित हो उठी। उन्होंने कहा कि तूने सर्वव्यापी महेश्वर के साथ मेरा भी अपमान किया है अतः मैं तुझे ऐसी शिक्षा दूंगी कि ऐसा उपहास उड़ाने का दुस्साहस फिर तू कभी नहीं करेगा। देवी ने श्राप देते हुए कहा कि तू दैत्य रूप धारण कर विमान से नीचे गिरे, ऐसा मेरा श्राप है।
देवी पार्वती के श्राप के चलते ही राजा चित्ररथ त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो वृत्रासुर बन गया। वृत्रासुर अपनी बाल्यावस्था से ही महान शिवभक्त रहा है। इसलिए वृत्रासुर को पराजित करने के लिए हे! इंद्र तुम गुरुवार के दिन प्रदोष व्रत का पालन कर भगवान शिव को प्रसन्न करो। इस तरह बृहस्पतिदेव की बात मानकर इंद्रा और सभी देवताओं ने गुरु प्रदोष व्रत का पालन किया और अंततः वृत्रासुर को पराजित कर दिया।
वृत्रासुर दैत्य बड़ा ही कर्मनिष्ठ और तपस्वी प्रवृति का है। अपनी इसी प्रवृति के चलते उसने गंधमादन पर्वत पर कठोर तपस्या कर भगवान शिव ( Bhagwan Shiv ) का आशीर्वाद पाया है। अपने पीछे जन्म में वृत्रासुर एक चित्ररथ नामक एक राजा हुआ करता था। एक बार वह कैलाश पर्वत पहुंचा तो वहां भगवान शिव के वाम अंग में माता पार्वती विराजमान थी जिसे देख कर चित्ररथ ने उपहास उड़ाना शुरू कर दिया। चित्ररथ बोला कि मोह माया में फंसकर हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं। परन्तु ऐसा कभी देवलोक में नहीं देखा कि स्त्री आलिंगनबद्ध होकर सभा में बैठी हो।
भगवान शिव ( Bhagwan Shiv ) ने तो यह उपहास हंसकर टाल दिया। शिव जी ने कहा कि इस संबंध में मेरा दृष्टिकोण सभी से अलग है। मैंने विषपान किया है फिर तुम इस प्रकार उपहास उड़ाते हो। वहीँ चित्ररथ की सभी बातें सुनकर देवी पार्वती क्रोधित हो उठी। उन्होंने कहा कि तूने सर्वव्यापी महेश्वर के साथ मेरा भी अपमान किया है अतः मैं तुझे ऐसी शिक्षा दूंगी कि ऐसा उपहास उड़ाने का दुस्साहस फिर तू कभी नहीं करेगा। देवी ने श्राप देते हुए कहा कि तू दैत्य रूप धारण कर विमान से नीचे गिरे, ऐसा मेरा श्राप है।
देवी पार्वती के श्राप के चलते ही राजा चित्ररथ त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो वृत्रासुर बन गया। वृत्रासुर अपनी बाल्यावस्था से ही महान शिवभक्त रहा है। इसलिए वृत्रासुर को पराजित करने के लिए हे! इंद्र तुम गुरुवार के दिन प्रदोष व्रत का पालन कर भगवान शिव को प्रसन्न करो। इस तरह बृहस्पतिदेव की बात मानकर इंद्रा और सभी देवताओं ने गुरु प्रदोष व्रत का पालन किया और अंततः वृत्रासुर को पराजित कर दिया।
गुरु प्रदोष व्रत की पूजा कैसे की जाती है? ( Guru Pradosh Vrat ki puja kaise ki jaati hai? )
1. प्रातःकाल स्नान कर हल्के पीले और हल्के गुलाबी वस्त्र पहनें।
2. भगवान शिव और भगवान विष्णु को पंचामृत चढ़ाएं।
3. इसके बाद घी का दीपक और धूप जलाएं।
4. फिर पुष्प, फल और नैवैद्य का भोग लगाएं तथा भगवान शिव को बेलपत्र अर्पित करें।
5. भगवान शिव और विष्णु की आरती करें।
6. आसन पर बैठकर भगवान शिव का ध्यान करें व ॐ नमः शिवाय का 108 बार जप करें।
7. केले के पेड़ के नीचे घी का दीपक जलाने और भगवान विष्णु के 108 नामों का जप करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
2. भगवान शिव और भगवान विष्णु को पंचामृत चढ़ाएं।
3. इसके बाद घी का दीपक और धूप जलाएं।
4. फिर पुष्प, फल और नैवैद्य का भोग लगाएं तथा भगवान शिव को बेलपत्र अर्पित करें।
5. भगवान शिव और विष्णु की आरती करें।
6. आसन पर बैठकर भगवान शिव का ध्यान करें व ॐ नमः शिवाय का 108 बार जप करें।
7. केले के पेड़ के नीचे घी का दीपक जलाने और भगवान विष्णु के 108 नामों का जप करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
साल 2022 में गुरु प्रदोष व्रत कब है? ( 2022 Guru Pradosh Vrat Kab hai? )
अप्रैल 14, 2022
बृहस्पतिवार- चैत्र, शुक्ल त्रयोदशी
प्रारम्भ- शुक्ल त्रयोदशी तिथि 14 अप्रैल को सुबह में 4 बजकर 49 मिनट पर
समाप्त- 15 अप्रैल को देर रात 3 बजकर 55 मिनट पर
अप्रैल 28, 2022
बृहस्पतिवार- वैशाख, कृष्ण त्रयोदशी
प्रारम्भ- कृष्ण त्रयोदशी तिथि 28 अप्रैल को देर रात 12 बजकर 23 मिनट पर
समाप्त- 29 अप्रैल को देर रात 12 बजकर 26 मिनट पर
सितम्बर 8, 2022
बृहस्पतिवार- भाद्रपद, शुक्ल त्रयोदशी
प्रारम्भ- भाद्रपद, शुक्ल त्रयोदशी तिथि 8 सितंबरको देर रात 12 बजकर 04 मिनट पर
समाप्त- 08 सितंबर को रात में 9 बजकर 02 मिनट पर
बृहस्पतिवार- चैत्र, शुक्ल त्रयोदशी
प्रारम्भ- शुक्ल त्रयोदशी तिथि 14 अप्रैल को सुबह में 4 बजकर 49 मिनट पर
समाप्त- 15 अप्रैल को देर रात 3 बजकर 55 मिनट पर
अप्रैल 28, 2022
बृहस्पतिवार- वैशाख, कृष्ण त्रयोदशी
प्रारम्भ- कृष्ण त्रयोदशी तिथि 28 अप्रैल को देर रात 12 बजकर 23 मिनट पर
समाप्त- 29 अप्रैल को देर रात 12 बजकर 26 मिनट पर
सितम्बर 8, 2022
बृहस्पतिवार- भाद्रपद, शुक्ल त्रयोदशी
प्रारम्भ- भाद्रपद, शुक्ल त्रयोदशी तिथि 8 सितंबरको देर रात 12 बजकर 04 मिनट पर
समाप्त- 08 सितंबर को रात में 9 बजकर 02 मिनट पर